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डेंगू की चपेट में बनारस, इलाज के लिए नहीं मिल रहे बिस्तर

बनारस में डेंगू लोगों की जिंदगियां लील रहा है। जान गंवाने वाले प्रमुख लोगों में पुलिस इंस्पेक्टर राम विलास यादव, भोजपुरी कलाकार बबलू रिमिक्स और बनारसी इश्क संगठन के सदस्य सुमंत कुमार साहनी शामिल हैं।
डेंगू की चपेट में बनारस, इलाज के लिए नहीं मिल रहे बिस्तर

डेंगू से गंभीर रूप से बीमार 61 वर्षीय ओम प्रकाश सिंह नौ दिनों तक जीवन और मौत से जूझते रहे। इसी 25 अगस्त 2021 को घर लौटे। मुलाकात हुई तो उनकी आंखें डबडबा गईं। रूंधे गले से बोले, "डेंगू के डंक से जिंदा बच पाने की आस टूट ही गई थी। शायद हमने अच्छे कर्म किए होंगे जो हम सही सलामत लौट आए।" 

ओम प्रकाश की तीमारदारी में लगे इनके चिकित्सक पुत्र डा. वैभव सिंह ने अपने पिता का इलाज कराने में दिन-रात एक कर दिया, तब जाकर ज़िंदगी बच पाई। असहनीय पीड़ा झेलने के बाद वह अपने घर लौटे। अपने पिता की ओर इशारा करते हुए डा. वैभव ने कहा, "डेंगू से यहां जो बच रहा है, वह ऊपर वाले की कृपा से बच रहा है। बनारस का फुलवरिया इलाका तो डेंगू के मच्छरों की प्रयोगशाला है। ऐसी प्रयोगशाला जहां हर वक्त इस जानलेवा मच्छर के लार्वा पलते रहते हैं, समूचा गांव दशहत में है। कोई ऐसा घर नहीं, जहां डेंगू ने डंक न मारा हो, फिर भी सरकारी मशीनरी को चिंता नहीं। झूठे सब्जबाग और फर्जी आंकड़ों से डेंगू से बेहाल लोगों की जिंदगियां नहीं बचाई जा सकती हैं।"

फुलवरिया उत्तर प्रदेश के बनारस शहर से सटा हुआ है। अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब समूचा गांव फूलों की खेती करता था। अब यहां भू-माफियाओं ने बड़ी-बड़ी इमारतें तान दी हैं। संसद में 80 हजार की आबादी वाले फुलवरिया गांव की नुमाइंदगी कोई और नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं। 

पिछले साल फुलवरिया को शहरी इलाके में शामिल किया गया, लेकिन विकास की कोई योजना नहीं बनाई गई। नौकरशाही ने यहां लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया। न कोई विकास कार्य और न ही साफ-सफाई। घर-घर में डेंगू के मरीज हैं, लेकिन इलाज का कोई सरकारी इंतजाम नहीं है। 

फुलवरिया के विनय मौर्य ने अपने गांव में एक गरीब आदमी की झोपड़ी के आगे लगी लाइन को दिखाते हुए कहा, "ये भीड़ बकरी का दूध लेने वालों की है। बनारसियों को लगता है कि बकरी का दूध ही डेंगू का कारगर इलाज है। जिनके घरों में पपीता के पौधे हैं, उनकी पत्तियां गायब हैं। डेंगू का इलाज कराने ने पत्तियों को नोच लिया है। डेंगू की जद में आने वाले बड़ी संख्या में लोग डाक्टरों से इलाज कराने के बजाए पपीते की पत्तियों का रस गटक रहे हैं।"

विनय मौर्य हमें डा. शिवकुमार गुप्ता की क्लीनिक पर ले गए। वहां भी बीमार लोगों का मजमा लगा हुआ था। यह भीड़ इस बात की  तस्दीक कर रही थी कि कोरोना के बाद डेंगू को लेकर वाकई हड़कंप और हंगामा है। इस जानलेवा बीमारी से हर कोई खौफजदा और सहमा हुआ है।  

