Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

महिलाओं के लिए बजट: पिछला ट्रेन्ड और वर्तमान अपेक्षाएं

केंद्रीय बजट लैंगिक असमानता को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में वह इस बाबत बुरी तरह विफल रहा। इस प्रवृत्ति को उलटने की जरूरत है। देखना हैं 2024 चुनाव से पूर्व आख़िरी  पूर्ण बजट कैसा होगा।
budget

भारत को एक लोकतांत्रिक और कल्याणकारी राज्य माना जाता है, जहां राज्य से उम्मीद होती है कि वह समानता और विकास को बढ़ावा देगा। भारत में, उत्पीड़ित जातियों, राष्ट्रीयताओं, जातीय समुदायों और धार्मिक अल्पसंख्यकों की तरह, महिलाओं के साथ भी भेदभाव किया जाता रहा। महिलाओं के जीवन को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे हैं - सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार। माना जाता है कि केंद्रीय बजट इनमें व अन्य क्षेत्रों में लैंगिक असमानता को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में वह इस बाबत बुरी तरह विफल रहा। इस प्रवृत्ति को उलटने की जरूरत है। देखना हैं 2024 चुनाव से पूर्व आखिरी बजट कैसा होगा।

देश के पिछले रिकॉर्ड के आधार पर, नीचे हम कुछ पहलुओं का अवलोकन करते हुए कुछ सुझाव पेश करेंगे, जो जेंडर गैप को पाटने में मदद कर सकते हैं।

केंद्र सरकार के पास महिलाओं को समर्पित एक मंत्रालय है। लेकिन बच्चों के कल्याण को इसके साथ जोड़ दिया गया, जैसे बच्चों की देखभाल केवल महिलाओं की जिम्मेदारी है! महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का दायरा आश्चर्यजनक रूप से संकीर्ण है। यानि, मंत्रालय स्वयं प्रतीकात्मकता (tokenism) के अधीन है और महिलाओं के लिए  ज़बानी जमा-खर्च करता है। इस मंत्रालय का बजट केन्द्रीय बजट का 0.64% है। इसके अलावा, अलग-अलग मंत्रालयों में भी महिलाओं के लिए योजनाएं हैं। पर, इनकी भी मुख्य विशेषता उनका प्रतीकवाद है, और इनका बजट भी या तो स्थिर रहा या घटा है। FY21-22 में जेंडर बजट वित्त वर्ष 20-21 में कुल बजट के 4.72% से गिरकर कुल बजट का 4.4% हो गया। और FY22-23 में यह और गिरकर कुल बजट का 4.3% रह गया  (www.indiaspend.com)। आधी आबादी के साथ यह कैसा मज़ाक है? महिला आंदोलन ने कई क्षेत्रों में महिला- संबंधी विशिष्ट मांगें उठाई हैं, जिन्हें सरकार नई योजनाएं लाकर पूरा कर सकती है। लेकिन उसने इन मांगों को पूरी तरह से अनसुना किया। इस लेख में, हम इस प्रतीकवाद और उपेक्षा की विस्तार से योजना-वार समीक्षा करेंगे।

महिलाओं के लिए कई योजनाएं लेकिन आवंटन कम

महिलाओं के लिए कई योजनाएं हैं, जो या तो  केंद्र द्वारा 100% वित्तपोषित हैं या आंशिक रूप से केंद्र और राज्य द्वारा वित्त पोषित हैं। ये जेंडर बजट में नामित हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश योजनाएं कार्यरत नहीं हैं या खराब तरह से चल रही हैं, जैसा कि ग्राउंड रिपोर्ट्स में देखा गया है। सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये को दर्शाने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के बजट और केंद्रीय बजट से इन योजनाओं पर एकत्र किए गए कुछ आंकड़ों को यहां पेश किया गया है। हम उन्हें नीचे एक तालिका में प्रस्तुत करते हुए संक्षिप्त विश्लेषण पेश करते हैं।

सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 किशोरियों के लिए पोषण कार्यक्रम, बाल संरक्षण सेवाओं और राष्ट्रीय पोषण मिशन के साथ ICDS के तहत आंगनवाड़ी सेवाओं को एक साथ जोड़कर बनाई गई योजना थी। इसे पहले टोटल अम्ब्रेला ICDS कहा जाता था और इसपर वास्तविक खर्च 18,203.39 करोड़ रुपए आता था। (व्यय बजट, WCD) महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का दावा है कि पोषण 2.0 6 साल तक के बच्चों, किशोर लड़कियों (14-18 वर्ष) और गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं में कुपोषण की स्थिति का समाधान करने का लक्ष्य रखता है। पोषण 2.0 को एकीकृत पोषण सहायता कार्यक्रम (INSP) माना जाता है, जो 2021-22 से 2025-26 की अवधि के दौरान संचालित होगा। लेकिन 2022-23 के बजट अनुमान में केवल 20263.07 करोड़ का आवंटन, यानि मामूली वृद्धि थी।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन की महासचिव शशि यादव ने कहा कि आंगनवाड़ी, आशा और मिड-डे मील वर्कर्स जैसे स्कीम वर्कर्स के मुद्दों पर पिछले कई साल से आंदोलन चल रहे हैं और श्रम मंत्री को एक ज्ञापन भी सौंपा गया है। सभी योजना श्रमिकों के लिए सरकारी कर्मचारियों के स्टेटस की मांग करते हुए, सामाजिक सुरक्षा और पेंशन के साथ-साथ प्रति माह 28,000 रुपये का मासिक वेतन मांगा गया। मध्याह्न भोजन कर्मियों के लिए विलंबित भुगतान और आशा कार्यकर्ताओं को कोविड सेवा संबंधी बकाये का भुगतान न करने का मुद्दा अभी भी सुलझा नहीं है।

आंगनबाड़ी पर्यवेक्षक संघ, यूपी की महासचिव रेणु शुक्ला का कहना है कि सरकार को आंगनबाडी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं का वेतन तय करते समय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को ध्यान में रखना होगा. मौजूदा मूल्य वृद्धि के साथ, उनके लिए क्रमशः 8,000 रुपये और 3000 रुपये के वेतन पर काम करना असंभव है। इनमें से कई महिलाएं अपने परिवार की अकेली कमाने वाली हैं और उनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा कवर भी नहीं है।

योजनाओं का सच

केंद्रीय बजट 2021 से पता चलता है कि कई महिला केंद्रित योजनाओं को युक्तिसंगत (rationalized) बनाया गया है। लेकिन 'मिशन शक्ति', जो महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए बनाई गई योजना है, के तहत महिलाओं की अलग-अलग योजनाओं को क्लब करना गलत लगता है, क्योंकि इन योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन समय के साथ घटता गया है। उदाहरण के लिए, मिशन शक्ति के अंतरगत संबल और सामर्थ्य योजनाएं, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए योजनाओं को लाया गया, के तहत आवंटन में औसतन 8.5 प्रतिशत की कमी देखी गई है। (cbgaindia.org)

महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से संबल योजना में वन स्टॉप सेंटर (OSC), महिला हेल्पलाइन- (181 WHL) और नारी अदालत के साथ-साथ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना (BBBP) शामिल हैं।

2019-20 में OSC के लिए व्यय 159.78 करोड़, महिला हेल्पलाइन के लिए 12.3 करोड़, BBBP के लिए यह 60.57 करोड़ यानी कुल 232.65 करोड़ था। संबल में वित्त वर्ष 21-22 में 655.00 करोड़ यानि करीब तीन गुना बजट अनुमान (BE) दिखाया गया। लेकिन इसमें नारी अदालतों और महिला पुलिस वॉलंटीयर्स का बजट भी शामिल है, तो यह 2019-20 के बजट अनुमान से अपेक्षाकृत वृद्धि नहीं है।। पर FY22-23 में BE 587 करोड़ है, जो 68 करोड़ घट गया है!

सामर्थ्य योजना का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण है। इसके घटक उज्ज्वला योजना (PMUY), स्वाधार गृह, कामकाजी महिलाओं के छात्रावास, कामकाजी महिलाओं के लिए राष्ट्रीय क्रेच योजना और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना हैं।

प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) के तहत एलपीजी सब्सिडी का संशोधित अनुमान (RE) ‘21-22 6,517 करोड़ था जबकि BE 22-23 5,813 करोड़ था।, यानि 11 फीसदी की कमी की गई। दूसरी ओर, PMUY में भी कुछ विसंगतियां  दिखाई दीं; उदाहरण के लिए, PMUY उपभोक्ताओं (जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जातियों के थे और बीपीएल परिवारों के अलावा SECC के तहत थे) की तुलना में गैर-PMUY उपभोक्ता दुगुनी संख्या में सिलेंडर भर रहे थे। यह देखा गया कि PMUY के 90 लाख लाभार्थियों ने वित्त वर्ष ‘21 में औसतन केवल 1 सिलेंडर रिफिल कराया। 21 अप्रैल से 21 दिसंबर के दौरान दिए गए 3 मुफ्त सिलेंडरों को ध्यान में रखते हुए भी औसत रीफिल्ड सिलेंडर 3.66 थे। यह PMUY योजना की घोर विफलता है। कई लाभार्थियों ने कहा कि उन्हें इस बात का अहसास नहीं था कि उन्हें 1100 रुपये से अधिक की दर से LPG सिलेंडर खरीदना होगा, जो 2014 की लागत से लगभग तीन गुना है। परिणामस्वरूप वे खाली सिलेंडर का उपयोग स्टूल और टेबल के रूप में या कपड़े सुखाने के लिए कर रहे हैं। बीपीएल को 6 और बाकी को 3 भरे सिलिंडर मुफ्त क्यों नहीं मिल सकते?

  स्वाधार गृह योजना केंद्र और राज्यों के बीच 60:40 की लागत के साथ संकट में महिलाओं को अस्थायी आवासीय आवास, भोजन, कपड़े, चिकित्सा सुविधाएं, व्यावसायिक और कौशल उन्नयन प्रशिक्षण, परामर्श और कानूनी सहायता प्रदान करने वाली योजना है। योजना दो पूर्व योजनाओं: स्वाधार, और शॉर्ट स्टे होम्स (SSH) को मिलाकर बनाई गई थी।  इन श्रेणियों में महिलाओं के साथ बच्चों के लिए सुविधाओं के साथ, दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों की शिकार सभी महिलाओं, विधवाओं, निराश्रित महिलाओं और वृद्ध महिलाओं सहित संकट में महिलाओं को लक्षित किया गया। लेकिन स्वाधार गृह के लिए बजट आवंटन घटता जा रहा है और चूंकि धन खर्च नहीं किया जाता, प्रत्येक वर्ष BE की तुलना में RE बहुत कम रहा और व्यय भी कम था। अगर हम 2016-17 के लिए BE की तुलना करें तो यह 100 करोड़ था, जो 2019-20 तक घटकर 50 करोड़ हो गया। इसी अवधि के लिए RE 90 करोड़ और 25 करोड़ था, जबकि वास्तविक व्यय क्रमश: 83.8 करोड़ और 16.5 करोड़ था। वित्त वर्ष ’20-21, ‘21-22 और वित्त वर्ष ’22-23 में BE शून्य था, क्योंकि इसे सामर्थ्य स्कीम में समाहित किया गया। इन अंकों का क्या औचित्य है, जब NCW ने महामारी के दौर में घरेलू हिंसा के अधिक मामले दर्ज किए?

कामकाजी महिला छात्रावासों, जो गरीब महिलाओं, विधवाओं, एकल महिलाओं, नौकरी प्रशिक्षार्थियों, या अपने गृहनगर से दूर काम कर रही विवाहित महिलाओं (बच्चों के साथ) के लिए हैं, FY‘21-22 और FY‘22-23 के लिए बजट अनुमान (अनुदान की मांग) शून्य हैं. इस योजना को सामर्थ्य योजना में मर्ज कर दिया गया, जबकि कामकाजी व परित्यक्ता महिलाओं की संख्या बढ़ रही है?

साथ ही, राष्ट्रीय क्रेच योजना के लिए बजट आवंटन में पिछले कुछ वर्षों में भारी कमी की गई है और कई क्रेच को धन की कमी के कारण बंद होने पर मजबूर होना पड़ा। 2018 में, क्रेच की संख्या 18,040 थी, जो 2020 में घटकर 6458 हो गई, लगभग 1/3 । स्मृति ईरानी ने स्वीकार किया कि  FY19 के बाद FY22 तक फंड में 59% की कमी आई। FY22 के लिए BE 53 करोड़ था और बाद में इसे संशोधित करके RE 4 करोड़ कर दिया गया। 2022 के  बजट खर्च में दिखाया गया वास्तविक व्यय शून्य है, पर FY21 में, जब लॉकडाउन कड़े थे, इस योजना के तहत 11.6 करोड़ खर्च किए गए थे। कई गैर सरकारी संगठनों ने कहा कि हालांकि कोविड-19 के दौरान लॉकडाउन के बहाने योजना को बंद कर दिया गया था, लेकिन उन्हें अपने स्वयं के फंड से काम चलाना पड़ा क्योंकि उन्हें अपने कर्मचारियों को भुगतान करना था, जो लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे। साथ ही, कई बच्चे क्रेच में आ रहे थे जिनकी माएं काम पर चली गई थीं। (gthehindubusinessline.com और भारत सरकार के जेंडर बजट से डेटा)

