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पटना में बाढ़: 1843 से अब तक शासन बदला, सिस्टम नहीं

पटना शहर में 90 के दशक तक 1000 तालाब थे, जहां पानी जमा हो जाता था। अभी इनमें से महज 200 तालाब ही बचे हुए हैं। कई विशालकाय तालाबों को पाट कर उन पर सरकारी व निजी इमारतें बुलंद कर दी गईं।
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Image courtesy: DBPOST

इमारतों की गैलरियों से झांकते बेबस चेहरे। बकेट में भर कर फंसे लोगों को बाहर निकालते अर्थमूवर। छाती भर पानी में डूबे लोग। रोते-बिलखते बच्चे-महिलाएं। ये कुछ तस्वीरें हैं उस पटना की, जो गुप्त व मौर्य शासनकाल में सत्ता का केंद्र हुआ करता था।
 
गंगा किनारे बसा और सोन, गंडक व पुनपुन नदियों से जुड़ा 35 किलोमीटर लंबा और 17 किलोमीटर चौड़ा ये शहर तीन दिनों की बारिश में ही पानी-पानी हो गया है। कंकड़बाग, बहादुरपुर, राजेंद्र नगर, सैदपुर के सहित कई इलाके पानी में डूबे हुए हैं।

पिछले तीन-चार दिनों तक अपने आवास की छत और दफ्तर से पटना में जलजमाव का जायजा लेने के बाद मंगलवार को नीतीश कुमार ने हवाई सर्वेक्षण किया और खुद राहत कार्यों का जायजा लिया। बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी खुद भी दो दिन तक पानी में फंसे रहे। सोमवार को राहत दल ने उन्हें सपरिवार बाहर निकाला।
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हाफ पैंट और टी-शर्ट पहने सुशील मोदी और पास में खड़ी उनकी पत्नी की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। उनके चेहरे पर बेचारगी साफ झलक रही थी। बगल में खड़े पटना के डीएम कुमार रवि के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें दिख रही थीं।

सोमवार से ही एयरफोर्स के दो हेलिकॉप्टरों को राहत कार्य में लगाया गया है। ये हेलिकॉप्टर दिनभर पटना के आसमान में मंडरा रहे हैं। कुछ मिनटों के अंतराल पर चक्कर लगा रहे हेलिकॉप्टरों को देख कर लगता है कि पटना युद्ध की जद में आ गया है।

इन हेलिकॉप्टरों से राहत सामग्रियां गिराई जा रही हैं, लेकिन ज्यादातर बार ऐसा होता है कि राहत का सामान पानी में गिर कर खराब हो जाता है। फिर भी हेलिकॉप्टर को देख कर पानी में फंसे लोगों को लग रहा है कि आज नहीं तो कल उन्हें सुरक्षित निकाल लिया जाएगा। कुछ जगहों पर ट्रैक्टर की मदद से भी राहत सामग्री वितरित की जा रही है।

पटना नगर निगम दावा कर रहा है कि जो भी पंप हाउस की मशीनें नासाज थीं, उन्हें ठीक कर लिया गया है और पानी की निकासी हो रही है। बिहार सरकार का कहना है कि 35 पंप हाउस कार्यरत हैं और इनके अलावा कोल इंडिया से पांच पंप और एनटीपीसी से तीन अतिरिक्त पंप मंगवाए गए हैं। इन दावों के के उलट कई इलाकों में पानी अब भी ठहरा हुआ है।
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आपदा प्रबंधन विभाग के मंत्री लक्षमेश्वर रॉय का दावा है कि लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है, लेकिन हजारों लोग ऐसे हैं, जो अब भी पानी में घिरे हुए हैं और प्रशासन उन तक पहुंच नहीं पाई है।

राजेंद्र नगर में रहनेवाली आपराजिता राज अपने परिवार के साथ पांच दिनों से पानी में घिरी हुई हैं। उन्होंने कहा, 'बिजली नहीं होने से पानी की घोर किल्लत है। दूसरी जरूरत की चीजें भी मुश्किल से मिल पा रही हैं। बारिश को थमे हुए तीन गुजर चुके हैं, लेकिन पानी निकल नहीं रहा है।'
 
