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बिहार : पंचयती चुनाव टले लेकिन पंचायतों की ज़िम्मेदारी अधिकारियों को सौंप जाने को लेकर विपक्ष का विरोध

बिहार में कोरोना संक्रमण को देखते हुए पंचायत चुनाव को टाल दिया गया है। लेकिन बिहार सरकार के इस निर्णय को लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा है। विपक्ष का आरोप है सरकार आपद में अवसर देखकर सारी शक्ति अपने पास ले रही है।
बिहार : पंचयती चुनाव टले लेकिन पंचायतों की ज़िम्मेदारी अधिकारियो को सौंप जाने को लेकर विपक्ष का विरोध
image courtesy:navbharat times

देश के कई राज्यों से सीख लेते हुए बिहार में कोरोना संक्रमण को देखते हुए पंचायत चुनाव को टाल दिया गया है। नीतीश सरकार की कैबिनेट की मंगलवार को हुई बैठक हुई, जिसके बाद ये साफ हो गया है कि बिहार में फिलहाल पंचायत चुनाव नहीं होने वाला और ना ही पंचायत प्रतिनिधियों के कार्यकाल में विस्तार किया जाएगा। विपक्ष की मांग थी की चुनाव टाल कर मुखिया के कार्यकाल को बढ़ा दिया जाए परन्तु सरकार ने चुनाव तो टाल लेकिन मुखियाओं के कार्याकाल नहीं बढ़ाया। बिहार सरकार के इस निर्णय को लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा है। विपक्ष का आरोप है सरकार आपद में अवसर देखकर सारी शक्ति अपने पास ले रही है। हालाँकि सत्तधारी दल के नेता भी विपक्ष मांग के साथ सहमति ज़ाहिर करते हुए दिख रहे थे।

क्या है पूरा मामला

आपको सनद रहे बिहार राज्य में ढाई लाख के करीब पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल 15 जून को खत्म हो जाएगा। ऐसे में चिंता इस बात को लेकर थी कि अब पंचायत में विकास कार्य कौन करेगा ? इसके लिए विपक्ष ने वर्तमान मुखिया को ही छह महीने के लिए सेवा विस्तार देने की मांग की थी। ऐसे में मंगलवार को बिहार कैबिनेट की बैठक के बाद पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने बताया कि पंचायतों में परामर्शी समिति की नियुक्ति होगी। उन्होंने बताया कि नीतीश सरकार ने पंचायती राज अधिनियम 2006 में संशोधन किया है। अधिनियम की धारा 14, 39, 66 और 92 में संशोधन किया गया है।

मीडिया ऐसी चर्चा है कि परामर्श समिति में अफसर और वर्त्तमान पंचायत प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा।

विपक्ष कर रहा है इसका विरोध

मुख्य विपक्षी राष्ट्रिय जनता दल (राजद) सहित वाम दलों ने भी इस प्रक्रिया की आलोचना की और इसे तनशाहीपूर्ण निर्णय बताया। राजद के नेता और नेता प्रतिपक्ष तेजश्वी यादव ने पहले ही सरकार से इस निर्णय न लेने की अपील की थी। उन्होंने20 मई को ही ट्वीट कर सरकार से मांग किया था कि कोरोना महामारी के आलोक में पंचायत चुनाव स्थगित होने के कारण आगामी चुनाव तक त्रिस्तरीय पंचायती प्रतिनिधियों का वैकल्पिक तौर पर कार्यकाल विस्तारित किया जाए जिससे की पंचायत स्तर पर कोरोना प्रबंधन के साथ-साथ विकास कार्यों का बेहतर समन्वय के साथ क्रियान्वयन हो सके।'

नेता प्रतिपक्ष ने सरकार से कहा था कि यदि पंचायत प्रतिनिधियों की जगह प्रशासनिक अधिकारी पंचायतों का जिम्मा संभालेंगे तो यह भ्रष्टाचार और तानाशाही बढ़ाएगा। उन्होंने कहा, 'पंचायत लोकतंत्र की बुनियादी इकाई है। अगर निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों की जगह प्रशासनिक अधिकारी पंचायतों का जिम्मा संभालेंगे तो यह भ्रष्टाचार व तानाशाही बढ़ाएगा। अब गांव स्तर पर भी सरकारी अफसर फाइल देखने लगेंगे तो गरीबों की सुनवाई नहीं होगी। लोकतंत्र के लिए चुने हुए लोग जरूरी हैं।'

इसी तरह इस फैसले के बाद माकपा राज्य सचिव अवधेश कुमार ने कहा यह फैसला आत्मघाती होगा।

जबकि सत्ताधारी दल पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से बीजेपी के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव भी विपक्ष के स्वर में स्वर मिलाते दिखे थे। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक पत्र लिखा था । पत्र में उन्होंने पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल बढ़ाने की मांग रखी थी । उन्होंने चिठ्ठी के द्वारा मांग की थी कि जब तक चुनाव नहीं हो जाते और नए जनप्रतिनिधि नहीं आ जाते, तब तक के लिए पुराने जन प्रतिनिधियों का कार्यकाल बढ़ाया जाए।

3 जून को माले करेगा एक बार फिर राज्यव्यापी प्रतिवाद

भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने पंचायतों को भंग किए जाने के सरकार के निर्णय की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि बिहार की जनता की मांग को सरकार ने अनसुना किया है और नीतीश कुमार केंद्र सरकार की तरह तानाशाही चला रहे हैं। जनप्रतिनिधियों की भूमिका को कम करना इस भयावह दौर में आत्मघाती साबित होगा।

अपने बयाना में माले ने कहा "कोविड के प्रति जागरूरकता अभियान में पंचायत प्रतिनिधियों के अनुभव का बेहतर इस्तेमाल हो सकता था, लेकिन सरकार ने इसपर तनिक भी ध्यान नहीं दिया. यदि पंचायतों के कार्यकाल बढ़ाने का कोई नियम नहीं था, तो क्या सरकार अध्यादेश नहीं ला सकती थी! दरअसल, सरकार की मंशा ही कुछ और थी। "

माले कहा वो इस अलोकतांत्रिक निर्णय के खिलाफ एक बार फिर राज्यव्यापी विरोध में उतरेगी। आगामी 3 जून को पूरे राज्य में प्रतिवाद किया जाएगा।  

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