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) एक मातृत्व लाभ योजना है जो गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को उनके पहले जन्म के लिए सशर्त नकद प्रदान करती है। यह योजना तीन किश्तों में कुल ₹5,000 प्रदान करती है। PMMVY का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को मजदूरी के नुकसान के लिए आंशिक वेतन मुआवजा प्रदान करना है, जिससे प्रसव से पहले और बाद में पर्याप्त आराम मिले, और गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के बीच स्वास्थ्य में सुधार हो।

अकेले PMMVY के लिए वास्तविक व्यय वित्त वर्ष 20-21 में 1112.13 करोड़ है, लेकिन वित्त वर्ष 21-22 और 22-23 के लिए BE शून्य हैं क्योंकि इसे सामर्थ्य योजना में शामिल किया गया है, जिसके लिए 22-23 के लिए बीई 2547.11 करोड़ था। चूंकि सामर्थ्य के तहत 5 प्रमुख योजनाएं चलती हैं, यह बहुत ही मामूली राशि है। इससे अंततः 5 योजनाओं में से प्रत्येक के बजट में कमी आएगी।

वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट अनुमान के लिए, सामर्थ्य को ₹2,522 करोड़ आवंटित किए गए थे। यह पिछले वर्ष के BE में इसके घटकों के योग ₹2,828 करोड़ से 10.8% कम था। वर्षों से, योजना के तहत पहले के बजट की तुलना में कम धन आवंटित किया गया है। उदाहरण के लिए, वित्त वर्ष 2019-20 में, जबकि BE ₹2,500 करोड़ था, संशोधित अनुमान (RE) ₹2,300 करोड़ पर 8 प्रतिशत कम था। इसी तरह, वित्त वर्ष 2020-21 में BE ₹2,500 करोड़ और RE ₹1,300 करोड़ के बीच 48 प्रतिशत की कमी आई थी।

