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बिहार : ‘सम्पूर्ण क्रांति दिवस’ पर देश, संविधान बचाने का संकल्प; महागठबंधन के हज़ारों कार्यकर्ता सम्मेलन में जुटे

सम्मलेन द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्त्ताव लिया गया कि आगामी 7 अगस्त को पूरे बिहार में महंगाई, बेरोजगारी तथा बिहार के गरीबों पर चलाये जा रहे बुलडोज़र राज के खिलाफ महागठबंधन के बैनर तले व्यापक स्तर पर संयुक्त धरना-प्रदर्शन कार्यक्रम किये जायेंगे।
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हर बार की भांति इस बार भी ‘सम्पूर्ण क्रांति दिवस’ पर 5 जून को बिहार की राजधानी पटना में संपन्न हुए सिर्फ सरकारी-राजकीय रस्मी आयोजनों की खबर को ही मीडिया ने प्रमुखता दी। लेकिन इसी दिन राजधानी स्थित गाँधी मैदान से सटे बापू सभागार के विशाल सभाकक्ष में में जुटे ‘लाल-हरा गठबंधन’ के हजारों-हज़ार कार्यकर्त्ताओं की उत्साहपूर्ण भागीदारी वाले कार्यक्रम की खबर अखबारों की भीतरी पन्नों में प्रकाशित कर, मीडिया ने अपने ‘गोदी मीडिया‘ चरित्र को ही उजागर कर दिया। 

भाजपा विरोधी विपक्षी महागठबंधन आहूत विशाल जन भागीदारी वाले इस आयोजन की विशिष्टता को कत्तई नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है। क्योंकि बिहार के सियासी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब समाजवादी-सामाजिक न्याय की राजनितिक धारा और वामपंथी राजनितिक धारा के शीर्ष नेतृत्व से लेकर गावों के ज़मीनी कार्यकर्त्ता तक सभी एक मंच और सभागार में एकत्रित हुए हों।

महागठबंधन के प्रमुख घटक राष्ट्रीय जनता दल, भाकपा माले, सीपीआई और सीपीएम के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इस ‘कार्यकर्त्ता सम्मलेन’ में ‘लाल-हरा’ कार्यकर्त्ताओं की उत्साहजनक भागीदारी इतनी अधिक रही कि सभागार में बैठने की जगह नहीं मिलने पर सैकड़ों लोग सीढ़ियों और फर्श पर ही बैठ हुए देखे गए। 

कार्यकर्ता सम्मलेन की शुरुआत राजद तथा वाम दलों के केन्द्रीय नेताओं द्वारा दीप प्रज्जवलित कर की गयी।

प्रमुख वक्ताओं में भाकपा माले राष्ट्रिय महासचिव ने महागठबंधन के समक्ष देश व संविधान को बचाने के बड़े मकसद के महत्व को रखांकित करते हुए कहा कि सम्पूर्ण क्रांति के ज़माने में तो कुछ दिनों का घोषित आपातकाल लगा था और वो ख़त्म हो गया। आज ‘अच्छे दिन’ के नाम पर अघोषित आपातकाल है, जो कुछ समय के लिए नहीं बल्कि स्थायी प्रकृति का है, जिसके दमन के नए नए औज़ार को देश ने पहले कभी नहीं देखा, जिसके द्वारा जब संविधान को ही रौंदा जा रहा है तो सबसे बड़ा सवाल है कि देश रहेगा या नहीं।

वक्ताओं ने रेखांकित किया कि 1992 में जब बाबरी मस्ज़िद गिराई जा रही थी तो कुछ लोग उसे केवल सम्प्रदायिकता बताकर कह रहे थे कि हमलोग भाईचारे से इससे निपट लेंगे। लेकिन हमने उस समय भी कहा था कि यह महज साम्प्रदायिकता नहीं है, बल्कि सामप्रदायिक फासीवाद है जो देश की परिभाषा और पहचान मिटाने पर आमादा है। देश की पहचान के प्रतिक ताजमहल और क़ुतुब मीनार तक निशाने पर आ गए हैं। जिसके खिलाफ बच्चों-लोगों के दिमाग में ज़हर भरा जा रहा है कि ये सब गुलामी के प्रतिक हैं। और यह सब हो रहा है अमृत-महोत्सव के नाम पर। ये आज हमारे सामने सबसे बड़े सवाल हैं।

वक्ताओं ने 1974 में हुए सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन दौर की चर्चा करते हुए कहा कि उससे महज सात साल पहले ही 1967 में देश की पूरी राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखा गया था। जो सामाजिक बदलाव की लड़ाई में मील का एक पत्थर है। जहाँ से हमारी पार्टी निकली, नक्सलबाड़ी आन्दोलन, की धारा जो गरीबों का राज समाज बनाने और सामन्ती सत्ता को बदल कर गरीबों का मान सम्मान स्थापित करने की लड़ाई का संकल्प लिया था। उसी कड़ी में ’74 का भी आन्दोलन आता है। शहरों में छात्र-नौजवानों का उभार था तो गांवों में गरीबों का उभार। ’74 की लड़ाई में तीनों कम्युनिस्ट पार्टियां नहीं थीं, लेकिन 48 साल बाद आज हम सभी एक जगह पर हैं। इस बीच गंगा-कोसी-सोन में बहुत पानी बह गया है। जेपी आन्दोलन को कुचलने के लिए सत्ता ने दमन का सहारा लिया था तो हमारे आन्दोलनों को को भी कुचलने के लिए ज़बरदस्त दमन अभियान चलाया। दोनों आन्दोलन अलग अलग थे लेकिन राज सत्ता ने दोनों को ही दबाने का काम किया।       

