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अमरीका की नयी पर्यावरण योजना एक दृष्टि भ्रम के सिवा कुछ नहीं है

बड़े ही हर्षौल्लास के साथ अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने वाइट हाउस के मंच से यह घोषणा की, कि पर्यावरण में बदलाव के लिए प्रशासनिक योजना के तहत एक नयी साफ़ सुथरी और मज़बूत योजना बनायी गयी है जिसका उद्देश्य अमरीका में बिजली पैदा करने से कार्बन उत्सर्जन खासकर कोयले से बनने वाली बिजली, में 2030 तक 32 प्रतिशत की कटौती का ली जायेगी जोकि 2005 के स्तर से नीचे है. इस योजना के तहत संघीय पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने शुद्ध हवा अधिनियम के तहत कुछ नियम बनाए हैं जिसके तहत या तो कोयले से चलने वाले प्लांट को बंद कर दिया जाएगा या फिर कोयला आधारित बिजली स्टेशनों की क्षमता में सुधार किया जाएगा और गैर जीवाश्म ईंधन को बढ़ावा दिया जाएगा ऐसा दावा किया गया है. पर्यावरण को प्रभावित करने वाले उत्सर्जन के नियमन के लिए जो नियम बनाए हैं वे अमरीका के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरण पर दाखिल के याचिका की अंतिम सुनवाई के तहत और उसके द्वारा सभी नियमों को स्वीकार करने के बाद बने हैं क्योंकि इसमें सवाल यह था की नियम केवल प्रदुषण से सम्बंधित है न कि पर्यावरण बदलाव से सम्बंधित.

                                                                                                                                 

अपनी अनोखी भाषण शैली में, राष्ट्रपति ओबामा ने इस योजना को हवा में प्रदुषण और पर्यावरण बदलाव को रोकने के लिए अमरिकी प्रशासन द्वारा “अकेले एक महत्त्वपूर्ण कदम’ की संज्ञा दी है, और कहा कि इससे नए रोज़गार पैदा होंगे, सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार होगा और अमरिकी अर्थव्यवस्था को बेशुमार फायदे होंगे.

इसमें कोई शक नहीं है कि अगर कोयले से बननें वाली बिजली के प्लांट से होने वाले उत्सर्जन को कम कर दिया जाता है और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाता है तो इसके काफी फायदे होंगे. लेकिन सवाल है कि किस हद तक? जिस उल्लासोन्माद के साथ अमरीका और पश्चिमी मीडिया में इसकी घोषणा की गयी, उस पर जलवायु परिवर्तन में शामिल उदारवादी थिंक टैंक और टिप्पणीकारों और यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने भी इस नयी योजना को काफी हवा दी है.

अमरीका में कोयले से बनने वाली बिजली के प्लांट

यह दावा किया गया है कि राष्ट्रपति ओबामा की यह घोषणा एक नाटकीय बदलाव लाएगी, न केवल अमरीका की जलवायु और उसकी राजनीती की स्थिति में जहाँ अभी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर गर्माहट बढ़ रही है, बल्कि दिसंबर 2015 में पेरिस में होने जा रही जलवायु परिवर्तन पर शिखर वार्ता पर भी उसके अच्छे असर होंगे जो वैश्विक उत्सर्जन नियंतरण डील पर पहुँचाना चाहती है. यह कहा गया कि इतने बड़े स्तर पर उत्सर्जन में कमी की घोषणा करने से राष्ट्रपति ओबामा ने यह दिखा दिया है कि अमरीका जलवायु परिवर्तन के सवाल पर कितना गंभी है और वह इसके लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठा रहा है, और वह ऐसा कर दूसरों देशों के लिए एक उदहारण पेश कर रहा है और उन्हें चुनौती दे रहा है कि वे भी पेरिस में होने महत्त्वाकांक्षी समझौते के मद्देनज़र ऐसी घोषणाएं करें. लेकिन सच से बड़ा कुछ नहीं होता.

