पिछले रिकार्ड्स को देखते हुए दस लाख नौकरियों के इस नए ऐलान पर कैसे करें ऐतबार?
"बहुत हुआ रोज़गार का इंतज़ार अबकी बार मोदी सरकार" जैसे नारों के आशाई पुलिंदे पर सवार होकर सत्ता पर काबिज़ होने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार के कार्यकाल की सबसे बड़ी सिरदर्दी बेरोज़गारी ही साबित हुई है। मोदी कार्यकाल में प्रचण्ड बेरोज़गारी एक सर्वमान्य तथ्य है जिसकी पुष्टि तमाम मीडिया रिपोर्ट्स और आंकड़ें करते हैं।
बहुत हुआ रोजग़ार का इंतज़ार|
अबकी बार मोदी सरकार||http://t.co/aCs2Ul1tTX— BJP (@BJP4India) March 18, 2014
विशेषतौर पर सरकारी नौकरियों के लिहाज़ से स्थितियां बेहद खराब रहीं है। सरकार के तमाम महकमों में लाखों पद खाली हैं जिनपर भर्तियां अटकी पड़ी हैं। साल दर साल वेकैंसी कम होती जा रही हैं। भर्ती आयोगों ने प्रतियोगी परीक्षाओं की दुर्दशा कर रखी है। बीते सालों में छात्र भर्तियों को लेकर सड़क से ट्विटर तक संघर्ष करते रहे हैं ऐसे में सरकार की तरफ से नौकरियों को लेकर एक बड़ा ऐलान हुआ है। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से अगले 1.5 साल में विभिन्न सरकारी विभागों में 10 लाख नौकरियां देने का ऐलान हुआ है लेकिन सवाल यही है कि क्या सरकार देशभर के लाखों अभ्यर्थियों का भरोसा जीतने में कामयाब होगी? ये सवाल इसलिए क्योंकि बीते सालों में केंद्र सरकार के अधीन भर्ती आयोगों की कार्यप्रणाली और भर्ती परीक्षाओं की दुर्दशा पर नज़र डालें तो इस नए ऐलान की विश्वसनीयता पर संदेह लाज़मी है।
चूंकि प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से ऐलान हुआ है इसलिए इन 10 लाख लोगों की भर्ती की ज़िम्मेदारी केंद्रीय भर्ती आयोगों पर है। केंद्र सरकार के अधीन भर्ती आयोगों में मुख्य तौर पर यूपीएससी, रेलवे और एसएससी हैं। आरआरबी के तहत स्टेशन मास्टर, टिकट कलेक्टर, लोको पायलट, गार्ड, ट्रैफिक एप्रेन्टाइस और क्लर्क जैसे पदों के लिए भर्ती की जाती है वहीं एसएससी की तरफ से इनकम टैक्स, ईडी, आईबी, केंद्रीय सचिवालय, पोस्टल और नारकोटिक्स जैसे तमाम विभागों में विभिन्न पदों पर भर्ती की प्रक्रिया की जाती है। एक नज़र डालते हैं रेलवे और एसएससी के पिछले कुछ वर्षों के रिकार्ड्स पर।
एक नज़र डालते हैं रेलवे पर
रोज़गार के लिहाज़ से देखें तो भारतीय रेलवे को सर्वाधिक रोज़गार प्रदाता के रूप में जाना जाता है। आज जब विभिन्न सरकारी विभागों में 10 लाख नौकरियां देने का वादा किया जा रहा है ऐसे में ये समझना भी आवश्यक है कि एक तरफ तो नौकरियों का नया ऐलान है वही दूसरी तरफ रेलवे के द्वारा बीते छह सालों में बड़े स्तर पर पदों को समाप्त किया गया है। हाल के दिनों की खबर है भारतीय रेलवे नॉन-सेफ्टी कैटेगरी के 50 फीसदी पदों को गैर ज़रूरी बताते हुए खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ चुका है। इसके अलावा तमाम रिपोर्ट्स के मुताबिक रेलवे विगत छः सालों में 72000 पदों को खत्म कर चुका है।
दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक 20 मई 2022 को रेलवे बोर्ड की तरफ से सभी 17 ज़ोनल रेलवे के महाप्रबंधकों को एक पत्र जारी किया गया था जिसके माध्यम से नॉन-सेफ्टी कैटेगरी के अंतर्गत आने वाले 50 फीसदी पदों को चिह्नित कर तत्काल खत्म करने के स्पष्ट निर्देश दिए गए थे। इसके बाद से ही नार्थ सेंट्रल रेलवे(NCR) के झांसी, प्रयागराज और आगरा मंडल की ओर से ऐसे सभी पद जो गैर संरक्षा श्रेणी में आते हैं उनकी सूची तैयार करनी शुरू कर दी गयी थी। दरअसल रिपोर्ट के मुताबिक सरेंडर किए जाने वाले ऐसे पदों को चिह्नित कर उनकी सूची 31 मई 2022 को रेलवे बोर्ड को भेजी जानी थी।
भास्कर की खबर आगे कहती है कि विभागीय अधिकारियों के अनुसार यदि 50 फीसदी पद खत्म किये जाते हैं तो ऐसे में NCR के करीब 10,000 पद भविष्य में खत्म हो सकते हैं। रेलवे द्वारा जिन पदों को समाप्त करने की तैयारी है उनमें ग्रुप-सी और ग्रुप-डी स्तर के विभिन्न पद शामिल हैं। इनमें वाणिज्य, मेडिकल, सेल्समैन, माली, दफ्तरी, टाइपिस्ट, कारपेंटर जैसे तमाम पद शामिल हैं।
बीते छह साल में रेलवे कर चुका है 72000 पद समाप्त
तमाम मीडिया रिपोर्ट्स और खबरों के मुताबिक रेलवे पिछले छह वर्षों के ग्रुप-सी और ग्रुप-डी के अंतर्गत आने वाले 72000 से अधिक पदों को खत्म कर चुका है। रिपोर्ट्स और उपलब्ध जानकारी के अनुसार रेलवे के द्वारा वित्तीय वर्ष 2015-16 से 2020-21 के दौरान 56888 पदों को गैर ज़रूरी बताते हुए खत्म कर दिया गया इसके अलावा इसी अवधि के दौरान प्रस्तावित 15495 और पदों को खत्म किया जाना है। जहां उत्तरी रेलवे की तरफ 9,000 से अधिक पदों को समाप्त किया गया वहीं पूर्वी रेलवे ने 5,700 पद खत्म कर दिए। दक्षिणी रेलवे ने 7,524 और दक्षिण-पूर्व रेलवे ने करीब 4,677 पदों को समाप्त कर दिया है।
पद समाप्ति के क्या कारण हैं?
इतने बड़े पैमाने पर रेलवे के द्वारा ग्रुप-सी और ग्रुप-डी श्रेणी के पदों को खत्म किए जाने के पीछे आउटसोर्सिंग और निजीकरण के बढ़ते चलन को एक प्रमुख कारण माना जाता है। आपको बता दें आउटसोर्सिंग के अंतर्गत विभाग के आंतरिक कार्यों के लिए बाहरी ऐजेंसी के साथ समझौता किया जाता है और तय करार के तहत वो बाहरी एजेंसी विभाग के विभिन्न कार्यों को करती है। ये एक तरह से ठेकेदारी प्रथा है। पिछले कुछ सालों में तमाम सरकारी विभागों में आउटसोर्सिंग, ठेकेदारी या संविदा की व्यवस्था बड़े पैमाने पर बढ़ी है जिसके प्रतिकूल परिणाम भी सामने आए हैं विशेषतौर पर सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले लाखों अभ्यर्थियों के लिए इस तरह की व्यवस्था एक बड़ा सिरदर्द बन चुकी है।
एक परीक्षा प्रक्रिया में 3-3 साल खपा देने वाले भर्ती आयोग क्या वाकई अगले 1.5 सालों में 10 लाख लोगों की भर्ती कर पाएंगे?
