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बिहार: राशनकार्ड में गड़बड़ियों के चलते बड़ी संख्या में लोग मुफ़्त राशन से वंचित

बिहार

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना पार्ट टू और वन नेशन, वन राशन कार्ड की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि देश के सभी गरीबों को नवंबर 2020 तक मुफ़्त राशन दिया जाएगा। खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री रामविलास पासवान ने इसके बाद मीडिया को संबोधित करते हुए बताया था कि जिनका राशनकार्ड नहीं भी बना हो उन्हें भी 5 किलो अनाज और एक किलो चने का दाल मुफ़्त दिया जाएगा।

रामविलास पासवान के मुताबिक, “अगर किसी के पास राशन कार्ड नहीं है तो उसे अपना आधार कार्ड ले जाकर रजिस्ट्रेशन कराना होगा, जिसके बाद उन्हें एक स्लिप दिया जाएगा। उस स्लिप को दिखाने के बाद उन्हें मुफ्त अनाज मिलेगा। इसके लिए राज्य सरकारों की भी जिम्मेदारी तय की गई है। राज्य सरकारें गरीब मजदूरों को मुफ्त राशन का लाभ सुनिश्चित कराएं"।

इस योजना के तहत देश के 80 करोड़ से भी ज़्यादा लोगों तक इसका लाभ पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।

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घोषणा के बाद केंद्र और राज्य की सरकार लगातार अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन इसके क्रियान्वयन पर काफ़ी सवाल उठ रहे हैं। जमीनी पड़ताल में यह बात दिखी कि कई कारणों से एक बड़ी आबादी इसका लाभ पाने में नाकामयाब रही है। मुफ़्त वाले राशन से तो वो महरूम हैं ही, नए राशनकार्ड में भी कई तरह की खामियाँ सामने आई हैं।

बिना राशनकार्ड वालों को नहीं मिल रहा मुफ़्त राशन

घोषणाओं के विपरीत बिहार में यह चीज़ स्वीकार कर ली गई हैं कि जिनके पास राशनकार्ड नहीं है उन्हें मुफ़्त राशन नहीं दिया जाएगा। गया जिले के संजय कुमार जो दिहाड़ी मजदूरी करते हैं उनके लिए अभी का समय बहुत मुश्किल भरा है। उन्होंने जीविका के माध्यम से राशनकार्ड के लिए आवेदन भी दिया था लेकिन कार्ड बनकर नहीं आया।

वो बताते हैं, “सर राशनकार्ड हमलोग भरकर के देते हैं बराबर, लेकिन एक बार भी राशनकार्ड बनके नहीं आता है। लॉकडाउन में भी हम भरे थे लेकिन बनकर के नहीं आया। मेरे पास एक कट्ठा भी जमीन नहीं है, मजदूरी करते हैं तो खाते हैं। अभी काम भी पहले जैसा नहीं मिल रहा है तो जैसे तैसे गुजारा कर रहे हैं। राशनकार्ड नहीं बना है तो मुफ़्त वाला राशन भी नहीं देता है। सरकार तो कहती है कि सब गरीब को मिल रहा है, लेकिन यहाँ जिसका राशन कार्ड नहीं है उसको एक दाना नहीं दे रहा है। डीलर कहता है सरकार भेज ही नहीं रही है तो हम का अपने घर से दें?"

गया के प्रमोद मांझी दिव्यांग हैं और आंखों से देख नहीं पाते। वो बताते हैं, कि “जितना बन पाता है, अपनी तरफ़ से सबकुछ करते हैं लेकिन किसी भी सरकारी योजना का लाभ उन्हें आजतक नहीं मिला है। राशनकार्ड के लिए भी कई बार आवेदन दे चुके हैं लेकिन बनकर नहीं आया। इस बार भी आवेदन दिए थे तो पता लगाने गए ब्लॉक में तो बोला तुम्हारा नाम नहीं आया है। मुफ़्त वाला राशन भी किसी को नहीं मिलता है अगर राशनकार्ड नहीं है तो। जिसको मिलता भी है तो तीन-चार किलो ही, और दाल भी काट ही लेता है"।

व्यापक पैमाने पर राशनकार्ड में देखी जा रही गड़बड़ी

राशनकार्ड के अभाव में एक तरफ़ जहाँ लोग राशन से महरूम हैं, वहीं दूसरी तरफ़ जिनका नया राशनकार्ड बना है उन्हें भी पूरा राशन नहीं मिल पा रहा है। बिहार सरकार के सचिव अनुपम कुमार के अनुसार इस लॉकडाउन की अवधि में 23 लाख से भी ज़्यादा नए राशनकार्ड बने हैं, और इस बात पर राज्य सरकार लगातार अपनी पीठ थपथपा रही है। लेकिन नए बने राशनकार्डों में व्यापक पैमाने पर एक गड़बड़ी सामने आ रही है। अधिकांश नए बने राशनकार्ड में परिवार के सभी सदस्यों के नाम ही नहीं जोड़े गए हैं।

