Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ख़बरों के आगे-पीछे: झारखंड में भी सभी धार्मिक जगह पर भाजपा हारी

अपने साप्ताहिक कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन बता रहे हैं कि कैसे अयोध्या-फ़ैज़ाबाद के बाद झारखंड में सभी धार्मिक महत्व की सीटों पर भाजपा को हार मिली। इसके साथ ही वह अन्य मुद्दों की भी चर्चा कर रहे हैं। 
devghar

भाजपा को धर्म की राजनीति का चैंपियन माना जाता है, जो कि वह है भी। लेकिन जिस तरह लोकसभा चुनाव में उसे फैजाबाद-अयोध्या सीट पर हार का सामना करना पड़ा था, उसी तरह झारखंड में भी वह देवघर सहित लगभग सभी महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों वाली सीटों पर चुनाव हार गई। 

लोकसभा चुनाव में अयोध्या वाली फैजाबाद सीट पर समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने भाजपा के लल्लू सिंह को हराया था। झारखंड में देवघर ज्योतिर्लिंग का शहर है। वहां बाबा बैद्यनाथ का मंदिर है। चुनाव प्रचार के दौरान अमित शाह रात में देवघर रुके भी थे। देवघर में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विशेष विमान खराब हो गया था और उन्हें दो घंटे तक जहाज में ही बैठे रहना पड़ा था। दिल्ली से दूसरा विमान गया तो वे वहां से रवाना हुए। बहरहाल, देवघर विधानसभा सीट पर राजद के सुरेश पासवान ने भाजपा के नारायण दास को बड़े अंतर से हरा दिया। 

दूसरा अहम तीर्थ रजरप्पा में स्थित महाविद्या छिन्नमस्ता देवी का है। वह रामगढ़ विधानसभा सीट में आता है और वहां भी कांग्रेस की ममता देवी ने भाजपा की सहयोगी आजसू की उम्मीदवार सुनीता चौधरी को हरा दिया। 

तीसरा महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल मां देवी दुर्गा के देउड़ी मंदिर का है, जो तमाड़ विधानसभा सीट के तहत आता है। वहां भाजपा के सहयोगी जनता दल (यू) के उम्मीदवार राजा पीटर को झारखंड मुक्ति मोर्चा के विकास मुंडा ने हरा दिया।

चौथा धार्मिक स्थल गिरिडीह विधानसभा क्षेत्र में पार्श्वनाथ (सम्मेत शिखर) का है, जो जैन धर्म के सबसे बड़ा तीर्थ है। वहां भाजपा के उम्मीदवार निर्भय शाहाबादी को झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुदिव्य कुमार सोनू ने हरा दिया।

मुश्किलों से घिरते जा रहे हैं अडानी 

विवादों में घिरे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चहेते उद्योगपति गौतम अदाणी का भारत में भले ही कुछ नहीं बिगड़े लेकिन अमेरिका की अदालत में रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी का आरोपी बनाए जाने के बाद से वे एक के बाद एक मुश्किलों से घिरते जा रहे हैं। जिस दिन अमेरिकी अदालत ने समन जारी करके 21 दिन में जवाब देने को कहा, उसके अगले ही दिन केन्या ने अदाणी समूह के साथ अपने सारे सौदे रद्द कर दिए। अब खबर है कि श्रीलंका और बांग्लादेश में भी समस्या बढ़ने वाली है। श्रीलंका में उनके बिजली प्रोजेक्ट को लेकर समीक्षा हुई है और कैबिनेट को उसके बारे में फैसला करने के लिए अधिकृत किया गया है। गौरतलब है कि श्रीलंका में कम्युनिस्ट विचारधारा के अनुरा दिसानायके की सरकार है। बांग्लादेश की सरकार ने भी अदाणी समूह से बिजली खरीद के सौदे की समीक्षा करने के लिए एक कमेटी बनाई है। इस कमेटी की सिफारिशों पर सरकार आगे फैसला करेगी। 

उधर फ्रांस की बड़ी पावर कंपनी टोटल एनर्जीज ने भी नया रुख अपनाया है। उसने अदाणी समूह में अपना निवेश रोकने का फैसला किया है। कंपनी ने कहा है कि जब तक रिश्वतखोरी और धोखाधडी के मामले का निबटारा नहीं होता, तब तक वह निवेश नहीं करेगी। अदाणी समूह में निवेश करने वाली विदेशी कंपनियां एक-एक करके हाथ पीछे खींच रही हैं। उन्होंने शेयर बाजार में से अपना निवेश निकालना शुरू कर दिया है। एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की रिपोर्ट है कि अदाणी समूह को अब विदेशी निवेश मिलना लगभग नामुमकिन हो गया है।

महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगा? 

महाराष्ट्र में विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को समाप्त हो गया और नई सरकार भी शपथ नहीं ले पाई। इसके बावजूद राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया गया। दलील दी जा रही है कि जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 73 के मुताबिक चुने गए सदस्यों के नामों की अधिसूचना राज्यपाल के सामने प्रस्तुत करने के बाद विधानसभा का विधिवत गठन हो जाता है। हो सकता है कि यह तकनीकी स्थिति हो लेकिन क्या इस तकनीकी स्थिति का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया जा रहा है कि सरकार भाजपा को बनानी है? क्या कांग्रेस और उसके गठबंधन को बहुमत मिला होता और वे तीन दिन में सरकार नहीं बना पाते तब भी यही कहा जाता कि कोई बात नहीं, आप जब चाहें सरकार बनाइए, तब तक एकनाथ शिंदे कार्यवाहक मुख्यमंत्री रहेंगे? ऐसा कतई नहीं होता और राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता। संभवत: इसी योजना के साथ विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से तीन दिन पहले मतगणना तय की गई थी। ऐसा मानने का कारण 2019 का और 2014 का इतिहास है। गौरतलब है कि 2019 में भाजपा-शिव सेना गठबंधन जीत गया था लेकिन उद्धव ठाकरे ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री वाले फॉर्मूले पर अड़ गए तो सरकार का गठन नहीं हुआ था। जब उद्धव ठाकरे कांग्रेस और शरद पवार से बात करने लगे थे तो विधानसभा कार्यकाल की अवधि खत्म होते ही केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। उससे पहले अक्टूबर 2014 में चुनाव से पहले जब एनसीपी ने गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लिया तब भी कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री को कार्यवाहक नहीं रहने दिया था और राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था।

'समाजवाद’ और 'पंथनिरपेक्ष’ शब्द पर ख़तरा

संविधान अंगीकार किए जाने के 75 साल पूरे होने के मौके पर दिल्ली में बड़ा आयोजन हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उनकी पार्टी के तमाम नेताओं ने संविधान के प्रति श्रद्धा दिखाई और अपने को संविधान रक्षा का चैंपियन बताया। लेकिन उसी समय भाजपा की ओडिशा सरकार ने संविधान दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में 'समाजवाद’ और 'पंथनिरपेक्ष’ शब्द के बगैर संविधान की प्रस्तावना पेश की और उसका पाठ किया। जब इस पर सवाल उठा तो कहा गया कि यह मूल संविधान की प्रस्तावना है। यानी 26 नवंबर 1949 की प्रस्तावना है। गौरतलब है कि संविधान में ये दोनों शब्द 1975 में इमरजेंसी लगाए जाने के बाद संविधान के 42वें संशोधन के जरिए प्रस्तावना में जोड़े गए थे। अब सवाल है कि मौजूदा संविधान में जब ये दोनों शब्द हैं तो उस प्रस्तावना को पढ़ने की बजाय मूल संविधान की प्रस्तावना पढ़ने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि भाजपा कहीं न कहीं इस कोशिश में है कि ये दोनों शब्द संविधान की प्रस्तावना से हटा दिए जाएं क्योंकि ये दोनों शब्द भाजपा की विचारधारा से मेल नहीं खाते हैं और ऊपर से इन्हें इंदिरा गांधी ने संविधान में जोड़ा है। इसे लेकर भाजपा के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी और अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि 'समाजवाद’ और 'पंथनिरपेक्ष’ संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है इसलिए इसे नहीं हटाया जा सकता है।

