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शिवसेना विवाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में जाने से जांच के घेरे में आई टेंथ शेड्यूल की प्रासंगिकता

बुधवार को, वकीलों ने पीठ के सामने दो प्रतिद्वंद्वी तर्क व्यक्त किए: जबकि उद्धव ठाकरे गुट ने विधानसभा में एकनाथ शिंदे गुट के बहुमत को 'अनुचित' बताया, शिंदे गुट ने दावा किया कि दसवीं अनुसूची को आंतरिक-पार्टी लोकतंत्र से जुड़े विवादों पर लागू नहीं किया जा सकता है।
SC

बुधवार को, शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच चल रहे वर्चस्व के संघर्ष के तीसरे दौर की शुरुआत मानी जा सकती है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पार्टियों से पूछा है कि क्या विवाद को दसवीं अनुसूची के तहत बागी विधायकों की अयोग्यता पर प्रतिद्वंद्वी याचिकाओं पर सुनवाई के लिए भेज देना चाहिए, जो अनुसूची दलबदल से निपटने के लिए बनी है। 

यदि राउंड-1 एकनाथ शिंदे गुट के पक्ष में गया था, तो तब तत्कालीन मुख्यमंत्री, उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र विधानसभा में मतदान से पहले अपना इस्तीफा सौंप दिया था, क्योंकि वे सुप्रीम कोर्ट से मतदान पर रोक लगाने में विफल रहे थे, राउंड-2, 4 जुलाई को तब समाप्त हो गया  जब फ्लोर टेस्ट में भाजपा के साथ मिलकर एकनाथ शिंदे की गठबंधन सरकार ने बहुमत हासिल कर लिया था और इस तरह यह राउंड भी शिंदे गुट के पक्ष में चला गया था।

हालांकि इस बात का कोई संकेत नहीं है कि राउंड-3 किस गुट के पक्ष में जाएगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट में मामले की चल रही सुनवाई विवाद को दसवीं अनुसूची की जांच के दायरे में पहले से कहीं ज्यादा करीब ले लाएगी।

बुधवार को, भारत के मुख्य न्यायाधीश, एन.वी. रमना और जस्टिस कृष्ण मुरारी और हेमा कोहली की पीठ ने शामिल मुद्दों की प्रारंभिक सुनवाई के बाद, विवाद को एक बड़ी पीठ को संदर्भित करने पर विचार किया, जैसा कि उनके विचार में, ऐसे कई संवैधानिक मुद्दे हैं जिनके मामले में न्यायिक निर्णय के उत्पन्न होने की संभावना है।

महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट में ट्विस्ट एंड टर्न्स

20 जून, 2022: शिवसेना के एकनाथ शिंदे धड़े ने एमएलसी चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग की

22 जून: शिंदे, '40 विधायकों' के साथ, सूरत से होते हुए गुवाहाटी चले गए, जहां वे पहले से डेरा डाले हुए थे;

23 जून: बागी विधायकों ने शिंदे को शिवसेना विधायक दल का नेता घोषित किया; शिवसेना ने 16 बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए डिप्टी स्पीकर के सामने याचिका दायर की।

24 जून: शिंदे गुट ने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया।

25 जून: डिप्टी स्पीकर ने बागी विधायकों को अयोग्यता का नोटिस दिया।

26 जून: शिंदे ने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की अस्वीकृति को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। 

29 जून: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार किया; उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री और विधायक पद से दिया इस्तीफा। 

30 जून: महाराष्ट्र के राज्यपाल ने शिवसेना के बागी विधायकों को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया; एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री (सीएम) के रूप में शपथ ली।

3 जुलाई: महाराष्ट्र विधानसभा ने बीजेपी विधायक राहुल नार्वेकर को नए अध्यक्ष के रूप में चुना। 

4 जुलाई: शिवसेना-भाजपा सरकार ने बहुमत जीता; उद्धव ठाकरे गुट के विधायकों को निलंबित करने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के सामने याचिका दायर की गई। 

5 जुलाई: शिवसेना के बागी धड़े के मुख्य सचेतक भरत गोगावाले ने उद्धव खेमे के विधायकों को अयोग्यता याचिका पर जवाब देने का नोटिस जारी किया।

