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‘आप’ के मंत्री को बर्ख़ास्त करने से पंजाब में मचा हड़कंप

पंजाब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती पंजाब की गिरती अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करना है, और भ्रष्टाचार की बड़ी मछलियों को पकड़ना अभी बाक़ी है, लेकिन पार्टी के ताज़ा क़दम ने सनसनी मचा दी है।
AAP
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: PTI

20 मई तक, मैं पंजाब में जहां भी गया, और मैंने उनसे दो महीने पुरानी आम आदमी पार्टी (आप) की राज्य सरकार के बारे में पूछा, तो लोगों ने मुझसे कहा, कि सरकार के बारे में कोई भी राय बनाने के लिए “छह महीने इंतजार करना होगा, इससे पहले कुछ भी तय करना बहुत जल्दबाज़ी होगी।" पंजाब में मंगलवार को जो हुआ उससे इस वाक्य को एक तरह से नया मोड़ मिल गया है। सरकारी ठेकों से "एक प्रतिशत की रिश्वत" की मांग के आरोप में कथित रूप से पकड़े गए एक मंत्री की बर्खास्तगी से पंजाब और देश में हड़कंप मच गया है। आख़िरकार, हमने पिछली बार कब सुना था कि किसी सरकार ने अपने ही मंत्री को रिश्वतखोरी या किसी अन्य भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर दिया था? भ्रष्टाचार से त्रस्त पंजाब में यह एक बड़ा कदम है और इसने सनसनी मचा दी है। इसके अलावा, मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सभी कैबिनेट मंत्रियों से कहा है कि वे अपने रिश्तेदारों को खुद के सहायक के रूप में नियुक्त न करें, क्योंकि पहले कुछ  मंत्रियों द्वारा परिवार के सदस्यों के माध्यम से रिश्वत लेने की प्रथा थी।

यह घटना हमें यह भी याद दिलाती है कि पंजाब के लोग अभी तक पंजाब में ‘आप’ सरकार के काम-काज की आलोचनात्मक जांच नहीं कर रहे थे, लेकिन समाचार मीडिया और सोशल मीडिया निश्चित रूप से ऐसा कर रहा था! केवल दो महीने से सत्ता में रही सरकार का मूल्यांकन न करना सामान्य ज्ञान है, जैसा कि ‘आप’ सरकार पंजाब में आई है, वह भी पहली बार। फिर भी ऐसा लगता है कि मीडिया बड़ी उम्मीदों को पाले हुए है- मानो, भगवंत मान के पास शेक्सपियर के द टेम्पेस्ट से ड्यूक प्रोस्पेरो की जादूई छड़ी है, और जो सब कुछ ठीक कर सकता है।

भविष्य की ओर देखते हुए, हमें पंजाब के घटनाक्रम को तीन महत्वपूर्ण परस्पर जुड़े पहलुओं के आसपास देखना चाहिए: आप सरकार क्या करने की कोशिश कर रही है, जैसा कि हम अब तक समझ सकते हैं, विपक्षी दल सरकार की किस किस्म की छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं, और अंत में, कैसे हित समूह इस पर दबाव बनाने के लिए लामबंद हो रहे हैं। आइए पहले अंतिम पहलू को लें: हम एक तरफ अस्थायी शिक्षकों, कर्मचारियों और परिवहन-क्षेत्र के कर्मचारियों और दूसरी ओर किसानों जैसे हित समूहों को लामबंद होते देख रहे हैं। सच कहूं तो पंजाब में वस्तुतः कोई विभाग या शासन क्षेत्र ऐसा नहीं है जो अस्थायी कर्मचारियों को नहीं रखता है। और, उनके भीतर स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की स्थिति सरकारी विभागों में अस्थायी कर्मचारियों से भी बदतर है।

