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इरान अमेरिका परमाणु समझौता : सफलता या ईरान का समर्पण?

इसमें बहुत कम शक की गुंजाइश है कि इरान और अमेरिका के बीच वियेना में 14 जुलाई को परमाणु समझौते पर हुई सहमती इरान और अमेरिका की बीच खराब संबंधों के इतिहास के लिए एक बड़ा मील का पत्थर साबित होगा. यह अमेरिका और उसके सहयोगी द्वारा ईरान पर थोपे गए प्रतिबंधों को ख़त्म करने और इरान के परमाणु इंधन कार्यक्रम को बढाने में सहयोगी साबित होगा. शांति और कूटनीति को एक उम्मीद मिली है, यद्दपि शांति पथ का रास्ता थोड़ा मुश्किलों भरा है. दोनों गणराज्यों ने शांति प्रक्रिया को संसद में पारित करने का बीड़ा उठाया है और संसद में उनके पास बहुमत है. हिलेरी क्लिंटन जोकि 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट्स की उभरती उम्मीदवार है, उनका इजराइल के प्रति रुझान है और वे शायद ओबामा की इरान के साथ शांति की विरासत को शायद उनके बाद आगे न बढाए.

आधिकारिक तौर पर इरान के साथ समझौता P5+1 (सुरक्षा परिषद् के स्थायी पांच सदस्य + जर्मनी) के बीच तय हुआ है, वास्तविक तौर पर यह समझौता हमेशा अमेरिका और इरान के बीच का मसला रहा है.

                                                                                                                               

वियेना समझौता यह वायदा करता है कि अमेरिका आर्थिक प्रतिबांध उठा ले अगर इरान अपने परमाणु ढांचे को नेस्तनाबूद कर देगा. अमेरिका ने इरान के परमाणु इंधन को बढाए जाने की बात को भी माना है जिसे कि पहले वह मना करता रहा है. इसमें सबसे बड़ी चाल यह है कि इरान ने यह मान लिया है कि आर्थिक प्रतिबन्ध उस पर से तभी हटेंगे जब वह अपने परमाणु इंधन को समृद्ध करने के कार्यक्रम वापस ले लेगा, इससे यह संभावना उभर जाती है कि अमरीका किसी भी तरह के बहाने बना कर इस कदम में देरी उत्पन्न कर सकता है. इरान ने यह भी मान लिया है कि वह आईएईए को मिलिट्री ठिकानों की जांच भी करवाएगा, जिसमें हमेशा यह ख़तरा बना रहता है कि जांच के नाम अमेरिका हमेशा खुफिया मिशन का इस्तेमाल कर सकता है जैसा कि उसने ईराक में किया था.

अमेरिका के सहयोगी और उसके ग्राहक शाह और उसके खुनी निजाम के पतन के बाद, अमेरिका ने इरान के विरुद्ध अलग तरह का आभासी युद्ध छेड़ दिया था. पहला, ईरान के विरुद्ध युद्ध में सद्दाम का साथ देना, जिसमें सदाम को रासायनिक हथियार देना और युद्ध क्षेत्र में उसे इन हथियारों को इस्तेमाल करने में मदद करना शामिल था. दूसरा, शाह के पतन के तुरन बाद इरान के विरुद्ध आर्थिक व मिलिट्री प्रतिबन्ध लगाना और उसे संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर लागू करवाना शामिल था. इसके साथ ही नतांज़ परमाणु इंधन परिसर पर और उसके तेल प्रतिष्ठान  पर साइबर हमला करवाना था. अमेरिका ने इरान के आतंकी संगठनों जैसे जुन्दल्ला, मुजाहिदीन ए खलक (एम्.इ.के) को समर्थन दिया और ईरान की धरती पर ही इरान के परमाणु वैज्ञानिक को ख़त्म कर दिया. इस सबके बावजूद अमेरिका यह दावा करता रहा कि इरान “आतंकवाद” को इस क्षेत्र में समर्थन देकर अन्य सरकारों को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है. यह वह सरकार कह रही थी जिसने अफगानिस्तान में अल-कायदा को पैदा किया, इराक पर आक्रमण किया, लीबिया को तबाह किया और आज बह्सर अल असाद की सिरियन सरकार के विरुद्ध अल-कायदा के सहयोगी जुबाहत-अल-नुसरा के साथ गठबंधन बनाए हुए है.  

