Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

8 जनवरी हड़ताल : ख़तरनाक होती फैक्ट्रियाँ, जलते मज़दूर, सोती सरकार!

अन्य मुश्किलों के साथ मज़दूरों की एक सबसे बड़ी चिंता कार्यस्थल पर उनकी सुरक्षा की है। हाल में ही हमने देखा कैसे 40 से अधिक मज़दूरों की मौत देश राजधानी में जलकर हो जाती है और किसी को फर्क नहीं पड़ता।
workers strike

देश का मज़दूर सालों-साल से सड़कों पर है तब से और भी ज़्यादा जब से मई 2019 में नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में लौटी है उसने अपने हिंदू कट्टरपंथी एजेंडा के साथ ही कॉर्पोरेट के पक्ष में आर्थिक नीतियों को तेज़ी से लागू करना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही मज़दूरों के उन अधिकारों को कुचल रही है जो मज़दूरों ने अपने दशकों के संघर्ष के बल पर प्राप्त किया था।  इसके साथ निजीकरणसार्वजनिक क्षेत्र में खर्च कम करना और श्रम कानूनों को कमजोर करने के माध्यम से मोदी सरकार संगठित मजदूर वर्ग को निशाना बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैजो भारत में दक्षिणपंथ के वर्चस्व के लिए एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है। हालांकि,  इन सुधारों के खिलाफ व्यापक प्रतिरोध करने की तैयारी है। भारत की 10 राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों और कई अन्य स्वतंत्र श्रमिक संघों ने संयुक्त रूप से जनवरी, 2020 को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार की रहनुमाई में रणनीतिक क्षेत्रों के निजीकरण की गति तेज़ हो गई है। रक्षा उद्योगों सहित लगभग सभी क्षेत्रों में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) की अनुमति दी जा रही है। सरकार बड़े निगमों की रियायतों को बढ़ा रही हैजबकि ये निगम मज़दूरों के पहले से ही कम न्यूनतम वेतन को और कम कर रही हैं और सामाजिक सुरक्षा संरचना को समाप्त कर रही है। श्रम सुरक्षा क़ानूनों को ख़त्म किया जा रहा है और उनके ठीक से लागू करने के लिए बनाए गए निरीक्षण तंत्र को धीरे-धीरे कमज़ोर किया जा रहा है।

इसके अलावा मज़दूरों की एक सबसे बड़ी चिंता कार्यस्थल पर उनकी सुरक्षा की है। हाल में ही हमने देखा कैसे 40 से अधिक मज़दूरों की मौत देश राजधानी में जलकर हो जाती है।  दिल्ली यह कोई पहली घटना नहीं थी और न ही आख़िरी। 

बृहस्पतिवार को उत्तर पश्चिम दिल्ली के पीरागढ़ी क्षेत्र में बैट्री की एक फैक्ट्री में आग लग गई और इसके बाद फैक्ट्री का एक बड़ा हिस्सा भीषण धमाके के साथ ध्वस्त हो गया। हादसे में एक दमकलकर्मी की मौत हो गई जबकि 14 अन्य दमकल कर्मचारी घायल हो गए।

इससे  पहले 13 जुलाई, 2019 को दिल्ली के झिलमिल इलाके में एक और कारखाने में आग लगने से पांच श्रमिकों की मौत हो गई थी। प्लास्टिक और रबर की वस्तुओं का उत्पादन करने वाला ये कारखाना भी भीड़ भाड़ वाले इलाके में स्थित था। इससे पहलेअवैध पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 21 जनवरी 2018 को 17 श्रमिकों की मौत हो गई थी। इस मामले में मालिक द्वारा बाहर निकलने का रास्ता को बंद रखा गया था जिसने आग लगने के साथ ही कारखाने को जलते हुए कब्रिस्तान में बदल दिया।

कुछ महीने पहलेफिल्मिस्तान के अनाज मंडी इलाके में जिस फैक्ट्री में आग लगी उसी के पास एक अन्य फैक्ट्री में आग लगने से चार मजदूरों की मौत हो गई थी। 23 दिसंबर 2019 को एक बार फिर आग ने नौ लोगों की जान ले ली। यह आग दिल्ली के किराड़ी इलाके में तीन मंजिला आवासीय सह वाणिज्यिक इमारत में लगी। जिसमें तीन बच्चों समेत कम से कम नौ लोगों की मौत हो गई।

लेकिन ऐसा लगता हमारी सरकारों को इन सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है उनके लिए  ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं। इसलिए सरकारों को चाहिए था की वो मज़दूरों के सुरक्षा के लिए कानूनों को और मज़बूत करे लेकिन सरकार वर्तमान कानूनों को भी खत्म कर रही हैं।  

