महाराष्ट्र में जीत भले बीजेपी को मिली लेकिन पूरे चुनाव के हीरो शरद पवार रहे
महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन फिर से सत्ता में लौटती दिख रही है। अब तक उपलब्ध रुझानों को देखें तो मई में लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिली प्रचंड जीत के बाद से हुए पहले विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत की चमक फिलहाल कुछ मद्धम होती दिख रही है।
निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध रुझानों के अनुसार, महाराष्ट्र की कुल 288 विधानसभा सीटों में से भाजपा 101 सीटों पर आगे चल रही है और उसकी सहयोगी शिवसेना 64 सीटों पर आगे है। कांग्रेस को 37 सीटों पर बढ़त मिलती दिख रही है वहीं उसकी सहयोगी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) 54 सीटों पर आगे है।
भाजपा ने 2014 में इस राज्य में 122 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि शिवसेना को 63, कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटों पर जीत मिली थी।
महाराष्ट्र चुनाव में जो परिणाम आए हैं वो सभी खेमे के लिए थोड़ी खुशी और थोड़ी निराशा लेकर आए हैं। शरद पवार की एनसीपी को इस बार सबसे ज्यादा फायदा हुआ है। उसने अपने सीनियर पार्टनर कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया है। पिछले चुनाव में एनसीपी ने सिर्फ 41 सीटें जीती थीं और वह भाजपा, शिवसेना और कांग्रेस सभी से पीछे थी। इस चुनाव में 78 साल के शरद पवार जिस तरह से सक्रिय रहे उसकी हर तरफ चर्चा हुई।
बीजेपी के राष्ट्रवाद वाले नारे के बाद महाराष्ट्र में जिस तरह की जीत उम्मीद की जा रही थी, उसे उन्होंने अकेले तोड़ दिया। गठबंधन को जीत तो मिली लेकिन बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ रहा है। जानकारों का कहना है कि महाराष्ट्र में विपक्ष का पूरा अभियान अकेले शरद पवार ने अपने कंधे पर उठाए रखा। इस दौरान उन्होंने करीब 60 बड़ी रैलियों को संबोधित किया। चुनाव के दौरान पानी में भीगते हुए भाषण देते हुए उनका एक वीडियो भी वायरल हुआ। पार्टी और परिवार में कलह के बावजूद वह डटे रहे।
चुनावों में भी शरद पवार ने बड़ी चालाकी से भाजपा के बड़े मुद्दों के मुकाबले बुनियादी मुद्दों को बार-बार उठाने का काम किया। वे महाराष्ट्र के कृषि संकट, पानी की समस्या और बेरोजगारी का मसला अपनी चुनावी सभाओं में लगातार उठाते रहे। साथ ही वे बार बार शिवाजी का जिक्र करते और बताते कैसे मराठाओं के गौरवशाली इतिहास को मिटाया जाता रहा है।
खुद को प्रवर्तन निदेशालय का नोटिस मिलने के बाद शरद पवार ने जिस तरह से उसका सामना किया उससे उनकी राजनीतिक चतुराई सामने आई। इस नोटिस का इस्तेमाल उन्होंने लोगों में उनके प्रति सहानुभूति पैदा करने के लिए किया। शरद पवार ने घोषणा की कि वे खुद ही जांच के लिए प्रवर्तन निदेशालय के मुंबई कार्यालय में जाएंगे।
शरद पवार को मिले नोटिस के खिलाफ पूरे महाराष्ट्र में प्रदर्शन आयोजित हुए। इससे एनसीपी के कार्यकर्ताओं में एक नए ढंग का उत्साह पैदा हुआ। अंत में महाराष्ट्र पुलिस को कहना पड़ गया कि वह प्रवर्तन निदेशालय के आफिस न आए। इससे कानून व्यवस्था का संकट पैदा हो जाएगा। अंत में शरद पवार पेश नहीं हुए।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस चुनावी रैलियों राज्य में किसानों के संकट के लिए पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार को जिम्मेदार ठहराते रहे लेकिन पवार ने इस आरोप से भी निपटने में कामयाब रहे और यह निशाना राज्य सरकार की तरफ मोड़ दिए।
फिलहाल ऐसे में जब पार्टी मुख्य विपक्षी के रूप में उभरी है और कांग्रेस की सीनियर पार्टनर बन गई है तो यह बात आसानी से कही जा सकती है कि कांग्रेस और एनसीपी इसलिए महाराष्ट्र में मुकाबला करने में सक्षम हुए क्योंकि उनके पास शरद पवार थे। चुनाव भले बीजेपी गठबंधन ने जीत लिया है इस पूरे चुनावी मैच के हीरो शरद पवार रहे।
इस चुनाव से महाराष्ट्र में शिवसेना को भी खुशी हुई है। बीजेपी द्वारा कम सीटें दिए जाने के बावजूद वह अच्छी जीत हासिल करने में सफल रहे हैं। उनकी सीटों में पिछली बार की तुलना में ज्यादा कमी नहीं आई है। एक तरह से प्रदेश में विपक्ष की भूमिका अदा करने की रणनीति शिवसेना के काम आई। उसे एंटी इनकंबैसी फैक्टर का सामना नहीं करना पड़ा। जनता बीजेपी सरकार से नाराज तो थी लेकिन शिवसेना को लेकर वह गुस्सा उस रूप में सामने नहीं आया।
चुनाव से पहले बीजेपी से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को राजी हुई शिवसेना अब उसे आंख दिखाने की कोशिश में है। 162 सीटों पर लड़ने वाली बीजेपी 101 सीटों पर ही अटकती दिख रही है, जबकि शिवसेना 64 सीटें जीतती दिख रही है। रुझानों में बीजेपी को अनुमान के मुताबिक सीटें न मिलते देख शिवसेना अब 50-50 के फार्मूले को याद दिला रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शिवसेना सीएम पद को लेकर भी दबाव बना सकती है।
इसी तरह से महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत के साथ एक नए क्षेत्रीय क्षत्रप का उदय हो गया है। पार्टी को भले ही उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिली हैं। दोबारा जीतकर देवेंद्र फड़नवीस ने यह साफ साबित कर दिया है कि वह महाराष्ट्र में बीजेपी के सर्वमान्य नेता हैं। सबसे बड़ी बात उन्हें संघ का भी समर्थन हासिल है। पांच साल पहले देवेंद्र फड़नवीस अपेक्षाकृत जूनियर माने जाते थे।
तब उन्हें सिर्फ अमित शाह और नरेंद्र मोदी का कृपापात्र माना गया था। लेकिन इस बार के चुनावों से यह स्पष्ट है कि अब वे महाराष्ट्र में भाजपा के सबसे ताकतवर नेता हो गए हैं। इसी के चलते दोबारा मुख्यमंत्री बनने की संभावना भी ज्यादा है। नितिन गडकरी, एकनाथ खड़से जैसे नेता अब उनसे पीछे रह जाएंगे।
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