वियना समझौते में अप्रैल में लौस्सने विदेश समझौते ढाँचे की रूपरेखा को आधार बना कर दोनों तरफ से क्या अगले कदम उठाने होंगे तय किया है. लौस्सने में इरान ने माना कि वह इरान के परमाणु इंधन कार्यक्रम को वापस लेगा अगर अमेरिका और उसके सहयोगी ईरान पर से आर्थिक व मिलिट्री प्रतिबन्ध हटा लेंगे. अंतिम 160 वाला समझौता अनुक्रम को शामिल करेगा – आर्थिक प्रतिबन्ध तभी हटेंगे, जब आई.ए.इ.ए. यह प्रमाणित कर देगा कि इरान ने समझौते के तहत परमाणु कार्यक्रम को हटाने के सभी जरूरी कदम उठा लिए हैं. यह ईरान के लिए एक संभावित ख़तरा है, क्योंकि यह प्रमाण आई.ए.इ.ए.  मौजूदा निदेशक जनरल अमानो के न्रेतत्व में दे जो अमेरिका का पिट्ठू है. प्रतिबंधों को दुबारा से थोप दिया जाएगा अगर इरान समझौते के किसी भी अनुबंध की “अवहेलना” करता पाया गया. वियेना समझौते को और ज्यादा आगे बढ़ा दिया गया है और जिसे इरान ने अप्रैल में स्वीकार कर लिया है: वह हर किसी स्थान का इंस्पेक्शन करने देगा चाहे वह स्थान कितना भी संवेदनशील क्यों न हो, हालांकि यह मामले दर मामले वह भी “नियंत्रित पहुँच” के आधार पर तय होगा: इरान को इस तरह के इंस्पेक्शन को चुनौती देने का हक होगा.  

लौस्सने समझौते में यह तय किया गया है कि इरान अपने सेंट्रीफ्यूज की संख्या को 19,000 से 6,000 पर ले आएगा – जिसमें से 5000 का इस्तेमाल इंधन की समृधि के लिए किया जाएगा. इरान इस पर भी सहमत हो गया है कि कम संवर्धित यूरेनियम की सूची(3.7% शुद्धता) को 98 प्रतिशत कम करेगा – 10,000 कि.ग्रा. से केवल 300 कि.ग्रा. – बाकी को वह शायद रूस को भेज देगा. प्लूटोनियम का निर्माण करने वाले अरक भारी जल रिएक्टर को शोध और चिकित्सा के लिए रेडियो-इसोटेप के निर्माण के लिए पुन: डिज़ाइन किया जाएगा. इरान फोर्दो सुबिधा को युरेनियम को समृद्ध बनाने के लिए इस्तेमाल नहीं करेगा.

ईरान ने, इसके अतिरिक्त प्रोटोकाल के तहत आईएईए से अधिक दखल देने व निरीक्षण स्वीकार नहीं किया है,  पश्चिम जिसे कहता है की इरान पूरे परमाणु आपूर्ति श्रृंखला प्रोटोकॉल से परे इसे विस्तार करने के लिए सहमत हो गया है: इसके तहत यह यूरेनियम के खनन और मिलिंग को कवर करेगा, जिसमें निर्माण और भण्डारण तथा सेंट्रीफ्यूजस आदि शामिल है.

ईरान के परमाणु ईंधन संवर्धन कार्यक्रम की कैपिंग के लिए तय किये गए विभिन्न उपाय अगले 10-15 वर्षों के लिए जारी रहेगी। इससे इरान के परमाणु कार्यक्रम पर 10 से 15 वर्ष की रोक लग जायेगी. अब ईरान हर क्षेत्र में एक रणनीतिक संतुलन बनाने के लिए अपनी क्षमता के खतरे का उपयोग नहीं कर सकता। इसकी मिलिटरी क्षमता अपने एकदम नजदीकी प्रतियोगियों से काफी कम है, सऊदी अरब और अन्य खाड़ी के देशों के पास और अकेले इजराइल के पास 800 lb मौजूद है.

