आंदोलनकरियों और पत्रकारों की गिरफ़्तारी सरकार का ‘राजनीतिक प्रतिशोध’: दारापुरी
जेल से रिहा होने के बाद पूर्व आईपीएस दारापुरी, पत्रकार सिद्धार्थ रामू और अंबेडकर जन मोर्चा के श्रवण कुमार निराला का फूल माला से स्वागत किया गया।
गोरखपुर में दलितों के भूमि अधिकार के आंदोलन में शामिल होने के बाद ग़िरफ़्तार किए गए आईपीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व आईपीएस एस आर दारापुरी, पत्रकार सिद्धार्थ रामू और अंबेडकर जन मोर्चा के श्रवण कुमार निराला आज जेल से रिहा किए गए।
जेल से रिहा होने के बाद दारापुरी ने न्यूज़क्लिक से विशेष बात करते हुए कहा कि उनकी व दूसरे आंदोलनकरियों और पत्रकारों की गिरफ़्तारी सरकार का "राजनीतिक प्रतिशोध" पोलिटिकल वेन्डेटा है। उन्होंने कहा कि वह हमेशा से ज़मीनी मुद्दों के आंदोलन से जुड़े रहे हैं और भविष्य में भी जुड़े रहेगें।
आपको बता दें कि अंबेडकरवादी संगठन, “अंबेडकर जन मोर्चा” द्वारा प्रत्येक भूमिहीन दलित, ओबीसी और मुस्लिम परिवार के लिए एक एकड़ जमीन की मांग को लेकर बीती 10 अक्टूबर को गोरखपुर में कमिश्नर कार्यालय के सामने 'डेरा डालो, घेरा डालो आंदोलन' किया गया था। इसमें बड़ी संख्या में एक्टिविस्ट और ग्रामीण ख़ासकर दलित महिलाएं शामिल हुईं थीं।
इस धरना-प्रदर्शन में “बतौर मेहमान” शामिल हुए दलित चिन्तक दारापुरी, तीन यूट्यूब पत्रकारों और छह अन्य आन्दोलनकारियों को गंभीर धाराओं में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।
गोरखपुर की अपर सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी एक्ट) की अदालत ने इन सभी आरोपियों को ज़मानत देते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस की एफआईआर में एक बड़ी “असंगति” की तरफ़ इशारा किया है।
ब्योरे के अनुसार सेवानिवृत्त आईपीएस दारापुरी और अम्बेडकर जन मोर्चा के संयोजक श्रवण कुमार निराला समेत 13 आन्दोलनकारियों पर, 11 अक्तूबर को, एक एफआईआर दर्ज की गई थी। इन सभी पर हत्या के प्रयास, आपराधिक साजिश, दंगा, आपराधिक धमकी, लोक सेवक को उसके कर्तव्य से रोकने के लिए जानबूझकर चोट पहुंचाने, लोक सेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाना और विद्युत अधिनियम, भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था।
इसके अलावा 10 से 15 अज्ञात लोगो पर भी मुक़दमा लिखा गया था। बता दें इस मामले में धारा 307 हत्या के प्रयास और धारा 120-B साजिश के आरोप बाद में जोड़े गए थे।
इन सभी को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अशोक कुमार की अदालत ने शनिवार, 28 अक्तूबर को ज़मानत दे दी है। लेकिन इस मामले में “असंगति” एफआईआर में कथित हमले की प्रकृति से संबंधित है। जिससे पूर्व आईपीएस अधिकारी और दूसरे आन्दोलनकारियों और पत्रकारों के खिलाफ़ हत्या के प्रयास के आरोप की योग्यता (मेरिट) पर सवाल उठ रहे हैं।
बताया जाता है कि, कमिश्नर कार्यालय के कर्मचारी, शिकायतकर्ता राजेश कुमार शर्मा की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर हत्या के प्रयास का आरोप बाद में एफआईआर में जोड़ा गया। मेडिकल रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि उन्हें चोटें आई थीं। हालाँकि, एफआईआर में हत्या के प्रत्यक्ष प्रयास या किसी हथियार के इस्तेमाल का कोई प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं था।
न्यायाधीश अशोक कुमार ने ज़मानत देते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस की एफआईआर में हमले की प्रकृति की बड़ी असंगति की तरफ़ इशारा किया। केस डायरी में दर्ज जांच अधिकारी के समक्ष सीआरपीसी 161 के तहत अपने बयान में, शर्मा का कहना है कि प्रदर्शन के आयोजक श्रवण कुमार निराला द्वारा दूसरों को उन पर हमला करने के लिए उकसाया गया था।
शर्मा ने अपने बयान में कहा “तभी, मेरे पीछे से किसी ने मेरी गर्दन पकड़ ली, जबकि श्रवण कुमार निराला ने सामने से मेरी गर्दन पकड़ ली। मिलीभगत से हमला करते हुए, उन्होंने मुझे मारने के इरादे से मेरा गला घोंटना शुरू कर दिया और मुझे जमीन पर धकेल दिया।
ज़िला अस्पताल, के एक चिकित्सा अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित उनकी मेडिकल रिपोर्ट में दो चोटों का उल्लेख है। जहां एक उनकी गर्दन से संबंधित है, वहीं दूसरी उनके कंधे पर लगी चोट थी।
ज़मानत का आदेश जो न्यूज़क्लिक पास है उसमे लिखा है “मज़रूब (घायल) राजेश कुमार शर्मा का मेडिकल परीक्षण डा. सहनवाज अंसारी आकस्मिक चिकित्साधिकारी एन०एस०बी० जिला चिकित्सालय, गोरखपुर द्वारा दिनांक 11.10.2023 को किया गया। मेडिकल रिपोर्ट में कुल 2 चोटों का आना अंकित है। Opinion Injury No- 01 is refer to ENT surgeon for opinion. Injury no।2 is kuo Rt. Shoulder joint are seen simple अंकित ।"
शर्मा के बयान और मेडिकल रिपोर्ट को नज़र में रखते हुए, न्यायाधीश अशोक कुमार मामले की योग्यता (मेरिट) पर टिप्पणी किए बिना कहा हैं, "एफआईआर में, शिकायतकर्ता ने किसी के द्वारा उसकी गर्दन पकड़ने का कोई उल्लेख नहीं किया है।"
श्रवण कुमार निराला के भाई आदर्श कुमार ने आरोप लगाया कि भले ही प्रदर्शन शांतिपूर्वक संपन्न हुआ, फिर भी उन पर दंगा, आपराधिक धमकी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया।
उन्होंने कहा की “धारा 307 हत्या के प्रयास और धारा 120-B आपराधिक साजिश के अधिक गंभीर आरोप, जो यह सुनिश्चित करते थे कि वे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत से ज़मानत के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे और सत्र अदालत में आवेदन करने से पहले कुछ दिन जेल में बिताने होंगे” बाद में एफआईआर में जोड़े गए।
उल्लेखनीय है कि इस मामले में क़रीब नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जबकि एक फ्रांसीसी विद्वान, हेनोल्ड वेलेंटाइन जीन रोज़र, जो “गरीबी” पर शोध करने के लिए भारत आए थे, को भी “वैध परमिट” के बिना उत्तर प्रदेश का दौरा करने और “विदेशी अधिनियम, 1946” के प्रावधानों का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
प्रदर्शन के दौरान वह एक परियोजना की घटनाओं का फिल्मांकन कर रहे थे, जिस समय वह काम कर रहे थे जब पुलिस ने उनको भी पकड़ लिया। अन्य लोगों में लेखक डॉ रामू सिद्धार्थ, जय भीम प्रकाश, ऋषि कपूर आनंद, स्वतंत्र पत्रकार नीलम बौद्ध और अयूब अंसारी शामिल हैं।
अदालत से ज़मानत मिलने के बाद भी दारापुरी समेत अन्य आंदोलनकारियों की जेल से रिहाई में काफ़ी समय लगा। आज गोरखपुर जेल से रिहाई के बाद उनका जेल गेट पर फूल माला से स्वागत किया गया।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए एस आर दारापुरी ने कहा कि सभी सरकारें हमेशा "असहमति" कि आवाजों को को दबाने का प्रयास करती रही हैं लेकिन मौजूदा सरकार में यह काम पहले से अधिक तीव्र गति से हो रहा है।
अपने ऊपर हुई एफआईआर को फ़र्जी बताते हुए दारापुरी ने कहा कि सरकारों द्वारा मुक़दमा लिखकर और जेल भेजने से दलित पिछड़ों और अल्पसंख्यको के अधिकारों की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता है।
नागरिकता संशोधन क़ानून के विरुद्ध आंदोलन में शामिल होकर 2019 में भी जेल जाने वाले दारापुरी कहते हैं उनका दलित पिछड़ों और अल्पसंख्यको के ज़मीन के अधिकार के लिए आंदोलन आगे भी जारी रहेगा। आंदोलन को और व्यापक करने की बात कहते हुए उन्होंने कहा कि अब इस आंदोलन में शामिल सभी संगठनों के साथ समन्वय बनाकर राज्य स्तरीय आंदोलन होगा।
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