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बिहार : नीतीश के बयान के बाद भी सवाल बने हुए हैं

बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले नीतीश कुमार के इस ऐलान के बाद भी यह सवाल बना हुआ है कि उनका नागरिकता संशोधन क़ानून पर क्या रुख है।
Bihar

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 25 फरवरी को ऐलान किया कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा और एनपीआर 2010 की तर्ज पर ही किया जाएगा। लेकिन बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले नितीश कुमार के इस ऐलान के बाद भी यह सवाल बना हुआ है कि उनका नागरिकता संशोधन क़ानून पर क्या रुख है।

25 फरवरी को इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान भाजपा विधायकों ने कई बार हंगामे और अशोभनीय हरकतें कर सदन का वातावरण बेहद तनावपूर्ण बना दिया। लेकिन अंततोगत्वा सदन ने सर्वसम्मति से तय किया कि बिहार में एनआरसी नहीं लागू होगा। अलबत्ता एनपीआर को लेकर नितीश कुमार ने चिरपरिचित अंदाज़ में ढुलमुल रवैया अपनाते हुए कहा कि बिहार में 2010 की तर्ज़ पर इसे लागू किया जाएगा।

बिहार में एनआरसी नहीं लागू होने के फैसले के संदर्भ में विधान सभा प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया, " 'एक इंच भी नहीं हिलनेवालों’ को आज विधान सभा में हुए सर्वसम्मत निर्णय ने हज़ार किमी तक हिला दिया। वे नहीं जानते हैं कि बिहार की धरती कितनी आंदोलनकारी रही है।"            एनआरसी – सीएए – एनपीआर थोपे जाने का मुखर विरोध कर रहे भाकपा माले और इंसाफ मंच के तत्वाधान में पिछले एक माह से गाँव गाँव अभियान जा रहा था। जिसका एक चरण सम्पन्न हुआ 25 फरवरी को आहूत विधान सभा मार्च से।

मौसम के बदलते मिजाज का सामना करते मूसलाधार बारिश के बीच भी प्रदेश के कोने कोने से आए हजारों मजदूर-किसानों ने मार्च निकाला। “नितीश सरकार होश में आओ, एनपीआर पर रोक लगाओ तथा जल–जीवन–हरियाली योजना के नाम पर गरीबों को उजाड़ना बंद करो!’ के नारे लगाता हुआ यह मार्च नितीश शासन द्वारा गांधी मैदान के आबंटन को अचानक से रद्द कर देने के कारण चितकोहड़ा से निकाला गया। जिसे विधान सभा के सामने गर्दनीबाग एक नंबर गुमटी से पहले ही पुलिस द्वारा बैरिकेड लगाकर रोके जाने के बाद मार्च वहीं एक प्रतिवाद सभा में तब्दील हो गया।

सभा को संबोधित करते हुए माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने मूसलाधार बारिश का सामना करते हुए विधान सभा मार्च सफल बनाने के लिए अभिनंदन किया। इस कार्यक्रम को ऐतिहासिक बताते हुए कहा, "आज जिस समय सड़कों पर आप हजारों की संख्या में बिहार में एनपीआर–एनआरसी–सीएए नहीं लागू करने की मांग पर इकट्ठे हुए हैं और उसी समय माले के विधायकों के ही कार्यस्थगन प्रस्ताव पर बिहार विधान सभा सर्वसम्मति से उक्त काले क़ानूनों को बिहार में नहीं लागू करने का फैसला लेती है। यह जनता के आंदोलन की ही जीत है।

लेकिन सदन में मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा एनपीआर नहीं लागू करने की घोषणा करने की बजाय इसे 2010 की तर्ज़ पर लागू करने का बयान आधा अधूरा फैसला है। यदि नितीश सरकार जल्द से जल्द इसे पूरी तरह से खारिज नहीं करती है तो प्रदेश की जनता को गाँव गाँव में ग्राम सभा बुलाकर इसे निरस्त्र करना होगा।"

नीतीश सरकार द्वारा जल–जीवन–हरियाली योजना को गरीब विरोधी करार देते हुए इसके नाम पर पूरे प्रदेश में गरीबों को उजाड़े जाने को बिहार के गरीबों से विश्वासघात बताते हुए अविलंब रोक लगाने की मांग की।

सभा को माले विधायक दल के नेता महबूब आलम , विधायक सत्यदेव राम व सुदामा प्रसाद ने संबोधित करते हुए कतिपय विपक्षी पार्टियों – नेताओं द्वारा सदन में मजबूती से नहीं खड़ा होने की जानकारी दी। ऐपवा राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि आज शाहीन बाग़ आंदोलन पूरे देश में एक नयी मिसाल बन गया है। जिसमें महिलाओं की अगुवा भागीदारी और सक्रिय भूमिका एक नयी परिघटना है। क्योंकि अबतक मानुवादी विचारधारा ने उन्हें बंद घेरे में सीमित कर रखा था। सभा को इंसाफ़ मंच के नेताओं ने भी संबोधित किया।

तमाम वक्ताओं ने कहा, "जो ये दुष्प्रचारित करते हैं कि एनआरसी–सीएए–एनपीआर का विरोध सिर्फ एक क़ौम के लोग ही कर रहें हैं, वे आज यहाँ आकर देख लें कि किस तरह से गंगा–जमुनी साझी तहज़ीब को मानने वाले लोग हजारों हज़ार की तादाद में यहाँ इकट्ठे होकर विरोध कर रहे हैं। दिल्ली से उठी शाहीन बाग़ प्रतिवाद की चिंगारी आज पूरे देश में हजारों शाहीन बाग की मशाल बन चुकी है। जिसमें सभी समुदायों–संप्रदायों के लोग शामिल हो रहें हैं।"

आनेवाला समय इस बिहार के विधानसभा चुनाव का भी है। पूरे राज्य में एनआरसी–सीएए-एनपीआर समेत कई अन्य ज्वलंत जन मुद्दों पर जारी आंदोलनों का सिलसिला भी कोई न कोई राजनीतिक स्वरूप लेगा। जो संभवतः इस जटिलतम दौर में पूरे देश के लिए फिर से एक नया संदेश बने!

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