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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सिर्फ NPR का बॉयकॉट ही NRIC से बचा सकता है

NPR में जितने कम लोग हिस्सा लेंगे, NRIC की साख उतनी ही कम होगी।  
NPR

नागरिकता संशोधन कानून पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट के इंकार के बाद अब नागरिक समाज के नेताओं को अब नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर  की एक्सरसाइज का बॉयकॉट पर काम शुरू कर देना चाहिए। क्योंकि यही आगे नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन का आधार बनेगा।  
इन दोनों रजिस्टर को बनाने वाली एक्सरसाइज ही सिर्फ नहीं जुड़ी है, दरअसल NPR को बॉयकॉट करने की मुहिम में एनआरसी के बॉयकॉट से ज्यादा लोग जुड़ सकते हैं। क्योंकि NPR में गलत जानकारी देने पर जुर्माना कम है। इसी बात का जुर्माना NRIC में काफी ज्यादा होगा।  

सुप्रीम कोर्ट ने सीएए के मुद्दे पर जवाब देने के लिए  केंद्र सरकार को चार हफ्ते का वक्त दिया है। इससे नागरिकता संशोधन कानून के मुद्दे पर कोर्ट के बाहर लंबी लड़ाई चालू हो गई है। जबतक सुप्रीम कोर्ट इस कानून पर अपना फैसला नहीं दे देता, तबतक बीजेपी इसे उन हिंदुओं का रक्षात्मक कवच बताना जारी रखेगी, जिनके पास  इस नागरिकता  साबित करने के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं होंगे।

यह धारणा कि नागरिकता संशोधन कानून सभी हिंदुओं की रक्षा करेगा, यह एक मिथक है। लेकिन यह मिथक लोगों को गुमराह कर, बिना डरे NPR और उसके बाद NRIC में भागीदार बनाने के लिए काफी है।

बल्कि CAA-NPR और NRC की त्रिमूर्ति ने अपनी मार आखिर के लिए बचा कर रखी है। इन तीनों में NRIC सबसे खतरनाक है। क्योंकि इससे बाहर किए गए लोग गैर नागरिक घोषितो हो जाएंगे। वे अपने अधिकारों से हाथ धो देंगे, जिसमें वोटिंग अधिकार भी शामिल हैं। उन्हें डिटेंशन कैंप तक भेजा जा सकता है।
 
NPR और NRIC को नागरिकता नियम, 2003 के प्रावधानों से आपस में गूंथा गया है। इन नियमों को नागरिकता कानून,1955 की धारा 18 में दी गई शक्तियों से बनाया गया है। इनके तहत  सरकार नागरिकों के रजिस्ट्रेशन और  नेशनल आईडी कार्ड से जुड़े मुद्दों पर नियम बना सकती है।

नागरिकता नियम, 2003 के मुताबिक सरकार को NPR बनाना और इसे अपडेट करना होता है। अभी तक हर आदमी से इसमें 31 बिंदुओं पर जानकारी मांगी जाती है।यह नियम कहते हैं कि NPR के लिए जो डेटा लिया जाएगा, उसका इस्तेमाल NRIC बनाने के लिए होगा। जाहिर है वार्ड या गांव स्तर के स्थानीय रजिस्टर में उन लोगों को दर्ज किया जाएगा, जिनकी नागरिकता संदेह के घेरे में हैं। उनके पास अपील करने के कई मौके होंगे।  लेकिन एक बार इन मौकों के खात्मे के बाद उनका नाम NRIC से काट दिया जाएगा।  

इसलिए NPR, NRIC का ही पूर्ववर्ती है। दूसरे शब्दों में कहें तो  NRIC, NPR का सबसेट है। NRIC ना बनाया जाए, इसके लिए जरूरी है कि NPR का बॉयकॉट किया जाए। बता दें NPR के लिए आंकडों के इकट्ठा किए जाने की प्रक्रिया एक अप्रैल से तीस सितंबर के बीच की जाएगी।

लेकिन इस बॉयकॉट की एक कीमत होगी

नागरिकता कानून, 2003 के नियमों में धारा 17 के मुताबिक,  किसी व्यक्ति के इन नियमों के सेक्शन 6 में किसी का भी उल्लंघन करने पर, उसके ऊपर   एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। धारा सात कहती है, ''हर परिवार के मुखिया की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि पॉपुलेशन रजिस्टर बनाने के लिए तय समय पर, संबंधित सदस्य के नाम और सदस्यों की संख्या समेत दूसरी जानकारियां सही दी जाएं।''

 NPR में एक हजार रुपये का जुर्माना गरीब लोगों के लिए बड़ी रकम है। लेकिन इसके विरोध में चल रहे जनआंदोलन में इस रकम को सार्वजनिक तरीके से जुटाया जाना आसाना होगा। इसके तहत उन लोगों के लिए पैसे दिए जाएंगे, जो NPR का विरोध करना तो चाहते हैं, पर वो जुर्माने की रकम को वहन नहीं कर सकते हैं।  

