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बिहार चुनाव : इधर रोजगार ना बा

यह समझते हुए कि बेरोज़गारी सभी को प्रभावित करती है, आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दल बेरोज़गारी, लॉकडाउन के दौरान राज्य में हुए विपरीत-प्रवास और सरकार द्वारा काम देने में नाकामी के मुद्दों को लगातार उठा रहे हैं।
बिहार

संदेश (बिहार): रंजीत कुमार कहते हैं, "बिहार में रोज़गार ना बा। हमनी के बाहर जाये के पड़ी जिये खातिर। इस युवा के शब्द उस हकीकत को बयां करते हैं जिसमें बेरोज़गारी और निराशा ने लोगों, खासकर युवाओं को, रोज़ी-रोटी के लिए प्रवास करने पर मजबूर किया है। 

रंजीत, भोजपुर जिले में कोइलवार प्रखंड के धनदिहा गांव के रहने वाले हैं। वह बाहर नहीं जाना चाहते, लेकिन उनके पास कोई विकल्प भी नहीं है। वह कहते हैं, "लॉकडाउन के दौरान अपने चार साथियों के साथ मैं घर वापस आ गया था। करीब़ 6 महीने गुजर चुके हैं। अब तक मेरे पास कोई रोज़गार नहीं है। अब कोई भी आशा नहीं है, क्योंकि अपने वायदे के मुताबिक़ हमें रोज़गार उपलब्ध करवाने में नीतीश नाकाम रहे हैं।"

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लॉकडाउन के पहले रंजीत, गुजरात के राजकोट की एक टाइल्स फैक्ट्री में काम करते थे। वे आगे कहते हैं, "हम खुशनसीब हैं कि हमारा परिवार हमें रोटी दे रहा है। वोटिंग के बाद मुझे काम की जगह पर वापस जाना होगा, क्योंकि फैक्ट्री मालिक ने हमसे काम पर वापस आने के लिए कहा है।" 

रंजीत को सरकार की प्रवासी मज़दूरों की मदद करने में असफलता पर नाराज़गी है। उन्होंने कहा, "राज्य सरकार के पास हमें प्रदेश में ही काम देने का एक बड़ा मौका था। लेकिन वह नाकाम रही है।"

उसी गांव के रहने वाले एक दूसरे युवा दीपक कुमार कहते हैं कि जब सरकार विकास की बात करती है, तो वह झूठ बोल रही होती है। वह कहते हैं, "कोई भी आजीविका के लिए अपने घर को छोड़ना नहीं चाहता, पर हालात उसे ऐसा करने पर मजबूर करते हैं। हम यहां काम कर बिहार के विकास में योगदान देना चाहते हैं। लॉकडाउन की शुरुआत में कई लोगों को मनरेगा स्कीम के तहत काम दिया गया था। लेकिन अब वह भी मौजूद नहीं है। कई गांव वाले काम करने के लिए तैयार हैं, लेकिन स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें मनरेगा के तहत काम देने में अक्षमता दिखाई है।"

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भोजपुर जिले में आने वाला यह गांव संदेश विधानसभा के अंतर्गत आता है। वहां आरजेडी कैंडिडेट किरण देवी और जेडीयू प्रत्याशी विजेंद्र यादव के बीच सीधा मुकाबला है। किरण देवी, उस विधायक की पत्नी हैं, जो पिछले साल से एक रेप मामले में आरोपी बनने के बाद से अब तक फरार हैं। दोनों यादव हैं और अपने जाति के सदस्यों के वोट पर नज़र बनाए हुए हैं। उनकी जाति के लोगों की विधानसभा में बड़ी संख्या है। 

माना जा रहा है कि आरजेडी के कैंडिडेट को जेडीयू के कैंडिडेट पर बढ़त हासिल है। क्योंकि "कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) लिबरेशन" महागठबंधन का हिस्सा है। पार्टी का विधानसभा के कुछ ग्रामीण इलाकों में दलितों और पिछड़ा वर्ग के बीच बड़ा प्रभाव है। 

वहीं बीजेपी की सहयोगी रही लोकजनशक्ति पार्टी ने जेडीयू के खिलाफ अपना प्रत्याशी उतारा है, जिससे सीट का संघर्ष त्रिकोणीय हो गया है।

दूसरी विधानसभा सीटों की तरह भोजपुर में भी मुख्यमंत्री के खिलाफ़ मजबूत एंटी-इंकम्बेंसी देखी जा रही है। इसकी एक बड़ी वज़ह राज्य में बढ़ती बेरोज़गारी है। असंतोष को महसूस करते हुए, महागठबंधन के मुख्यमंत्री प्रत्याशी तेजस्वी यादव ने सत्ता मे आने की स्थिति में दस लाख नौकरियों का वायदा किया है। यह एक अहम वजह है कि तेजस्वी की रैली में बड़ी संख्या में युवा देखे जा रहे हैं।

