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बिहार चुनावः सांकेतिक तस्वीरों की आड़ में बीजेपी का फ़र्ज़ीवाड़ा!

क्या चुनाव के दौरान, ठोस दावों के साथ सांकेतिक तस्वीरें लगाना उचित है? आइये, बिहार के चुनाव प्रचार में इन सांकेतिक तस्वीरों के फ़र्ज़ीवाड़े को समझते हैं।
बिहार चुनाव

बिहार चुनाव में सोशल मीडिया पर सबसे सशक्त उपस्थिति बीजेपी की है। चुनाव की घोषणा से भी पहले बीजेपी ने सोशल मीडिया पर प्रचार शुरू कर दिया था। सब जानते हैं कि सोशल मीडिया पर प्रचार को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिये तस्वीरें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। नेताओं की तस्वीरों के साथ विकास कार्यों की तस्वीरों के कोलाज़ बनाकर इन रंगीन विज्ञापनों को सोशल मीडिया पर वायरल किया जाता है। अगर इन विज्ञापनों से तस्वीरें हटा दें तो प्रचार नीरस हो जाता है, आकर्षक नहीं रहता। लेकिन दुविधा तब आती है जब विकास कार्य दिखाने के लिये वास्तविक तस्वीरें न हों। ऐसे में कहीं से भी तस्वीरें उठा ली जाती हैं और पार्टी के प्रचार में धड़ल्ले से उनका इस्तेमाल शुरू कर दिया जाता है।

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बिहार चुनाव प्रचार में बीजेपी यही कर रही है। प्रचार के शुरुआती दौर में ही इन तस्वीरों का फैक्ट चेक किया गया तो पता चला कि तस्वीरें बिहार की नहीं बल्कि कहीं और की हैं। उदाहरण के तौर पर इस लिंक पर क्लिक करके आप देखें जहां बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने सिंगापुर की तस्वीर को समस्तीपुर का बताकर ट्वीट किया था। इस लिंक पर क्लिक करें और देखें जब बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने उत्तर प्रदेश की तस्वीर को बिहार का बताकर ट्वीट किया। जब इन तस्वीरों के फैक्ट चेक किये गये तो बीजेपी ने तस्वीरों पर सांकेतिक तस्वीरें लिखना शुरू कर दिया। लेकिन क्या सांकेतिक तस्वीर लिखकर पल्ला झाड़ा जा सकता है? क्या चुनाव के दौरान, ठोस दावों के साथ सांकेतिक तस्वीरें लगाना उचित है? आइये, बिहार के चुनाव प्रचार में इन सांकेतिक तस्वीरों के फ़र्ज़ीवाड़े को समझते हैं।

उदाहरण एक

बिहार में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जैसवाल नें बिहार में बनाये गये पुलों के प्रचार के लिये एक ट्वीट किया। जिसे आप यहां देख सकते हैं। बिहार में 3346 पुल निर्माण के दावे के साथ एक तस्वीर भी लगाई गई है। ये तस्वीर बिहार की नहीं बल्कि दिल्ली के रानी झांसी फ्लाइओवर की है। ज्यादा जानकारी के लिये इस लिंक पर क्लिक करें।

 उदाहरण दो

बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से सड़क निर्माण संबंधी प्रचार के लिये एक ट्वीट किया गया। जिसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं। जिस फोटो का इस्तेमाल किया गया वो बिहार की नहीं बल्कि नेशनल हाइवे-16, विजयवाड़ा मंगलगिरी की है। ज्यादा जानकारी के लिये इस लिंक पर क्लिक करें।

उदाहरण तीन

कृषि क्षेत्र में किये गये कार्यों के प्रचार के लिये बीजेपी के आधिकारिक अकाउंट से एक ट्वीट किया गया। जिसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं। ये तस्वीर बिहार की नहीं बल्कि यूएस स्टेट अरिज़ोना के फिनिक्स शहर की है। ज्यादा जानकारी के लिये इस लिंक पर क्लिक करें।

उदाहरण चार

युवाओं को रोज़गार देने और स्वरोज़गार के प्रचार के लिये बीजेपी ने ट्वीट किया। जिसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं। जो फोटो इस्तेमाल किया गया वो बिहार के किसी कंप्यूटर सेंटर का नहीं बल्कि कनाडा का है। ज्यादा जानकारी के लिये इस लिंक पर क्लिक करें। इस फोटो पर एक विदेशी फोटोग्राफर MC Pearson का कॉपिराइट है।

उदाहरण पांच

इसी प्रकार आवास योजना के प्रचार के लिये ट्वीट किया गया। बीजेपी का ट्वीट आप इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं। जिस फोटो का इस्तेमाल किया गया वो बिहार का नहीं बल्कि रायपुर का है। ज्यादा जानकारी के लिये इस लिंक पर क्लिक करें।

ऊपर सिर्फ पांच उदाहरण दिये गये हैं। “सांकेतिक तस्वीर” लिखकर बिहार के ठोस दावों के साथ इन फ़र्ज़ी तस्वीरों का इस्तेमाल बीजेपी बड़े पैमाने पर चुनाव प्रचार में कर रही है।

अगर दावा ठोस है तो फोटो सांकेतिक क्यों?

गौरतलब है कि सांकेतिक तस्वीरों का इस्तेमाल उस मौके पर किया जाता है जब आप किसी की पहचान आदि ज़ाहिर न करना चाहते हों, ज्यादा खून-खराबा और हिंसात्मक हो, फोटो पब्लिश करने से सुरक्षा को ख़तरा हो, जहां पर फोटो खींचना प्रतिबंधित हो आदि। बीजेपी के चुनाव प्रचार के विज्ञापनों में से किसी पर भी ये लागू नहीं होता है। समझना मुश्किल है कि बीजेपी को सड़क की तस्वीरों के लिये भी फ़र्ज़ी तस्वीरों का सहारा क्यों लेना पड़ रहा है। पुल के विज्ञापन में बिहार के ही किसी पुल की फोटो क्यों नहीं लगाई जाती। सांकेतिक तस्वीरें लिखकर देश-विदेश की फोटो को धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है। जब दावा ठोस है तो फोटो सांकेतिक क्यों?

ये विज्ञापन और ट्वीट साफतौर पर भ्रामक हैं। चुनाव के दौरान वोटरों को फ़र्ज़ी तस्वीरों के ज़रिये गुमराह किया जा रहा है। चुनाव आयोग को इसका नोटिस लेना चाहिये। फिलहाल सोशल मीडिया एक बड़ा मंच बन चुका है। चुनाव आयोग को इस बात को समझना चाहिये और सोशल मीडिया पर जारी होने वाले विज्ञापनों बारे स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने चाहिये। इन विज्ञापनों में इस्तेमाल होने वाली तस्वीरों पर भी साफ निर्देश देना चाहिये। ताकि सांकेतिक तस्वीर लिखकर पल्ला ना झाड़ा जा सके।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते रहते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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