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जीविका दीदीयों ने खोला नितीश कुमार सरकार के खिलाफ़ मोर्चा: कर्ज़ माफ़ी करो वरना समूह से वापसी

“हमें आत्मनिर्भर बनाने के नाम पर कर्जे के चंगुल में फंसा दिया गया है। यहाँ वहाँ बुलाकर ट्रेनिंग देने का नाटक किया जाता है और आने जाने का कुछ भाड़ा और दो समोसा देकर भेज दिया जाता है।”
जीविका दीदीयों ने खोला नितीश कुमार सरकार के खिलाफ़ मोर्चा: कर्ज़ माफ़ी करो वरना समूह से वापसी

अपने राजनीतिक फ़ायदों के पूरा होते ही जनता को ठेंगा दिखा देना इस दौर की सत्ता सियासत का स्थायी चरित्र सा बन गया है। तभी तो बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार जो अक्सर अपने संबोधनों में बिहार स्थित स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को ‘जीविका दीदी’ नामकरण कर ग्रामीण महिलाओं को सामाजिक सम्मान दिलाने का श्रेय लेते हैं। साथ ही लाखों ग्रामीण महिलाओं को जीविका दीदी बनाकर अपनी सरकार द्वारा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का दावा भी करते हैं। लेकिन 5 मार्च को जब बिहार के कोने-कोने से हजारों की तादाद में यही जीविका दीदियां जब राजधानी पहुंची तो उन्हें पूछा तक नहीं।

जो निजी बैंकों व माइक्रो फाइनान्स कंपनियों के कारिंदों द्वारा कर्जवसूली के नाम पर किए जा रहे अपमानजनक दुर्व्यवहारों व धमकियों से त्रस्त होकर तथा अपनी रोजी रोटी के सवालों की फरियाद मुख्यमंत्री तक पहुँचाने के लिए विधान सभा मार्च में पहुंची थीं। न सिर्फ विधान सभा के समक्ष पहुँचने से पहले ही पुलिस द्वारा गर्दनीबाग में लोहे के बड़े बड़े गेट लगाकर रोक दिया गया बल्कि इनसे ज्ञापन लेने की सामान्य औपचारिकता भी नहीं पूरी की गयी।  क्षुब्ध होकर उन्होंने वहीं धूप में ही अपनी प्रतिवाद सभा की और इसके माध्यम से सरकार के खिलाफ अपना मोर्चे का ऐलान किया। जिसमें बुजुर्ग से लेकर प्रायः हर उम्र की ग्रामीण महिलाओं ने अपनी व्यथा बतायीं।

अपना बर्तन बेच दो छप्पर बेच दो या देह बेचो, कर्ज़ तो चुकाना ही पड़ेग -वैशाली की रिंकू देवी अपनी व्यथा बताते बताते भावुक हो पड़ीं। नवादा से आयीं शांति देवी ने कहा कि 2015 से ही हम समूह से जुड़े और घरेलू संकटों के कारण लोन लिया था। जिसका कर्ज़ हम चुका रहे थे लेकिन कोरोना के लॉकडाऊन ने घर की आर्थिक दुर्दशा ऐसी कर दी है कि खाने को भी लाले पड़ गए हैं। अब हर दिन कर्ज़ वसूली के लिए घर पर चढ़कर धमकी और अनाप शनाप गालियां दी जा रहीं हैं । सरकार कोई रोजगार देगी तभी तो हम कर्ज़ चुका सकेंगे।

अगियांव भोजपुर की जीविका सीएम दीदी ने बताया कि 2010 से ही हम समूह से जुड़कर काम कर रहें हैं और आज जब ब्लॉक–निजी बैंकों की मनमानी नहीं चलने दे रहें हैं तो हम जैसों को हटाकर नयी बहाली की जा रही है। गया की मंजू देवी ने तो आक्रोशित लहजे में कहा कि 10–10 रु. बचत कर हम लाखों रुपये सरकार की तिजोरी में भरते हैं लेकिन आज तक हमको क्या फायदा मिला। उन्होनें आगे कहा, “सरकार को हम जिताते और उसकी सभी योजनाओं को गांवों तक पहुंचाते हैं। लेकिन आज जब रोजी रोटी गंवा बैठे हैं तो हमारी कोई सुध नहीं ली जा रही। हमें आत्मनिर्भर बनाने के नाम पर कर्जे के चंगुल में फंसा दिया गया है। यहाँ वहाँ बुलाकर ट्रेनिंग देने का नाटक किया जाता है और आने जाने का कुछ भाड़ा और दो समोसा देकर भेज दिया जाता है।”

बुजुर्ग जीविका दीदी सोनकली देवी ने ठेठ मगही अंदाज़ में कहा कि महिला स्वयं सहायता समूह बनाकर मोदी–नितीश हमें गुलाम बना रहें हैं। इससे छूटकारा तभी संभव है जब सभी ग्रामीण महिलाएं एकजुट होकर समूह को ही छोड़ दें।

ऐसी दर्जनों जीविका दीदियों ने अपना दर्द सुनाते हुए कहा कि सरकार सिर्फ अपने मतलब और वोट के लिए हमारा इस्तेमाल करती है। कोरोना महामारी के नाम पर बड़ी बड़ी धनवान कंपनियों के अरबों–करोड़ों के क़र्ज़े तो माफ कर देती है लेकिन हम गरीबों को थोड़े से कर्ज़ों के लिए सरेआम अपमानित करवा रही है। उक्त महिलाओं ने यह भी कहा कि हम जो घरों में बैठी घोर गरीबी झेल रहीं हैं, यदि सरकार हमें रोजगार और बाज़ार उपलब्ध कराये तो हम फौरन क़र्ज़े भी चुका दें।  

स्वयं सहायता समूह संघर्ष समिति और ऐपवा के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित जीविका दीदियों के विधान सभा मार्च को संबोधित करते हुए बिहार विधान सभा प्रतिपक्ष के भाकपा-माले विधायक दल नेता महबूब आलम ने कहा, “आज आप के वोटों से जीतने वाले विधायकों को लोन लेने पर महज 5% ही ब्याज देना होता है लेकिन आप जो इतने गरीब हैं फिर भी आपसे कई गुना अधिक दर का ब्याज वसूला जा रहा है। इस भेदभाव और आपकी गाढ़ी कमाई की लूट के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना ही होगा।” 

माले के विधायक व किसान नेता सुदामा प्रसाद ने बताया “आपके सवालों को लेकर विधान सभा में ध्यानाकर्षण का सवाल तो दिया है लेकिन अभी तक स्पीकर व सरकार ने उसपर कोई संज्ञान नहीं लिया है।“

जीविका दीदियों को संबोधित करने पहुंचे माले विधायक इनौस नेता मनोज मंज़िल व आइसा महासचिव व विधायक संदीप सौरभ ने भी अपने सम्बोधन में उनकी मांगों पर सड़क से लेकर सदन तक में आवाज़ उठाने की संकल्प व्यक्त किया । साथ ही कहा कि केंद्र व बिहार की भाजपा–जदयु सरकार पूरी तरह से गरीब विरोधी होने के साथ साथ रोजगार विरोधी भी है। पिछले दिनों इसी राजधानी में रोजगार मांगने आए बिहार के छात्र युवाओं पर लाठीयां बरसायीं गईं।  

प्रदर्शनकारी जीविका महिलाओं से सरकार–प्रशासन के किसी भी प्रतिनिधि द्वारा उनका ज्ञापन नहीं लिए जाने पर तीखा विरोध प्रकट करते हुए माले विधायाकों के माध्यम से भेजे गए माँगपत्र को वहीं पढ़कर सुनाया गया।  इसमें प्रमुख मांगें हैं:

  • कोरोना माहामारी से उपजे संकटों के मद्दे नज़र, आंध्र प्रदीश सरकार की तर्ज़ पर सभी समूह सदस्य महिलाओं के कर्ज़ों की माफी हो।
  • 1 लाख तक के कर्ज़ को ब्याज रहित व 10 लाख तक के कर्ज़ के लिए 0 से 4 % ही ब्याज वसूला जाए।
  • स्वयं सहायता समूह की सभी महिलाओं को अविलंब सम्मानजनक रोजगार, उनके उत्पादों के उचित मूल्य पर खरीद के साथ साथ बाज़ार उपलब्धता की गारंटी हो।
  •  निजी बैंकों व माइक्रो फायनान्स कंपनियों की मनमानी पर तत्काल रोक लगाई जाए।

कर्ज़ नियमन के लिए राज्य स्तरीय विशेष प्राधिकार का गठन किया जाए।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के महज तीन दिन पहले ही राजधानी पटना पहुंची बिहार की हजारों जीविका दीदियों के आंदोलनकारी तेवर देखकर ये कहा ही जा सकता है कि वर्षों पहले कामगार महिलाओं द्वारा स्थापित नारी शक्ति की ऊर्जा आज भी कायम है। ऐसे में वे महिलाएं जिन्हें स्वयं सहायता समूह योजना ने उनके बंद घरों के चौखट से बाहर निकाला व जागरूक बनाया है, अब अपने मान सम्मान व रोजी रोटी के सवालों पर सरकार और नए महाजन बनकर आ रहे निजी बैंक–माइक्रो फायनान्स कंपनियों के खिलाफ उनका मोर्चा पीछे लौटनेवाला नहीं है।  

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