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भाजपा के आने के बाद भड़काऊ बयानबाज़ी के दर्ज मामलों में 500% की बढ़ोतरी मगर सज़ा की दर बहुत कम

2016 के बाद से भड़काऊ बयानबाजी के मामलों की रफ़्तार साल 2014 के मुकाबले बहुत तेज़ हुई, साल 2019 में इसकी रफ़्तार साल 2014 के मुकाबले बढ़कर पांच गुने से भी ज़्यादा हो गयी।  
hate speech
Image courtesy : India Today

साल 2014 से पहले भड़काऊ बयानबाजी को लेकर देश का माहौल बहुत ज्यादा ख़राब नहीं था लेकिन जब से बीजेपी सत्ता में आयी है, तब से देश के भीतर भड़काऊ बयानबाजी का सिलसिला बहुत तेजी से बढ़ा है। जाहिर सी बात है कि इस तरह के माहौल से इन राजनैतिक पार्टियों को फायदा पहुँचता है। इसलिए देश में इस तरह का माहौल बनाया जाता है।

हालांकि भड़काऊ बयानबाजी की परिभाषा किसी भी भारतीय कानून में नहीं दी गई है। यह मामला देश भर में बस बहस का मुद्दा बना हुआ है। भारतीय विधि  आयोग ने मार्च 2017 की अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि नफरत फैलाने वाले बयान रोकने के लिए IPC में नए प्रावधान शामिल करने की जरूरत है। भड़काऊ बयानबाजी को रोकने के प्रावधान नहीं है, मगर IPC में ऐसी कुछ धाराएं हैं, जिनके तहत भड़काऊ बयानबाजी के मामले दर्ज किए जाते हैं।

देश में भड़काऊ बयानबाजी करने पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A लगाई जाती है। IPC की धारा 153A के तहत जो लोग धर्म, भाषा, नस्ल  के आधार पर लोगों में नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं, उनको 3 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकता है। अगर ये अपराध किसी धार्मिक स्थल पर किया जाए तो 5 साल तक की सजा और जुर्माना भी हो सकता है।

बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A के अंतर्गत दर्ज मामलों में 2014 से 2020 के बीच करीब 500 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2014 में भड़काऊ बयानबाजी के केवल 323 मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2020 में 1,804 मामले दर्ज किए गए। जैसा कि नीचे चित्र में दिखाया गया है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी भड़काऊ बयानबाजी के आंकड़ों में दो बिंदु पर गौर करने की जरूरत है, पहली यह कि 2014 के बाद से भड़काऊ बयानबाजी को लेकर दर्ज होने वाले मामलें में धीरे-धीरे बढ़ोतरी हो रही थी, लेकिन 2016 के बाद से भड़काऊ बयानबाजी के मामलों की रफ़्तार साल 2014 के मुकाबले बहुत तेज हुई, साल 2019 में इसकी रफ़्तार साल 2014 के मुकाबले बढ़कर पांच गुने से भी ज्यादा हो गयी।  

ऐसा क्यों हुआ? तो जवाब यह है कि साल 2016 और 2019 के बाद देश के कई बड़े राज्यों में चुनाव होने थे। देश भर में नफरत का माहौल तैयार करने की कोशिश की जा रही थी, ताकि चुनाव के दौरान इन राजनैतिक पार्टियों को इसका फायदा मिले।  देश में कई ऐसी पार्टियां है जिनके अपने पक्ष में वोट की गोलबंदी का केंद्र बिंदु ही नफरत है।  

राज्यों की बात करें तो साल 2019 में उत्तर प्रदेश में भड़काऊ बयानबाजी के सबसे ज्यादा यानी 129 मामले दर्ज़ किए गए थे। वहीं साल 2019 से लेकर 2020 के दौरान लगभग सभी राज्यों में भड़काऊ बयानबाजी के मामले दो गुना बढे हैं। अगर हम भड़काऊ बयानबाजी के मामलों में टॉप 10 राज्यों की बात करें तो 2019 में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर था।  हालांकि 2020 में उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर आ गया और तमिलनाडु पहले नंबर पर पहुंच गया। जैसा की नीचे चित्र में दिखाया गया है।

अब सवाल यह सामने आता है कि देश में भड़काऊ बयानबाजी के कितने मामलों में सजा दी गयी है। 2020 में भड़काऊ बयानबाजी के मात्र 186 केसों का ही ट्रायल पूरा किया गया है और 200 केस कोर्ट द्वारा समाप्त किए है।  यानी 2020 में 1,804 मामलो में से 20.4 फीसदी मामलों में सजा दी गयी है।  जबकि साल के अंत में 2,736 केस ट्रायल के लिए पेंडिंग पड़े हुए थे। वही 2016 में मात्र 15.5 फीसदी मामलों में सजा दी गयी थी। बात बिल्कुल साफ़ है कि भड़काऊ बयानबाजी के जितने मामले दर्ज़ होते हैं, उनमें से मात्र 15 से 20 फीसदी मामलों में सज़ा दी जाती है बाकि के मामले पेंडिंग में पड़े रहते हैं।  

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