सरकार में होने से जीतने में आसानी 

महाराष्ट्र और झारखंड दोनों जगह सत्तारूढ़ गठबंधन चुनाव जीत गए। इससे पहले हरियाणा में भी सत्तारूढ़ भाजपा ने जीत हासिल की थी। इसका मतलब है कि जो सरकार में रहता है वह अगर ठीक ढंग से चीजों को हैंडल करे तो चुनाव जीत सकता है। भाजपा को इस बात का अंदाजा रहा होगा, तभी उसने पहले शिव सेना को तोड़ा और एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना कर सरकार बनाई और बाद में एनसीपी को तोड़ कर अजित पवार को भी उप मुख्यमंत्री बनाया। सरकार में होने का फायदा उसे यह मिला कि उसने ढेर सारी लोक लुभावन घोषणाएं कीं, लोगों के खातों में सीधे पैसे डालने शुरू किए और प्रशासन का बेहतर ढंग से भरपूर इस्तेमाल किया। अगर वहां उद्धव ठाकरे की सरकार होती तो यह काम वह सरकार करती। 

इसी तरह झारखंड में हेमंत सोरेन ने भी सरकार मे होने का पूरा फायदा उठाया। उन्होंने एंटी इन्कम्बेंसी पैदा नही होने दी। हेमंत की सरकार ने चुनाव से पहले मइयां सम्मान योजना शुरू की, जिसके तहत महिलाओं के खाते मे हर महीने 1100 रुपए भेजने की शुरुआत की। चुनाव से पहले हेमंत सोरेन ने बिजली के बिल माफ कर दिए। हेमंत सरकार ने हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ राहत देने वाली योजना चलाई। उनकी तमाम योजनाओं को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में प्रशासन ने बड़ी भूमिका निभाई। भाजपा की प्रचार की गलतियां और रणनीतिक भूलें अपनी जगह हैं लेकिन हेमंत सोरेन की जीत मे सबसे बड़ा योगदान उनकी लोक लुभावन योजनाओं का रहा।

पंजाब से कांग्रेस को सीखना चाहिए 

हालांकि कांग्रेस पार्टी का रिकॉर्ड रहा है कि उसने अपनी गलतियों से कभी कोई सबक नहीं सीखा है लेकिन पंजाब में हुए उपचुनाव के नतीजों से उसे जरूर सबक सीखना चाहिए। कांग्रेस ने जिस तरह से उप चुनाव में दो सीटों पर अपने दो सांसदों की पत्नियों को उम्मीदवार बनाया वह कितना आत्मघाती हो सकता है, यह साबित हुआ। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अमरिंदर सिंह राजा वारिंग सांसद हो गए तो उनकी खाली की हुई गिद्दड़बहा सीट पर उनकी पत्नी को और सुखजिंदर सिंह रंधावा सांसद बने तो डेरा बाबा नानक सीट पर उनकी पत्नी को उम्मीदवार बना दिया। इन दोनों सीटों पर कांग्रेस चुनाव हार गई। उम्मीदवारों का चयन करने वाले कांग्रेस नेताओं ने दिमाग लगाने की जरुरत ही नहीं समझी। पुराने नेताओं या कार्यकर्ताओं में से किसी को टिकट देने के बारे में सोचा ही नहीं गया और दोनों सांसदों की पत्नियों को उम्मीदवार बना दिया। नतीजा यह हुआ है कि गिद्दड़बहा की सीट पर त्रिकोणात्मक मुकाबला होने के बावजूद आम आदमी पार्टी के हरदीप सिंह डिम्पी ने कांग्रेस की अमृता वारिंग को 15 हजार से ज्यादा वोट से हरा दिया। उधर डेरा बाबा नानक सीट पर भी आम आदमी पार्टी के गुरदीप सिंह रंधावा ने कांग्रेस की जतिंदर कौर रंधावा को साढ़े पांच हजार से ज्यादा वोट से हरा दिया। ये दोनों सीटें आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से छीनी और तीसरे स्थान पर भाजपा रही। कांग्रेस को इन नतीजों से कुछ सबक सीखना चाहिए।