आज जेपी आन्दोलन की दो धारा हमारे सामने हैं, एक धारा जेपी से बीजेपी वाली है जो इस सभागार में नहीं है। जो बाहर देश को बर्बादी के रस्ते पर धकेल रही है। दूसरी धारा, बीजेपी से लड़ने के लिए एक नये तरह का गठबंधन बना रही है। पिछले डेढ़ साल से हम सभी एकसाथ चल रहें हैं लेकीन अभी का समय सिर्फ चुनावी महागठबंधन बनाने, चंद सीटें और सत्ता परिवर्तन मात्र के लिए नहीं है, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के महा मकसद के लिए होना चाहिए। जो हिंसा और डर के खिलाफ व्यापक जनता में साहस, उम्मीद और एकता को बढ़ाये। ऐसा महागठबंधन बने जो जनता के रोज़मर्रे के सवालों पर ज़मीनी आन्दोलन खड़ा कर बिहार को बुलडोज़र राज की भूमि नहीं बनने दें। आज हम एक नयी शुरुआत की उम्मीद करते हैं और इस महासम्मेलन को इसी रूप में देखना चाहिए। 

इनके उपरांत महागठबंधन के प्रमुख घटक दल राजद की ओर से प्रमुख वक्ता के तौर पर बोलते हुए तेजस्वी यादव ने भाजपा विरोध के मुद्दे पर प्रतिबद्धता जताते हुए कहा कि लालू प्रसाद जी ही ऐसे राजनेता हैं जो आज भी भाजपा के समक्ष झुकने को तैयार नहीं हैं। उन्हें यदि परिवारवाद चलाना ही होता तो वे भाजपा से समझौता कर लिए होते और मैं मुख्यमंत्री रहता। कार्यक्रम में महागठबंधन की ओर से जदयू-भजपा कुशासन के खिलाफ जारी किये गए ‘आरोप पत्र’ की बातों को दुहराते हुए कहा कि ‘चोरी से आई चोर सरकार, ले डूबी पूरा बिहार’। डबल इंजन के नाम पर चल रही ज़र्ज़र इंजन की सरकार द्वारा देश पर थोपी जा रही तानाशाही के खिलाफ हमें पूरी एकजुटता के साथ ज़मीनी संघर्ष तेज़ करते हुए भजपा-जदयू शासन की हर चुनौती का मुहतोड़ जवाब देना होगा।

इसके पूर्व राजद संस्थापक लालू प्रसाद जी का सम्मेलन के नाम वीडियो सन्देश प्रस्तुत किया गया। जिसमें उन्होंने कहा कि अस्वस्थ्य होने के कारण ही वे नहीं पहुँच सके। सम्पूर्ण क्रांति दिवस की महत्ता पर जेपी के विचारों की चर्चा करते हुए कहा कि- उन्होंने कहा था कि लड़ाई लम्बी है और हमें समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को मुख्यधारा में लाना होगा। मैंने कई बार कहा है कि जिस प्रकार से भाजपा सरकार काम कर रही है, देश में एक सिविल वॉर की स्थिति बन रही है। सम्मेलन में आये सभी वाम दलों के नेताओं-कार्यकत्ताओं को विशेष रूप से संबोधित करते हुए कहा कि हमें तानाशाही और फिरकापरस्ती के राज के खिलाफ पूरी तरह से एकजुट होकर लड़ना है। 

सम्मेलन को सीपीआई के राष्ट्रीय महासचिव डी राजा ने भी संबोधित करते हुए सांप्रदायिक व लोकतंत्र विरोधी सरकार के खिलाफ व्यापक एकता और कारगर महागठबंधन बनाने पर जोर दिया।

सीपीआई के वरिष्ठ नेता अतुल अंजान, वरिष्ठ माले नेता केडी यादव, माले पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा व राजाराम सिंह व सीपीएम् राज्य सचिव लालन चौधरी के अलावे वरिष्ठ राजद नेता शिवानन्द चौधरी, राज्य अध्यक्ष जगदानंद समेत महागठबंधन के सभी घटक दलों के कई अन्य नेताओं ने भी संबोधित किया।

महागठबंधन की ओर से सभी मंचासीन नेताओं द्वारा जदयू-भाजपा सरकार के खिलाफ ‘आरोप पत्र’ जारी किया गया। ‘लुटेरी सरकार, परेशान बिहार’ शीर्षक वाले ‘आरोप पत्र’ में कहा गया है कि- बिहार की मौजूदा सरकार झूठे वादों और निष्क्रियता की ऐसी सरकार रही है जिसने डेढ़ दशक से भी अधिक के शासनकाल में पिछड़ापन को ही बिहार की पहचान बना दिया है। 34 पृष्ठ वाले आरोप पत्र में सभी मोर्चों पर सरकार की विफलताओं का तथ्यात्मक विवरण भी प्रस्तुत किया गया है।

सम्मलेन द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्त्ताव लिया गया कि आगामी 7 अगस्त को पूरे बिहार में महंगाई, बेरोज़गारी तथा बिहार के गरीबों पर चलाये जा रहे बुलडोज़र राज के खिलाफ महागठबंधन के बैनर तले व्यापक स्तर पर संयुक्त धरना-प्रदर्शन कार्यक्रम किये जायेंगे। 

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