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बजट 2023-24: बजट में अनदेखी से नाराज़ महिला,युवा और किसान, जनसंगठनों का ज़ोरदार प्रदर्शन

मोदी सरकार भले ही इस बजट को ऐतिहासिक बता रही हो, लेकिन हरियाणा-पंजाब के कई ज़िलों में बजट की प्रतियां जलाई गईं, सरकार का पुतला फूंका गया और कई इलाक़ों  में ज़ोरदार प्रदर्शन भी देखने को मिले।
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संसद में वित्त वर्ष 2023-24के लिए आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे महिलाओं, युवाओं और किसानों का बजट कहा था। संसद के बाहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ऐतिहासिक बजट बताते हुए महिलाओं, युवाओं और किसानों के लिए हितकारी बताया था। हालांकि अब मोदी सरकार के इस अमृत काल के पहले पहले बजट का सबसे ज्यादा विरोध भी महिला, युवा और किसान ही कर रहे हैं। बजट पेश होने के दूसरे दिन गुरुवार, 2 फरवरी को हरियाणा-पंजाब के कई जिलों में बजट की प्रतियां जलाई गईं, सरकार का पूतला फूंका गया और कई इलाकों में ज़ोरदार प्रदर्शन भी देखने को मिले।

बता दें कि इस प्रदर्शन में महिला-किसान और नागरिक संगठनों के अलावा भारी संख्या में आम लोगों ने हिस्सा लिया। सभी ने एक सुर में सरकार के इस बजट को महिला-मज़दूर और किसान विरोधी बताया। प्रदर्शन में शामिल लोगों ने बजट में हाशिए पर खड़े लोगों की अनदेखी और केवल पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए सरकार की विकास नीति के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी भी की।

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हिसार में जन संगठनों ने बजट की प्रतियां जलाईं

हरियाणा के हिसार में जन संगठनों ने केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए बजट की प्रतियां जलाकर अपना विरोध दर्ज करवाया। अखिल भारतीय किसान सभा, सीटू और जनवादी महिला समिति के बैनर तले हुए इश प्रदर्शन में सरकार के बजट को गरीब-मज़दूर, किसान और महिला विरोधी बताया गया। जन संगठनों ने कहा कि सरकार के इस अमृत काल में पेश बजट में आम नागरिक के लिए कुछ भी खास नहीं है, नाही कोई राहत मिली है। पिछले बजट की तरह इस बार के बजट में केवल पूंजीपतियों को ही फायदा पहुंचाने की कोशिश की गई है।

किसान सभा के राज्य सचिव दिनेश सिवाच ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि देश के वित्त मंत्री से देशवासियों को उम्मीद थी कि ये मौजूदा सरकार का अंतिम बजट है इसलिए आमजन को ज्यादा से ज्यादा सुविधा मिलेगी। लेकिन पिछले बजट की तरह ही ये बजट भी उद्योगपतियों के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ है।

बयान में कहा गया कि इस बार मनरेगा का बजट कम कर दिया गया है। देश में खाद कमी के बावजूद बजट में खाद के बजट से 50 हजार करोड़ रूपए कम कर दिए गए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिलाओं से जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं से सरकार ने बजट में कटौती की है। इसके ्लावा किसानों को उम्मीद थी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार बड़ा निर्णय लेगी लेकिन सभी को निराशा ही हाथ लगी। सरकार अपने घाटे को पूरा करने के लिए आमजन की सुविधाएं में कटौती करने का काम कर रही है। ये आमजन के लिए बहुत निराशाजनक है।

प्रदर्शन में शामिल अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन ने अपने बयान में कहा कि ये बजट देश की महिलाओं और कामकाजी लोगों को धोखा देने का प्रयास है। बजट के नाम पर सरकार ने झूठ फैलाने और यह दिखाने की कोशिश है कि सब कुछ ठीक है और लोग समृद्ध हो रहे हैं। लेकिन हमें सरकार के इस झूठे प्रचार की तुलना मौजूदा सामाजिक वास्तविकता के साथ करने की जरूरत है।

बजट में महिलाओं के साथ धोखा

संगठन के मुताबिक प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ने इस बजट को महिलाओं के हक का बजट बताया है, लेकिन इसके आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं। जहां तक महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का खर्च पूरे बजट एक्सपेंडिचर का लगभग 0.05% है। इसमें से लगभग 80% सक्षम आंगनवाड़ी पोषण 2.0 योजना के लिए है। सुरक्षा मुद्दों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा को संबोधित करने वाली योजनाओं के बजट में सबसे कम वृद्धि की गई है। इसके अलावा, महिला खिलाड़ियों के लिए कोई खास प्रावधान नहीं है, जिनकी सुरक्षा हाल के दिनों में एक बड़ी चिंता बन गई है।

महिला सम्मान बचत योजना पर एडवा ने कहा कि ये केवल कुछ ही महिलाओं को कवर करने जा रही है जो बचत कर सकती हैं। इस प्रकार की वित्तीय योजनाएं कर्ज के दलदल में धसी महिलाओं की समस्या को दूर करने के लिए नाकाफी है। इसके अलावा बजट में मनरेगा जैसी रोजगार सृजन योजनाओं के लिए आवंटन में 33% की कटौती की गई है। जो वास्तव में महिला-उन्मुख योजनाओं पर सीधा हमला है।

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पंजाब में किसानों ने कई जगह किया जोरदार प्रदर्शन

किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के बैनर तले पंजाब के होशियारपुर, अमृतसर समेत 11 जिलों में बजट के विरोध में प्रदर्शन की खबरे हैं। यहां कई जगहों पर केंद्रीय बजट के विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का पुतला फूंक कर विरोध प्रदर्शन किया गया। इस रोष प्रदर्शन में भारी संख्या में किसानों का हुजूम दिखा और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी भी हुई।

प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए जोन प्रधान टांडा अरविंदर सिंह राणा ने कहा कि इस बजट में केंद्र सरकार ने पंजाब के साथ एक बार फिर सौतेली मां जैसा व्यवहार किया है। बजट में पंजाब के लिए कोई भी फायदेमंद ऐलान नहीं किया गया नाही किसानों को लेकर कोई ऐलान हुआ। बजट में खेती और किसानों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए अरविंदर सिंह ने कहा कि सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही थी, लेकिन नए बजट में उन्होंने कृषि ऋण को दोगुना करने की व्यवस्था दे दी है।

बख्शीवाला में इकट्ठे हुए किसानों को संबोधित करते हुए सभा के प्रदेश प्रतिनिधि कामरेड हरदेव सिंह ने कहा कि इस बजट में किसानों, मजदूरों और गरीब वर्ग के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि पिछले साल के बजट में कृषि योजनाओं के लिए 3.84 प्रतिशत राशि रखी गई थी, जिसे इस बजट में घटाकर 3.20 प्रतिशत कर दिया गया है। फसल बीमा के लिए 15500 करोड़ से घटाकर 13625 करोड़ कर दिया गया है। निधि योजना, इस वर्ष के बजट में 8000 करोड़ की कटौती की गई है। ये इस बात का सबूत है कि ये केंद्रीय बजट को किसान और जन विरोधी है।

इस दौरान किसान नेता जगमोहन सिंह ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा की अगुवाई में संघर्ष को लगातार जारी रखते हुए सभी फसलों की एमएसपी पर खरीद के लिए कानून बनाने के लिए प्रयास किए जाएंगे। बजट सत्र के दौरान संयुक्त किसान मोर्चे की ओर से दिल्ली में बड़ा इकट्ठ करने का एलान किया गया है। इस संबंधी कुरुक्षेत्र में 9 फरवरी को बैठक होगी।

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बेरोज़गारी और भर्ती परीक्षाओं को लेकर युवाओं के प्रदर्शन

ध्यान रहे कि देश के युवा आए दिन बेरोज़गारी और भर्ती परीक्षा को लेकर कोई न कोई प्रदर्शन करते ही रहते हैं। खबर लिखे जाने के समय भी राजधानी के जंतर-मंतर पर यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कर रहे हुआ धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। हालांकि यह बजट युवाओं भी उम्मीदों पर भी पानी फेरता नज़र आता है। कई युवा संगठनों ने भी इस बजट को निराशाजनक बताया है।

युवा हल्ला बोल संगठन के संस्थापक अनुपम ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा, “युवाओं का आज सबसे बड़ा मुद्दा बेराज़गारी का है। लेकिन बजट में रोज़गार सृजन को लेकर कोई ठोस योजना नहीं है। नाही लाखों रिक्त पदों को समयबद्ध भरने की बात। उल्टा मनरेगा का भी बजट घटा दिया गया है। भीषण बेरोज़गारी को मिटाना दूर की बात, मोदी सरकार मान भी नहीं रही कि यह संकट कितना विकराल है।"

गौरतलब है कि 2024 लोकसभा चुनावों से पहले इस साल मोदी सरकार का ये आखिरी पूर्णकालिक बजट था, जिसे सरकार अमृत काल का पहला बजट भी कह रही है। हालांकि इस अमृत काल में महिलाओं, युवाओं और किसानों के हाथ कुछ खास लगता नज़र नहीं आ रहा। सरकार भले ही समावेशी विकास के तमाम वादे और दावे कर ले, लेकिन हक़ीकत इससे कोसों दूर ही नज़र आती है। रोजगार को लेकर गोल-मोल बातें, कल्याणकारी योजनाओं के आवंटन में कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य की अनदेखी समेत तमाम पहलुओं पर सरकार की मंशा सवालों के घेरे में ही नजर आती है।

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