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कृषि सुधार या पूंजीपतियों की झोली में ‘किसानों’ की सरकार?

दिल्ली के ग्रामीण गालिबपुर गांव के 26 वर्षीय  किसान अनुज ने बड़े गुस्से से कहा, “और एक बात बताओ, जब सरकारी व्यवस्था के होते हुए भी सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिला पा रही है, तो बाहर हमे पूछने वाला कौन है?”
राज्यसभा
किसान बिल पर राज्यसभा में विरोध करने वाले विपक्ष के आठ सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है। फोटो साभार : राज्यसभा टीवी

देश में जगह-जगह प्रदर्शनों, किसानों पर लाठीचार्ज, मुकदमों के बीच केंद्र सरकार द्वारा “किसान विरोधी” बिल पास कर दिए गए हैं। “एक तरफ हमारा दमन करने का पूरा साजो सामान सबके सामने है, और हमारे देश की जनता मूकदर्शक बने बैठी है, परन्तु हमें अपने बच्चों को जवाब देना है कि हमने अपने भविष्य के लिए लड़ाई कैसे लड़ी है”, भारतीय किसान यूनियन के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष बिरेंदर डागर का यह बयान आजकल काफी सुर्खिया बटोर रहा हैI 

बता दे, केंद्र सरकार ने कृषि सुधारों के नाम पर तीन बिल सदन में पेश किए हैं। जिनमें से दो बिना मतदान के पारित करा लिए गए हैं। इस सबके खिलाफ पहले से ही किसान सड़कों पर हैं। आपको मालूम हो कि संसद के सत्र से पहले ही इन्हें अध्यादेश के तौर पर लागू कर दिया गया था। एक तरफ सरकार इन्हें किसानों के हित से जुड़ा कानून बता रही है तो दूसरी ओर किसान सड़कों पर आर पार के मूड में नजर आ रहे हैंI हरियाणा, पंजाब के किसानों के बाद अब दिल्ली के किसान भी, भारतीय किसान यूनियन के साथ मिलकर जल्द ही सड़कों पर ट्रैक्टर रैली करते नजर आने वाले हैंI जिसमें रावता गांव में साल भर बनी रहने वाली बाढ़ की स्थिति पर सरकार की कार्य लचरता एवं नए किसान कानून के विरुद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहते हैI 

आइए जानते हैं कि क्या है ये विधेयक जिनका इतना विरोध हो रहा है और फिर भी सरकार इन्हें लागू करने पर आमादा है-

कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल 2020 

इसमें किसान के सर से मंडी का बोझ उतारने की बात कही गयी है, कि किसान अब मंडी से बाहर अपना अनाज, सब्जियां आदि बेच सकता है एवं उसे हर प्रकार के टैक्स से भी मुक्ति दी जाएगी , बिचौलिये की भूमिका भी न के बराबर होगीI 

आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल 2020 करीब 65 साल पुराने वस्तु अधिनियम कानून में बदलाव के लिए लाया गया है। इस कानून में अनाज, दलहन, आलू, प्याज समेत कुछ खाद्य वस्तुओं (तेल) आदि को “आवश्यक वस्तु” की लिस्ट से बाहर करने का प्रावधान दिया गया  हैI जिससे अब इन सामान को स्टोर/स्टॉक करने की पर, सामान्य परिस्थिति में किसी भी प्रकार की पाबन्दी नहीं रहेगीI  इस कानून से अब व्यापारियों द्वारा कितना भी सामान लम्बे समय तक स्टॉक किया जा सकता हैI सरकार का कहना  है कि इससे प्राइवेट इन्वेस्टर्स को व्यापार करने में आसानी होगी और “सरकारी बाधाओं” से निजात  मिलेगी 

मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता बिल 2020 

सरकार का कहना है कि इस कानून की खास बात यह है कि सरकार बिचौलिए की भूमिका खत्म कर रही हैI  किसान अपनी फसल जिसे भी बेचना चाहता है, उससे पहले लिखित फसल की उपज बिक्री, समय आदि के सन्दर्भ में  लिखित कॉन्ट्रैक्ट कर (सरकारी गाइडलाइन के अनुसार) खेती करें जिससे किसान को सीधा लाभ मिल पाए।

फिर क्या है नाराज़गी ?

किसान की मुख्य नाराजगी का कारण न्यूनतम समर्थन मूल्य है जहाँ देश की सरकारी मंडी में भी लगभग 6% फसलों पर ही न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल पाता है, वहां किसानों का मानना है कि अब सरकार रही सही सरकारी व्यवस्था को कमजोर कर रही है, एवं किसानों को  बाहर बाजार में शोषित होने के लिए धकेल रही हैI “मंडी एक ठिकाना है,जहाँ व्यापारियों में “बोली” पर प्रतिस्पर्धा होती है, बाहर बड़े ग्राहक कैसे ढूंढे जा सकते है? और ग्राहक को जब मंडी में सस्ता मिल रहा है तो किसानों से बाहर महंगा कौन खरीदेगा?” 