पंजाब में शिक्षकों की कई श्रेणियां हैं, और प्रत्येक को अलग-अलग वेतन दिया जाता है। इसलिए, संविदा शिक्षक, तदर्थ शिक्षक और कक्षा की जरूरतों के आधार पर नियुक्त शिक्षक हैं। नवनियुक्त नियमित शिक्षक भी हैं, जिन्हें सिर्फ तीन साल तक मूल वेतन दिया जा रहा है, वह भी बिना किसी अन्य भत्ते या भत्तों के। यह भुगतान संरचना नियमित शिक्षकों के विपरीत है, जिन्हें काम में शामिल होने के महीने से वेतन के साथ भत्ते मिलते हैं। कई वर्षों से, अधिकांश शिक्षकों ने केवल मूल वेतन पर सेवा दी है, जो सम्मानजनक जीवन यापन के लिए शायद ही पर्याप्त हो।

अन्य कर्मचारियों की स्थिति अलग नहीं है। पंजाब की पिछली सरकारों ने उन्हें स्थायी कर्मचारी बनाने की बजाय अस्थायी दर्जे को ही स्थायी कर दिया था। आप सरकार को यह चुनौती शिरोमणि अकाली दल-भारतीय जनता पार्टी (शिअद-भाजपा) गठबंधन सरकारों और कांग्रेस सरकारों से विरासत में मिली है।

ये सभी कर्मचारी वर्षों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन उनके संघर्ष अब तेज हो गए हैं, मुख्य रूप से चुनाव के दौरान आप द्वारा किए गए वादों के कारण ऐसा हुआ है। किसान संगठन भी खुद के सामने आने वाली कई चुनौतियों के आधार पर अपनी मांगों और अपेक्षाओं को उठाते रहे हैं। हाल ही में, वे अपनी मांगों के चार्टर के साथ, राजधानी शहर चंडीगढ़ की ओर बढ़े थे। चूंकि उन्हें शहर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, इसलिए वे मोहाली में रुक गए और आंदोलन शुरू कर दिया था। अगले दिन, मान ने किसानों को आमंत्रित किया और उनके साथ तीन घंटे तक बैठक की। वे संतुष्ट हुए और आंदोलन समाप्त कर दिया।

दूसरा पहलू यह है कि कैसे विपक्षी दलों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से यह धारणा बनाई है कि आप सरकार एक बड़ी फ्लॉप सरकार है। वर्नाक्यूलर प्रेस ने लगातार सरकार पर इस तर्क के साथ निशाना साधा है कि वह चुनाव प्रचार के दौरान किए गए अपने वादों को पूरा करने में विफल रही है। शुरुआत में मीडिया ने लगातार दो मुद्दे उठाए। सबसे पहले, सरकार ने महिलाओं को एक हज़ार रुपए भुगतान के वादे के बारे में कुछ नहीं कहा है। दूसरे, इसने अभी तक सभी को 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली उपलब्ध नहीं कराई है, जैसा कि वादा किया गया था।

अंत में, राज्य सरकार ने घोषणा की है कि वह जुलाई से मुफ्त बिजली योजना शुरू करेगी। सरकार ने बिलों का भुगतान करने की क्षमता निर्धारित करने के लिए जाति के आधार पर बिजली उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियां भी बनाईं हैं। अब, भाजपा यह तर्क देने लगी है कि आप सरकार, अनुसूचित जातियों को कुछ विशेषाधिकार देकर सामान्य वर्ग की जातियों के साथ भेदभाव कर रही है। इसी तरह अकाली दल के नेता लगातार सिख समुदाय की चिंताओं से जुड़े मामले उठा रहे हैं। उनमें से एक उन सिखों की रिहाई की मांग है, जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है लेकिन जेलों में बंद हैं। वे भूल जाते हैं कि ये सिख कैदी एसएडी-भाजपा और कांग्रेस सरकारों के दौरान भी जेलों में बंद थे।