पटना शहर की ये सूरत तब है, जब मौसमविज्ञान केंद्र की तरफ से 19 सितंबर से ही लगातार अलर्ट जारी किया जा रहा था कि बिहार में भारी बारिश हो सकती है। तीन दिन की बारिश के बाद पटना के एक बड़े हिस्से में हुए जलजमाव से ये साफ पता चल रहा है कि प्रशासनिक स्तर पर घोर लापरवाही बरती गई है।
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सन् 1975 की बाढ़ देख चुकीं अपराजिता राज की मां कहती हैं, 'उस वक्त बारिश शुरू होने और बाढ़ आने से पहले सरकार की तरफ से घोषणा की गई थी कि हमलोग खाने का स्टॉक जमा कर लें। इस घोषणा के बाद हमलोगों ने खाने का पर्याप्त स्टॉक घर में रख लिया था। उस वक्त तकनीक उतनी विकसित नहीं थी, लेकिन बाढ़ से उतनी दिक्कत नहीं हुई थी। इस बार तो हमें कुछ पता ही नहीं चला। सरकार की तरफ से भी कोई सूचना नहीं मिली।'
 
जलजमाव पुरानी समस्या, लापरवाही नई

26 सितंबर की रात से लगातार बारिश होने लगी और 29 सितंबर तक पटना में त्राहिमाम मच गया। पटना के कई इलाकों में चार-चार, पांच-पांच फीट पानी भरने की खबरें आने लगीं, तो सीएम नीतीश कुमार को भी एहसास हुआ कि हालात नाजुक हो चले हैं। उन्होंने आनन-फानन में एक बैठक की और पत्रकारों से मुखातिब होकर भारी बारिश के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेवार ठहराते हुए लोगों से धैर्य रखने का मशविरा दिया।

नीतीश कुमार ये बयान देकर लोगों को सिर्फ ये कहना चाह रहे थे कि ऐसा पहली बार हुआ या बहुत दिनों के बाद, इसलिए सरकार वैसी तैयारी नहीं कर पाई। लेकिन, पटना का इतिहास खंगाला जाए, तो पता चलता है कि इस बार का जलजमाव पटना के लिए कोई पहली घटना नहीं है। पटना डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के अनुसार, सन् 1843, 1861, 1870, 1879, 1897 और 1901 में भी भारी बारिश के कारण पटना डूब गया था।

गजेटियर में 1897 औक 1901 का बाढ़ का खास तौर पर जिक्र किया गया है क्योंकि इन दोनों साल भयावह बाढ़ आई थी। गजेटियर के अनुसार, 1897 की बाढ़ सोन में जलस्तर के बढ़ने और पटना में ज्यादा बारिश होने से आई थी। इस बाढ़ में दानापुर सबसिडिविजन को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था।
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गजेटियर में बताया गया है कि बाढ़ के कारण पटना गया कनाल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था जिस कारण बाढ़ का पानी पूरब की तरफ नहीं जा सका। हालांकि, इस कनाल के कारण ही गंगा की तरफ से पानी पटना नहीं आ सका। इस तरह कनाल के कारण जहां पटना का पानी नहीं निकल सका, वहीं दूसरी तरफ कनाल ने ही गंगा के पानी को पटना में प्रवेश करने से रोका। इसकी वजह से पटना की भयावहता कुछ कम रही।

सन् 1901 की बाढ़ को गजेटियर में 1897 की बाढ़ से भी भयावह बताया गया है। गजेटियर के मुताबिक, 1901 की बाढ़ भारी बारिश और गंगा में बढ़े जलस्तर के चलते आई थी। इसी तरह 1923 में भी पटना में जलजमाव हुआ था। आजादी के बाद वर्ष 1967 और 1975 की बाढ़ की खूब चर्चा होती है।