यह समझते हुए कि बेरोज़गारी सभी को प्रभावित करती है, आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दल बेरोज़गारी, विपरीत-प्रवास और सरकार द्वारा काम देने में असफलता के मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं।

"सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इक्नॉमी" का अनुमान है कि फरवरी, 2019 के बाद, पिछले 20 महीनों में बिहार में बेरोज़गारी दर दस फ़ीसदी से ज़्यादा हो चली है। यह राज्य द्वारा अब तक देखा गया सबसे लंबा बेरोज़गारी चक्र है।

यह केवल युवाओं की ही बात नहीं है। पास के गांव से आने वाले अधेड़ उम्र के शिवलखन राय कहते हैं कि वह होली के त्योहार के दौरान वापस आए थे, तभी से वे बेरोज़गार हैं। वह कहते हैं, "सरकार हमें भूल चुकी है। मैं अब हैदराबाद वापस जाने की तैयारी कर रहा हूं। वहां मैं एक डायरी फैक्ट्री में काम कर रहा था।"

वह आगे कहते हैं, "मैं कभी रोज-रोटी कमाने के लिए बाहर जाना नहीं चाहता था। हमें आशा थी कि राज्य सरकार नौकरियों के अवसर पैदा करेगी। लेकिन यह सिर्फ़ एक जुमला साबित हुआ।"

लॉकडाउन के दौरान अपने गांव वापस लौटने वाले जितेंद्र चौधरी सरकार द्वारा मदद ना किए जाने से नाराज हैं। वह कहते हैं, "मैं सूरत की एक कपड़ा फैक्ट्री में काम करता था, लेकिन लॉकडाउन के चलते वह बंद हो गई, जिससे मुझे वापस आना पड़ा। सरकार ने तो यह तक पूछने की ज़हमत नहीं उठाई कि हम किस हालत में हैं।"

एक दूसरे युवा कमलेश कुमार कहते हैं कि सरकार द्वारा काम देने के वायदे सिर्फ़ मीडिया के लिए की गई घोषणाएं थीं। वह कहते हैं, "रोज़गार की कमी बिहार में किसी भी मुद्दे से ज़्यादा बड़ा मुद्दा है। हम रोज़ी-रोटी के लिए बाहर क्यों जाएं? यह 2005 से नीतीश कुमार की अगुवाई में चल रहे NDA के कथित विकास मॉडल की असफलता है।"

कमलेश का कहना है कि वे कभी भविष्य में बीजेपी के लिए वोट नहीं करेंगे। वह कहते हैं, "इस बार तेजस्वी यादव ने वायदा किया है कि अगर वो सत्ता में आते हैं, तो पहली ही कैबिनेट मीटिंग में दस लाख नौकरियों पारित करेंगे। इस बार हम उन्हें मौका देंगे।"

कुल्हाड़िया गांव के रहने वाले मनीष कुमार सिंह कहते हैं कि बेरोज़गारी पिछले पांच साल में बद से बदतर हुई है। उनका कहना है कि कौशल युक्त युवाओं और पेशेवर डिग्रीधारकों के लिए इंडस्ट्री-फैक्ट्री ना होने के चलते नौकरियों के अवसर लगभग ना के बराबर हैं।

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मनीष कुमार सिंह। फ़ोटो : मोहम्मद इमरान ख़ान

भडवार गांव के रहने वाले गुल्लु कुमार कहते हैं कि NDA सरकार नौकरियां पैदा करने में नाकाम रही है। वह कहते हैं, "मैं अपना इंटरमीडिएट परीक्षा पास कर चुका हूं और काम कर अपने माता-पिता की मदद करना चाहता हूं। अब मुझे भी पैसा कमाने के लिए प्रवास करना होगा।"

गुल्लु बताते हैं कि कुछ युवाओं ने अलग-अलग सरकारी नौकरियों के दो से तीन साल पहले परीक्षा फॉर्म भरे थे। वे अब भी लिखित परीक्षा होने का इंतज़ार कर रहे हैं, क्योंकि भर्ती की प्रक्रिया काफ़ी धीमी है।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, अप्रैल और मई में, बिना तैयारी और प्रबंधन के लगाए गए लॉकडाउन की वज़ह से 21 लाख प्रवासी मज़दूर बिहार वापस लौट चुके हैं। 

अचानक लागू किए गए लॉकडाउन के चलते, ज़्यादातर प्रवासी मज़दूर अपनी नौकरियां खो चुके हैं। यहां तक कि कई लोगों को उनका बकाया भत्ता तक नहीं मिल पाया। कई लोग पैदल घर लौटे। कुछ ने तो 1500 किलोमीटर का तक सफर किया। घर वापस लौटते हुए खाना और पानी ना मिलने, यहां तक कि थकने से भी कई मज़दूरों की रास्ते में मौत हो गई।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Bihar Elections: Idhar Rojgar Na Ba

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