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बीपीसीएल : सरकार के हिस्से की बिक्री को लेकर कर्मचारी चिंतित

ज़्यादातर स्थायी श्रमिक पेट्रोलियम फ़ेडरेशन के नेतृत्व में अप्रैल महीने में बीपीसीएल की सभी इकाइयों में दो दिन की देशव्यापी हड़ताल की योजना बना रहे हैं।
बीपीसीएल

केंद्र द्वारा सरकार के स्वामित्व वाली तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) के निजीकरण के लिए प्रारंभिक बोली मंगाए जाने के बाद इसके कर्मचारियों ने विरोध करने का फ़ैसला किया है। पिछले साल नवंबर में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा रणनीतिक विनिवेश को मंज़ूरी दिए जाने के बाद से इन्होंने इस फ़ैसले का विरोध करने का फ़ैसला किया है। हालांकि यह ऐसे समय में हुआ है जब संघ निकायों की बहुत सी शक्ति समाप्त हो गई है।

इस वास्तविकता का सामना करते हुए कर्मचारी जिनकी संख्या लगभग 12,000 है और वे कथित तौर पर अधिकारियों और श्रमिकों के बीच लगभग समान रूप से बराबर हैं वे मोदी सरकार की इस कंपनी में सरकार की समूची 52.98% हिस्सेदारी बेचने की योजना का विरोध करने के प्रयास में संभावित क़दम उठाने पर विचार कर रहे हैं।

पिछले साल नवंबर के महीने में एक दिन के लिए काम के हड़ताल के बाद पेट्रोलियम फ़ेडरेशन के नेतृत्व में ज़्यादातर श्रमिक अप्रैल के महीने में बीपीसीएल की सभी इकाइयों में दो दिन की देशव्यापी हड़ताल की योजना बना रहे हैं।

न्यूज़क्लिक को मिली जानकारी के मुताबिक ऑफ़िसर्स एसोसिएशन के नेतृत्व में अधिकारियों ने श्रमिकों द्वारा की जाने वाली अप्रैल महीने की हड़ताल को "नैतिक समर्थन" दिया है। ऑफिसर्स एसोसिएशन जिसने पहले काम के हड़ताल करने की कार्रवाई को नकार दिया था और कथित तौर पर सरकार से चाहती है कि सरकार देश के तीसरे सबसे बड़े रिफ़ाइनरी और दूसरे सबसे बड़े ईंधन रिटेलर बीपीसीएल के निजीकरण के विचार को छोड़ दे।

वर्कर्स फ़ेडरेशन और ऑफ़िसर एसोसिएशन की चिंताओं के बीच कॉमन एक्शन प्रोग्राम की सूची बनाने की असमर्थता को लेकर पेट्रोलियम एंड गैस वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (पीजीडब्ल्यूएफआई) के अध्यक्ष प्रदीप मेयकर का मानना है कि अधिकारियों और श्रमिकों के लिए "महत्वपूर्ण" है कि अपने विरोध प्रदर्शन में एक साथ आएँ।

उन्होंने कहा कि "हम निजीकरण के ख़िलाफ़ हैं।" उन्होंने आगे कहा कि सीमित शक्ति के साथ "हम केवल अपना विरोध दर्ज कर सकते हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि "अधिकारी के साथ आंतरिक बैठकें की गई हैं, मंत्रियों के साथ बातचीत की गई है। हमने राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश की। यह एक करो या मरो की लड़ाई है हालांकि, यह कठिन है।”

इन सीमाओं के बावजूद मेयकर अप्रैल में श्रमिकों की हड़ताल को जारी रखने के लिए दृढ़ है। मेयकर ने न्यूजक्लिक से बताया कि, "बीपीसीएल के कर्मचारी 20 और 21 अप्रैल को हड़ताल करेंगे। हमें अन्य तेल क्षेत्र यूनियनों और महासंघों से समर्थन मिला है। विभिन्न शहरों में सम्मेलन आयोजित किए जाने हैं। हमें उम्मीद है कि हड़ताल में बड़ी भागीदारी सुरक्षित होगी।"

बीपीसीएल अधिकारियों की भागीदारी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “वे निजीकरण के विचार के विरोध में हैं। उन्होंने हड़ताल का नैतिक समर्थन किया है।”

इसके साथ ही, फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑयल पीएसयू ऑफिसर्स (एफओपीओ) और कन्फेडरेशन ऑफ महारत्न कंपनी (सीओएमसीओ) के बैनर तले अधिकारियों ने लाभकारी पीएसयू के निजीकरण के फैसले का विरोध करते हुए पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है।

पिछले साल दिसंबर के महीने में पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोनों महासंघों ने बीपीसीएल की बिक्री को सरकार की सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ-साथ अन्य चीजों के लिए एक झटका बताया।

बीपीसीएल ही नहीं तेल उद्योग के विभिन्न हिस्सों के पेट्रोलियम कर्मचारियों में तनाव व्याप्त है क्योंकि केंद्र सरकार कथित रूप से तेल व्यापार से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है। हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) के रणनीतिक विनिवेश के बाद जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दे दी गई है और रिपोर्ट सामने आ रही है कि केंद्र इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईाओसी) में अपने हिस्सेदारी को 51% से कम करने के लिए विचार कर रही है। पेट्रोलियम वर्कर्स फेडरेशन के अनुसार इन तीन सार्वजनिक तेल कंपनियों के पास 75% से अधिक भारतीय ईंधन विपणन व्यवसाय की स्वामित्व है।

यूनियनों ने घरेलू और विदेशी निजी तेल एवं गैस की दिग्गज कंपनियों के प्रवेश को लेकर चिंता जताई है जो कथित रूप से देश की ऊर्जा सुरक्षा पर गंभीर आर्थिक नतीजों को सहन करेंगे। नवंबर महीने में एक दिन की हुई हड़ताल में तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड (ओएनजीसी) की सहायक कंपनी बीपीसीएल, एचपीसीएलऔर मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (एमआरपीएल) के कर्मचारियों की भागीदारी देखी गई।

बढ़ी इन चिंताओं के बावजूद केंद्र में भाजपा सरकार अपनी योजना के साथ आगे बढ़ी और शनिवार को बीपीसीएल की रणनीतिक बिक्री के लिए आवेदन आमंत्रित किया जिसे 2 मई तक भेजा जा सकता है। भारत सरकार-संचालित संस्थाएं, जिसमें सरकार का कम से कम 51% की हिस्सेदारी होती है, बोली लगाने में शामिल होने के योग्य नहीं होगी। इसे ब्लूमबर्ग क्विंट ने निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग की वेबसाइट पर पोस्ट किए गए दस्तावेज़ का उल्लेख करते हुए बताया।

सरकार के स्वामित्व वाली तेल कंपनियों के अहमियत से समझौता करके सरकार ने निजी कंपनियों का पक्ष लिया है, इसका आरोप लगाते हुए मेयकर ने कहा, “अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में नहीं है और अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार की कीमतें कभी तय नहीं होती हैं। ऐसे मामलों में कई निजी कंपनियां बोली लगाने के लिए तैयार नहीं होंगी।”

उन्होंने कहा, "यह स्पष्ट है कि सरकार केवल वित्तीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के लिए बीपीसीएल जैसी मुनाफा कमाने वाली कंपनियों केवल को बेच रही है।" मोदी सरकार का वित्त वर्ष 2020-21 के लिए सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी की बिक्री कर 2.1 ट्रिलियन रुपये निकालने का लक्ष्य है।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के सचिव स्वदेश देव रॉय ने निजीकरण के विचार को "भ्रष्ट" कहा है। उन्होंने कहा, ''वाजपेयी की भाजपा सरकार के अधीन भी बीपीसीएल के निजीकरण के प्रयास किए गए थे हालांकि इसको लेकर कर्मचारियों से तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। मोदी सरकार केवल कुछ निजी कंपनियों के लिए इन महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर रही है।”

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