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बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे: मोदी जी का 'विकास मॉडल' पांच दिन में ही धंस गया!

जिस बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था, महज़ पांच दिनों बाद, बारिश ने उसकी सच्चाई बयां कर दी, सड़क में करीब 2 फीट गहरा गड्ढा हो गया...
Bundelkhand Expressway

वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत कढ़े हुए नेता है, काम हो रहा हो या नहीं, अपनी बातों से ही मुग्ध कर लेते हैं, फिर जब तथाकथित समर्थक मोदी-मोदी के नारे लगाते हैं, तब उन्हें असली सुकून मिलता है।

पिछले दिनों भी यही हो रहा था, जब प्रधानमंत्री जालौन के कथेरी गांव में बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करने पहुंचे थे, और एक बहुत सधी हुई स्क्रिप्ट के ज़रिए एक्सप्रेस-वे की तारीफ करते थक नहीं रहे थे। लेकिन किसी को क्या पता था कि प्रधानमंत्री के भाषण और एक्सप्रेस-वे की ज़मीनी हकीकत का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। जिसका नज़ारा उद्घाटन के महज़ पांच दिनों के बाद देखने को मिल भी गया।

महज़ चंद घंटों की बारिश ने बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे और प्रधानमंत्री मोदी समेत प्रदेश के अधिकारियों के दावों के सामने आईना खड़ा दिया। सड़क पर करीब दो फीट गहरा गड्ढा हो गया, ये गड्ढा करीब 8 फीट लंबा भी था। जिसके कारण एक कार एक्सीडेंट भी हुआ।

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बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे के 195 किलोमीटर के खंबे के पास सड़क धंस गई, तस्वीरे देखने से साफ पता चल रहा है कि सड़क की गिट्टियां तक बाहर निकल आई हैं, जिसके कारण कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता था।

एक्सप्रेस-वे पर सड़क धंसने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तुरंत इस मुद्दे को लपक लिया, उन्होंने ट्वीट कर उत्तर प्रदेश सरकार और भाजपा पर हमला बोला। अखिलेश यादव ने कहा, 'ये है भाजपा के आधे-अधूरे विकास की गुणवत्ता का नमूना… उधर बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का बड़े लोगों ने उद्घाटन किया ही था कि इधर एक हफ़्ते में ही इस पर भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े गड्ढे निकल आए। अच्छा हुआ इस पर रनवे नहीं बना।'

हालांकि अखिलेश यादव के इस ट्वीट का जवाब देने में योगी सरकार में मंत्री नंद गोपाल नंदी ने ज्यादा देर नहीं लगाई.. उन्होंने अखिलेश के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए कहा कि "अखिलेश यादव सुना है आप ऑस्ट्रेलिया से पढ़कर लौटे हैं, अलग बात है कि आप अपने को गूगल मैप का बड़ा जानकार बताते हैं। लेकिन प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री की मर्यादा के अनुसार थोड़ा लिखकर फिर पढ़कर पोस्ट करना चाहिए। कम से कम बेसिक टेक्निकल नॉलेज तो आपको होनी ही चाहिए।"

अगर विपक्ष हमलावर होगा तो सरकार को जवाब देना ही चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य है कि नंद गोपाल नंदी इस रिट्वीट में भी सड़क टूटने का कारण बताने के बजाए, ग़लती मानने के बजाए, अखिलेश यादव को ज्ञान देते ही नज़र आए।

सिर्फ अखिलेश यादव ने ही नहीं पत्रकार रणविजय सिंह ने भी धंस चुकी सड़क की तस्वीर साझा की, हालांकि इससे पहले उन्होंने रात की वो तस्वीर भी दिखाई जब सड़क बारिश के बाद धंसने वाली थी।

रणविजय द्वारा शेयर किए गए वीडियो में साफ नज़र आ रहा है, कि कैसे धीरे-धीरे गाड़ियां वहां से निकल रही हैं। अगर इसे थोड़ा डिसक्राइब करें तो ये कहना ग़लत नहीं होगा कि आमतौर पर एक्सप्रेस वे पर गाड़ियों की रफ्तार करीब 60 से 80 किलोमीटर प्रतिघंटा तो होती ही है, इससे कम तो नहीं लेकिन इससे ज्यादा भी हो सकती है। अब ऐसे में वो तभी बच पाएगा जब उसकी कार में गड्ढे वाला इंडीकेटर (ये जुमला है) लगा हो।

इसके अलावा अक्सर अपनी ही सरकार को निशाने पर लेते रहने वाले पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी ने भी टूटी सड़क को लेकर तंज कसा था, उन्होंने ट्वीट कर कहा “15 हजार करोड़ की लागत से बना एक्सप्रेसवे अगर बरसात के 5 दिन भी ना झेल सके तो उसकी गुणवत्ता पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं।

इस प्रोजेक्ट के मुखिया, सम्बंधित इंजीनियर और जिम्मेदार कंपनियों को तत्काल तलब कर उनपर कड़ी कार्यवाही सुनिश्चित करनी होगी।"

ख़ैर जब मामला मीडिया में आया तब मौके पर जेसीबी पहुंची और सड़क को ठीक कराया गया। सोशल मीडिया पर भी लोग सरकारी अधिकारियों पर हमलावर दिखे और सड़क की गुणवत्ता को लेकर नाराजगी जताई। इस घटना से पूरे देश में हलचल मच गई और तत्काल अधिकारियों ने जांच के आदेश दे दिए हैं।