प्रशांत किशोर के इरादों को तगड़ा झटका

चुनावी रणनीतिकार बताए जाने वाले प्रशांत किशोर के राजनीतिक इरादों को बिहार में तगड़ा झटका लगा है। प्रशांत किशोर के बारे में प्रचारित है कि वे बहुत बड़े चुनावी रणनीतिकार हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री से लेकर कई मुख्यमंत्री तक बनवाए हैं। अब वे बिहार की राजनीति को बदलने का दावा करते हुए खुद अपनी पार्टी बना कर राजनीति के मैदान में हैं। उन्होंने बिहार में चारों सीटों पर उपचुनाव लड़ा और चारों पर उन्हें हार का मुंह देखना लड़ा। उन्होंने दावा किया था कि बिहार की चार सीटों पर उपचुनाव जीत कर उनकी जन सुराज पार्टी 2025 में होने वाले चुनाव की दिशा तय कर देगी। लेकिन उनकी पार्टी चार में से कोई सीट जीतना तो दूर, किसी सीट पर दूसरे स्थान पर भी नहीं आई। चारों सीटों पर उनकी पार्टी बहुत बड़े अंतर से तीसरे स्थान पर रही। वे इस बात से संतोष कर सकते हैं कि दो सीटों पर उनके उम्मीदवारों को सम्मानजनक वोट मिले हैं। बेलागंज में उनके मुस्लिम उम्मीदवार मोहम्मद अमजद को और इमामगंज की सुरक्षित सीट पर उनके उम्मीदवार जितेंद्र पासवान को बहुत बढ़िया वोट मिला। लेकिन इन नतीजों के बाद उन पर यह आरोप तो प्रमुखता से लगेगा ही कि वे भाजपा की बी टीम है और उनकी वजह से ही चारों सीटों पर एनडीए को जीत मिली। गौरतलब है कि बिहार की चार में से तीन सीटें 'इंडिया’ ब्लॉक की थी और एक सीट एनडीए की थी। लेकिन उपचुनाव में चारों सीटें एनडीए ने जीत लीं।

तेजस्वी के लिए बड़ी चुनौती 

बिहार में चार सीटों के उपचुनाव से राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव के लिए बड़ी चुनौती पैदा हो गई है। उनका मुस्लिम वोट भी टूट गया है और यादव वोट में भी सेधमारी हो गई है। नीतीश कुमार के बारे में यह बात भी सही साबित हो गई है कि वे अपना यादव उम्मीदवार खड़ा करके लालू और तेजस्वी के यादव उम्मीदवार को हरा देते हैं। राज्य की बेलागंज सीट पर पिछले कई दशक से राजद नेता सुरेंद्र यादव का कब्जा था। इस बार सुरेंद्र यादव जहानाबाद से सांसद बन गए तो उनकी खाली की हुई सीट पर उनके बेटे विश्वनाथ यादव को उम्मीदवार बनाया गया। उनके सामने नीतीश कुमार ने मनोरमा देवी को उम्मीदवार बनाया। वे बिंदी यादव की पत्नी हैं। उन्होंने सुरेंद्र यादव का गढ़ ढहा दिया। बताया जाता है कि बेलागंज सीट पर 17 हजार से ज्यादा मुस्लिम वोट प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के मुस्लिम उम्मीदवार को गया और साढ़े तीन हजार वोट ओवैसी के उम्मीदवार मिला। मुस्लिम के साथ-साथ यादव वोट भी टूटा और मनोरमा देवी जीत गई। 

इसी तरह रामगढ़ सीट पर तेजस्वी यादव ने अपने प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे को टिकट दिया। उनके एक बेटे सुधाकर सिंह के बक्सर से सांसद होने की वजह से यह सीट खाली हुई थी। लेकिन वहां बसपा ने अंबिका यादव के भतीजे को टिकट दे दिया और लगभग सारे यादव और मुस्लिम वोट उनके साथ चले गए। इस तरह बेलागंज और रामगढ़ दोनों जगह मुस्लिम और यादव का समीकरण टूट गया। अगले साल के चुनाव से पहले यह बड़ा झटका है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest