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बनारसः देव-दीपावली के आयोजनों में लाखों का घपला, योगी सरकार को विपक्ष ने घेरा

"देव-दीपावली घोटाले में शामिल अफ़सरों के ख़िलाफ़ थाना पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की अनुमित नहीं दिया जाना यूपी के मुख्यमंत्री और भ्रष्टाचारी अधिकारियों की सांठगांठ की ओर इशारा करता है।"
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उत्तर प्रदेश के बनारस में देव दीपावली और गंगा महोत्सव के आयोजन में लाखों का घोटाला फिर से चर्चा में है। योगी सरकार पर इस कथित घोटाले के आरोपितों को बचाने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। फौरी जांच-पड़ताल में करीब साढ़े छह लाख से ज्यादा का घपला उजागर हुआ है। साथ ही उन अफसरों को यहां से हटा दिया गया है, जिनके माथे पर घोटालों के आरोप चस्पा हैं। समूचे मामले की जांच पर्यटन निदेशक प्रखर मिश्र को सौंपी गई है। पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में हुए घोटालों के मामले में अभी किसी अफसर पर एक्शन नहीं हुआ है। इस गंभीर आरोप के बाद कांग्रेस ने योगी सरकार पर हमला बोला है।

बनारस में गंगा तट पर हर साल विश्वविख्यात देव दीपावली और गंगा महोत्सव का आयोजन होता है। पिछले कुछ सालों से योगी सरकार ने देव दीपावली के आयोजन को सरकारी इवेंट बना दिया है। दोनों आयोजनों की आड़ में लाखों रुपये के गोलमाल का मामला सामने आने के बाद सरकार पर उंगलियां उठनी शुरू हो गई हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बनारस में पर्यटन विभाग के अफसरों ने बिना मंजूरी के ही दफ्तर में तैनात एक संविदा कर्मचारी के घर के पते पर बनाई गई फर्म ‘किरशिता’ के नाम लाखों रुपये का भुगतान कर दिया। आरोप है कि कायदा-कानून को ताक पर रखकर अफसरों ने इस फर्म को न सिर्फ कई ठेके आवंटित किए, बल्कि सरकारी धन भी इसी फर्म में हस्तांतरित करना शुरू कर दिया।

फ़र्ज़ी फ़र्म को दिया लाखों का ठेका

जानकारी के मुताबिक, बनारस के पर्यटन विभाग में संविदा पर तैनात टाइपिस्ट के सामने घाट स्थित घर के पते पर पंजीकृत फर्म ‘किरशिता’ को बिना निविदा ही कई काम आवंटित कर दिए गए। साल 2021 में गंगा महोत्सव और देव दीपावली के अवसर पर लगाई गई होर्डिंग्स के एवज में इस फर्म को चेक के जरिये 6 लाख 43 हजार 970 रुपये का भुगतान किया गया। खास बात यह रही कि देयक (बिल) पर कोई तिथि अथवा बिल नंबर नहीं दर्ज किया गया। क्षेत्रीय पर्यटन कार्यालय की ओर से संविदा कर्मचारी के फर्म को कई भुगतान किए गए। पूरे मामले में पर्यटन विभाग के कई अधिकारियों की संलिप्तता उजागर हुई, लेकिन एक्शन किसी पर नहीं हुआ।

बनारस का पर्यटन कार्यालय

पर्यटन विभाग की तत्कालीन उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव ने समूचे मामले की जांच-पड़ताल कराई तो बड़े पैमाने पर घपले उजागर हुए। उन्होंने पर्यटन निदेशक प्रखर मिश्र को खत भेजकर न सिर्फ बड़े घोटाले की आशंका व्यक्त की, बल्कि सरकारी धन हड़पने वाले अफसरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने के लिए शासन से अनुमति भी मांगी। मामले की गंभीरता को देखते हुए निदेशक प्रखर मिश्र ने फौरी तौर पर इस मामले की जांच बनारस के मंडलायुक्त कौशल राज शर्मा को सौंपी। इस मामले ने ज्यादा तूल पकड़ना शुरू किया तो शासन ने समूचे मामले की जांच पर्यटन निदेशक के हवाले कर दिया। हालांकि पर्यटन निदेशक प्रखर मिश्र ने लाखों के घोटाले के मामले में दोषी अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की अनुमति अभी नहीं दी है।

देव दीपावली के आयोजनों में हुए घोटालों के मामलों में अभी किसी अफसर की जिम्मेदारी तय नहीं हो सकी है। अलबत्ता घोटाले के मामलों का पर्दाफाश करने वाली पर्यटन विभाग की उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव को बनारस से हटाकर गोरखपुर भेज दिया गया है। जिस पर्यटन सूचना अधिकारी कीर्तिमान के इर्द-गिर्द घोटालों की सुई घूम रही थी, उन्हें भी इलाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया है।

दोनों अफसरों के तबादले के बाद कई दिनों तक बनारस के चौकाघाट स्थित पर्यटन कार्यालय में ताला लटकता रहा। शासन ने फरवरी 2023 में नए डिप्टी डायरेक्टर राजेंद्र कुमार रावत की नियुक्ति की तो उन्होंने 16 फरवरी को बनारस आकर कार्यभार संभाला। पर्यटन विभाग के सभागार की चाबी गायब थी। लाचारी में 17 फरवरी को सभागार का ताला तोड़ा गया। नए डिप्टी डायरेक्टर राजेंद्र कुमार रावत का कहना है कि उन्होंने अभी कार्यभार ग्रहण किया है। जांच-पड़ताल करने के बाद ही कोई पुख्ता जानकारी दे सकेंगे।

इससे पहले तत्कालीन पर्यटन उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव ने अपने पर्यटन निदेशक प्रखर मिश्र को एक गोपनीय-पत्र लिखकर कहा था कि क्षेत्रीय पर्यटन कार्यालय में तैनात कुछ अफसर और कर्मचारी आपसी मिलीभगत से शासकीय धनराशि का गबन कर रहे थे। निदेशक को उन्होंने घोटालों का साक्ष्य भी सौंपा और कहा कि सरकारी धन के गोलमाल के मामले में एफआईआर दर्ज कराने की जरूरत है। प्रीति श्रीवास्तव ने पर्यटन निदेशक प्रखर मिश्र से एफआईआर की अनुमति भी मांगी, लेकिन योगी सरकार ने अपनी बदनामी को ढांपने के लिए उप निदेशक को ऐसा करने की अनुमति नहीं दी।

घोटाले का पर्दाफाश होते ही कर्मचारी लापता

दैनिक अखबार ‘अमर उजाला’ वाराणसी संस्करण में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, पर्यटन विभाग के जिस संविदा कर्मचारी के फर्जी फर्म को लाखों का भुगतान किया गया है, उसमें एक महिला भी पार्टनर है। पिछले तीन सालों में वाराणसी के पर्यटन कार्यालय ने इस फर्म को कई लाख रुपये का भुगतान किया। यह संविदा कर्मचारी करीब चार साल तक क्षेत्रीय पर्यटन कार्यालय में तैनात रहा। लाखों के घोटाले का पर्दाफाश होने की भनक लगते ही अगस्त 2022 में वह पर्यटन विभाग का दफ्तर छोड़कर अचानक लापता हो गया। पर्यटन विभाग में तैनात यह संविदा कर्मचारी लंका इलाके के शिवाजी नगर कालोनी का निवासी है।

‘अमर उजाला’ के मुताबिक, "दस हजार रुपये प्रति माह पर टाइपिस्ट के पद पर तैनात संविदा कर्मचारी और एक महिला की ओर से बनाए गए फर्म की कोई निविदा क्षेत्रीय पर्यटन कार्यालय में स्वीकृत नहीं हुई थी। इसके बावजूद उसे साढ़े छह लाख रुपये से अधिक का भुगतान किया गया। जबकि, एक लाख रुपये से अधिक के कार्य के लिए निविदा जरूरी है। फर्म के बिल पर जो पता दर्ज है, वह संविदा कर्मचारी के घर का है। उस कर्मचारी के आधार कार्ड पर भी वही पता दर्ज है।"

बनारस के पर्यटन दफ्तर के सूत्रों का हवाला देते हुए अखबार लिखता है, "देव दीपावली के कार्यक्रमों के फर्जीवाड़े में संविदा कर्मचारी सिर्फ एक मोहरा है। इसमें पर्यटन विभाग में ही तैनात एक अधिकारी की भूमिका संदिग्ध है। अधिकारी अपनी महिला मित्र के साथ मिलकर फर्जीवाड़ा कर रहा था। लाभ के एक हिस्से का लालच देकर संविदा कर्मचारी का इस्तेमाल किया गया। फर्जी नाम और फर्जी पते पर प्राइवेट बैंक में खाता भी खोला गया और उसके जरिये भुगतान लिया जाता रहा। पिछले साल देव दीपावली और गंगा महोत्सव के आयोजन के दौरान भी उसी संविदा कर्मचारी के फर्म को ही पर्यटन विभाग के अफसरों ने अहमियत दी और मनमाने ढंग से टेंडर अलॉट कर दिया। पर्यटन विभाग में काम करने वाली कई पुरानी फर्मों के नुमाइंदे तेल-दीया का ठेका पाने के लिए महीनों से दौड़ लगाते रहे, लेकिन उन्हें किसी न किसी बहाने दरकिनार किया जाता रहा।"

बनारस के पर्यटन विभाग में हुए लाखों के फर्जीवाड़े में सत्तारूढ़ दल के कुछ नेताओं की शह पर होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। इस मामले का पर्दाफाश करने वाली पर्यटन विभाग की उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव ने तबादले के बाद चुप्पी साध ली है। जुलाई 2022 में प्रीति ने उप निदेशक का कार्यभार संभाला था और इस मामले की जांच शुरू कराई थी। देव दीपावली के दीया और तेल के घोटालों में भी उन्होंने कई अहम साक्ष्य और तथ्य जुटाए थे।

निशाने पर ईमानदार अफसर

बनारस में पर्यटन विभाग की उप निदेशक रहीं प्रीति श्रीवास्तव की गिनती ईमानदार अफसरों में होती रही है। पर्यटन विभाग में घपलों का राज तब खुलना शुरू हुआ जब सालों से जमे पर्यटन अधिकारी कीर्तिमान से उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव की ठन गई। आरोप है कि प्रीति की नियुक्ति के बाद भी यहां उन्होंने अपना सिक्का चलाने की कोशिश की। अपने उच्चाधिकारी को सहयोग करने के बजाए उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। तब उप निदेशक ने कीर्तिमान के मनमाने रवैये की जांच-पड़ताल की और तमाम साक्ष्य जुटाए।

सूत्र बताते हैं कि देव दीवापली पर्व और गंगा महोत्सव के आयोजनों में हुए घोटालों में लखनऊ में तैनात कई आला अफसरों के घिरने की आशंका थी। इसके चलते अफसरों ने प्रीति को ही कसूरवार ठहराना शुरू कर दिया। देव-दीपावली और गंगा दशहरे के आयोजन पर हुए लाखों के घोटाले के मामले में शासन की ओर से 15 फरवरी 2023 को सूचना विभाग के हवाले से एक प्रेस रिलीज जारी की गई, जिसमें घोटाले की पोल खोलने वाली पर्यटन विभाग की तत्कालीन उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव और पर्यटन सूचना अधिकारी कीर्तिमान को जिम्मेदार माना गया है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि निष्पक्ष जांच के लिए दोनों अफसरों को बनारस से हटा दिया गया है। शासकीय कार्यों में बरती गई लापरवाही, उदासीनता और शिथिलता की जांच पर्यटन निदेशक प्रखर मिश्र को सौंपी गई है। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने प्रखर को पदेन जांच अधिकारी नामित किया है।

सरकारी विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि वाराणसी में साल 2022 में देव दीपावली के अवसर पर हुए आयोजन के दौरान उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव ने पर्यटन एवं संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम और बनारस के जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा की। यहां बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताएं बरती गईं। विधायकों और अन्य जनप्रतिनिधियों को सांस्कृतिक आयोजनों में बुलाने के लिए आमंत्रण-पत्र तक नहीं भेजा गया। कार्यक्रमों के दौरान जनप्रतिनिधियों के लिए अनुमन्य व्यवस्था नहीं दी गई, अलबत्ता उनकी घोर उपेक्षा की गई। प्रोटोकॉल के विपरीत कार्य करने पर शासन स्तर उनकी शिकायतें हुईं।

सरकारी विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि पर्यटन विभाग के विवरण के मुताबिक, तत्कालीन पर्यटन उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव और पर्यटन एवं पर्यटन सूचना अधिकारी कीर्तिमान में आपसी सामंजस्य नहीं था, जिससे देव दीपावली के आयोजन में तमाम असुविधाएं पैदा हुईं।

इस बीच पर्यटन एवं संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने बनारस में देव-दीपावली और गंगा दशहरा के आयोजन पर हुए घोटाले पर एक चिट्ठी जारी की है। इस चिट्ठी में उन्होंने तत्कालीन पर्यटन उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव को ही जिम्मेदार माना है। साथ ही यह भी कहा गया है कि कुशल नेतृत्व के अभाव और अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से उनका सामंजस्य नहीं था। वह अपने मातहत कर्मचारियों से तालमेल बनाने में असफल रहीं। उनके कृत्य से शासकीय कार्यों में लापरवाही, उदासीनता और शिथिलता परिलक्षित होती है।

आस्था का श्राद्ध

देव-दीपावली को इवेंट बनाने के लिए भाजपा सरकार ने जब से अपना हाथ आजमाना शुरू किया है तभी से बनारस में घपले-घोटाले भी शुरू हुए हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2021 में देव-दीपावली के मौके पर जनता के बीच बांटने के लिए 12.50 लाख दीये और 2500 टिन सरसो के तेल (15 किग्रा वाला) खरीदकर बांटे गए थे। प्रदेश सरकार ने इस साल भी बजट में कोर्ई कमी नहीं की, लेकिन साल 2022 में सिर्फ आठ लाख दीये ही वितरित कराए गए। इन दीयों को लेकर घपला तब सामने आया जब चार लाख दीये मानक से छोटे और खराब निकल गए। देव-दीपावली समितियों ने इन दीयों को लेने से साफ मना कर दिया। साल 2022 में 15 लीटर वाले 1400 टीन सरसों के तेल खरीदे जा सके। साल 2021 में मछोदरी कुंड के लिए 10 हजार दीये और आठ टिन सरसो का तेल दिया गया था और साल 2022 में मछोदरी कुंड महासमिति को सिर्फ दो टिन तेल और तीन हजार दिये दिए गए तो आयोजकों ने पर्यटन विभाग को लौटा दिया।

लहुराबीर स्थित महामंडल नगर पोस्ट ऑफिस के पास दीया और तेल बांटे जाने को लेकर जमकर हंगामा हुआ था।

देव-दीपावली मनाने के लिए पिछले तीन-चार सालों में पर्यटन विभाग को शासन से कितनी धनराशि मिली और किस मद में कितनी खर्च हुई? इसका ब्योरा देने के लिए कोई अफसर तैयार नहीं है। कुछ बरस पहले भाजपा ने लोक पर्व देव दीपावली का अपहरण कर लिया था और अब वो इसे इवेंट बनाकर भुनाने में जुटी हुई है। अब इसमें भाजपा सरकार भी घुस गई है और प्रशासन भी।