सन् 1975 की बाढ़ के वक्त लेखक फणीश्वरनाथ रेणु पटना में ही थे। बाढ़ में वह भी फंस गए थे। ऋणजल धनजल में उन्होंने पटना में आई 1975 की बाढ़ पर मार्मिक रिपोर्ताज लिखा है।
इन सभी बाढ़ों में पटना के निचले हिस्से मसलन कंकड़बाग, राजेंद्र नगर, बहादुरपुर डूबते थे, लेकिन इसकी भयावहता कम होती थी, क्योंकि उस वक्त निचले इलाके खाली थे जिससे पानी फैल जाता था। हाल के वर्षों में इन इलाकों में आबादी तेजी से बढ़ी है और बेहद बेतरतीब विकास हुआ है। लेकिन, इस बसाहट के कारण होनेवाली दिक्कतों को सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया।

दूसरी तरफ, पटना शहर में 90 के दशक तक 1000 तालाब थे, जहां पानी जमा हो जाता था। अभी इनमें से महज 200 तालाब ही बचे हुए हैं। कई विशालकाय तालाबों को पाट कर उन पर सरकारी व निजी इमारतें बुलंद कर दी गईं। ये भी एक बड़ी वजह है कि बारिश होने पर पटना लबालब हो जाता है।

बाढ़ पर लंबे समय से काम कर रहे दिनेश मिश्र कहते हैं, 'पानी का फैलाव जितना अधिक होगा, बाढ़ की भयावहता उतनी कम होगी। लेकिन, पटना का निचला हिस्सा, जो कभी ग्रामीण क्षेत्र हुआ करता था, वहां शहरीकरण तेजी से हुआ। दूसरे जिलों से लोग पटना आए और उन्हें मुख्य शहर में जगह नहीं मिली, तो निचले हिस्से में ही बस गए। पहले जब पटना में बाढ़ की स्थिति आती थी, तो लोगों को तुरंत सुरक्षित निकाल लिया जाता था और उनके रहने व खाने की पर्याप्त व्यवस्था की जाती थी। लेकिन, इस बार ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है।'
 
फरक्का बराज की भूमिका  

गंगा नदी पर फरक्का बराज 1975 के अप्रैल महीने में बना था। उस वक्त इंजीनियरों ने अनुमान लगाया था कि इससे होकर प्रति सेकेंड 40 हजार क्यूबिक फीट पानी गंगा से होकर गुजरेगा, तो गाद खुद बाहर निकल जाएगा, जिससे कोलकाता पोर्ट की ड्रेजिंग नहीं करनी पड़ेगी।

लेकिन, उस वक्त इंजीनियर रहे कपिल भट्टाचार्य ने इसका विरोध किया था। वह पश्चिम बंगाल की सरकार में सिंचाई निदेशालय में कार्यरत थे। उन्होंने आशंका व्यक्त की थी कि गर्मी के मौसम में हुगली नदी का जलस्तर घट जाएगा, जिससे गाद हटने की जगह उल्टा जमेगा जिससे बिहार गंगा से बाढ़ की विभीषिका झेलेगा।

उनकी आशंका कई मौकों पर सच साबित हुई है। पटना के पानी की निकासी गंगा में की जाती है। इस बार सितंबर के आखिरी हफ्ते में बारिश शुरू होने से पहले ही गंगा का जलस्तर बढ़ने लगा था। उधर, फरक्का बराज के गेट भी बंद थे। नतीजतन पानी की निकासी नहीं हो पाई।
गंगा के पानी पर निर्भर मोकामा क्षेत्र के किसान बताते हैं कि सूखे के मौसम में जब पानी की जरूरत पड़ती है, तो गाद के कारण गंगा का पानी नहीं आ पाता है और बारिश के मौसम में मोकामा टाल में जमा पानी गाद की वजह से उस तरफ नहीं जा पाता है।
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जल संसाधन विभाग के मंत्री संजय झा कहते हैं, 'पहले भी ये बात उठती रही है, लेकिन उसका कोई रास्ता नहीं निकल रहा है। इलाहाबाद से पटना तक 500 किलोमीटर का रास्ता तय करने में गंगा के पानी को दो दिन लगता है। पटना से फरक्का की दूरी 400 किलोमीटर है, लेकिन सात दिन गुजर जाने के बाद भी यहां से पानी निकल नहीं रहा है।'