इसी तरह पंजाब में सुरक्षा को लेकर लगातार चर्चा हो रही है। विशेष रूप से, आतंकवादी खतरों और हथियारों और नशीली दवाओं की तस्करी के बारे में बात की जा रही है। फिर, मई की शुरुआत में, पंजाब पुलिस पार्टी, जिसने दिल्ली में भाजपा नेता तजिंदर सिंह बग्गा को गिरफ्तार किया था और उसे पंजाब ला रही थी, को उसे ऐसा करने से रोक दिया गया था और हरियाणा सरकार ने बग्गा की रिहाई करा ली थी। यह घटना गुजरात के वडगाम के मौजूदा विधायक जिग्नेश मेवाणी के साथ हुई घटना के समान थी, जिसे असम पुलिस ने अप्रैल में गिरफ्तार किया था। तो एक तरह से बीजेपी को अपनी ही दवा का स्वाद मिल गया। हालांकि, पंजाब में, बग्गा की गिरफ्तारी के अगले ही दिन, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने कथित तौर पर धर्मकोट के नवनिर्वाचित आप विधायक जसवंत सिंह गज्जन माजरा के तीन स्थानों पर छापा मारा- और कुछ भी नहीं मिला।

इन सबसे ऊपर, आप को राज्यसभा में पांच सदस्यों के नामांकन पर काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। सच कहा जाए, तो आप ने दिखा दिया है कि वह एक निश्चित योजना के साथ आगे बढ़ रही है और इसका मतलब काम से है। इसने पंजाब के लोगों को उन चीजों को दिखाया है जिनके बारे में वे नहीं जानते थे। उन्हें मालूम है कि पूर्व मंत्री और विधायक चुनाव हारने के तुरंत बाद अपने आवंटित सुसज्जित घरों को खाली नहीं करते हैं। और जब वे बाहर निकलते हैं, तो वे चल संपत्ति जैसे फर्नीचर को अपने साथ ले जाते हैं। इसके अलावा, यह भी पता चाल कि, पंजाब के पूर्व मंत्री सत्ता गंवाने के ठीक बाद कारों जैसे आधिकारिक वाहनों को वापस नहीं करेंगे।

पंजाब में गांव की आम जमीन या पंचायत की जमीन के एक अन्य मुद्दों पर विचार करें। इस मुद्दे को राज्य में लंबे समय से भुला दिया गया था, लेकिन नई सरकार ने इसे एक महीने के भीतर पुनर्जीवित कर दिया है जब पंचायत मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने खुलासा किया कि सरकार ने चंडीगढ़ के पास कई अतिक्रमण वाली भूमि को खाली करा दिया है। इस खबर ने लोगों को लगभग झकझोर कर रख दिया। इसके बाद इसने और अधिक पंचायत भूमि को सुरक्षित और साफ करने के लिए कई अन्य कदम उठाए हैं।

हालांकि, आप सरकार ने अभी तक भ्रष्टाचार के बड़े धुरंधरों को छुआ तक नहीं है। 2015 में राज्य को झकझोरने वाले और 2017 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को जीतने में मदद करने वाले बेअदबी के मुद्दे पर भी सरकार चुप है। याद करो जब कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने भी इस संकट को हल करने के लिए कुछ नहीं किया था, जब वह राज्य की प्रभारी थी।

अब, कुछ लोगों को ऐसा लग सकता है कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था सब कुछ ठीक कर रही है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी चुनौती राज्य की अर्थव्यवस्था को ठीक करना है। और ऐसा उसके सत्ता में आने के एक साल के भीतर भी नहीं होगा। इसके अलावा, जैसा कि मंगलवार की घटनाओं से संकेत मिलता है, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इसके चुने हुए प्रतिनिधि ईमानदार रहेंगे। विपक्षी दलों की जबरदस्त वित्तीय ताकत और आम तौर पर आम आदमी पार्टी और पार्टी संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ उनके बेरोकटोक अभियान को देखते हुए, वर्तमान सरकार का एकमात्र सुरक्षा का जाल लोगों का मिला जनादेश है। पंजाब के मतदाता आप को 116 में से 92 सीटों के साथ सत्ता में लाए हैं। याद रखें: यहां तक कि उन्हें इस बात का एहसास भी नहीं था कि ईमानदार शासन के लिए मतदान करने का मतलब यह होगा कि वे अपना काम भी संदिग्ध तरीकों से नहीं करवा पाएंगे। 

लेखक गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर में समाजशास्त्र के पूर्व प्रोफ़ेसर और इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

AAP Sacking its Minister Causes Stir in Punjab and Beyond

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