वाराणसी जिला प्रशासन के आंकड़ों को सच मानें तो साल 2022 में बनारस के घाटों को 10 लाख दीयों से रौशन किया गया। नेताओं और अफसरों के लिए नमो घाट पर रेड कार्पेट बिछाए गए तो वाराणसी के चेतसिंह घाट पर थ्री डी प्रोजेक्शन मैपिंग और लेजर शो का आयोजन किया गया। यही नहीं, विश्वनाथ मंदिर के सामने गंगा पार रेती पर ग्रीन आतिशबाजी की गई। मंदिर की दीवारों पर लाइट एंड साउंड का कार्यक्रम आयोजित किया गया। बनारस के सभी रेलवे स्टेशनों के अलावा एयरपोर्ट पर रंगोली सजाई गई और बिजली के फसाड व रंग-बिरंगी लड़ियों से प्रमुख स्थानों को रौशन किया गया था। देव-दीपावली के समय लेजर शो, आतिशबाजी और रंग-बिरंगी लड़ियों व फसाड की चकाचौध पर लाखों रुपये खर्च किए गए। देव दीपावली के समय भाजपा ने जमकर नगाड़ा पीटा था कि ऐसा इवेंट आज तक कोई नहीं करा पाया था।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय कहते हैं, "मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बनारस के लोकपर्व देव-दीपावली और गंगा महोत्सव पर भाजपाई रंग चढ़ाने के लिए मनमाना धन आवंटित किया, लेकिन नौकरशाही ने बड़े पैमाने पर घपला-घोटाला कर लिया। ईमानदारी का खम ठोंकने वाली योगी सरकार ने आखिर बनारस के लोकपर्व पर दीया-तेल में घोटाला कैसे होने दिया? भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण देना प्रदेश की जनता और जनादेश का अपमान है। उन्हें तत्काल बर्ख़ास्त कर जांच एजेंसी को निष्पक्ष जांच करने के लिए स्वतंत्रता देनी चाहिए।"

अजय राय यह भी कहते हैं, "आखिर यूपी के मुख्यमंत्री घपलों की नैतिक ज़िम्मेदारी क्यों नहीं स्वीकार कर रहे हैं। यूपी में जब से डबल इंजन की सरकार है, तब से राज्य की नीतियों अथवा प्रशासनिक ढांचे में कोई बदलाव नहीं हुआ है। भ्रष्टाचार में लिप्त अफ़सर ही सरकार के खेवनहार बने हुए हैं। विपक्ष में रहते हुए भाजपा भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों पर हंगामा करती थी, सत्ता में आने के बाद उनमें से एक भी मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई। सत्ता के संरक्षण के बिना कोई भी भ्रष्टाचार नहीं होता है। भाजपा सरकार जानती है कि अगर अफ़सरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई तो मामला नेताओं तक भी पहुंचेगा। इसी लिए देव दीपावली आयोजनों में हुए घपलों-घोटालों को दबाया जा रहा है और पर्यटन विभाग की ईमानदार उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव को बेवजह बलि का बकरा बनाया जा रहा है।"

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, "कोई भी समारोह और कोई भी परंपरा चाहे कितनी ही पुरानी क्यों न हो वह जन से ही खड़ी होती है। किसी भी लोकपर्व का सारा श्रृंगार जनता से ही है। जिस समय बनारस के लोग डेंगू से बेहाल थे और दम तोड़ते जा रहे थे, उस समय योगी सरकार देव-दीवावली का इवेंट मनाकर सियासी मुनाफा कूटने में जुटी थी और अफसर घपले-घोटालों में व्यस्त थे। अब लाखों के घपले-घोटाले खुल रहे हैं तो भाजपा और इस पार्टी के नेता चुप्पी साधे हुए हैं।"

महंत तिवारी यह भी कहते हैं, "मुझे यह समझ नहीं आता कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों को बचाने में क्यों लगे हैं? देव-दीपावली घोटाले में शामिल अफसरों के खिलाफ थाना पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की अनुमति नहीं दिया जाना यूपी के मुख्यमंत्री और भ्रष्टाचारी अधिकारियों की सांठगांठ की ओर इशारा करता है। राज्य सरकार को चाहिए कि वो इस घोटाले में अपना हाथ न होने की बात को साबित करे और समूचे मामले की न्यायिक जांच कराए।"

पुरानी है लोकपर्व की यात्रा

एक दौर वो भी था जब देव-दीपावली बनारस की सनातन आस्था और लोक परंपरा का संगम हुआ करती थी, जो अब तमाशे में तब्दील हो गई है। इसके जरिये विशुद्ध रूप से राजनीतिक हित साधा जाने लगा है। हालांकि बनारस में देव-दीपावली की लोकयात्रा काफी पुरानी है, जो कई बार खंडित हुई है। देव-दीपावली की दोबारा शुरुआत साल 1780 में हुई। बाद में महारानी अहिल्याबाई ने इस उत्सव को शुरू कराया। एक दौर ऐसा भी आया जब अंग्रेजों के दमन ने बनारस के लोगों का जीना दूभर कर दिया। रोजी-रोटी के लिए त्राहिमाम कर रहे लोगों से अनायास ही यह उत्सव छूट गया, लेकिन बनारस के जनमानस की कसक जनमानस नहीं मिटी।