यहाँ एक बात गौर करने वाली है कि कहा ये जा रहा है की आने वाले 1.5 सालों में 10 लाख नौकरियों के लिए भर्ती कराई जाएंगी लेकिन सवाल यही है कि क्या ये वाकई संभव है क्योंकि एसएससी या रेलवे को देखें तो इन्होंने एक परीक्षा की प्रक्रिया में 3-3 साल का वक़्त लिया है और हमनें अक्सर इन परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों को ट्विटर से लेकर सड़कों पर आंदोलन करते देखा है और इन प्रदर्शनों का मुख्य कारण भर्ती आयोगों की लेट लतीफी भरा गैरज़िम्मेदाराना रवैया रहा है।
ध्यान रहे कि लोकसभा 2019 के चुनाव से पहले रेलवे की तरफ से बम्पर भर्तियों का ऐलान हुआ था। रेलवे ने एनटीपीसी और ग्रुप-डी की भर्ती के लिए 1 मार्च 2019 और 12 मार्च 2019 को रजिस्ट्रेशन चालू किए, जिसके बाद एक लाख से अधिक पदों के लिए 2.4 करोड़ से भी अधिक आवेदन प्राप्त किए गए। रजिस्ट्रेशन से अबतक 3 साल से अधिक का वक़्त हो चुका है लेकिन प्रक्रिया आज तक जारी है।
बात एसएससी की करें तो इसपर अक्सर 'सबसे स्लो कमीशन' होने का आरोप लगता रहता है। कर्मचारी चयन आयोग ने सीजीएल 2017 की परीक्षा के लिए 16 मई 2017 को नोटिफिकेशन निकाला। परीक्षा में धांधली के आरोप लगे। मामला कोर्ट तक गया। सड़कों पर छात्रों द्वारा आंदोलन भी किये गए। और एक बेहद लंबे वक्त के बाद 15 नवंबर 2019 को इस परीक्षा का फाइनल रिज़ल्ट जारी किया गया। गौर करने वाली बात ये है कि नोटिफिकेशन जारी होने से लेकर फाइनल रिजल्ट तक परीक्षा के प्रोसेस में लगभग 2 साल 6 महीने का समय लगा अगर इसमें जॉइनिंग के भी औसतन 5-6 महीने जोड़ ले तो ये अवधि 3 साल की हो जाती है।
इसके अलावा एसएससी ने सीजीएल 2018 की परीक्षा का नोटिफिकेशन 5 मई 2018 को जारी किया और इसका फाइनल रिज़ल्ट 1 अप्रैल 2021 को घोषित किया गया। नोटिफिकेशन जारी होने से लेकर फाइनल रिज़ल्ट तक कुल 2 साल 10 महीने का वक़्त लगा। जॉइनिंग का वक़्त जोड़कर इस परीक्षा की अवधि भी 3 साल से अधिक की हो जाएगी।
एसएससी सीजीएल 2019 का नोटिफिकेशन 22 अक्टूबर 2019 को आया था जिसका फाइनल रिज़ल्ट 8 अप्रैल 2022 को जारी किया गया यहां भी नोटिफिकेशन से फाइनल रिज़ल्ट तक 2.5 साल का वक़्त लगा, जॉइनिंग का वक़्त जोड़ने पर इसकी प्रक्रिया भी लगभग 3 वर्ष की हो जाती है। वहीं सीजीएल 2020 का नोटिफिकेशन 29 दिसंबर 2020 को जारी किया गया था जिसकी प्रक्रिया अबतक जारी है।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर तंज करते हुए ट्वीट किया, "जैसे 8 साल पहले युवाओं को हर साल 2 करोड़ नौकरियों का झांसा दिया था, वैसे ही अब 10 लाख सरकारी नौकरियों की बारी है। ये जुमलों की नहीं, 'महा जुमलों' की सरकार है। प्रधानमंत्री जी नौकरियां बनाने में नहीं, नौकरियों पर 'News' बनाने में एक्सपर्ट हैं।
जैसे 8 साल पहले युवाओं को हर साल 2 करोड़ नौकरियों का झांसा दिया था, वैसे ही अब 10 लाख सरकारी नौकरियों की बारी है।
ये जुमलों की नहीं, 'महा जुमलों' की सरकार है।
प्रधानमंत्री जी नौकरियां बनाने में नहीं, नौकरियों पर 'News' बनाने में एक्सपर्ट हैं।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 14, 2022
वहीं कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला लिखते हैं, "वादा था 2 करोड़ नौकरी हर साल देने का, 8 साल में देनी थी 16 करोड़ नौकरियाँ ।
अब कह रहे हैं साल 2024 तक केवल 10 लाख नौकरी देंगे। 60 लाख पद तो केवल सरकारों में ख़ाली पड़े हैं, 30 लाख पद केंद्रीय सरकार में ख़ाली पड़े हैं। जुमलेबाज़ी कब तक?