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गुणवत्ता पर सवाल

हादसे के बाद सड़क की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे और लोगों ने तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दी। लोगों का कहना है कि बुंदलेखंड एक्सप्रेस-वे योगी सरकार का ड्रीम प्रोटेक्ट था, जिसके उद्घाटन में देश के प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल हुए थे, लेकिन बनने में लगे करोड़ों रूपये भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ गए। लोकार्पण के महज़ पांच दिन के भीतर सड़क का धंस जाना बताता है कि मानक के अनुसार सड़क नहीं बनाई गई और घटिया क्वालिटी के मैटेरियल का इस्तेमाल किया गया।

यूपी सरकार के मुताबिक, कार्यदायी संस्था ने समय से पहले काम पूरा होने पर सरकार के करीब 1132 करोड़ रुपये भी बचाए हैं। इस एक्सप्रेस-वे का काम 28 महीने में ही पूरा हो गया। योगी सरकार में अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी इस प्रोजेक्ट की लगातार मॉनिटरिंग कर रहे थे। लेकिन बीती रात एक्सप्रेस-वे की सड़क धंसने की खबर आने के बाद अफसर भी परेशान हैं।

तीन मौतें हो चुकी हैं

बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा के लिए कई पुलिस कर्मियों की वीआईपी ड्यूटी लगाई गई थी, जिसमें शामिल होने के गोहन थाने में तैनात सिपाही करन सिंह कैथेरी गांव आ रहे थे, लेकिन बीच में उनकी बाइक दूसरी बाइक से टकराई गई, इलाज के लिए उन्हें जिला अस्पताल लाया गया, लेकिन गंभीर हालत के चलते उन्हें रेफर कर दिया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।

16 जुलाई यानी उद्घाटन वाले ही दिन जालौन के बरहा गांव का निवासी मोहित एक्सप्रेस-वे पर टहलने के लिए आए थे। पुलिस की कोबरा बाइक से भिड़ंत होने से वह बुरी तरह से जख्मी हो गए और उनकी मौत हो गई।

तीसरा हादसा 17 जुलाई को हुआ। ट्रक चालक ने खड़े कंटेनर में टक्कर मार दी, जिससे मौके पर ही ट्रक चालक की मौत हो गई। घटना के बाद ट्रक चालक के परिजनों को इसकी सूचना दी।

14800 करोड़ रुपये कहां खर्च हो गए?

दावा है कि चित्रकूट से इटावा तक बने 296 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे को 14800 करोड़ की लागत से बनाया गया है। यूपीडा के सीईओ अवनीश अवस्थी ने इसकी गुणवत्ता को उच्च क्वालिटी का बताया था, लेकिन इसकी क्वालिटी की पोल तो मूसलाधार बारिश ने खोल ही दी। बताते चलें कि, रिकार्ड 28 महीने में बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे तैयार कर दिया गया। जबकि इसे 36 महीने में तैयार करने का लक्ष्य था।

अब यहां से सवाल ये खड़ा होता है कि सरकार को इतनी जल्दी क्या थी, अगर 36 महीने का टारगेट था, तो धैर्य से काम किया जा सकता था, क्योंकि आप तो सिर्फ अपने वोटों के लिए एक सड़क बना रहे हैं, जबकि यहां से रोज़ हज़ारों लोग गुजरेंगे, जिन्हें आपकी जल्दबाज़ी का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। वहीं दूसरी ओर करीब 14800 खर्च होने के बाद भी अगर सड़क की ये हालत है, तो ज़ाहिर है यहां सड़को के लिए मलबा अच्छा इस्तेमाल नहीं किया गया है और जमकर भ्रष्टाचार हुआ है।

मोदी सरकार और उनके घटक दलों वाली सरकार जहां-जहां है, वहां ऐसे कारनामे अक्सर देखे जाते रहते हैं, जैसे साल 2020 में बिहार के छपरा में 509 करोड़ रुपये की लागत से एक पुल तैयार किया गया था, जिसका नाम है बंगरा घाट महासेतु। जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस पुल का उद्घाटन करने वाले थे, उससे एक दिन पहले ही इसका एक हिस्सा ढह गया। जिसके बाद सरकार की जमकर किरकिरी हुई थी।

इससे पहले भी एक बार गोपालगंज में बना पुल उद्घाटन के महज़ एक महीने के अंदर ही ढह गया।

इन दोनों ही मुद्दों को विपक्षी आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने ज़ोर-शोर से उठाया था, उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि पटना में बैठकर 509 करोड़ की लागत के जिस पुल का अभी नीतीश कुमार जी उद्घाटन कर रहे है उसका पहुंच पथ वास्तविक लोकेशन पर धंस रहा है। अब इससे ज़्यादा भ्रष्टाचार का बड़ा सबूत क्या होगा? कोई पुल उद्घाटन के दिन, कोई उद्घाटन के पहले और कोई उद्घाटन के 29 दिन बाद टूट जाता है।

ख़ैर... ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जो भाजपा और उसकी समर्थित सरकार को कटघरे में खड़ा करते हैं। दुर्घटनाओं से भ्रष्टाचारी तंत्र का चेहरा दिखाई देता है। लेकिन सवाल वही है कि अगर जांच हो तो किसपर, या फिर कौन करेगा जांच? क्योंकि जिस तरह से सरकारी एजेंसियों का ग़ैर जिम्मेदाराना इस्तेमाल किया जाता है, वो जगज़ाहिर है। लेकिन कहीं न कहीं सरकार को ये ज़रूर समझना होगा, कि अगर वो संवैधानिक पद पर हैं, या फिर जनता ने उन्हें चुनकर अपने कामों के लिए ऊंचे पद पर बैठाया है, तो उनकी ज़िंदगी का भी ख़्याल करना होगा।

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