इस समझौते के तहत ईरान पर से संयुक्त राष्ट्र का मिलिट्री प्रतिबन्ध नहीं हटेगा. वे इसे अगले पांच वर्ष तक जारी रखेंगे. एक अलग अमेरिकी मिलिट्री प्रतिबन्ध जारी रहेगा और इरान भी अमेरिका वित्तीय व्यवस्था के बाहर काम कर सकेगा.

मिलिट्री प्रतिबन्ध जारी रखने का मतलब है कि इरान की पारंपरिक सैन्य ताकत अपने क्षेत्रीय प्रतियोगियों से काफी कम रहेगी, खासकर सऊदी के मुकाबले. जबकि सऊदी अरबिया और दुसरे खाड़ी देशों ने अपने मिलिट्री बजट में खासी बढ़ोतरी की है और अमरिका और अन्य पश्चिमी देशों से नए मिलिट्री यंत्र खरीद रहे हैं या खरीद चुके हैं, और इरान के पास ज्यादातर हथियार शाह की विरासत के ज़माने के हैं. यद्दपि रूस ने इरान को कुछ आधुनिक हथियार बेचे हैं, लेकिन खाड़ी देशों के मुकाबले यह कुछ भी नहीं है. इरान के पास जो सबसे बड़ा हथियार व्यवस्था है वह है उसके द्वारा तैयार की गयी बेलिस्टिक मिसाइल सिस्टम.

क्षेत्र में ईरान की मिलिट्री खर्च क अन्य देशों के साथ केसे तुलना की जा सकती है? ईरान अपने मिलातारी बजट पर 14 अरब डॉलर खर्च करता है जिसमें से बड़ा हिस्सा वेतन में जाता है. इसके मुकाबले सऊदी अरब, बहरीन, कुवैत, ओमान और यु.ए.इ. के खाड़ी देशों की परिषद् का खर्च 13 गुना ज्यादा है. अकेले छोटे से यु.ए.इ. का विशाल ईरान के मुकाबले 50 प्रतिशत खर्च ज्यादा है. ऐसा नहीं है कि इरान ने प्रतिबन्ध की वजह से मिलिट्री खर्च कम किया है. आंकड़े बताते हैं कि इरान ने अपना मिलिट्री बजट बढ़ाया है यदपि काफी कम स्तर पर, ये तो सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देश हैं जिन्होंने पिछले 10 वर्षों में अपने मिलिट्री खर्च को काफी बढ़ाया है.

पश्चिमी मीडिया में दुष्प्रचार के बावजूद इरान अपने पड़ोसियों के लिए कोई ख़तरा नहीं है. यह तो एक रक्षाताम्क गठबंधन है जिसमें लेबनोन का हिज़बोल्लाह, सिरियन सरकार और इराक की सरकार शामिल है. इजराइल ने अमेरिका के सहयोग से लेबनान और हिज़बोल्लाह पर कई बार हमले किये हैं. सिरिया के खिलाफ अगर अमरिका, तुर्की, सऊदी अरब और अन्य खाड़ी राजतंत्र व जॉर्डन अन्य आतंकियों संगठन जैसे अल-कायदा और उसके सहयोगी जिनको ये देश हथियार, पैसा और रानीतिक सहायता देते हैं के साथ गुप-चुप समझौते में बंधे हुए हैं. इजराइल और अमेरिका ने इरान के परमाणु ठिकानों को उड़ाने की लगातार धमकी दी है. सऊदी अरब यमन में खुले तौर पर अल-कायदा के साथ गठबंधन बनाये हुए है, और हौथिस और नागरिक ठिकानों पर लगातार हमले कर रहे हैं. ये इरान नहीं बल्कि अमरिका और उसके सहयोगी हैं इस क्षेत्र को अस्थिर कर रहे हैं. ये वे ताकते हैं जिन्होंने सबसे इस्लाम सबसे संकुचित/आतंकी ताने-बाने का समर्थन किया है, वहाबी संस्करण जिसे सऊदी ने तैयार किया है, और जिसकी वजह से अब इस्लामिक स्टेट तैयार हुआ है जो अपने आपको इस्लाम का खलीफा बताता है. यह अमरिका ही है जो दोनों तरफ खेलता है – जो अपने देश में इस्लाम के बही दिखाकर अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाना, पूरे विश्व में निगरानी को बढ़ाना और साथ ही क्षेत्र में प्रतिगामी सांप्रदायिक इस्लामी ताकतों के साथ गठबंधन भी कायम रखता है.   