उन्होंने आगे कहा, 'इसका मतलब है कि फरक्का बराज के ऊपरी हिस्से में इतनी गाद जम गई है, उसके कारण पानी चारों तरफ फैल रहा है। ये समस्या आगे बढ़ेगी ही। इसका समाधान नहीं हुआ, तो बिहार के ये हिस्सा (गंगा से सटा हुआ) पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा। इसलिए मेरा मानना है कि या तो फरक्का बराज को पूरी तरह तोड़ दिया जाए या इसे निष्क्रिय कर दिया जाए।'

नीतीश कुमार भी अक्सर फरक्का बराज को बाढ़ के लिए जिम्मेवार ठहराते रहे हैं। लेकिन सच ये है कि फरक्का बराज को तोड़ना या निष्क्रिय कर देना मुमकिन नहीं है। क्योंकि अगर सरकार ऐसा करना भी चाहेगी, तो बांग्लादेश इसके खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में चला जाएगा।

दूसरा समाधान ये हो सकता है कि गाद निकाला जाए। लेकिन, ये समाधान से ज्यादा समस्या है। गाद अगर निकाल भी ली गई, तो उसे डम्प कहां किया जाएगा।

दिनेश मिश्र कहते हैं, 'कई दफे सरकार ने ये कहा है कि गाद से ईंट बनाएंगे, लेकिन गाद को नियमित तौर पर बनेगा। आप कितनी ईंटे बनाएंगे और उन ईंटों का करेंगे क्या? सरकार को चाहिए कि विशेषज्ञों के साथ बैठक नए सिरे से विचार कर समस्या का समधान निकाले।'

लेकिन, जानकारों का कहना है कि पटना में जलजमाव के लिए गंगा बहुत जिम्मेवार नहीं है क्योंकि गंगा से सटे इलाकों में पानी नहीं है।
 
संभावित संकट से निबटने की तैयारी में चूक

दिलचस्प बात ये भी है कि इस बार पटना के जिस हिस्से में पानी जमा है, वो ढलानवाला इलाका है और यहां का पानी आसानी से गंगा में चला जाता है, लेकिन इस बार गंगा का जलस्तर पहले से ही बढ़ा हुआ था और ऊपर से तीन दिनों में करीब 300 मिलीमीटर बारिश हो गई।

पटना में 35 संपिंग हाउस हैं जहां से शहर का पानी गंगा में जाता है। इसके अलावा 98 स्विस गेट हैं। गंगा में अधिक जलस्तर होने की सूरत में गेट व संपिंग हाउस बंद रखना पड़ता है क्योंकि ऐसा नहीं होने पर उल्टा पानी शहर की तरफ घुसने लगेगा। ऐसी सूरत में समाधान ये है कि ट्रैक्टर पर पंप रखकर उसकी मदद से पानी को निकाला जाए। लेकिन, पटना नगर निगम की तरफ से ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दिख रही है।

पटना नगर निगम की डिप्टी मेयर मीरा देवी ये स्वीकार करती हैं कि कई संप हाउस की मशीनें खराब थीं और कई जगहों पर नमामी गंगे प्रोजेक्ट का काम चल रहा था, जिस कारण मौजूदा नाले ठप पड़े थे।
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यहां ये भी बता दें कि दो साल पहले केंद्र सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत पटना में जलनिकासी और वाटर ट्रीटमेंट के लिए 3582.41 करोड़ रुपये खर्च करने की मंजूरी दी थी। इस परियोजना में 1140.41 किलोमीटर लंबी सीवरेज लाइन बिछाई जानी थी, लेकिन दो वर्षों में कोई काम नहीं हुआ।

