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बंगाल चुनावः मुद्दों की राजनीति का ख़ात्मा कर, ध्रुवीकरण की राजनीति पर मुहर लगाएगी भाजपा!

बात बोलेगी : संयुक्त मोर्चा के बैनर तले लड़ने वाले युवा प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार इस चिलचिलाते समर में ठंडी हवा के झौंके सा लगता है। यहां देश के सामने मुंह बाये सबसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा है। सपनों के भारत, सपनों के बंगाल पर बातचीत है।

पश्चिम बंगाल में दूसरे चरण के मतदान से पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखना और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मिलकर लड़ने की ज़रूरत पर बल देना—बेहद अहम घटनाक्रम है। जिस तरह से पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ा जा रहा है, वह दरअसल पूरे भारत और भारतीय लोकतंत्र के लिए परीक्षा की घड़ी साबित हो रहा है। बंगाल की धरती पर राजनीतिक पार्टियों के बीच तकरार निर्बाध रूप से सांप्रदायिक बनी हुई है।

इसमें संयुक्त मोर्चा के बैनर तले लड़ने वाले युवा प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार इस चिलचिलाते समर में ठंडी हवा के झौंके सा लगता है। यहां देश के सामने मुंह बाये सबसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा है। सपनों के भारत, सपनों के बंगाल पर बातचीत है। सीधे-सीधे भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारी वीरों की बात करते हैं, तो वहीं सुभाष चंद्र बोस, रविंद्रनाथ टैगोर की धधकती सांस्कृतिक विरासत का गहरा असर है और इस पर वे अपनी दावेदारी भी खूब जताते है।

नंदीग्राम से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता, संयुक्त मोर्चे की युवा उम्मीदवार मीनाक्षी----अपनी गहरी राजनीतिक समझ और धारदार भाषणों की वजह से इतने ध्रुवीकृत चुनावी माहौल में भी अपनी जगह बनाने में कामयाब हुई हैं। आज जिस समय नंदीग्राम सहित बाकी विधानसभाओं में दूसरे चरण के मतदान चल रहा है, उसमें इन तमाम पहलुओं पर बात करने की ज़रूरत है।

भाजपा और मोदी सरकार चुनावों को ज़मीनी मुद्दों से अलग करने में बहुत हद तक अलग करने में सफल हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या गृह मंत्री अमित शाह या फिर भाजपा के मुख्यमंत्री या कोई भी नेता—उन्हें अब इस बात का पूरा भरोसा हो चला है कि वे चुनाव से पहले ही पेट्रोल-डीजल के दाम आसामान पर पहुंचा सकते हैं, रसोई गैस को महंगा कर सकते हैं, वरिष्ठ नागरिकों की बचत पर मिलने वाली ब्याज दरों को कम कर सकते हैं, बचत दरों और पीपीएफ आदि की ब्याज दरों में कटौती कर आम नागरिक की जेब को प्रभावित कर सकते हैं (हालांकि हंगामा मचने पर फ़िलहाल ये फ़ैसला वापस ले लिया गया है)। और, देश भर के किसानों खासतौर से उत्तर भारत से लाखों की तादाद में देश की राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे अन्नदाताओं की तीन किसान विरोधी बिलों को वापस लेने की मांग को चार महीने से पूरी तरह से अनदेखी करके भाजपा और मोदी सरकार बंगाल फतह का हौसला रखते हैं। एक तरह से मोदी सरकार ने यह ऐलान कर दिया है कि देश के किसान और उनके मुद्दों पर चुनाव नहीं होता और कम से कम वे नहीं होने देंगे। यह विश्वास भाजपा और संघ को बिहार चुनाव में नीतीश-भाजपा की डबल इंजन की सरकार की वापसी से भी और तगड़ा हो गया, क्योंकि लॉकडाउन में जिस तरह का हाहाकारी दृश्य देश की सड़कों पर मज़दूरों का नज़र आया था, जिसमें बड़ी संख्या में बिहारी श्रमजीवी थे, उससे यह लग रहा था कि चुनाव में इसका असर पड़ेगा। ऐसा ही नोटबंदी के समय हुआ। करोड़ों लोगों के रोजगार गये, अर्थव्यवस्था चौपट हो गई, लोग मारे गये, लेकिन भाजपा 2019 का आम चुनाव जीत गई। यह अलग बात है कि इस जीत में पाकिस्तान पर कराई गई सर्जिकल स्ट्राइक, युद्धोन्माद का बड़ा हाथ रहा।

पश्चिम बंगाल का चुनाव भी इसी तरह की राजनीति पर मुहर लगाने की कोशिश के साथ भाजपा लड़ रही है। इसके बारे में भाजपा नेता बोलते भी रहे हैं।

नंदीग्राम में खेती के काम से जुड़े सुदीप्तो मंडल कहते हैं, ये सब कोई मुद्दा नहीं। पहले हमें लगता था कि खेती-किसान, लोगों को परेशान करेगी। लेकिन पता नहीं क्यों लोग इस पर बात नहीं करते। मछुआरे समुदाय से जुड़ी शांति देवी कहती हैं, इतनी महंगाई हो गई है। गैस को भरवाना मुश्किल है। पेट्रोल-डीजल में आग लगी है। ममता दीदी के राशन से हम बच गये, लेकिन जिंदा रहना तो मुश्किल है। लेकिन कोई नेता इस पर बात नहीं करता। कमल छाप (भाजपा) सिर्फ  हिंदू-मुसलमान करती है। अब देखो हमारे घर—हम सब (हिंदू-मुस्लिम) अगल-बगल रहते हैं। नफरत बंगाल की जमीन में नहीं, लेकिन बाहर से आए नेताओं के दिमाग में है। वे हमारी जमीन में भी आग लगाएंगे—मुझे डर है।

यह डर बहुत से लोगों को है।            

(भाषा सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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