ऐसा लगता है जैसे कि इरान ने समर्पण कर दिया है, या वियेना समझौते से उसने पाने के बजाये कुछ ज्यादा खो दिया है. अगर हम केवल रणनीतिक पहलु को ले, यह शायद सच है. ईरान ने एक शक्तिशाली बराबरी का रास्ता छोड़ दिया है – आर्थिक प्रतिबन्ध हटाने के नाम पर जिसके लिए इरान को अमरिका को गुड बुक में आना होगा और इसके लिए उसने अपनी परमाणु क्षमता को बढाने का रास्ता त्याग दिया है.

इरान के लिए आर्थिक प्रतिबन्ध को हटवाना आज ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है. तेल के दामों में गिरावट से इरान की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है. इसके बिना इरान के लिए प्रतिबन्ध का मुकाबला करना मुश्किल होता. पहले इरान इन प्रतिबंधों का मुकाबला इसलिए कर पाता था कि वह दुनिया को तेल सस्ते दामों या तेल के बदले वस्तुओं के अदान प्रदान से काम चलाता था. जब अमरिका ने अपने प्रतिबंधों को विदेशी बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थानों तक बढ़ा दिया तो इरान के लिए गिरती कीमतों के चलते तेल बेचना मुहाल हो गया.

शायद इरान को ऐसा भरोसा दिया गया है कि आईएईए 2015 के अंत तक अपना मुवायना पूरा कर लेगा, इसलिए प्रतिबंधों को हटाने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. उसे यह भी विश्वास है कि अमेरिका उसके भरोसे को नहीं तोड़ेगा, और अगर अमरिका ऐसा करता है तो प्रतिबन्ध का निजाम टूटेगा क्योंकि अन्य देश फिर अमरीका का साथ नहीं देंगे.

शुर से ही, इरान ने अपने परमाणु समृधि के कार्यक्रम पर कैंप लगाने के लिए कई प्रस्ताव दिए. यह अमरिका ही है जिसने इरान के युरेनियम का किसी भी स्तर पर समृधि करने के हक़ को ही चुनौती दी थी. न तो अमरिका प्रतिबन्ध हटाने के लिए तैयार हुआ जिसे उसने ईरान में परमाणु समृधि कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही लगा दिया था. इरान को इससे शायद दो तरीके से फायदा हुआ है. पहला तो यह कि इरान को यह भरोसा मिल गया कि वह जब इंधन समृधि कार्यक्रम को वापस ले लेगा तो प्रतिबन्ध हटा लिए जायेंगे, और दूसरा यह कि वह अमरीका पर यह दबाव बनाने के लिए कामयाब हो गया, वह उसके परमाणु इंधन की समृधि के कार्यकर्म के हक़ को स्वीकार करेगा.

सभी पर विचार हुआ, अंतत: अमरिका और इरान का समझौता इस क्षेत्र में अमरिका द्वारा एक और युद्ध को रोकने में कामयाब हुआ. अमरिका के लिए अब मुश्किल होगा कि वह दुबारा से इस क्षेत्र में युद्ध की बात करे और यह महत्व नहीं रखता कि ओबामा के बाद वाइट हाउस पर किसका कब्ज़ा है. आर्थिक प्रतिबन्ध हटने से इरान को कितना फायदा होगा यह तो भविष्य में देखने की बात है.

जिन्हें यह विश्वास है कि यह समझौता इरान और अमरीका के बीच में एक नया अध्याय खोलेगा वे ग़लतफ़हमी का शिकार हैं. अमरीका आज भी मानता है कि इरान को क्षेत्रीय ताकत बनने से रोकना होगा. बस वह अभी युद्ध की बात नहीं करेगा – कम से कम फिलहाल के लिए – अब वह इरान की ताकत को कम करने की रणनीति पर काम करेगा. अन्य भू-सामरिक महत्व की बात यह है कि सुएज युद्ध के बाद पहली बार अमरिका ने ऐसा कदम उठाया है जो इजराइल की राय के विरुद्ध है.

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख में वक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारों को नहीं दर्शाते ।

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