पिछले साल पटना के नालों की साफ-सफाई पर ही 9 करोड़ खर्च किए गए थे। इस साल फरवरी में पटना को चमकाने के लिए 1904 करोड़ खर्च करने का फैसला लिया गया था। इसमें 199.08 करोड़ रुपये ठोस कचरा प्रबंधन और सड़क व नालियों के पक्कीकरण पर 478 करोड़ रुपये खर्च करने का प्लान तैयार किया गया था।

यही नहीं, इस साल पटना नगर निगम ने 4064.57 करोड़ रुपये का बजट पेश किया था, जो पिछले वित्तवर्ष के मुकाबले 7.96 गुना ज्यादा था। इस बजट में केवल नाली व गली योजना के लिए 348 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना थी। इन रुपयों का क्या हुआ किसी को नहीं मालूम।

पटना नगर निगम के पूर्व सिटी मैनेजर अमित कुमार सिन्हा अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, 'बारिश का मौसम जब शुरू होता था, तो हमलोग सारे संप हाउसों की देखरेख करते थे और वहां कोई समस्या होती थी, तो उसे ठीक करा कर रखते थे। हमारे समय में बहुत सारे नाले खुले हुए थे, तो जाम होने पर दिख जाता था। लेकिन अभी वे नाले ढक दिए गए हैं, जिस कारण जाम होने पर पता नहीं चल पाता है और अगर पता चल पाए, तो उसे ठीक करने में दिक्कत आती है। बाईपास और भूतनाथ में कई नाले ढके जा चुके हैं। ये सब क्रिटिकल प्वाइंट्स हैं जल निकासी के।'

उन्होंने आगे कहा, 'नालों को हमलोग खाली रखते थे, ताकि बारिश आए, तो पहले नाला भर जाए। इतना ही नहीं, कंकड़बाग, राजेंद्र नगर की तरफ पोर्टेबल मोटर का इस्तेमाल करते थे और जलजमाव इलाके में लगाकर पानी को पाइप के जरिए नजदीक के नाले में गिराते थे।'

स्थानीय लोगों का कहना है कि जलजमाव वाले इलाकों में जलनिकासी के नाले जाम हैं, जिस कारण पानी बाहर नहीं निकल पा रहा है।

जलजमाव पर भाजपा की सियासत

बिहार में एनडीए की सरकार है। भाजपा नेता सुशील मोदी डिप्टी सीएम हैं और भाजपा के कई अन्य नेता सरकार में मंत्री हैं। लेकिन, दिचलस्प बात है कि भाजपा भी इस मामले में सरकार की खामी गिना रही है, जैसे सरकार चलाने में इसकी कोई भूमिका ही नहीं है।

भाजपा के बिहार इंचार्ज संजय जायसवाल ने एक अक्टूबर को अपने फेसबुक पर लिखा, 'बारिश रुक जाने के 24 घंटे बाद भी पानी का नहीं निकलना यह बताता है कि प्रशासनिक लापरवाही जरूर हुई है।'

उन्होंने बिहार सरकार से 10 दिन बाद इसकी समीक्षा कर दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने की मांग करते हुए लिखा है कि इसके लिए वे उच्चस्तर पर बात करेंगे।
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उधर, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बाढ़ को प्रशासन के लिए उत्सव बताते हुए कहा कि कागजों पर ही सरकार ने बाढ़ की तैयारी की थी। इससे पहले 30 सितंबर को उन्होंने जदयू के विधायक नरेंद्र सिंह के बयान का वीडियो शेयर किया जिसमें उन्होंने राज्य सरकार को बाढ़ को लेकर उदासीन कहा था।

पाटलीपुत्र संसदीय सीट से भाजपा सांसद राम कृपाल यादव ने भी पटना में जलजमाव को प्रशासन और सरकार की लापरवाही माना है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि जलजमाव को लेकर लोगों में गुस्सा है और अगले साल विधानसभा चुनाव भी है। भाजपा को लग रहा है कि इस गुस्से का खामियाजा विधानसभा चुनाव में झेलना पड़ सकता है। इसलिए वो मुख्यमंत्री के सिर ठीकरा फोड़ रही है।

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