8 जुलाई: उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद सरकार बनाने के लिए एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के निमंत्रण को चुनौती देते हुए उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।  

20 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट ने ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की; पार्टियों को उन मुद्दों को तैयार करने का निर्देश दिया, जिनकी एक बड़ी बेंच द्वारा जांच की जरूरत हो सकती है।

20 जुलाई: शिवसेना के 19 लोकसभा सदस्यों में से 12 शिंदे खेमे में शामिल हुए; लोकसभा अध्यक्ष, ओम बिरला ने राहुल शेवाले को लोकसभा में पार्टी के नेता के रूप में तय पाया। 

(नंदिता यादव द्वारा संकलित)

विवाद का एक बड़ी बेंच के संदर्भ में आना  

जबकि ठाकरे धड़े ने इस तरह के संदर्भ का समर्थन किया, किन्तु शिंदे गुट ने इसका विरोध करते हुए कहा कि वह पीठ को समझा सकता है कि इस तरह के संदर्भ की जरूरत क्यों नहीं है, क्योंकि मामले के तथ्यों को देखते हुए, दसवीं अनुसूची की प्रासंगिकता संदेह के घेरे में है। इस प्रकार, पीठ ने दोनों पक्षों को 27 जुलाई तक अपने मुद्दों को तय करने का निर्देश दिया है। पीठ मामले की सुनवाई करेगी, और 1 अगस्त को अगली सुनवाई से पहले इसे एक बड़ी पीठ को सौंपने का फैसला करेगी।

ठाकरे गुट की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने कहा कि दसवीं अनुसूची के तहत, राजनीतिक दल के किसी भी उस सदस्य को कोई संवैधानिक संरक्षण प्रदान नहीं किया गया है जो विधान सभा के भीतर 'मान्यता प्राप्त' राजनीतिक दल से अलग होना चाहता है। सिब्बल ने अदालत को बताया कि पैराग्राफ 4 के तहत प्रदान किया गया एकमात्र संरक्षण राजनीतिक दलों का विलय है। उन्होंने कहा कि चूंकि यह विलय नहीं है, इसलिए दसवीं अनुसूची के तहत कोई सुरक्षा उपलब्ध नहीं है।

सिब्बल ने जोरदार तर्क दिया कि अगर दसवीं अनुसूची के तहत रोक के बावजूद किसी भी राज्य की सरकारें गिराई जा सकती हैं तो इसका मतलब लोकतंत्र खतरे में है। उनके अनुसार, शिंदे गुट में शामिल होने वाले सभी 40 विधायकों को अनुसूची के अनुच्छेद 2(1)(ए) द्वारा परिभाषित अपने आचरण से स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ने के द्वारा दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित किया गया माना जाना चाहिए।

सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल किसी ऐसे व्यक्ति को शपथ नहीं दिला सकते, जिसने अन्य लोगों के साथ स्वेच्छा से खुद को महाराष्ट्र विधानसभा में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल से अलग होना चुना है। उन्होंने अदालत से विधानसभा का रिकॉर्ड मंगाने का आग्रह किया।

अनुचित बहुमत

ठाकरे गुट की ओर से पेश होते हुए अभिषेक सिंघवी ने भी शिंदे धड़े को मिले बहुमत को 'अनुचित बहुमत' बताया है। उन्होंने कहा कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता से बचने के लिए किसी अन्य पार्टी के साथ विलय जरूरी है।

सिंघवी ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लगातार अपने फैसलों में दलबदल को एक संवैधानिक पाप बताया है। उन्होंने पीठ से कहा कि जहां अदालतों ने दलबदल विरोधी कानून को बार-बार मजबूत किया है, वहीं महाराष्ट्र में हाल की घटनाओं से यह कमजोर हुआ है।

तत्कालीन डिप्टी स्पीकर द्वारा शुरू की गई अयोग्यता की कार्यवाही पर, सिंघवी ने दावा किया कि डिप्टी स्पीकर को भेजा गया पत्र एक अनधिकृत ईमेल से भेजा गया था और दूसरा ईमेल एक वकील द्वारा फॉरवर्ड किया गया था।