दिल्ली के ग्रामीण गालिबपुर गांव के 26 वर्षीय  किसान अनुज ने बड़े गुस्से से कहा, “और एक बात बताओ, जब सरकारी व्यवस्था के होते हुए भी सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिला पा रही है, तो बाहर हमे पूछने वाला कौन है?”

दूसरी ओर किसान स्टॉक लिमिट के ख़त्म किये जाने के सीधे सीधे विरुद्ध हैं। किसानों का मानना है कि स्टॉक लिमिट के खत्म होने से सीधे सीधे सामान की  काला बाजारी बढ़ेगी, गुडगांव के 35 वर्षीय किसान रविंदर बताते हैं कि “जमींदार मुश्किल से 10,15 रुपये किलो के भाव की प्याज बेचता है और वो स्टॉक लिमिट के कानून के होने के बाद भी किसान के हाथ में दोबारा 60 -70  के भाव में आती है, तो सोचने लायक बात है कि यहाँ जब लिमिट ख़त्म हो जाएगी तो किसान अपने ही उगाए दाल , प्याज  ही नहीं खरीद पाएगाI  अब सारा मुनाफा व्यापारियों को ही कराना है या किसान की भी जरुरत है इस सरकार को?”

तीसरे बिल पर दिल्ली के 64 वर्षीय किसान श्री कृष्ण, फिर न्यूनतम समर्थन की बात करते है कि “किसान को कांटेक्ट फॉर्मिंग के सपने दिखा रहे हो, एक तरह से सरकार किसान और खरीदार के बीच से निकलना चाहती है, परन्तु देश की राजधानी में न्यूनतम समर्थन मूल्य न दिला सकने वाली सरकार क्या प्राइवेट कंपनी से दिला सकती है? यह तो नील की खेती वाली बात कर रही है सरकार, जो अंग्रेजो के समय पर हुआ करती थी, वहां भी भारतीय सरकार नहीं थी और इस बिल के बाद भी नहीं होगी।" 

दिल्ली के दरियापुर गांव में जैविक खेती कर रहे सत्यवान सेहरावत भी सरकार की इस नई पहल को ठीक नहीं मानते "सरकार की ये बड़ी भूल है जैसे नोटेबंदी ने देश में अफरा तफरी मचा दी थी और बाद में सरकारी आकड़े और शोधकर्ता इस बात का खुलासा कर रहे थे की ये एक गलत फैसला था, आज भी यही स्थिति है इससे पहले की देश और किसानों को भारी नुकसान भोगना पड़े सरकार को पुनः विचार विमर्श करना चाहिए क्या किसान तैयार है बदलाव के लिए

देवेंदर सिंह जो 65 वर्षीय किसान हैं दिल्ली के नांगल ठाकरान गांव से है जहां मनोज कुमार की प्रसिद्ध फिल्म उपकार फिल्माई गयी थी, सवाल करते है "जो किसान आज तक अपनी उपज का मोल नहीं लगा सका, कर्ज मुक्त नहीं हो पाया, खेती के लिए साधन नहीं जोड़ पाया सरकार किस भरोसे उसे व्यपार करने के लिए कह रही है। बहुत से नेता तो खुद किसान परिवार से हैं। क्या उन्हें नहीं पता किसान परिवार में अगर कोई व्यापार कर पाता तो किसान आज ये परेशानिया क्यों झेल रहे होते। दिल्ली में किसान बिना बिजली का इस्तेमाल करे हर साल फिक्स्ड चार्ज के नाम में बिल भर रहे हैं उसे तो वो माफ़ नहीं कर पा रहे, कैसे वो किसानी से व्यापार में उतर पाएंगे।

पूरे देश में इस मुद्दे पर राजनीति गर्म है, एक तरफ प्रधानमंत्री इसे विपक्ष के लोगों द्वारा फैलाया गया भ्रम बता रहे है तो दूसरी ओर एनडीए के सबसे पुराने सहयोगी कैबिनेट पद छोड़ने के बाद गठबंधन तोड़ने की धमकी देते नजर आ रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली में ही न्यूनतम समर्थन मूल्य, और मूलभूत सब्सिडी तक न दिला पाने वाले मुख्यमंत्री “किसान हितेषी” बन  बिल का विरोध करते नजर आ रहे हैंI हालाँकि केंद्र अब बिल के बाद आगे की ओर देख रहा है, पर देखने लायक होगा कि किसान आखिर में इन कानूनों से समझौता करता है या अन्नदाता कहलाने वाले किसान अपने हितों एवं आत्म सम्मान की रक्षा कर, स्वामीनाथन रिपोर्ट के सी-2  फार्मूला से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनवाने में सफल हो पाते हैंI 

(लेखक खुद एक किसान परिवार से आते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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