लेकिन तथ्य यह है कि अगर इसका सही विश्लेषण किया जाए तो यह एक दृष्टि भ्रम से बढ़कर कुछ नहीं है. अगर आप एक तरह से देखते हैं तो आपको दिखेगा की एक मोमबत्ती सफ़ेद पृष्ठभूमि पर खडी है, अगर उसे दूसरी तरह से देखें तो लगेगा जसी एक-दुसरे के आमने-सामने दो सफ़ेद चेहरे एक आकर्ती में काली पृष्ठभूमि में खड़े हैं!

अमरीका की योजना और वैश्विक उत्सर्जन में कमी

आइये पहले हम अमरीका की मौजूदा उत्सर्जन को कम करने वाली शपथ का जायजा लेते हैं जो सीधे तौर पर इससे जुडी हुयी है, और दोनों का तुलनात्मक ढंग से जायजा लेते हैं यह ध्यान में रखते हुए कि विश्विक औसत तापमान में बढ़ोतरी 2 डिग्री से से भी कम होनी चाहिए.

अमेरिका समर्थित कोपेनहेगन समझौते (2009) के बाद, जिसे 2011 में कैनकन और डरबन में वैधता मिली, जो बाद में अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ता के लिए एक डी-फेक्टो मार्गदर्शक सिद्धांत बन गया, और इसके साथ ही सभी देशो ने उत्सर्जन में कमी लाने के लिए खुद प्रतिबद्धतता भरी घोषणाएं कर दी. सभी देशों के लिए एक ही योजना ने क्योटो प्रोटोकोल के स्थान पर "एकल रूपरेखा" स्थापित कर दिया उसके सिद्धांत विकसित और विकासशील देशों के अंतर की बहस को ख़त्म कर दिया और विकसित देशों को 1990 के स्तर पर उत्सर्जन में कमी लाने और विकासशील देशों द्वारा उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से गैर-बाध्यकारी कार्रवाई करना शामिल है। पेरिस की वार्ता की ओर अग्रसर इस तरह की शपथ को अब "राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान का इरादा" (आई.एन.डी.सी.) कहा जाता है, और जोकि बहस के लिए मंच पर उपलब्ध है जिसकी पूरी संभावना है कि यह किसी भी होनेवाले समझौते का आधार बनेगी.

अमरीका की उच्च उत्सर्जन को देखते हुए और उसकी पांचवी मूल्यांकन रपट को ध्यान में रखते हुए उत्सर्जन को कम करने की वैश्विक और अमरीका के स्तर पर जो जरूरत है उसके सामने उसकी घोषणा काफी दयनीय दिखती है, अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन पैनल ने कहा है वैश्विक उत्सर्जन 2050 में 40-70 प्रतिशत होना चाहिए, जोकि 2010 के स्तर से कम होगा ताकि 2100 तक ग्रीनहाउस गैस को शून्य तक लाया जा सके. इस परिदृश्य में यह उम्मीद की जाती है कि विकसित देशों का उत्सर्जन 2050 तक 1990 के स्तर से कम पर 80-90 प्रतिशत होना चाहिए.

विज्ञान के हिसाब से विकसित देशों ने जो भी घोषणाएं की हैं वे जरूरत से काफी कम हैं. अमरीका ने “सबसे कम की दौड़ में” आगे है. अमरीका ने शपथ ली है कि वह 2025 तक 2005 के स्तर से कम पर उत्सर्जन में 26-28 प्रतिशत की कमी ले आयेगा. जब उसे 1990 की बेसलाइन के साथ समायोजित करेंगे तो यह 2025 तक 12-14 प्रतिशत ही बैठेगा! इसके विपरीत यूरोपियन यूनियन हालांकि जरूरत से काफी कम है पर उसने “कम से कम” 1990 के स्तर से 2030 तक 40 प्रतिशत कम करने की शपथ ली है और सदी के अंत तक आईपी.सी.सी. द्वारा विकसित देशों के तय सीमा तक पहुँच जायेगी.   

कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से उत्सर्जन को रोकने के लिए नए अमेरिकी घोषणा अमरीका द्वारा कोई अतिरिक्त प्रतिबद्धता नहीं है बल्कि यह पिछली शपथ का एक हिस्सा ही है, उन उपायों में से शपथ को लागू करने के लिए इस्तेमाल करने के मतलब है कि अमरीका 26-28 प्रतिशत उत्सर्जन कम करने के बजाये उसे 9 प्रतिशत पर रखेगा.

यद्दपि नयी योजना अभी लागू भी नहीं हुयी है, अमरीका में पिछले एक दशक से बिजली पैदा करने वाले संयत्रों से उत्सर्जन में कमी आ रही है. आम अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों को ध्यान में रखें तो, उत्सर्जन में कमी कोयले द्वारा बिजली की जगह प्राकृतिक गैस से बिजली पैदा करने से आ रही है, जिसमें बिजली पैदा करने के लिए शीस्ट तेल और हवा का इस्तेमाल होता है इसके अलावा प्रदुषण फैलाने वालों के खिलाफ शख्त कार्यवाही और कोयले से पैदा बिजली का महंगा होना तथा जैसे तथ्य भी इसके लिए जिम्मेदार हैं. वर्ष 2005-2013 के अंतराल में बिजली पैदा करने से उत्सर्जन में 15 प्रतिशत की कमी आई है. तो इसलिए अमरीका पहले से ही तय उद्देश्य के आधे पर पहुंचा हुआ है, फिर इसके लिए बराक ओबामा को नयी योजना की घोषणा करने की क्या जरूरत थी?

अमरीका जोकि दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा उत्सर्जन पैदा करने वाला देश है, इस हद तक के उत्सर्जन को कम करने की योजना भ्रम फैलाने के अलावा कुछ नहीं है. लेकिन कुछ टिपण्णीकर्ताओं ने इसे या तो “पासा पलटने” वाली योजना कहा है, या वाशिंगटन आधारित प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद के वक्ता ने इसे “ऐसा इरादा बताया जो दुनिया को बदल देगा”. एक एन.जी.ओ. जोकि अर्थ का दोस्त है ने एक ब्यान में कहा है कि यह योजना “हमारे जलवायु संकट को संबोधित करने में सक्षम नहीं है,” यह केवल अमरीका की ऐतिहासिक जलवायु जिम्मेदारी के लिए सीधे-सीधे भुगतान की अदायगी है.  

उत्सर्जन में कमी लाये जाने में अमरीका से इतनी कम उम्मीद के चलते, और इस साल के अंत में होने वाली पेरिस वार्ता से भी कम उम्मीद पैदा होती है, इस सम्बन्ध में अमरीका की नयी योजना की घोषण उस स्थिति में कुछ ख़ास जोश पैदा नहीं कर पाएगी जो पहले से नाउम्मीदी का दामन थामें हुए है. लेकिन इस योजना की सिमित सीमा होने और यह पिछले अमरिकी उत्सर्जन में कमी की शपथ के एवज़ में यह अंतर्राष्ट्रीय पृष्ठभूमि में कुछ अलग से दीखता है. यह योजना पेरिस शिखर वार्ता को कोई नया आयाम प्रदान नहीं कर पाएगी क्योंकि वाइट हाउस का मानना है ज्यादा उत्सर्जन में कमी के लिए दुसरे देशों पर ज्यादा दबाव बनाना चाहिए.

अमरीका के भीतर

 