ट्रेड यूनियनों और मज़दूरों द्वारा आग दुर्घटनाओं के बारे में बार-बार चेतावनी देने के बावजूददिल्ली और केंद्र सरकार लगातार ख़तरानक होते कारखानों पर अपनी आंखे मूंदे हैं। झिलमिल में आग की घटना के बाद दिल्ली में ट्रेड यूनियनों ने फैक्ट्री की बढ़ती आग के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था। दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय ने तब सरकार द्वारा कार्रवाई का आश्वासन दिया था। हालांकि अनाज मंडी इलाके में आग लगने के बाद भी सरकार का आश्वासन खाली वादे से ज्यादा कुछ और नहीं है।

अगर  हम सिर्फ दिल्ली  बात करे तो जनवरी 2018 से अबतक सिर्फ़ दिल्ली में 103 मज़दूरों की अग्निकांड व ऐसे ही अन्य हादसों में मौत हो चुकी हैं। यह आंकड़ा वो हैं जो मिडिया में रिपोर्ट हुआ है। कई ऐसी घटनाएं हुईं जो शायद रिपोर्ट भी नहीं हुई या कई बार घटनाओं में गंभीर रूप से जख़्मी होते बाद में दम तोड़ देते हैं। उनकी गणना  नहीं है। उनको इसमें जोड़ दे तो यह आकड़ा और बढ़ जायेगा। लेकिन इन सबपर सरकार का कोई ध्यान नहीं है।  

दिल्ली में आग की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। लेकिन सवाल यह है की ये आग लग क्यों रही हैइनसे मरने वाले मज़दूरों की मौत का जिम्मेदार कौन है?
 

मज़दूर संगठन ने कई बार कहा है कि  इस तरह की घटनाएं प्रशासन और फैक्ट्री मालिकों के मिलीभगत से होती हैं। चंद पैसे बचाने के लिए फैक्ट्री मालिक मज़दूरों की जान से खेलते हैं। दिल्ली की अधिकतर फैक्ट्रियों में मज़दूरों की सुरक्षा के नाम पर बड़ा शून्य है। बंधुआ मज़दूरी क़ानूनी रूप से खत्म हो गई लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में आज भी मज़दूर उसी स्थति में काम करने को मज़बूर है। मज़दूरों को फैक्ट्री में बंद कर दिया जाता है जिससे वो बाहर न निकल सके। ऐसे में कोई घटना होती है तो मज़दूरों के पास भागने के लिए रास्ता भी नहीं होता है।

मज़दूर संगठनों ने समय समय पर कई बार इस बातों के लेकर कहा है कि  ऐसी घटनाएं प्रशासन कि लापरवाही से होती हैं। अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वो फैक्ट्री का इंस्पेक्शन करें और नियमों का लागू कराएं लेकिन आमतौर पर अधिकारी भ्रष्ट हैं और प्राय: नियमों के उल्लंघन को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।”  

यूनियनों कि मांग है कि , “यह गैरकानूनी फैक्ट्रियां या तो बंद कर दी जानी चाहिए या इन्हें कहीं और शिफ्ट कर दिया जाना चाहिए। राज्य सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी फैक्ट्री अधिकृत औद्योगिक क्षेत्र के बाहर नहीं चल रही हो।

बार-बार हादसों और चेतावनियों के बाद भी स्थति जस की तस बनी हुई है। मज़दूर संगठनों का कहना है कि पता नहीं सरकार कितने मज़दूरों की मौत का इंतज़ार कर रही है।  

भारत में श्रम कानूनों और सुरक्षा नियमों के कार्यान्वयन का सबसे खराब रिकॉर्ड है। हाल ही मेंभारत सरकार ने मौजूदा कानूनों को चार श्रम कोडों में बदलने का फैसला किया हैं। इसको लेकर सभी मज़दूर संगठनो ने विरोध किया यहां तक की सत्ताधारी दल बीजेपी से वैचारिक सहमति रखने वाली मज़दूर संगठन भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) ने भी इनका विरोध किया हैं। इन सबके बावजूद सरकार वर्तमान श्रम कानूनों को खत्म करने पर तुली हुई है। इसी के विरोध में दस सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने जनवरी को आम हड़ताल का आवाह्न किया है। अब देखना है कि क्या सरकार इस हड़ताल को एक चेतावनी की तरह लेते हुए सुधार के कदम उठाती है या इसे सिर्फ़ अपना एक और विरोध मानकर नज़रअंदाज कर देती है या फिर डरकर दमन की तरफ़ कदम बढ़ाती है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest