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भारत बंद: हरियाणा-पंजाब समेत देश के कई हिस्सों में किसान आंदोलन का व्यापक असर

केंद्र सरकार द्वारा संसद में पारित तीन कृषि विधेयकों के विरोध में तीन सौ से ज्यादा किसान संगठनों की ओर से शुक्रवार को बुलाया गया भारत बंद लगभग सफल रहा। इस बंद को कांग्रेस, राजद, वाम दलों समेत कई विपक्षी दलों ने समर्थन दिया। बंद का सबसे ज्यादा असर पंजाब, हरियाणा और यूपी के कुछ हिस्सों में देखने को मिला।
भारत बंद

केंद्र सरकार द्वारा संसद में पारित तीन कृषि विधेयकों के विरोध में शुक्रवार को तीन सौ से ज्यादा किसान संगठनों द्वारा बुलाए गए भारत बंद का असर पूरे देश में देखने को मिला। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु समेत देश के अन्य हिस्सों में किसानों, आढ़तियों, समाजसेवी और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने इस दौरान हुए प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

आपको बता दें कि हाल ही में संपन्न मानसून सत्र में संसद ने कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020 और कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 को मंजूरी दी।

भारत बंद की व्यापकता को लेकर अखिल भारतीय किसान सभा के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया, 'अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) के तहत आज 350 से अधिक किसान संगठनों द्वारा इन किसान विरोधी बिलों के खिलाफ देशव्यापी किसान विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। भारतीय किसान एकजुट होकर इन कानूनों का विरोध करेंगे! कहें #NoToFarmBills.'

पंजाब और हरियाणा में सबसे ज्यादा असर

किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर पंजाब और हरियाणा में देखने को मिला। पंजाब में अमृतसर, फरीदकोट समेत कई शहरों में किसान रेलवे ट्रैक पर डेरा जमाए बैठे हैं। पंजाब के किसानों ने गुरुवार से दिन तीन दिनों के लिए 'रेल रोको' आंदोलन शुरू किया है। आंदोलन के चलते कई ट्रेनों को या तो रद्द कर दिया गया या फिर उनका रूट डायवर्ट कर दिया गया। किसानों ने केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर संसद में पारित कृषि विधेयक वापस लेने की मांग की।  

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किसानों के आंदोलन के मद्देनज़र अनेक विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की इन राज्यों में शुक्रवार को होने वाली परीक्षाएं भी स्थगित कर दी गई थीं। किसानों के इस आंदोलन को दोनों राज्यों में कांग्रेस समेत अनेक विपक्षी दलों का समर्थन मिला। पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) तथा हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो), आढ़ती संगठनों तथा हरियाणा सर्व कर्मचारी संगठन का भी समर्थन मिल रहा है।

कई पंजाबी गायक भी किसान आंदोलन के समर्थन में आ गये। पंजाब में चौदह पूर्व आईएएस अधिकारी भी किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। पंजाब में किसानों ने भारतीय किसान यूनियन और रिवॉल्यूशनरी मार्क्सिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के बैनर तले जालंधर में फिल्लौर के पास अमृतसर-दिल्ली नेशनल हाईवे को जाम कर दिया।

किसान संगठनों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार ने ये विधेयक वापस नहीं लिये तो 26 सितम्बर से आंदोलन की रूपरेखा में बदलाव किया जाएगा। इन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से इन विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं करने  की भी अपील की है। किसानों ने कहा कि कृषि ही उनके जीवन का मुख्य आधार है तथा दावा किया कि पारित कृषि विधेयकों से वे बरबाद हो जाएंगे। उनकी जमीनें छीन ली जाएंगी। खेती पर निजी कम्पनियों का कब्जा हो जाएगा। मंडियां और न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था समाप्त हो जाएगी।  

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उत्तर प्रदेश और बिहार में भी प्रदर्शन

कृषि सुधार संबंधी पारित विधेयकों के विरोध में किसानों के एकदिवसीय राष्ट्रव्यापी बंद के समर्थन में शुक्रवार बिहार में भी मुख्य विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस एवं वामदल समेत सभी विपक्षी पार्टियों ने हल्ला बोला। विधेयकों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे राजद कार्यकर्ताओं का नेतृत्व पार्टी एवं प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने किया।

राजद विधानमंडल दल की नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के 10, सर्कुलर रोड स्थित आवास से ट्रैक्टर चलाते हुए तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद कार्यकर्ताओं का काफिला निकला। पटना के प्रमुख चौक-चौराहों और सड़कों पर प्रदर्शनकारियों का हुजूम देखा गया।

कृषि बिलों के खिलाफ किसान संगठनों के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर पटना में माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य और अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव व पूर्व विधायक राजाराम सिंह सहित सैकड़ों की संख्या में माले व किसान महासभा के कार्यकर्ता सड़क पर उतरे और अपना प्रतिवाद दर्ज किया। इसके पहले राजधानी पटना में किसान कार्यकर्ताओं ने बुद्धा स्मृति पार्क से डाकबंगला चैराहा तक मार्च किया।

माले महासचिव ने अपने संबोधन में कहा कि आज किसान विरोधी काले बिलों की वापसी की मांग पर पूरे देश में प्रतिवाद हो रहा है। कहीं बंद है, तो कहीं सड़क जाम है। ये बिल किसानों के लिए बेहद खतरनाक हैं। राज्य सभा में जिस प्रकार से बहुमत नहीं रहने के बावजूद जबरदस्ती बिल पारित करवाया गया, वह लोकतंत्र की हत्या है। इसे देश कभी मंजूर नहीं करेगा।

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उत्तर प्रदेश में भी भारतीय किसान यूनियन की अगुआई में किसानों ने अपना विरोध दर्ज कराया।

उत्तर प्रदेश के बिजनौर में 80, मुजफ्फरनगर में 11, शामली में 3, सहारनपुर में 5, गाजियाबाद में 2, नोएडा में 2, हापुड में 4, मेरठ में 9, मुरादाबाद में 10, शाहजहांपुर में 3, रामपुर में 2 जगहों समेत मैनपुरी, आगरा, मथुरा, अलीगढ़ सहित पूरे प्रदेश में चक्का जाम किया गया।

बंद में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत पानीपत-खटीमा मार्ग लालूखेडी मुजफ्फरनगर में, राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत राष्ट्रीय राजमार्ग 58 रामपुर तिराहा, नावला कोठी, रोहाना चौकी मुजफ्फरनगर में शामिल हुए। भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष रतनसिंह मान कैथल व करनाल में शामिल रहे। पंजाब के कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष हरेन्द्र सिंह लाखोवाल लुधियाना में मौजूद रहे।

छत्तीसगढ़ में भी हुआ प्रदर्शन

छत्तीसगढ़ में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर कई स्थानों पर किसानों और आदिवासियों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया। इस दौरान कृषि विरोधी कानूनों की प्रतियां और मोदी सरकार के पुतले जलाए और इन कॉर्पोरेटपरस्त कानूनों को वापस लेने की मांग की।

प्रदेश में इस मुद्दे पर 25 से ज्यादा संगठन एकजुट हुए हैं, जिन्होंने 20 से ज्यादा जिलों में अनेकों स्थानों पर सैकड़ों की भागीदारी वाले विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम आयोजित किये हैं।

इन संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, नई राजधानी प्रभावित किसान कल्याण समिति, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि संगठन प्रमुख हैं।

छत्तीसगढ़ बंद की सफलता का दावा करते हुए इन संगठनों ने किसानों के आंदोलन को समर्थन देने के लिए आम जनता, ट्रेड यूनियनों, जन संगठनों और राजनैतिक दलों का आभार व्यक्त किया है।

उल्लेखनीय है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सहित प्रदेश के पांचों वामपंथी पार्टियों, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति ने 'छत्तीसगढ़ बंद-भारत बंद' का खुला समर्थन किया था। ट्रेड यूनियनों ने आज प्रदेश में किसानों के साथ एकजुटता दिखाते हुए उनकी मांगों के समर्थन में अपने कार्यस्थलों पर प्रदर्शन किए हैं।

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दिल्ली समेत देश के दूसरे हिस्सों में प्रदर्शन

किसानों ने कृषि बिल के विरोध में आज बुलाए गए 'भारत बंद' के दौरान दिल्ली-नोएडा एक्सप्रेसवे को ब्लॉक कर दिया। किसान वहां पर नारेबाजी करते दिखे। कर्नाटक में किसान एसोसिएशन से जुड़े लोगों ने कर्नाटक-तमिलनाडु को जोड़ने वाली हाईवे पर जमकर विरोध-प्रदर्शन किया। वहां बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई है।

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मध्य प्रदेश के विभिन्न जिला मुख्यालयों पर किसानों ने इस दौरान प्रदर्शन किया है। तमिलनाडु में भी अन्नदाता विधेयक के विरोध में सड़कों पर उतर आए। इसे लेकर ऑल इंडिया किसान सभा के ट्विटर हैंडल से तस्वीरें शेयर की गई हैं। हिमाचल प्रदेश में किसानों के प्रदर्शन की तस्वीर सामने आई है।

राहुल और प्रियंका ने किया समर्थन में ट्वीट

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसान संगठनों द्वारा आहूत ‘भारत बंद’ का समर्थन करते हुए शुक्रवार को दावा किया कि संसद से पारित कृषि संबंधी विधेयक देश के किसानों को गुलाम बना देंगे। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी किसानों के प्रदर्शन का समर्थन किया और आरोप लगाया कि ये कृषि विधेयक ‘ईस्ट इंडिया कंपनी राज’ की याद दिलाते हैं। राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘एक त्रुटिपूर्ण जीएसटी ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को बर्बाद कर दिया। नए कृषि कानून हमारे किसानों को गुलाम बना देंगे।’

प्रियंका ने दावा किया, ‘किसानों से एमएसपी छीन ली जाएगी। उन्हें ठेके पर खेती के जरिए खरबपतियों का गुलाम बनने पर मजबूर किया जाएगा। न दाम मिलेगा, न सम्मान। किसान अपने ही खेत पर मजदूर बन जाएगा।’ उन्होंने कहा, ‘भाजपा के कृषि विधेयक ईस्ट इंडिया कंपनी राज की याद दिलाते हैं। हम ये अन्याय नहीं होने देंगे।’

मोदी ने अपनी सरकार के फ़ैसलों का बचाव किया

भारतीय जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के मौके पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि सुधार संबंधी विधेयकों पर विपक्ष के विरोध को राजनीतिक स्वार्थ बताते हुए आरोप लगाया कि वे (विपक्ष) अफवाहें फैलाकर किसानों को भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं।

हालांकि आपको बता दें कि भाजपा के पितृसंगठन आरएसएस से जुड़ा भारतीय किसान संघ भी इन नए कानूनों को लेकर बेहद उलझन में है। और किसानों के बढ़ते विरोध को देखते हुए दबाव महूसस कर रहा है। इसी दबाव का नतीजा है कि संगठन को कहना पड़ा है कि ``यह कमियां जो धरातल पर काम करते हैं उन्हीं को समझ में आती हैं। उस दृष्टि से हम अभी भी कह रहे हैं कि कमियों को दूर करना चाहिए। अगर नया कानून लाना पड़े तो नया कानून लाया जाए। यह कानून ऐसे लोगों द्वारा बनाया गया है जिन्हें व्यावहारिक जानकारियां नहीं हैं।’’

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समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ 

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