जानकारी देने के लिए मुखिया को जिम्मेदार बनाना एक जटिल प्रावधान है। युवा जो CAA-NPR-NRIC का खुलकर विरोध कर रहे हैं, उनके मुकाबले  उम्रदराज लोग इस बॉयकॉट के लिए आसानी से शामिल नहीं होंगे।  नागरिक समाज के कार्यकर्ता बिना इन उम्रदराज लोगों के सहयोग के NPR का बहिष्कार नहीं कर सकते।  

धारा सात को छोड़कर नागरिकता कानून, 2003 में सभी सेक्शन NRIC से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए धारा आठ बताती है कि किसी भी व्यक्ति के लिए यह जरूरी है कि वो उसकी नागरिकता की स्थिति को तय करने के लिए जानकारियां दे। इस धारा के उल्लंघन पर भी एक हजार रुपये का जुर्माना है।

लेकिन साउथ एशियन ह्यूमन राइट्स डॉक्यूमेंटेशन सेंटर के CAA-NPR-NRIC पर ड्रॉफ्ट नोट में अंदेशा लगाया गया है कि सरकार नागरिकता कानून, 1955 की धारा 18 को लागू कर सकती है। इस धारा के मुताबिक, नागरिकता की स्थिति से संबंधित गलत तथ्य देने पर पांच साल की जेल या पचास हजार रुपये का जुर्माना या दोनों लगाया जा सकता है।

यह बहस का विषय है कि NRIC की शुरूआत के बाद तथ्यों को गलत देने संबंधी प्रावधानों में NPR का डेटा भी शामिल होगा या नहीं। नागरिकता नियम, 2003 की धारा 6 के मुताबिक हर व्यक्ति को  NRIC में  स्थानीय सिटीजन रजिस्टर में खुद का पंजीयन कराना होता है।  

नागरिक समाज के कार्यकर्ताओें को लगता है कि सरकार अगर अस्सी से नब्बे फ़ीसदी लोगों को NPR में शामिल करवाने में कामयाब हो जाती है, तब यह और कड़े कानूनों को लागू कर सकती है। जो महज एक हजार के जुर्माने से कहीं ज्यादा होंगे। इसका समाज के एक हिस्से, जिसके पास नागिरकता साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं हैं, उसपर खतरनाक असर होगा।  

नागरिकता साबित करने का पूरा विमर्श नागरिकता संशोधन कानून के चलते आशंकाओं से भर गया है। नए कानून के ज़रिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से धार्मिक तौर प्रताड़ित  लोगों को  NRIC से  बाहर रहने पर भी  एक सुरक्षा कवच दिया जा रहा है। उन्हें नागरिकता देने के प्रावधानों में ढील देकर, प्रक्रिया में तेजी लाई गई है। उन्हें न तो हिरासत में लिया जाएगा, न ही उन्हें निर्वासित किया जाएगा।  

मोदी सरकार ने  CAA को असम के बंगाली हिंदुओं को संतुष्ट करने के लिए लागू किया है। यह बंगाली हिंदू, एनआरसी की लिस्ट से बाहर रह गए थे। लेकिन यह CAA पूरे देश पर लागू होता है।

 NPR-NRIC के साझा कार्यक्रम को शुरू करने से पहले नागरिकता संशोधन कानून को लागू कर बीजेपी यह माहौल बनाने में कामयाब रही है कि हिंदुओं को  NRIC से डरने की जरूरत नहीं है। जैसा पहले बताया, यह एक मिथक है। यह मिथक कम से कम, तब तक बना रहेगा, जबतक सुप्रीम कोर्ट मामले में फैसला नहीं दे देता। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार को जवाब देन के लिए दिए गए एक महीने के वक्त से तय हो गया है कि इसका फैसला अप्रैल में NPR की एक्सरसाइज के शुरू होने से पहले नहीं आएगा। यह तीस सितंबर के बाद भी आ सकता है, जब NPR की प्रक्रिया खत्म हो चुकी होगी।  

नागरिकता संशोधन कानून के जरिए  बीजेपी की मंशा अपने भेदभावकारी  नागरिकता के विचार में हिंदुओं का समर्थन लेने की है। वह तय करना चाहती है कि  NPR में ज्यादा से ज्यादा लोगों का समर्थन हासिल किया जा सके।जितने ज्यादा लोग इस NPR में आएंगे, NRIC की साख उतनी ही मजबूत होगी।

 इससे उलट अगर NPR में एक बड़ी संख्या में लोग शामिल नहीं हुए, तो NRIC से उतने ही नागरिक बाहर होंगे।इससे नागरिकता तय करने की राज्य की ताकत  का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा। इसलिए केरल सरकार ने रजिस्ट्रार जनरल और सेंसस कमिश्रनर को कहा है कि वो NPR लागू नहीं कर पाएंगे। पता नहीं दूसरे राज्य इसका पालन करते हैं या नहीं, पर  NPR का एक लोकप्रिय बहिष्कार ही NRIC को रोक सकता है।
 
(लेखक  स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

After SC Order on CAA, Only Boycott of NPR Can Nix NRIC

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