महिला आंदोलन की मांगें

महिला आंदोलन की कुछ मांगें अनिश्चित काल से लंबित हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं  बचाव व सुरक्षा देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है, जिसमें NCW को 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की 31,000 से अधिक शिकायतें मिलीं। महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर (प्रति लाख जनसंख्या) में भी 8% की वृद्धि हुई। हाल के दिनों में कई चौंकाने वाली घटनाओं में एक महिला की हत्या कर दी गई और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए, एक अन्य को एक कार चालक ने मार डाला, महिला पहलवानों के साथ छेड़छाड़ की गई और यहां तक कि DCW प्रमुख को भी एक शराबी चालक द्वारा 15 मीटर तक घसीटा गया। इस कारण महिला आंदोलन लंबे समय से राष्ट्रीय महिला आयोग से सक्रिय भूमिका की मांग कर रहा है। लेकिन यह महिलाओं के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर शोध/जांच करने के लिए धन की कमी से ग्रस्त है, जिससे नीतिगत सुझाव देना तो दूर, अप्रभावी और विलंबित कार्रवाई होती है। दूसरा प्रमुख मुद्दा महिलाओं का रोजगार है, जहां महिलाओं की कार्यबल भागीदारी 2020 (महामारी की अवधि) में 23% से बढ़कर 2021 में 36% हो गई, लेकिन 2022 में फिर से 3 प्रतिशत अंक गिर गई। इस गिरावट को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं? महिलाओं के सशक्तिकरण से संबंधित कई अन्य मुद्दे उठाए गए लेकिन उन्हें संबोधित करने के लिए कम काम किया गया है, उदाहरण के लिए महिला श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा व कौशल विकास, अल्पसंख्यक महिलाओं पर विशेष ध्यान, महिला पंचायत और निगम सदस्यों का प्रशिक्षण, विधानसभा और लोकसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों के लिए 50% सिक्यूरिटी डिपॉज़िट, असंगठित महिला श्रमिकों और गृहणियों को बैंक खातों का प्रबंधन-प्रशिक्षण, महिला स्टार्टअप्स के लिए कम ब्याज पर ऋण, आदि। कई बार महिला आंदोलन की मांग के बावजूद, पुरुषों और महिलाओं के लिए गैर-कर योग्य सीमा समान रही है। न राज्यों और न ही केंद्र ने कभी घरेलू कामकाज के लिए पारिश्रमिक देने के तरीकों पर विचार किया है, तो महिलाओं के लिए गैर-कर योग्य आय सीमा को बढ़ाकर 7 लाख क्यों नहीं किया जा सकता है? कन्या भ्रूण हत्या को रोकने, लड़कियों को शिक्षित करने और उन्हें आत्म निर्भर बनाने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना को 2015 में शुरू किया गया था। योजना के लिए बजट आवंटन FY 14-15 से FY21-22 के लिए 740.18 करोड़ रुपये था। लेकिन जैसा कि स्मृति ईरानी ने स्वयं स्वीकार किया, बजट का 54% मीडिया प्रचार में खर्च हुआ। उच्चतर माध्यमिक स्तर तक लड़कियों की ड्रॉपआउट दर गिरी है और उच्च शिक्षा में दाखिला लेने वाली लड़कियों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, लेकिन STEM पाठ्यक्रमों में, जबकि स्नातकों की कुल संख्या में 43% लड़कियां हैं, विज्ञान संस्थानों और विश्वविद्यालय में उनकी रोजगार क्षमता निराशाजनक 14% है। स्कॉलरशिप, गर्ल्स हॉस्टल और लोकल ट्रेनों में लड़कियों और महिलाओं के लिए स्पेशल बोगी के जरिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। मुंबई विश्वविद्यालय में भौतिकी की प्राध्यापक सुश्री अनुराधा मिश्रा के अनुसार, DISHA जैसे कार्यक्रम में महिला वैज्ञानिकों के लिए करियर में सुनिश्चित अवसर, ब्रेक-इन करियर के बाद पुन: प्रवेश और नेतृत्व विकास में भूमिका जेसे प्रश्नों को संबोधित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण है; इन्हें प्रोजेक्ट लेने की अनुमति है ताकि वे शादी या बच्चे के बाद अकादमिक रूप से सक्रिय रह सकें। पर वे शोध छात्र नहीं ले सकतीं। लेकिन विडम्बना है कि प्रोफेसर पद में आवेदन के लिए उनके पास कम से कम 2 शोध छात्रों को पीएचडी कराने का अनुभव होना चाहिये। यह विसंगति दूर होनी चाहिये।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बायोटेक्नोलॉजी की प्रोफेसर पूनम मित्तल के अनुसार कई छात्राएं जैव प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रमों के लिए आती हैं, लेकिन पीएचडी या पोस्ट डॉक्टरल शोध के लिए नहीं रुकतीं। क्योंकि अभी तक विज्ञान विषयों में समान वेतन के साथ फ्लेक्सी टाइम नहीं आया है। महिला शोधकर्ताओं के लिए विदेशों में अध्ययन करने या महत्वपूर्ण सम्मेलनों में भाग लेने के लिए अधिक छात्रवृत्ति की आवश्यकता है, लेकिन इसके लिए धन की आवश्यकता होगी। पर साइंस में महिलाओं के लिए बजट में मामूली बढ़ोतरी हुई है।

इसके अलावा, 'वन स्टॉप सेंटर' चलाने वाले महिला समूहों (जिनका उद्देश्य निजी और सार्वजनिक स्थानों पर, परिवार, समुदाय और कार्यस्थल पर हिंसा से प्रभावित महिलाओं का सहयोग करना है) का कहना है कि उनका प्रबंधन दयनीय है। न ही 5-कमरे वाले भवन हैं न निर्धारित कर्मचारियों की उचित नियुक्ति। नतीजा यह है कि पीड़ितों को मदद के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता है और कई तो एक या दो दिन बाद जाने को मजबूर हो जाते हैं। एक्शन एड जैसे एनजीओ ने बताया है कि कई OSC काम नहीं कर रहे हैं इसलिए पुलिस समझौता करवाने की कोशिश करती है।

 लगातार पिछले 3 वित्तीय वर्षों से महिलाओं की योजनाओं के लिए आवंटन में कमी या मामूली वृद्धि रही है। साथ ही, कुल बजट के हिस्से के रूप में जेंडर बजट लगातार घट रहा है। अखिल भारतीय जनवादी महिला संघ, (AIDWA) के एक विश्लेषण के अनुसार, समग्र जेंडर बजट 2021-22 के लिए संशोधित अनुमानों (RE) के GDP के 0.71% से घटकर 2022-2023 के लिए बजट अनुमान का 0.66% रह गया। क्या यह “महिलाओं के नेतृत्व में विकास” (women-led development) है? अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह महिलाओं के लिए विनाशकारी साबित होगा। देखना होगा कि नया बजट उनके लिए क्या कुछ नया लेकर आता है।

(लेखिका महिला एक्टिविस्ट हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest