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उत्तर-पूर्व राज्यों में मंडराता कोविड-19 का ख़तरा

खासकर असम में कोविड-19 के मामलों में विस्फोट होने की पुष्टि हो गई है, इस मामले में आने वाले हफ्तों में वहाँ की चरमराती स्वास्थ्य सुविधाओं की गंभीर परीक्षा होगी कि वह इसका मुक़ाबला करने के लिए कितनी तैयार हैं?
covid-19
नागालैंड के दीमापुर हवाई अड्डे पर नॉवेल कोरोनोवायरस के डर के मद्देनजर यात्री थर्मल स्क्रीनिंग टेस्ट से गुजरते हुए। (प्रतिनिधि छवि/पीटीआई)

अप्रैल की गर्मी का पूरा महिना और मई महीने का बड़ा हिस्सा, पूर्वोत्तर भारत के आठ राज्यों -असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा और सिक्किम–जिनमें लगभग 4.6 करोड़ की कुल आबादी है, पड़े इत्मीनान से गुजरा। ऐसा लग रहा था कि यह पूरा का पूरा इलाका नॉवेल कोरोनोवायरस के कहर से बच गया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 24 मार्च (जब पहली बार अचानक लॉकडाउन की घोषणा की गई थी) से 24 मई के गुजरे दो महीनों के बीच इस क्षेत्र में संयुक्त मामलों का लोड़/भार बढ़कर 564 हो गया हा जिसमें मौतें मात्र 5 हुई थी। इससे सरकारी हलकों में आत्म-बधाई का माहौला छा गया और सरकारी खेमों में खतरे के प्रति बेखबरी की भावना बढ़ गई। असम में लोगों ने आमतौर पर बड़े हर्षौल्लास से मनाए जाने वाले रोंगाली बिहू को पहली बार प्रतिबंधात्मक लॉकडाउन में मनाया, लेकिन वे इस बीमारी के न फैलने से काफी हद तक राहत महसूस भी कर रहे थे। 

फिर जून आया और सब कुछ उलटपलट गया। पहली बार इलाके में आसमान छूती महामारी का विस्फोट हुआ: यानि 24 मई और 24 जून के बीच 564 मामलों से बढ़कर 8,756 मामले हो गए। [नीचे चार्ट देखें] जैसे कि यही काफी नहीं था, 9 जून को असम के बाग़ज़ान के तेल के कुएं में एक भयानक विस्फोट हुआ, और फिर राज्य को प्रारंभिक मानसून की बाढ़ के पहले दौर ने जकड़ लिया, जिससे 2.5 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए और 16 लोगों की मृत्यु हो गई। इस बीच कोरोनोवायरस अपनी रफ्तार से फैलता रहा।

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कोविड-19 के ज़्यादातर पॉज़िटिव मामले इस इलाके के सबसे बड़े राज्य असम से निकले हैं, जहां पहले से ही 5,831 मामलों की पुष्टि हो चुकी है, यानी कुल मामलों का दो तिहाई लोड़ असम में है। त्रिपुरा, 1269 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर हैं। अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में मामले समान रूप से बढ़े हैं, हालांकि कुल संख्या अभी भी कम है।

उत्तर-पूर्व इलाके में कोरोनो वायरस का प्रारंभिक तौर पर कम प्रसार उसकी कम जनसंख्या घनत्व और शहरीकरण के निम्न स्तर के कारण हुआ था। 2011 की जनगणना के अनुसार, इस इलाके के 18 प्रतिशत निवासी भारत की औसत 31 प्रतिशत की आबादी के मुक़ाबले शहरी केंद्रों में रहते हैं।

कुछ राज्यों में शहरों की आबादी काफी ऊंची है, जैसे कि मिजोरम में यह 52 प्रतिशत और मणिपुर में 32 प्रतिशत है। लेकिन इस इलाके का सबसे बड़ा राज्य असम, जिसमें उतार पूर्व की लगभग तीन चौथाई आबादी बसती है उसका शहरी क्षेत्रों में केवल 14 प्रतिशत लोग ही रहते हैं। इसके अलावा, कम औद्योगीकृण, बड़े पैमाने पर लोगों का कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर होना भी आम लोगों की बहुत अधिक आवाजाही को प्रभावित नहीं करता है, इस प्रकार वह कोरोना  वायरस के संचरण या प्रसार को सीमित करने में सहायक है। लेकिन वायरस ने अभी तक हार नहीं मानी है।

शायद प्रवासी मज़दूरों की वापसी ने बढ़ा दिया है

मई के अंतिम सप्ताह में कोविड के मामलों में इस विस्फोट का सबसे संभावित कारण देश के अन्य हिस्सों में हुए लॉकडाउन से है, जिसके कारण इन राज्यों में हजारों की संख्या में प्रवासियों को अपने घरों में वापस आना पड़ा। 24 मार्च को लॉकडाउन की अचानक घोषणा से छात्रों सहित लाखों प्रवासी मजदूर देश के दूर-दराज इलाकों में फँस गए थे, और इस कारण बड़े पैमाने पर उनकी वापसी हुई।

संख्या अस्पष्ट है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों के अनुसार ट्रेन के माध्यम से लौटे प्रवासी करीब एक लाख बताए जा रहे हैं, हालांकि हजारों प्रवासी अन्य परिवहन साधनों के माध्यम से भी आए हैं। यद्यपि वापस आए सभी लोगों को व्वारंटाईन में रखा गया था, लेकिन बावजूद इसके हालात बहुत सुखद नहीं हैं, क्योंकि इन सुविधाओं में बेइंतहा भीड़ थीं। इसलिए, लोगों को फिर घर में क्वारंटाइन करने के लिए कहा गया।

मुख्यत लौटने वाले लोगों और संक्रमित के संपर्कों में आए लोगों की कोविड जांच की गई थी। लेकिन यह जांच बहुत कम है: 24 मई तक, कुछ 94,000 जाँचे की गई थी, जो 24 जून तक, बढ़कर 1.65 लाख तक ही पाहुच पाई थी। इसलिए यह आंकड़ा पिछले महीने तक पूरे इलाके के लिए दैनिक तौर पर लगभग 2,364 जांच की दर देता है।

लड़खड़ाता स्वास्थ्य ढांचा

“असम में, देश की सबसे खराब स्वास्थ्य प्रणालियों में से एक है, और जो राज्य के असामान्य स्वास्थ्य संकेतकों में परिलक्षित होती है। लंबे समय से सक्रिय कार्यकर्ता और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता सुप्रकाश तालुकदार के अनुसार, वर्तमान राज्य सरकार ने इसमें बहुत अधिक सुधार नहीं किया है, और यह क्षेत्र पहले से ही काफी तनाव में है,”। 

देश के राज्यों में हेल्थ इंडेक्स पर सरकारी थिंक-टैंक नीति आयोग की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, इस इलाके के आठ राज्यों में विशेषज्ञ डॉक्टरों और सामान्य चिकित्सा अधिकारियों की भारी कमी है। जिला अस्पतालों में विशेषज्ञों के लिए खाली पड़े पदों के मामले में मिजोरम में 16 प्रतिशत से लेकर अरुणाचल प्रदेश में 70 प्रतिशत तक हैं, जबकि असम में 47 प्रतिशत की रिक्तियां हैं।

इसी तरह, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में सामान्य चिकित्सा अधिकारियों की रिक्तियां मिजोरम में केवल 2 प्रतिशत से लेकर अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में 30 प्रतिशत से अधिक और मणिपुर में 43 प्रतिशत तक की हैं। असम में, यह कमी लगभग 26 प्रतिशत है।

प्रमुख चिकित्सा कर्मियों की इस तरह की कमी के साथ, उत्तर-पूर्व के राज्यों को महामारी से निपटने के लिए अपनी चिकित्सा सुविधाओं का सुधार करने का बढ़ावा देना आवश्यक था। इस क्षेत्र के राज्यों को जो दो महीने का वक़्त मिला था, उसका इस्तेमाल इसमें सुधार लाने के लिए किया जा सकता था। 

लेकिन रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि ऐसा नहीं किया गया है। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी द्वारा इस साल अप्रैल में प्रकाशित एक अध्ययन में कोविड-19 से निपटने के लिए विशेष सुविधाओं की गंभीर कमी की ओर इशारा किया गया है। [नीचे चार्ट देखें]

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जैसा कि देखा जा सकता है, इस पूरे इलाके में कुल 2,276 आईसीयू (गहन देखभाल इकाई) बेड और सिर्फ 1,138 वेंटिलेटर हैं। इन सुविधाओं की गंभीर रूप से कमी को महसूस करने के लिए, इसकी तुलना सक्रिय मामलों की वर्तमान संख्या (24 जून को) से करें, जो 3,680 हैं। बेशक, सभी को आईसीयू या वेंटिलेटर सुविधाओं की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन तब भी, मान लो कि एक तिहाई मामलों को महत्वपूर्ण देखभाल की जरूरत पड़ती है वह भी केवल एक सप्ताह के लिए तो स्वास्थ्य सुविधाएं भीड़ के मारे लड़खड़ा जाएंगी।

और, आने वाले दिनों में मामले बढ़ने के आसार हैं। इस वृद्धि को संभालने के लिए राज्यों की सरकारें कैसी योजना बना रही हैं, इसका कोई अता-पता नहीं है। जैसा कि आमतौर पर गुवाहाटी में चर्चा है कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के संकटमोचक, हिमंत बिस्वा सरमा, मणिपुर सरकार के संकट को संभालने में व्यस्त हैं, और वे भाजपा के विधायकों को दिल्ली तक पहुंचाने में व्यस्त हैं। संयोग से, सरमा 2006 से लगातार स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं - इसलिए स्वस्थय प्रणाली की उपेक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी काफी हद तक उनके कंधों पर है।

अर्थव्यवस्था पर असर

इलाके के सामने एक और गंभीर चुनौती विस्तारित लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था को होने वाली क्षति है, जिसमें जून माह में थोड़ी ढ़ील दी गई है, लेकिन गुवाहाटी सहित कुछ हिस्सों में लॉकडाउन को फिर से लागू किया गया है।

गुवाहाटी में सरकार द्वारा समर्थित ‘ओकेडी इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल चेंज एंड डेवलपमेंट’ द्वारा  असम की अर्थव्यवस्था पर महामारी (और लॉकडाउन के उपायों) के आर्थिक प्रभाव पर एक रिपोर्ट कहती है कि राज्य के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 8 प्रतिशत का नुकसान हुआ है, जो कि 27,000 करोड़ से अधिक के बराबर है।

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि लॉकडाउन से 67 लाख लोगों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी, और बेरोजगारी की दर 27 प्रतिशत तक पहुँच सकती है,जिसका मतलब है कि राज्य में लगभग 27 लाख लोग बेरोजगारों हो जाएंगे। रिपोर्ट का अनुमान है कि राज्य सरकार के राजस्व को भी 12,423 करोड़ रुपये से 18,236 करोड़ तक के नुकसान का अनुमान है। 

ओकेडी संस्थान के प्रोफेसर भूपेन सरमा कहते हैं कि प्रवासियों की वापसी दो तरह से संकट को बढ़ाएगी। पहला, इससे राज्य में बेरोजगारी बढ़ेगी, क्योंकि वापसी करने वाले लोग स्थानीय स्तर नौकरी पाने की कोशिश करेंगे। दूसरा प्रभाव आम तौर पर प्रवासी श्रमिकों द्वारा भेजे जाने वाले धन पर पड़ेगा।

“इन प्रवासियों द्वारा भेजे गया धन कृषि अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, और इसके रुकने से किसान परिवारों, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ा है। सरमा ने कहा कि वापस आने वालों को भी नौकरियों की आवश्यकता होगी, और इससे असम और अन्य राज्यों में पहले से ही बेरोजगारी की स्थिति ओर खराब हो जाएगी।

आठ पूर्वोत्तर राज्य इस प्रकार भविष्य में एक गंभीर स्थिति का सामना करेंगे, सालों के लिए नहीं तो कम से कम आने वाले कई महीनों के लिए ऐसा होगा। यदि वे संक्रमित हैं तो लड़खड़ाती स्वास्थ्य प्रणाली की शरण में जाने के बजाय उन्हें महामारी से बचने के लिए खुद का इंतजाम करना पड़ेगा और तब जब वे पहले से ही एक गंभीर आर्थिक संकट की चपेट में हैं, जो सभी को घेर रहा है। क्या राज्य सरकारें इस मुसीबत की घड़ी में आम लोगों को समझदारी से आगे बढ़ा सकती हैं?

मूल आलेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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