गया जिले के फ़िरोज़ खान बताते हैं, “लॉकडाउन में हम अपने राशनकार्ड के लिए अप्लाई किये थे। परिवार में हम चार सदस्य हैं। लेकिन राशनकार्ड जो बनकर आया है उसमें सिर्फ़ पत्नी का नाम है, मेरा और दोनों बच्चों का नाम नहीं है। हमें चार यूनिट यानी महीने का 20 किलो राशन मिलना था। लेकिन इस गड़बड़ी की वजह से सिर्फ़ एक आदमी का 5 किलो मिल पा रहा है। राशनकार्ड में अगर हमारा नाम होता तो तीन और सदस्यों का मुफ़्त राशन भी मिलता जो नहीं मिल पा रहा है। सरकार दावा तो कर रही है लेकिन जमीन पर बहुत झोल है। शायद ही कोई ऐसा राशनकार्ड बना हो गाँव में जिसमें परिवार के सभी लोगों का नाम मिले।"

सामाजिक कार्यकर्ता नौशाद खान राशनकार्ड की समस्या के बारे में बताते हैं, कि “यहाँ बड़ी संख्या में लोगों के पास राशनकार्ड है ही नहीं। लोग आवेदन कर करके थक जाते हैं। राशनकार्ड बन जाना सब किस्मत पर है। लॉकडाउन में बहुत सारे लोगों का इश्यू भी हुआ लेकिन उसमें बड़ी गड़बड़ी सामने आ रही है। मान लीजिये किसी परिवार में पाँच सदस्य हैं, तो एक का नाम आया चार का नहीं आया। दो का नाम आया तीन का नहीं आया। नए बने लगभग हर राशनकार्ड में यह गड़बड़ी देखी जा रही है। अब ऐसे में राशनकार्ड से जिनका नाम गायब है, उन्हें न तो पहले से मिलने वाला और न ही मुफ़्त वाला राशन मिल पा रहा है। जिनका बनकर आ भी गया उन्हें परिवार के हर सदस्य के लिए राशन नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में वो लोग जो दिहाड़ी मजदूरी करते थे या जिनका रोजगार ठप हो गया है, राशनकार्ड न होने की वजह से उनके लिए भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इनलोगों को मुफ़्त राशन भी नहीं मिल पाता है। न ही कोई अधिकारी सहयोग करता है। सरकार भले दावा करती रहे लेकिन जनता यहाँ भूखे मर रही है। सरकार की यह योजना बिहार में बुरी तरह फेल रही है, क्योंकि एक बड़ी आबादी तक इसका लाभ नहीं पहुँच पा रहा है"।

स्थानीय प्रशासन से कोई मदद नहीं

सहरसा जिले के प्रवीण आनंद बताते हैं, कि “राशनकार्ड बनाने की प्रक्रिया एक रूटीन कार्य की तरह अनवरत चलनी चाहिए, लेकिन सरकार एक खास अवधि तय कर देती है जो जनहित में गलत साबित हो रही है। आज से 4 वर्ष पहले आवेदन लिया गया था तो लोगों ने बड़ी मशक्कत से आवेदन जमा किया। उनमें आशा जगी कि अब राशन कार्ड बनेगा लेकिन बनकर नहीं आया। अब आपदा के समय कभी पंचायत सचिव से, तो कभी विकास मित्र से, तो कभी बहन जीविका दीदी से आवेदन लिया गया। ऐसे में कुछ जमा हुआ और कुछ घर में ही रह गया। संयुक्त परिवार में किसी का नाम है, तो किसी का छंट गया। इससे लोगों की परेशानी और बढ़ गई है। अब इसमें सुधार कैसे होगा ताकि परिवार के हर सदस्य को राशन मिल सके, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है और न ही सरकार की तरफ़ से इसपर कोई संज्ञान लिया जा रहा है। हमारे क्षेत्र में अनुमान 20 प्रतिशत लोगों का राशनकार्ड ही बनकर नहीं आया, और 40 प्रतिशत कार्डों में गड़बड़ी पाई जा रही है"।

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60 वर्षीय मीर खां सात सदस्यीय परिवार के मुखिया हैं। लेकिन उनके राशनकार्ड में उनके अलावा किसी का भी नाम नहीं जुड़ा हुआ है। वो अपनी समस्या बताते हुए कहते हैं, “परिवार में सात लोग हैं और बस एक का नाम है। 20 रु भाड़ा लगाकर राशन लाने जाते हैं, और 20 रु लगाकर लौटते हैं। एक आदमी का 5 किलो देता है, जो वजन करने पर साढ़े तीन या चार किलो ही होता है। अब सोचिये कि इतना सा राशन लाने के लिए हमको 40 रु लगाकर आना जाना होता है। मुफ़्त राशन भी बस उसी का मिलता है जिसका राशनकार्ड में नाम दर्ज है। इतना सा से क्या हो जाएगा? ब्लॉक जा जाकर थक गए हैं, लेकिन हमारी समस्या को कोई सुनने वाला नहीं है"।

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हमने इस संबंध में बिहार सरकार के सचिव अनुपम कुमार, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के प्रबंध संचालक विनय कुमार और चीफ़ विजेलेन्स ऑफिसर उदय प्रताप सिंह से फोन, मेल और व्हाट्सएप के माध्यम से कई बार बातचीत करने की हरसंभव कोशिश की लेकिन उधर से कोई भी जवाब नहीं आया। अंत में हमने स्थानीय स्तर पर इन गड़बड़ियों को समझने के लिए गया सदर के एसडीओ सत्येंद्र प्रसाद से बात की। शुरुआत में उन्होंने यह स्वीकार करने से बिल्कुल ही मना कर दिया कि बड़ी संख्या में ऐसी गड़बड़ी हो सकती है।

फिर उन्होंने बताया कि “हाँ ऐसे कई मामले सामने आये हैं और मंत्री जी के संज्ञान में भी यह बात है। जीविका के माध्यम से राशनकार्ड बनाने के चलते शायद इतनी गड़बड़ियां हुई हैं। हालांकि हमने प्रखंड विकास पदाधिकारियों से इस मामले में बात की है, और सुधार की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं"।

क्या वन नेशन, वन राशनकार्ड से भी आ रही हैं दिक्कतें?

देश में 1 जून से वन नेशन, वन राशनकार्ड लागू है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया था कि 23 राज्यों में मौजूद 67 करोड़ राशनकार्ड धारक (जो कुल PDS आबादी का 83 फीसदी है) अगस्त, 2020 तक नेशनल पोर्टेबिलिटी के तहत आ जाएंगे। सरकार ने मार्च 2021 तक इसे शत प्रतिशत पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इससे भी आबंटन में मुश्किलें आ रही हैं?

द हिन्दू बिज़नसलाइन के वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सिन्हा बताते हैं, कि “वन नेशन, वन राशनकार्ड सुनने में काफ़ी अच्छा लगता है, कि आप कहीं से भी अपने हिस्से का अनाज उठा सकते हैं। लेकिन इसमें सबसे बड़ी दिक्कत ये आ रही है, कि वितरक ये नहीं समझ पा रहे हैं कि ऐसे कितने और लोग उनके पास आएंगे जो अबतक उनकी दुकान से राशन नहीं लेते थे। अगर कोई दुकानदार 500 लोगों को महीने का राशन देता था, तो आज वो अतिरिक्त और 200 लोगों के लिए उस तरह से तैयार नहीं है। राशन दुगुना हो जाने की वजह से उनके लिए अनाज का भंडारण भी एक समस्या बन चुकी है। ऐसे में जबतक वितरकों को इसका एक अनुमान नहीं हो जाएगा ये एक समस्या बनी रहेगी"।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के पहले तीन महीनों के रिपोर्ट कार्ड में बिहार की स्थिति बहुत बेहतर नहीं रही थी। बिहार ने हर महीने के उस सूची में अपनी जगह बनाई जो राज्य बहुत धीमी गति से अनाज का वितरण कर रहे थे। दाल के वितरण पर भी राज्य में काफ़ी सवाल उठ रहे थे।

लोगों की शिकायत थी कि दाल वितरण में डीलरों की पूरी मनमानी चलती है। इस रिपोर्ट में जब कई राज्य जून के महीने में 80 फीसदी से भी ज़्यादा दाल का वितरण कर चुके थे, तब बिहार ने अपना खाता भी नहीं खोला था। बिहार में 1.41 करोड़ पुराने और 23 करोड़ नए राशनकार्ड सहित 1.64 करोड़ सक्रिय राशनकार्ड हैं।

खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने इसी सप्ताह में 1 जुलाई से सितंबर के पहले सप्ताह तक के वितरण का रिपोर्ट कार्ड जारी किया है। राज्यों ने इस बीच 99.73 मीट्रिक टन अनाज का उठाव किया है, जिसमें 69.07 लाख मीट्रिक टन का वितरण कर दिया गया है। जुलाई माह में लाभुकों की संख्या जहाँ 72.20 करोड़, अगस्त में 61.13 करोड़ वहीं सितंबर के पहले सप्ताह तक 4.18 करोड़ लोगों को इसका लाभ मिल चुका है। रिपोर्ट कार्ड में बताया गया है, कि जुलाई, अगस्त और सितंबर का वितरण अभी भी जारी है।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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