यह कहना भी मुर्खता होगी कि यह योजना अलग लगती है जब इसे अमरीकी परिप्रेक्ष्य से देखा जाता है. अमेरिका के संदर्भ में, जलवायु परिवर्तन पर उसे सुस्त कार्रवाई के लिए चिह्नित किया गया है, निश्चित रूप से विशेष रूप से रिपब्लिकन पार्टी में और विशेष रुचि समूहों, खासकर तेल और कोयला आधारित ऊर्जा निगमों के साथ गठबंधन उन वर्गों से सही से संघीय स्तर पर, और मजबूत राजनीतिक विरोध के चलते, संकीर्ण मीडिया, बड़े विचारक और अन्य मिश्रित ज़मात ने जलवायु से सम्बंधित संदेह को शह देकर और बढ़ा दिया. अमरीका के राष्ट्रपति ओबामा से लेकर दक्षिणपंथ तक के लिए साफ़ बिजली योजना एक तत्काल और प्रतिकूल है, क्योंकि अब विपक्ष में  यह राज्यों के अधिकारों पर संघीय उल्लंघन है, जैसी आवाज़ उभर रही है (बावजूद इसके कि राज्यों को नियम के तहत यह आजादी दी गयी है कि वे इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने मिश्रित उपाय सोच सकते हैं) और ऐसा भी माना जा रहा है कि इससे अर्थव्यवस्था और रोज़गार को नुकशान होगा. यह निश्चित है कि इस नयी योजना से कोयले से बननें वाली बिजली प्लांट और कोयला क्षेत्र काफी प्रभावित होंगे, लेकीन इसके के लिए केवल यह योजना जिम्मेदार नहीं बल्कि कोयले से बिजली उत्पादन में खर्च ज्यादा है क्योंकि उसे प्रदुषण के मानकों का पालन करना पड़ता है और जोकि नवीकरण बिजली के मुकाबले काफी महँगी है. कोयला आधारित बिजली अमरीका में 10 वर्ष पहले 50 प्रतिशत थी वह बा केवल 39 प्रतिशत बिजली प्रदान करती है. यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अमरीका में कोयले का य्त्पादन 1970 के स्तर पर आ जाएगा, जिसकी वजह से अमरीका को सेंकडों बिजली संयत्रों को बंद करने पर मजबूर होना पड़ेगा जिसके नतीजे में अमरीका को 45,000 मेगावाट बिजली यानी कुल उत्पादन का 5 प्रतिशत का नुकशान होगा और 5 प्रतिशत को नुकशान पुराने बिजली घरों को बंद करने से होना तय है. उर्जा उद्योग की यह शिकायत है कि कोयला बिजली से नवीकरण उर्जा में जाने से करीब 8,4 अरब डोलर का नुकशान होगा, इस तथ्य को इ.पी.ए. के अनुमान के अनुसार ऐसा करने से पर्यावरण को फायदे के साथ-साथ करीब 34-54 अरब डॉलर का निवेश होगा और रोज़गार पैदा होंगे.

खासतौर पर विधायिका में रुकावटों की अपेक्षा के चलते, अमरिकी कांग्रेस जिसमें डेमोक्रेट्स सांसदों का बड़ा हिसा चाहे कुछ भी हो जाए है, किसी भी ऐसे विधेयक जो जलवायु सम्न्धित है को पारित करने के लिए तैयार नहीं हैं, जिसमें कैप एंड ट्रेड रिजीम या कार्बन टैक्स जैसे विधेयक शामिल हैं, ओबामा प्रशासन संघीय नियमन और एजेंसियों जैसे कि इ.पी.ए.के तहत कई कदम उठा रहा है. पिछले कुछ वर्षों में कार्यकारी ने, कारों और हल्के ट्रकों के लिए सख्त स्नातक की उपाधि प्राप्त ईंधन दक्षता मानकों की घोषणा की है और भारी व्यावसायिक वाहनों के लिए मानक 2025 से 2027 तक कर दिए गए है, और इसके अलावा तेल व प्राकृतिक गैस के कुवों से मीथेन गैस के उत्सर्जन को भी रोकना है. और रेफिजेरेटर और एयर कंडीशन में इस्तेमाल होने वाली संभावित ग्रीन हाउस गैस हाइड्रो फ्लुओरोकार्बन के उत्सर्जन को भी कम करना है.