वादा था 2 करोड़ नौकरी हर साल देने का,
8 साल में देनी थी 16 करोड़ नौकरियाँ ।अब कह रहे हैं साल 2024 तक केवल 10 लाख नौकरी देंगे।
60 लाख पद तो केवल सरकारों में ख़ाली पड़े हैं,
30 लाख पद केंद्रीय सरकार में ख़ाली पड़े हैं।जुमलेबाज़ी कब तक? pic.twitter.com/GYTbudgWUf
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) June 14, 2022
वहीं युवा हल्ला बोल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुपम जो अक्सर युवाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यर्थियों की आवाज़ को बेहद बढ़चढ़कर उठाते हैं, वे लिखते हैं, "इसी तरह 2019 से पहले आपने कहा था कि दो साल में रेलवे के जरिए चार लाख नौकरी देंगे, लेकिन पदों में ही कटौती कर दी। इसी तरह आपने 2014 से पहले सालाना दो करोड़ रोज़गार का वादा किया था, लेकिन हुआ ठीक उल्टा। भारत के युवाओं के साथ यह छलावा बंद करिए। देश के भविष्य से खिलवाड़ बंद करिए।
इसी तरह 2019 से पहले आपने कहा था कि दो साल में रेलवे के जरिए चार लाख नौकरी देंगे, लेकिन पदों में ही कटौती कर दी।
इसी तरह आपने 2014 से पहले सालाना दो करोड़ रोज़गार का वादा किया था, लेकिन हुआ ठीक उल्टा।
भारत के युवाओं के साथ यह छलावा बंद करिए। देश के भविष्य से खिलवाड़ बंद करिए। https://t.co/xbzjBGzYm2
— Anupam | अनुपम (@AnupamConnects) June 14, 2022
साल 2019 में तत्कालीन रेलमंत्री पीयूष गोयल ने रेलवे के तहत अगले दो वर्षों में सवा दो से ढाई लाख नौकरियों की बात कही थी, हकीकत ये है कि लोकसभा 2019 से पहले घोषित भर्ती की प्रक्रिया आजतक जारी है। 3 साल से अधिक का वक़्त हो चुका है। एनटीपीसी की भी जॉइनिंग बाकी है और ग्रुप-डी की तो परीक्षा तक नही हुई है। ये सरकारी वायदे बनाम ज़मीनी हकीकत है।
इसके अलावा एसएससी की बात करें तो इसकी वेकैंसी में साल दर साल गिरावट देखने को मिली हैं। एसएससी के तहत लोकप्रिय परीक्षा सीजीएल के वेकैंसी ट्रेंड को देखें तो साल 2013 में कुल 16114 वेकैंसी थी, साल 2014 में 15549, 2015 में 8561, 2016 में 10661, 2017 में 8134, 2018 में 11271, 2019 में 8582 तथा साल 2020 में ये संख्या 7035 हो गयी। यानी साल 2020 में निकली वेकैंसी की संख्या की तुलना साल 2013 से करें तो लगभग 56 फीसदी की गिरावट देखने को मिली हैं।
ऐसे तमाम विषय हैं जहां भाजपा सरकार ने लोगों का भरोसा तोड़ा है। 2014 के चुनाव के वक़्त महंगाई और बेरोज़गारी पर बड़े-बड़े वायदे किए गए थे लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल परे है। इसके अलावा भी तमाम विषय हैं चाहे वो कालेधन का मामला हो, किसानों की आय दोगुनी करने की बात हो, पेट्रोल-डीज़ल की बात हो या रुपये की बात हो इन सभी मुद्दों पर भाजपा सरकार के दावे अलग थे और हकीकत अलग।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने अगस्त 2020 में CET यानी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के Common Eligibility Test की घोषणा की थी जिसके तहत रेलवे, बैंकिंग, और एसएससी जैसी भर्ती परीक्षाओं के पहले चरण की एक कॉमन परीक्षा होगी। सरकार ने इसे प्रतियोगी परीक्षाओं में एक बहुत बड़े सुधार के रूप में पेश किया था। साल 2022 की शुरुआत में इसके लागू हो जाने की बातें कही गई थीं लेकिन अभी तक कुछ नही हुआ।
खैर इतने वर्षों के बाद सरकार की तरफ से नौकरी और रोज़गार जैसे विषयों पर बात हुई है और 10 लाख नौकरियों का वायदा अपने आप मे बेहद बड़ा और स्वागत योग्य कदम है यदि वास्तव में ज़मीनी स्तर पर ये साकार होता है तो आगामी लोकसभा चुनाव से पहले ये एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक साबित होगा लेकिन सवाल सरकारी वादों की विश्वसनीयता पर है। उपरोक्त सभी बातों को मद्देनज़र सरकारी दावे बनाम ज़मीनी हक़ीक़त को देखें तो इसपर सवालिया निशान लाज़मी है। शायद सवाल विश्वसनीयता का ही है इसलिए सरकार की 'अग्निपथ भर्ती योजना' की घोषणा के साथ ही अभ्यर्थियों द्वारा इसका व्यापक स्तर पर विरोध शुरू हो चुका है। बाकि 10 लाख नौकरियों का ये ऐलान वास्तव में साकार होगा या नही ये तो आने वाला वक़्त ही बेहतर बताएगा।
(अभिषेक पाठक स्वतंत्र लेखक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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