डेंगू की चपेट में आए फुलवरिया के जय मौर्य बहुत मुश्किल से यह बात बोल पाए कि उनका समूचा घर इस बीमारी की जद में है। पिता, पत्नी और भतीजा सभी कराहते हुए मिले। एक दैनिक अखबार का प्रबंधन देखने वाले विनीत मौर्य को बुखार के साथ लगातार उल्टियां हो रही थीं। फुलवरिया के रोहित वर्मा, सोनू, ज्योति पटेल, गरीब पटेल, विष्णु उर्फ मुन्ना, बाबी, प्रतिमा वर्मा, चंद्रगुप्त मौर्य, वैभव मौर्य, विक्रांत, विष्णु जायसवाल, रंजीत कुमार, पंकज, राज कुमारी देवी, प्रदीप पटेल, नीरज समेत न जाने कितने लोग बुखार से तप रहे थे। उल्दी-दस्त से सबका बुरा हाल था। इलाकाई डाक्टर इनकी बीमारी को डेंगू मानकर इलाज कर रहे हैं, फिर भी सरकारी मशीनरी फुलवरिया की तरफ रुख करने के लिए तैयार नहीं है। 

विनय ने कहा, "फुलवरिया के किसी घर में घुस जाइए, डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के डंक से कराहते हुए दो-चार लोग जरूर मिल जाएंगे। यह नंगा सच फकत फुलवरिया का नहीं, समूचे बनारस में कहीं भी देख सकते हैं। कोई डेंगू, तो कोई मलेरिया की जद में है। चाहे बीएचयू हो या फिर कबीरचौरा या फिर बरेका अस्पताल। सभी अस्पतालों के डेंगू वार्ड भरे पड़े हैं। वहीं, ब्लड बैंक में प्लेटलेट्स के लिए भीड़ उमड़ रही है।" 

बनारस में डेंगू सचमुच लोगों की जिंदगियां लील रहा है। जान गंवाने वाले प्रमुख लोगों में ज्ञानवापी ड्यूटी में तैनात पुलिस इंस्पेक्टर राम विलास यादव, भोजपुरी कलाकार बबलू रिमिक्स और बनारसी इश्क संगठन के सदस्य सुमंत कुमार साहनी शामिल हैं। हालांकि, स्वास्थ्य महकमा इंस्पेक्टर राम विलास की मौत पर ब्रेन हैमरेज का ठप्पा लगा रहा है। दूसरी ओर, मृतक परिजन स्वास्थ्य महकमे के दावे को झूठा करार दे रहे हैं और बात करने पर उनका गुस्सा साफ-साफ झलकता है। छावनी परिषद के पार्षद शैलेंद्र सिंह कहते हैं, "वाराणसी के सभी सरकारी अस्पताल सिर्फ नर्सिंग स्टाफ़ के भरोसे चल रहे हैं। इलाज के लिए न पर्याप्त दवाएं हैं, न ही इलाज।" 

हॉस्पिटल में हंगामा

बनारस के सरकारी अस्पतालों का हाल बुरा है। कबीरचौरा स्थित मंडलीय हॉस्पिटल के डेंगू वार्ड में बीते दिनों लहरतारा बौलिया निवासी रूबी जायसवाल के परिजनों ने जमकर हंगामा किया। परिजनों का आरोप था कि दो दिनों से उनके मरीज को देखने के लिए कोई डॉक्टर नहीं आ रहा है। मरीज के परिजन ने डॉक्टर्स के खिलाफ नारेबाजी भी की। रूबी तीमारदार बताते हैं, "यहां डॉक्टर तो डॉक्टर, यहां सिस्टर भी कलक्टर हैं। डेंगू वार्ड में दिन में सिर्फ़ दो-तीन बार ही नर्सें आती हैं। रात में मरीज को देखने वाला कोई नहीं होता।"

बनारस में अब डेंगू तेजी से पैर पसार रहा है। शहर के सरकारी अस्पतालों में अब तक 160 से अधिक डेंगू के मरीज सामने आ चुके हैं। बड़ी संख्या में लोग निजी अस्पतालों में अपना इलाज करा रहे हैं, जिनका सही ब्योरा सरकारी नुमाइंदों के पास है ही नहीं। सपा नेता मनोज राय धूपचंडी कहते हैं, "डेंगू से मौत के आंकड़े छिपाए जा रहे हैं। बीमार लोगों की तादाद कमतर बताई जा रही है। पीएम के क्षेत्र में अगर लोगो का कारगर इलाज नहीं हो रहा है तो इसका क्या मतलब? बनारस का हाल यह है कि वाराणसी के शिव प्रसाद गुप्त मंडलीय अस्पताल समेत कई सरकारी अस्पतालों के डेंगू वार्ड अब मरीजों से फुल हो चुके हैं। लगातार बढ़ते डेंगू के मरीजों के कारण प्लेटलेट्स की डिमांड भी बढ़ गई है। शहर में कई ऐसे इलाके हैं जहां से लगातार मरीजों के मिलने का सिलसिला जारी है।

रेज़िडेंट डाक्टर भी डेंगू से ख़ौफ़ज़दा

बनारस का हाल यह है कि डेंगू ने आम आदमी ही नहीं, डॉक्टरों को भी अंदर तक डरा दिया है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आईएमएस के करीब दर्जन भर रेजीडेंट चिकित्सक इस बीमारी की चपेट में हैं। दंत चिकित्सा विज्ञान संकाय के दस से अधिक रेजिडेंट बीएचयू अस्पताल में भर्ती हैं। इन डाक्टरों ने बीएचयू के प्रभारी कुलपति को खत भेजकर संकाय में मच्छरों का प्रकोप बढ़ने की जानकारी दी है। शिकायती पत्र में कहा गया है कि डेंगू के मच्छरों से बचाव के लिए बीएचयू में पुख्ता इंतजाम नहीं किए जा रहे हैं। हालांकि रेजिडेंट डाक्टरों की शिकायत पर आईएमएस के निदेशक प्रो. बीआर मित्तल ने सफाई दी है और दावा किया कि है डेंगू समेत सभी संक्रामक बीमारियों की रोकथाम पर विशेष जोर दिया जा है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाले 78 गांवों को पिछले साल नगरीय सीमा में शामिल किया गया था। साफ-सफाई का कोई पुख्ता इंतजाम न होने के कारण इन गांवों में डेंगू के मच्छरों ने पांव जमा लिए हैं। अनिगिनत लोग जानलेवा बीमारी की चपेट में हैं। रोहनिया इलाके के एक निजी अस्पताल में भर्ती जानी-मानी अधिवक्ता सरिता पटले की हालत चिंताजनक बनी हुई है। प्लेटलेट्स के लिए इनके अधिवक्ता पति विकास पटेल खासे परेशान हैं। प्लेटलेट्स के लिए उन्हें सोशल मीडिया पर अपील करनी पड़ी। नाथूपुर के मुन्ना कुमार की भतीजी खुशबू की हालत भी चिंताजनक बनी हुई है। बजबजाते बजरडीहा में बड़ी संख्या में लोग डेंगू की जद में हैं। उधर, मड़ौली, नाथूपुर समेत कई गांवों में गलियां और सड़कें गंदे पानी से लबालब भरी हुई हैं। लोगों का जीना मुहाल हो गया है। जो लोग डेंगू की चपेट में नहीं, उन्हें चिकनगुनिया और मलेरिया के मच्छर डंक मार रहे हैं। बनारस में टाइफाइड और उल्टी दस्त की बीमारी तो न जाने कब से घर जमाई बनी हुई है।


मड़ौली दलित बस्ती के रुस्तम अली कहते हैं, "समूची दलित बस्ती डेंगू से लड़ रही हैं। कुछ लोग मर भी रहे हैं। महीनों से सड़कों पर पानी जमा है। फिर भी न प्रशासन को चिंता है, न ही नगर निगम को। नाथूपुर के अरविंद कुमार यादव और बाबा भैया कहते हैं, "जलालीपट्टी बजबजा रही है। शहरी सीमा में आने वाली सभी दलित बस्तियों का हाल बहुत ज्यादा खराब है।" 

मरीजों से भर गए डेंगू वार्ड

पिछले साल डेंगू के केवल चार मरीज मिले थे, जबकि इस साल वाराणसी में अब तक सौ से अधिक लोगों में डेंगू की पुष्टि हो चुकी है। 120 से अधिक लोगों की रिपोर्ट रैपिड जांच में पॉजिटिव आई है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से मंडलीय अस्पताल, शास्त्री अस्पताल रामनगर में अलग डेंगू वार्ड भी बनाया गया है। ये सभी अस्पताल डेंगू के मरीजों से भर चुके हैं। कबीरचौरा के डेंगू वार्ड में भर्ती नगवां के मुरलीधर झा ने बताया कि नगर निगम ने उन्हें राम भरोसे छोड़ दिया है। परिवार के ही तीन लोग डेंगू की चपेट में हैं। पड़ोस में आठ-दस लोग डेंगू से गंभीर रूप से बीमार हैं, फिर भी साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं। 

प्लेटलेट्स की कमी को पूरा करने के लिए लोग आईएनए और बीएचयू की ओर भाग रहे हैं। वहां भी दवाओं की कमी देखी जा रही है। मंडलीय अस्पताल के दस बेड वाले डेंगू वार्ड के मरीजों से भरने के बाद अब दूसरे वार्ड में मरीज भर्ती हो रहे हैं। डाक्टरों का कहना है कि मच्छरों से फैलने वाले वायरस में समय के साथ दवाइयों को लेकर प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित हो गई है।

शहर के लैब में आने वाले खून के सैंपल की संख्या कई गुनी बढ़ गई है। डेंगू और चिकनगुनिया, ये दोनों ही वायरल बुखार मच्छरों के दिन के वक़्त काटने से होते हैं। बारिश के मौसम के बाद जहां-तहां जमा हो चुके पानी में इन बीमारियों को फैलाने वाले मच्छर पनपते हैं। वक्त रहते डेंगू का इलाज न करवाया जाए तो यह जानलेवा हो सकता है और चिकुनगुनिया में मरीजों को जोड़ों में तेज़ दर्द होता है।

प्लेटलेट्स की मांग बढ़ी

डेंगू के मरीज बढ़ने से आईएमए और बीएचयू ब्लड बैंक में प्लेटलेट्स की मांग बढ़ गई है। आईएमए सचिव डॉ. आरएन सिंह के अनुसार पिछले महीने 20 से 25 यूनिट प्लेटलेट्स की मांग थी, जबकि इस समय हर दिन 100 से 120 यूनिट तक दिया जा रहा है। इसके अलावा सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (एसडीपी) भी 8 से 10 की जगह बढ़कर 25 से 30 तक पहुंच गया है। उधर, बीएचयू ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. संदीप कुमार ने बताया कि पहले 20 से 30 की तुलना में इस समय प्लेटलेट्स लेने वालों की संख्या 70 से 100 तक हो गई है। 

बनारस के सामने घाट, भगवानपुर, छित्तूपुर, बीएलडब्ल्यू, राजेंद्र विहार कालोन , अस्सी, भदैनी, कबीरचौरा, सीर गोवद्धनपुर, खोजवां, फुलवरिया, सुंदरपुर, रविंद्रपुरी, नरिया, सेंट्रल जेल, दुर्गाकुंड, फुलवरिया, सुंदरपुर,  रवींद्रपुरी, नरिया, सेंट्रल जेल, दुर्गाकुंड में सबसे ज्यादा डेंगू से प्रभावित हैं। इन एरिया में तेज बुखार, सिरदर्द, उल्टी के लक्षण के तमाम मरीज हैं। ज्यादातर लोग जांच कराने से बच रहे हैं। अब तक सौ से अधिक संदिग्ध मामले सामने आए हैं। बीएचयू में 22 कबीरचौरा में 16 और रामनगर में आठ का इलाज चल रहा है। 