“डिप्टी स्पीकर इस पर गौर करते हैं, इसे जब्त करते हैं, और इस निष्कर्ष को दर्ज करते हैं कि वह इसे रिकॉर्ड में नहीं ले रहे हैं क्योंकि विधानसभा का कोई भी सदस्य उनके पास शारीरिक रूप से नहीं आया है। सिंघवी ने कहा कि, हालांकि, अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने से डिप्टी स्पीकर को अक्षम बनाने एक गैर-वास्तविक स्थिति बनाई गई थी।” 

सुप्रीम कोर्ट के नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर का हवाला देते हुए सिंघवी ने अदालत से कहा, "चातुर्य की कोई सीमा नहीं होती है"। सिंघवी ने इस फैसले का अर्थ यह निकाला कि यदि अध्यक्ष में विश्वास की कमी की वास्तविक स्थिति है, तो अविश्वास प्रस्ताव के निपटारे तक वे उनके समक्ष अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में अक्षम है। फिर उन्होंने कहा कि वर्तमान मामले में कुछ ऐसा भेजकर एक गैर-वास्तविक स्थिति पैदा की गई है जिसे रिकॉर्ड में भी नहीं लिया गया था। उन्होंने अदालत को बताया कि, हालांकि, डिप्टी स्पीकर को अक्षम बनाने का यही पूरा आधार था। 

“एक तरफ, आप दलबदल कर रहे हैं और दूसरी ओर, अध्यक्ष आपके खिलाफ फैसला भी नहीं कर सकता है क्योंकि आपने उन्हें अक्षम बना दिया है। यह स्थिति अनसुनी है, सिंघवी ने पीठ के समक्ष यह कहते हुए दावा किया कि, या तो उपाध्यक्ष को अयोग्यता याचिका पर फैसला करने की अनुमति दी जानी चाहिए थी या फिर फ्लोर टेस्ट नहीं होना चाहिए था। 

पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र

हालांकि बागी विधायकों के वकील हरीश साल्वे ने कोर्ट से कहा कि इस स्थिति को दलबदल नहीं कहा जा सकता है। अयोग्यता आंतरिक पार्टी लोकतंत्र पर लागू नहीं होती है। साल्वे ने कहा, "जिस क्षण आप अपनी पार्टी छोड़कर नेता के अधिकार पर सवाल उठाते हैं, और यदि आप फ्लोर टेस्ट में उन्हें हराने के लिए पर्याप्त ताकत जुटा लेते हैं तो यह दलबदल नहीं है।"

इसके अलावा, उन्होंने अदालत से अर्ज़ किया कि, अदालत को दसवीं अनुसूची ट्रिब्यूनल न बनने दें और उस मुद्दे पर फैसला करने का अनुरोध किया जिसमें राजनीतिक दलों का काम शामिल है। उन्होंने कहा, 'मिलॉर्ड्स ने कभी किसी पार्टी के कामकाज में दखल नहीं दिया है।'

अनुसूची के पैरा 2(1)(ए) का जिक्र करते हुए, साल्वे ने इस प्रकार समझाया: "यदि पार्टी ए के चुनाव चिन्ह के तहत निर्वाचित कोई व्यक्ति राज्यपाल के पास जाता है और कहता है कि मैं पार्टी बी का समर्थन कर रहा हूं, तो आप कह सकते हैं कि उसने ऐसा स्वेच्छा से पार्टी कि सदस्यता का त्याग किया है ... यह तब लागू नहीं होता जब किसी राजनीतिक दल का कोई सदस्य राज्यपाल के पास जाता है और कहता है, "मुख्यमंत्री पर सदन का विश्वास नहीं हैं"। साल्वे ने कहा, यह स्वेच्छा से उस पार्टी की सदस्यता नहीं छोड़ रहा है जिसने उन्हें चुनाव में खड़ा किया था।

(गुरसिमरन कौर बख्शी से इनपुट्स के साथ) 

सौजन्य: द लीफ़लेट

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

As SC Mulls Referring Sena Dispute to Constitution Bench, Tenth Schedule’s Relevance Under Scrutiny

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