काशीनरेश डॉ.विभूति नारायण सिंह जूदेव ने साल 1986 में काशी के पंचगंगा घाट पर तीसरी मर्तबा देव-दीपावली की लोक परंपरा शुरू कराई। इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए मंगला गौरी मंदिर के महंत नारायण गुरु ने साल 1987 में मुहिम चलाई। उन्होंने कुछ बच्चों को जुटाया। उस समय दसवीं के स्टूडेंट वागीश को टोली नायक बनाकर सिंधिया घाट का जिम्मा सौंपा और खुद जटार घाट की जिम्मेदारी संभाली।

बाल मंडली के दूसरे सदस्य बब्बी गुरु को मान मंदिर घाट, राकेश कसेरा को मुंशी घाट, राजेश यादव को अहिल्याबाई घाट और शशि श्रीवास्तव को शिवाला का जिम्मा सौंपा। पांचों टोलियां अपने मोहल्लों में लोटा, गिलास, कटोरी लेकर घर-घर घूमने लगीं। किसी ने एक तो किसी ने चार कटोरी तेल दिया। कुछ परिवारों से घी भी मिला। दीयों के लिए घर-घर हाथ फैलाए। ज्यादातर घरों से दस से 25 पैसे मिलते रहे। कुछ दिलदार लोगों ने बाल मंडली का हौसला बढ़ाने के लिए एक और दो रुपये भी दिए। इस तरह साल 1987 में पांच नए घाटों पर देव-दीपावली मनाई जाने लगी। धीरे-धीरे देव-दीपावली मनाने वाले घाटों की संख्या बढ़ती गई। साल 1995 तक करीब चार दर्जन घाटों ने इस लोक परंपरा का विस्तार पा लिया।

वागीश अब आचार्य वागीशदत्त मिश्र के रूप में केंद्रीय देव-दीपावली महासमिति की कमान संभाल रहे हैं। बब्बी गुरु की पहचान संस्कृति कर्मी की है। राकेश कसेरा अपना पुश्तैनी काम संभाल रहे हैं। राजेश यादव का संघर्ष अब भी जारी है। वह साड़ी की दुकान पर सेल्समैन हैं। शशि श्रीवास्तव गंगा पर शोधकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं। देव-दीपावली लोकपर्व को ज्यादा लोकप्रियता तब से मिलने लगी जब गंगा सेवा निधि ने कारगिल युद्ध के बाद शहीदों के सम्मान में काशी में आकाशदीप और गंगा आरती के आयोजन को विशेष भव्यता दी। पहली बार गंगा किनारे इंडिया गेट बना और अमर जवान ज्योति की प्रतीक ज्योति प्रज्वलित की गई। यही वह साल था जब देव-दीपावली को पहली मर्तबा राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली।

पिछले तेईस सालों में लोकपर्व देव-दीपावली में बहुत बदलाव आया है। 21वीं सदी के पहले के दशक में सियासी हस्तियां गंगा आरती और देव-दीपावली में शामिल होने लगीं, तब इसे दुनिया भर में ज्यादा ख्याति मिलने लगी। इस लोक पर्व की बढ़ती लोकप्रियता ने पर्यटन विभाग को मजबूर कर दिया कि वो इसे अपने टूर मैप में शामिल करे।

वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "भारतीय जनता पार्टी ने देश के सबसे बड़े लोक पर्व को अपना बनाने के लिए पांच साल पहले ही घुसपैठ शुरू कर दी थी। आरएसएस के लोग तभी से गंगा तट और तालाब व कुंडों को रौशन करने के लिए दीपक और तेल बांटने लगे थे। इसी बीच पर्यटन विभाग ने इस लोक पर्व का पूरी तरह सरकारीकरण करते हुए इसे अपना आयोजन बताना शुरू कर दिया। बनारस की जनता ने जब कोई विरोध नहीं किया तो इसे पूरी तरह “हाईजैक” कर लिया गया। मौजूदा समय में देव-दीपावली उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा लोक उत्सव है।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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