आफ़त बना खाली प्लांटों में जमा पानी

नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा. एनपी सिंह बताते हैं, "नगर निगम सीमा में 78 नए गांव शामिल किए गए हैं। प्रायः सभी गांवों में बड़ी संख्या में खाली प्लांटों में बजबजा रहे कूड़े के ढेर डेंगू को पांव पसारने के लिए अनुकूल वातावरण बना रहे हैं। अभी डेंगू, चिकनगुनिया के साथ-साथ मलेरिया, फाइलेरिया, चर्म रोग, डायरिया से निपटना बड़ी चुनौती है। ग्रामीण और शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को नई चुनौती के लिहाज से तैयार किया गया है। शहर के कुछ इलाकों को डेंजर जोन में रखा गया है। लंका, भिखारीपुर, सामनेघाट, कमच्छा, भगवानपुर, बालाजीनगर कॉलोनी, मारुति नगर कॉलोनी, बजरडीहा, जोलहा, जक्खा, बिरदोपुर, लल्लापुरा, छित्तूपुर के साथ ही वरुणा पार में भी नदी से सटे इलाके शामिल हैं। बाढ़ का पानी उतरने के बाद इन इलाकों में अधिक मरीज मिल रहे हैं। विशेष अभियान चलाकर जल निकासी के साथ ही साफ-सफाई कराई जा रही है।" 

डा. एनपी सिंह यह भी बताते हैं, "डेंगू पर नियंत्रण के लिए संयुक्त टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जिसमें नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन के एक-एक अफसरों को शामिल किया गया है। जिन इलाकों से ज्यादा मरीज इस बीमारी की जद में हैं वहां एंटी लार्वा का छिड़काव कराया जा रहा है। इस बाबत 84 टीमें लगाई गई हैं। इसके अलावा 31 फॉगिंग की टीमें और सात छोटी मशीनें लगाई गई हैं।"  

नगर निगम की ओर से साफ-सफाई अभियान चलाकर कार्रवाई का दावा तो किया जाता है, लेकिन कैंट रेलवे स्टेशन के पास की कॉलोनी के साथ ही बजरडीहा, छित्तूपुर में गंदगी के साथ ही नालियां जाम हैं। बनारस में सबसे ज्यादा गंगा और वरुणा के तटीय इलाकों से डेंगू के मामले सामने आए हैं। हाल के दिनों में सौ से अधिक मरीज सिर्फ सरकारी अस्पतालों में पहुंचे हैं। संभावित रोगियों की संख्या इससे कई गुना अधिक है। वाराणसी के बरेका अस्पताल के डेंगू वार्ड में अभी 110 मरीज भर्ती हैं। यहां रोज 26-27 मरीज डेंगू के निकल रहे हैं।

वाराणसी के सीएमओ डॉ. वीबी सिंह कहते हैं, "जिले में अब तक 65 मरीजों में डेंगू की पुष्टि हो चुकी हैं। लगभग 100 ऐसे मरीज हैं जिनको रेपिड एंटीजन जांच में डेंगू पॉजिटिव पाया गया है। उनको भी हम लोग बेहतर ट्रीटमेंट दे रहे हैं। जिन जगहों पर डेंगू के ज्यादा मरीज आ रहे हैं, वहां लगातार दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है। जिला मलेरिया अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर नगवां, भगवानपुर, चितईपुर, छित्तुपुर, कंदवा, बरेका, मंडुवाडीह, सामनेघाट, बालाजी नगर, मारुति नगर, गंगोत्री नगर, शिवपुर एवं आंशिक रूप से सारनाथ के कुछ क्षेत्रों को अतिसंवेदनशील घोषित किया गया है। डीएम ने निर्देश दिया है कि सभी अधिकारी फील्ड में जाकर परीक्षण करेंगे। खाली प्लॉटों में जहां जलजमाव है, वहां मजिस्ट्रेट की मदद से वैधानिक कार्रवाई की जाएगी। रैपिड टेस्ट में डेंगू मिलने पर इसकी जानकारी छिपाने को लेकर स्वास्थ्य विभाग अब सख्त हो गया है। ताकीद की है कि डेंगू की सूचना न देने वाले निजी लैब अथवा हास्पिटल संचालकों के लाइसेंस भी रद किए जा सकते हैं।" 

डेंजर जोन पर विशेष नजर 

प्रशासन ने जिला मलेरिया अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर नगवां, भगवानपुर, चितईपुर, छित्तुपुर, कंदवा, बरेका, मंडुवाडीह, सामनेघाट, बालाजी नगर, मारुति नगर, गंगोत्री नगर, शिवपुर एवं आंशिक रूप से सारनाथ के कुछ क्षेत्रों को अतिसंवेदनशील घोषित किया गया है। डीएम ने अपने सहयोगियों को निर्देश दिया है कि वे फील्ड में जाकर परीक्षण करें। खाली प्लांटों में जहां जल-जमाव है, वहां मजिस्ट्रेट की मदद से वैधानिक कार्रवाई अमल में लाएं। इस बाबत सफाई निरीक्षकों की जवाबदेही तय की गई है। 

बनारस प्रशासन की तरफ़ से जो दावे किए जा रहे हैं वो सरकारी अस्पताल में आकर ही खोखले साबित हो रहे हैं। कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल के डेंगू-चिकनगुनिया वार्ड में मरीज और उनके परिजनों के पास अस्पताल की व्यवस्था को लेकर शिकायतों के अंबार हैं। इस अस्पताल के पास महिला चिकित्सालय परिसर बारिश के पानी से तालाब बन गया है, जबकि डाक्टरों को भी यह पता है कि डेंगू के मच्छर साफ पानी में ही पनपते हैं। 

डेंगू पर नियंत्रण करने के लिए के लिए रामनगर, बीएचयू, बीएलडब्लू, भेलूपुर,  बजरडीहा, सामनेघाट, लंका, मारुति नगर, भिखारीपुर, लल्लापुरा, बिरदोपुर और वरुणा नदी से सटे इलाकों को हाट स्पाट बनाया गया है। जिला मलेरिया अधिकारी एससी पांडेय ने बताते हैं, अब तक पांच हजार सेंपल लिए गए हैं, जिनकी जांच हो रही है। शहर में एंटी लार्वा का छिड़काव कराया जा रहा है। जिला मलेरिया अधिकारी डा. शरद चंद पांडेय के मुताबिक मई से ही बारिश हो रही है। ऐसे में डेंगू के केस मिलना स्वभाविक है। निजी लैब व निजी हास्पिटल संचालकों को निर्देश दिया गया है कि रैपिड टेस्ट में डेंगू मिलने पर पुष्टि के लिए सैंपल माइक्रोबायोलाजी लैब-बीएचयू या डीडीयू की लैब में अनिवार्य रूप से भेजें। 

आईएमए भी है तैयार

बढ़ी प्लेटलेट्स डिमांड को देखते हुए आईएमए ब्लड बैंक ने अपने स्टॉफ की ड्यूटी बढ़ा दी है। यहां हर रोज 150-170 यूनिट प्लेटलेट्स की खपत है, जबकि आम दिनों में सिर्फ 20-25 यूनिट प्लेटलेट्स की खपत होती थी। आईएमए के वरिष्ठ पदाधिकारी डॉ संजय राय बताते हैं कि कई बीमारियों में प्लेटलेट्स काउंट गिरता है। लेकिन इन दिनों प्लेटलेट्स की डिमांड बढ़ी है। आईएमए ब्लड बैंक में सभी ग्रुप के प्लेटलेट्स की व्यवस्था है। 

डेंगू के मरीज बढ़ने से आईएमए और बीएचयू ब्लड बैंक में प्लेटलेट्स की मांग बढ़ गई है। आईएमए सचिव डॉं. आरएन सिंह के अनुसार पिछले महीने 20 से 25 यूनिट प्लेटलेट्स की मांग थी, जबकि इस समय हर दिन 80 से 100 यूनिट तक दिया जा रहा है। इसके अलावा सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (एसडीपी) भी 7 से 8 की जगह बढ़कर 20 से 25 तक पहुंच गया है। उधर, बीएचयू ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. संदीप कुमार ने बताया कि पहले 20 से 30 की तुलना में इस समय प्लेटलेट्स लेने वालों की संख्या 70 से 100 तक हो गई है। 

कबीरचौरा अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर प्रसन्न का कहना है, "बारिश को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बन चुकी है। मच्छर शहरी वातावरण में अपने आप को ढाल चुके हैं। शहरों में सालों भर निर्माण कार्य चलते रहते हैं जिसकी वजह से निर्माण स्थल पर पानी जमा रहता है और उसमें आसानी से मच्छर पनपते रहते हैं। मच्छरों से फैलने वाले वायरस में समय के साथ दवाइयों को लेकर प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित हो गई है।"

बनारस में मच्छरों से निपटने के लिए आमतौर पर कीटनाशक दवा के छिड़काव का सहारा लिया जाता है। ऊपरी तौर पर देखने से लगता है कि यह तरीका कारगर है, लेकिन इससे सिर्फ व्यस्क मच्छरों पर ही असर होता है मच्छरों के लार्वा पर असर नहीं होता। इसलिए शुरू के दिनों में ही जब मच्छर लार्वा के रूप में मौजूद होता है, छिड़काव करना ज्यादा कारगर हो सकता है। मच्छरों का जीवनकाल तीन हफ़्ते का होता है। इसलिए मच्छर के लार्वा को ख़त्म करने के लिए कार्यक्रम चलाए जाने की जरूरत है। इसके तहत डब्लूएचओ से प्रमाणित लार्वानाशक दवाई पानी के टैंक, कूड़ेदान की जगहों, शौचालयों और खुले में जमे पानी में डाली जा सकती है।

आपकी जान है, खुद बचिए

वाराणसी में कहर बरपा रहे डेंगू को लेकर शहर के प्रबुद्धजन काफी चिंतित हैं। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, "डेंगू पहले से ही मौजूद रहा है। मच्छरों को खत्म करने के लिए कोई विभाग क्या काम कर रहा है। अब तो मलेरिया का प्रकोप भी लौट आया है। बनारस में पहले मलेरिया विभाग था उन्मूलन के लिए। अब यह महकमा पूरे साल सोया रहता है। बारिश और बाढ़ आती है, तभी इसकी नींद खुलती है। सब के सब सोए रहते हैं। आपकी जान है, खुद बचिए।"

प्रदीप यह भी कहते हैं, "मच्छरों के बढ़ाव के सुनहरे अवसर नगर निगम भी पैदा कर रहा है। शहर में सैकड़ों स्थानों पर सीवर उफनाया पड़ा है। जहां पानी उतरा है, दवाओं का छिड़काव नहीं हुआ है। घाटों पर साफ-सफाई की मुकम्मल व्यवस्था नहीं। विकास बीमारियां लेकर आ रहा है। तोड़फोड़ में निर्माण खुले फूहड़ तरीके से हो रहा है। बेनियाबाग में मिट्टी का पहाड़ बना दिया है। टाउनहाल में यही हालत है। फूहड़ तरीके से हो रहा विकास। कारिडोर में भी साफ-सफाई नहीं। पूरे शहर में बिखरी पड़ी है। नगर निगम लोकल बॉडी गवर्नमेंट है। चुनी हुई नगर निगम है। चुनी हुई नगर निगम के प्रमुख को कोई चिंता ही नहीं है। पहला दस्ता नगर निगम में होना चाहिए। पहले एपेडमिक वार्ड होता था।"    

बनारस में खौफनाक ढंग से फैल रही डेंगू की बीमारी पर एक्टिविस्ट डा. लेनिन कहते हैं, "डेंगू खत्म हुआ नहीं था। कोरोना की आंधी में उसका वजूद मिट गया था, लेकिन वह जिंदा था। कोरोना का शोर थम गया है, लेकिन डेंगू का खौफ बढ़ रहा है। इसलिए अब पपीता का पत्ता और बकरी का दूध डिमांडिंग हो गया, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। बारिश के दिनों में जब डेंगू का शोर उठता है तब बुखार से तपते लोगों के परिजन बकरी पालने वालों के यहाँ तड़के लाइन लगा देते हैं। कोई डाक्टर अथवा वैद्य दावे के साथ यह बताने के लिए तैयार नहीं कि बकरी का दूध और पपीते का पत्ता वाकई डेंगू में कारगर है।"

डा. लेनिन कहते हैं, "डेंगू से निपटने के लिए बनारस में न कोई नीति है, न तैयारी। रामभरोसे लोग बच रहे हैं। नीम-हकीम खतरे-जान वाली स्थिति है। जलवायु परिवर्तन और तेज़ी से बढ़ती शहरीकरण की प्रक्रिया भी इसके लिए ज़िम्मेदार है। टाइफाइड, डेंगू, मलेरिया, फाइलेरिया के बीच तीसरी लहर दस्तक दे रही है। जब तक बड़े पैमाने पर यह कोशिश रंग नहीं लाएगी, तब तब तक डेंगू बुखार और मलेरिया बनरसियों को डराता रहेगा।"

लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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