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2021 :  एक मांगपत्र, अगर मान लिया जाए तो साल नया हो जाए

ख़ैर! अब जब दो हजार इक्कीस लग ही गया है, तो कम से कम थोड़ा-बहुत तो नया बन के दिखाए। ख़ैर, अभी भी टैम है। सरकार बस नए साल का यह मांगपत्र मान ले, 2021 के नया साल होने की गारंटी है।
किसान
प्रतीकात्मक तस्वीर। किसान एकता मोर्चा की फेसबुक वॉल से साभार

आखिरकार, दो हजार बीस खत्म हो गया और दो हजार इक्कीस लग ही गया। किसान अब भी सर्दी-बारिश में राजधानी के बार्डर पर ही बैठे हैं, पर दो हजार इक्कीस लग गया।

कोरोना अब भी सता रहा है, पर दो हजार इक्कीस लग गया।

इकॉनामी अब भी गड्ढ़े  में पड़ी है, पर दो हजार इक्कीस लग गया।

लव के खिलाफ जेहाद जारी है, पर दो हजार इक्कीस लग गया।

मोदी जी अब भी इलेक्शन मोड में हैं, फिर भी दो हजार इक्कीस लग गया।

खैर! अब जब दो  हजार इक्कीस लग ही गया है, तो कम से कम थोड़ा-बहुत तो नया बन के दिखाए।

खैर, अभी भी टैम है। सरकार बस नए साल का यह मांगपत्र मान ले, 2021 के नया साल होने की गारंटी है।

1. स्टेंडअप कॉमेडियन मुनव्वर फारुखी को जेल मिली। इंदौर में हिंदू राष्ट्र रक्षक टिकट लेकर शो में गए, अपनी भावनाओं पर चोट करवाने। पर यह तो कोई नये साल वाली बात नहीं हुई। मोदी युग में पहले भी स्टेंडअप कॉमेडियन ऐसे ही जेल गए हैं। हां! राष्ट्र रक्षक टिकट लेकर गए, यह जरूर कुछ नया है। धर्म का मजाक बनाने का गुनाह तो अक्सर कॉमेडियन करते ही हैं, पर मुनव्वर ने अमित शाह का मजाक उड़ाया था और गुजरात-2002 का जिक्र भी किया था। शिवराज के राज में कानून को तो अपना काम करना ही था। पर पेशेवर मजाक उड़ाने वालों की पकड़-धकड़ से सरकार का और ज्यादा मजाक बनता है। कानूनी हो न हो, धर्म का मजाक बनाने पर तो खैर पहले ही पाबंदी है। तब क्यों न मोदी जी, शाह जी, भागवत जी, निर्मला जी, बोबडे जी, आदि, सारे जी लोगों का मजाक उड़ाने पर भी बैन लगा दिया जाए। जेड श्रेणी की सुरक्षा में, मजाक उड़ाए जाने से सुरक्षा भी जोड़ दी जाए। न कोई कॉमेडियन जी लोग का मजाक उड़ाएगा और न खुद जेल जाकर बेचारी सरकार की और हंसी उड़वाएगा।

2. किसानों को अन्नदाता-अन्नदाता कहकर, सरकार ने खामखां सिर पर चढ़ा लिया है। मोदी जी तक की बात नहीं मान रहे हैं। उल्टे कानून वापस कराने पर अड़े हुए हैं। तोमर जी ने साफ कह दिया है--मोदी जी पर न कोई प्रभाव काम करता है न कोई दबाव। ईश्वर पर भी कोई दबाव या प्रभाव काम करता है क्या? ऐसा कोई भाव तो ईश्वर तक पहुंचता ही नहीं है। लगाव तो हर्गिज नहीं। पर इन किसानों को कौन समझाए? खुद को सचमुच अन्नदाता माने बैठे हैं। मोदी जी की बराबरी कर रहे हैं,  मोदी जी की! एक बार मोदी जी के कानून सही से लागू हो जाएं, फिर न इनका अन्न रहेगा और न अन्नदाता। नील की खेती करने वालों को भी कोई अन्नदाता कहता था क्या? पर उसमें थोड़ा टैम लगेगा। तब तक किसानों को अन्नदाता कहने पर पूरी तरह से बैन लगना चाहिए। जो अन्नदाता कहकर किसानों को भडक़ाए, जेल में मुनव्वर फारुखी के लिए कंपनी जुटाए।

3. 2020 के आखिर में लोगों ने अंबानी जी, अडानी जी के धंधों पर चोट करना शुरू कर दिया। जियो का जीना मुश्किल कर दिया। इसे रोका जाएगा, तभी नया साल नया बनेगा। क्यों न राष्ट्र  को ही उनकी संपत्ति घोषित कर दिया जाए, उनका नुकसान खुद ब खुद राष्ट्र  का नुकसान बन जाएगा। जो जिओ को छोडक़र अपना नंबर दूसरी सेलुलर कंपनियों पर ले जाएगा, खुद ब खुद एंटी-नेशनल हो जाएगा और पाकिस्तान, चीन आदि, कहीं भी भेज दिया जाएगा। वह न भी हो सके तो भी कम से कम एनआरसी बनाकर अनागरिक तो घोषित किया ही जा सकता है।

4. एक आखिरी विनती और। 75वें एपीसोड के बाद, ‘मन की बात’ का प्रसारण बंद कर दिया जाए। उससे तो जरूर ही नया साल सचमुच नया हो जाएगा। लोग 2021 को ऐसे साल के रूप में याद रखेंगे, जिस साल पीएम का अपनी ‘मन की बात’ सुनाना बंद हुआ था। पब्लिक की मन की बात सुनने का साल और आगे सही।

(इस व्यंग्य के लेखक लोकलहर के संपादक हैं।)

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