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विश्लेषण: मोदी की ग्लोबल अप्रूवल रेटिंग बढ़ी नहीं बल्कि घटी है

अगर डेटा कंपनी के ट्रैकर का बारीकी से अध्ययन करें तो पाएंगे कि नरेंद्र मोदी की अप्रूवल रेटिंग बढ़ी नहीं, घटी है। डेटा कंपनी के ही अनुसार मोदी की डिसअप्रूवल रेटिंग 9 अगस्त 2019 को 11% थी जो 15 जून 2021 को बढ़कर 28% हो गई है।
 मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता तेजी से घट रही है। इसे संभालना मुश्किल हो रहा है। जिसके चलते नये-नये सर्वे सामने आ रहे हैं। नरेंद्र मोदी को ग्लोबल लीडर स्थापित करने के लिए मीडिया पूरी मेहनत कर रहा है। ग्लोबल एजेंसियों का सहारा लिया जा रहा है और जबरदस्त हेडलाइन बनाई जा रही हैं।

हाल ही में मॉर्निंग कंसल्ट एक अमेरिकी डेटा इंटेलिजेंस कंपनी का सर्वे सामने आया है। जिसे आधार बनाकर मीडिया में जबरदस्त हेडलाइन चल रही है। नरेंद्र मोदी को विश्व नेताओं की ग्लोबल अप्रूवल रेटिंग में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। लेकिन इसमें से काफी महत्वपूर्ण जानकारियां छिपा ली गई हैं। आइये, इन बातों पर गौर करते हैं और मामले को समझते हैं।

क्या है मामला

17 जून 2021 को मॉर्निंग कंसल्ट कंपनी नें अपने ग्लोबल लीडर अप्रूवल रेटिंग ट्रैकर को अपडेट किया। जिसमें नरेंद्र मोदी की अप्रूवल रेटिंग सबसे ज्यादा पाई गई। ये डेटा कंपनी 13 देशों के चुने हुए प्रमुख नेताओं की अप्रूवल ट्रैकिंग का रिकॉर्ड रख रही है। इनकी अप्रूवल रेटिंग को आप मॉर्निंग कंसल्ट के इस ट्वीट में देख सकते हैं या उनकी वेबसाइट पर भी देख सकते हैं। कंपनी के अनुसार नरेंद्र मोदी की अप्रूवल रेटिंग 66 प्रतिशत है जो बाकी 13 ग्लोबल लीडर से ज्यादा है। मोदी इसमें पहले स्थान पर हैं।

हेडलाइन मैनेजमेंट और छवि निर्माण

जैसे ही डेटा कंपनी ने ये अपडेट किया भारतीय मीडिया ने इसे लपक लिया। भाजपा के नेताओं ने मोदी को बधाई देते हुए ट्वीट करने शुरु कर दिये। मीडिया ने नरेंद्र मोदी को विश्व नेता घोषित कर दिया। हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा कि मोदी की अप्रूवल रेटिंग 66% अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन और जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल से भी आगे। ज़ी न्यूज़ लिखता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अप्रवूल रेटिंग विश्व नेताओं में सर्वाधिक। बाइडेन, एंजेला माक्रेल, बोरिस जॉनसन को पछाड़ा। इंडिया टीवी लिखता है कि पीएम मोदी की ग्लोबल अप्रूवल रेटिंग सबसे ज्यादा, बाइडेन और एंजेला माक्रेल को हराया। इसी तरह की हेडलाइन एबीपी लाइव और न्यूज़ 18 ने दी है कि मोदी की रेटिंग सर्वाधिक बाइडेन और साक्रेल को हराया। कुल मिलाकर अगर कुछेक को छोड़ दें तो ज्यादातर मीडिया वेबसाइट्स पर इसी तरह की हेडलाइन हैं।

मॉर्निंग कंसल्ट ग्लोबल अप्रूवल रेटिंग कुछ नज़रअंदाज़ तथ्य

अगर डेटा कंपनी के ट्रैकर का बारीकी से अध्ययन करें तो पाएंगे कि नरेंद्र मोदी की अप्रूवल रेटिंग बढ़ी नहीं, घटी है। डेटा कंपनी के ही अनुसार मोदी की डिसअप्रूवल रेटिंग 9 अगस्त 2019 को 11% थी जो 15 जून 2021 को बढ़कर 28% हो गई है। गौरतलब है कि इस दौरान जिस तरह से देश में घटनाक्रम हुये हैं उसी हिसाब से मोदी की अप्रूवल रेटिंग पर असर पड़ा है। अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था। जिसने मोदी की इमेज़ को मज़बूत किया। लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, अर्थव्यवस्था का हाल खराब हुआ, कोरोना की पहली लहर और अनियोजित लॉकडाउन से लोगों की दुर्दशा, नौकरी-पेशे उद्योग-धंधे ठप्प हुए। मोदी का अवैज्ञानिक नज़रिया, लापरवाही, चुनाव के प्रति व्यग्रता, असंदेनशीलता और बड़बोलापन एक्सपोज़ होना शुरु हो गया। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मोदी और उसकी सरकार की बदइंतज़ामी और ग़ैरज़िम्मेदारी खुलकर सामने आ गई। चाहे अर्थव्यवस्था हो, रोज़गार हो, स्वास्थ्य हो या अन्य कोई क्षेत्र हर क्षेत्र में नरेद्र मोदी की अयोग्यता और असफलता सामने आ गई और उनकी 56 इंच की छवि सिकुड़ गई। ये कुछ मोट-मोटे कारण हैं जो बताते हैं कि मोदी की डिसअप्रवूल रेटिंग 11% से बढ़कर 28% क्यों हो गई है।

भाजपा के भीतर की कलह और मोदी बनाम योगी चला घटनाक्रम भी स्पष्ट तौर पर बता रहा कि मोदी की लोकप्रियता में भारी गिरावट है। लेकिन जैसे ही मॉर्निंग कंसल्ट डेटा कंपनी ने अपने ट्रैकर को अपडेट किया गोदी मीडिया को सुनहरा अवसर मिल गया। गोदी मीडिया द्वारा आपको सिर्फ ये बताया गया कि मोदी की अप्रूवल रेटिंग कितनी है ये नहीं बताया गया कि डिसअप्रूवल रेटिंग में भारी बढ़ोतरी हुई है।

मॉर्निंग कंसल्ट का सर्वे कितना भरोसेमंद?

अब बात करते हैं मॉर्निंग कंसल्ट कंपनी के ट्रैकर की इसके तरीके और विश्वनीयता की। इस डेटा कंपनी का भारत का सैंपल साइज़ 2,126 है। यानी 2,126 भारतीय व्यस्क नागरिकों से साक्षात्कार के आधार पर इस ट्रैकर को अपडेट किया गया है। पहला सवाल तो ये उठता है कि 135 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले देश में क्या ये सैंपल साइज़ काफी है। दूसरा, डेटा कंपनी ने इन लोगों से ऑनलाइन साक्षात्कार किया है। जिससे स्पष्ट है कि ये पढ़े-लिखे लोग हैं, इंटरनेट तक पहुंच है, अंग्रेज़ी जानते हैं और आनलाइन स्पेस में सहज हैं। यानी देश की बड़ी आबादी का प्रतिनिधत्व नहीं करते हैं। इस प्रकार इस रेटिंग की विश्वसनीयता भी संदेहास्पद है या कहें कि परिणामों का दायरा सीमित है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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