 

व्यापक जनता का समर्थन

ऐसा माना जाता है कि अमरिकी सांसद कॉर्पोरेट लॉबी पर काफी निर्भर करते हैं और इसलिए लगता है कि विशेष हितैषी उद्योग समूह एक सार्थक कदम उठाएगा. दूसरी तरफ सार्वजनिक विचार यह रहा है कि जनता की सोच दूसरी तरफ जा रही है जिसके तहत 60 प्रतिशत अमरिकी जनता यह विश्वास करती है की यह मानव जड़ित जलवायु बदलाव है और इसके विरुद्ध सख्त कदम उठाये जाने चाहिए. इस तरह की सख्त सार्वजनिक समर्थ को देखते हुए अमरीका के आधे से ज्यादा राज्य और करीब 1000 शहर और उनके स्थानीय निकायों ने उत्सर्जन की कैप, कैप और व्यापार मेकेनिज्म या अन्य उत्सर्जन के नियामक को स्वीकार कर लिया है, कभी तो यह यूरोपियन स्तर को छूने लगता है खासकर कुछ क्षेत्रों और राज्यों में.

शेयरधारक और उपभोक्ता सक्रियता में परिलक्षित इन चिंताओं के चलते, यह भी है कि साफ योजना के चलते 365 कंपनियों में से हैं, जिनकी संपत्ति 2 अरब डॉलर है इससे निपटने के लिए  यूनीलीवर, नेस्ले, जनरल मिल्स, ई-बे, लोरियल, लेवी स्ट्रास और ट्रिलियम  एसेट मैनेजमेंट के रूप में कुछ कॉरपोरेट्स के आने के लिए समर्थन देखा है साथ ही अनिच्छुक राज्यपालों को भेजे गए एक पत्र पर हस्ताक्षर भी किए हैं।

कई टिप्पणीकारों ने यह कयास लगाया है कि आने वाले राष्ट्रपति चुनाव में इस मुद्दे पर बहस होगी , हालांकि अभी इस चुनाव में डेढ़ साल बाकी है, लेकिन बहस में अभी से गर्मी छा चुकी है. डेमोक्रेट्स की राष्ट्रपति पद की दावेदार हिलेरी क्लिंटन ने नयी योजना को अपना पूरा समर्थन दे दिया है.  सीनेट में बहुमत के नेता जोकि रिपब्लिकन हैं, मित्च मेककोनेल जोकि सबसे ज्यादा कोयला उत्पादन करने वाले राकी केंटुकी से है ने इसका कड़ा विरोध किया है और इस योजना को ओबामा द्वारा “कोयले पर आक्रमण” की संज्ञा दी है, और सारे रेपुब्लिकन राज्यपाल इसे कानूनी तौर पर चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं जिसे बाद में घूमकर आना तो अमरीका के सर्वोच्च न्यायालय में ही है. इसमें कोई शक नहीं है कि राष्ट्रपति ओबामा नयी योजना को अपनी विरासत का महत्वपूर्ण अंग मानता है जबकि उसके राष्ट्रपति पद का समय अब ख़त्म होने जा रहा है.  

यह देखना बाकी है इस नयी योजना के लागू होने से उसके प्रभाव का असर यु.एन.ऍफ़.सी.सी.सी. के समझौते पर क्या होगा. जैसा कि हमने देखा है इन उपायों के अमरीका में कितने भी घरेलु फायदे हों, लेकिन अमरीका की जिम्मेदारी को देखते हुए वे काफी कम उत्सर्जन को रोकने लिए प्रतिबद्ध हैं, इसलिए उत्सर्जन को कम करने की जिम्मेदारी से अमरीका  भाग रहा है और इस जिम्मेदारी को अन्य देशों खासकर विकाशील देशों पर थोपना चाहता है कि या तो वे इस पर काबू पायें या फिर इसके परिणाम भुगतें. अमेरिका द्वारा अपनी जिम्मेदारी से मुहं मोड़ना स्पष्ट है, दुसरे देश जहाँ ज्यादा उत्सर्जन है बदकिस्मती से जिसमें भारत और ज्यादातर ब्रिक्स के देश शामिल हैं, वे भी उत्सर्जन को कम करने के मामले में काफी कम उद्देश्य लेकर चल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप पेरिस शिखर सम्मेलन के लिए एक कपटपूर्ण दृष्टिकोण उभर रहा है. मेरे उत्सर्जन के बारे में मत बोलो, और में तुम्हारे बारे में नहीं बोलूँगा! क्या आने वाले महीनों में कुछ बदलेगा?

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख में वक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारों को नहीं दर्शाते ।

 

 

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