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बनारस की जंग—चिरईगांव का रंज : चुनाव में कहां गुम हो गया किसानों-बाग़बानों की आय दोगुना करने का भाजपाई एजेंडा!

उत्तर प्रदेश के बनारस में चिरईगांव के बाग़बानों का जो रंज पांच दशक पहले था, वही आज भी है। सिर्फ चुनाव के समय ही इनका हाल-चाल लेने नेता आते हैं या फिर आम-अमरूद से लकदक बगीचों में फल खाने। आमदनी दोगुना करने का सवाल उठता है तो भाजपा नेताओं और उनके नुमाइंदों की सांसें उखड़ने लगती हैं। 
Chiraigaon

बनारस के फलपट्टी इलाके के विख्यात चिरईगांव में आजकल हर गली और हर नुक्कड़ पर सिर्फ विधानसभा चुनाव की चर्चा है। हालांकि यह बात और है कि आम और फालसा का मौसम आने में अभी कई महीने बाकी हैं। लेकिन चिरईगांव के बागबानों  का जज़्बा ऐसा है कि बस पूछिए मत...! सिर्फ चुनाव के समय ही नहीं, हर वक्त वो अपने मंसूबों को इतनी ख़ूबसूरती से बयां करते हैं कि आप इनके क़ायल हो जाएंगे। भाजपा की डबल इंजन सरकार ने क्या किसानों और बागबानों की आय दोगुनी कर दी? मोदी-योगी सरकार ने इनके लिए क्या किया और क्या कर सकते थे? इस बात का अंदाजा सिर्फ़ चिरईगांव के बागबानों से बात करने से लगने लगता है। 

चिरईगांव के पूर्व ग्राम प्रधान धनंजय मौर्य सब्जियों का कारोबार करते हैं। वह आमतौर पर अपने आम-नींबू के बगीचे में सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते दिखते हैं तो कभी परेशान हाल लोगों की मुश्किलों का निराकरण करते। वह कहते हैं, ''चिरईगांव को इस बात से ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता कि सरकार किसकी है? जिसकी भी होगी वो फालसा और आम खाते वक्त चिरईगांव के बागबानों को याद जरूर करेगा। कोरोनासुर से जब समूचा देश संकट में फंसा तब भी हमीं याद आए। हमारे बगीचों में ''विटामिन-सी'' से भरपूर नीबूओं के लिए लाइन लग गई थी। सीजन आम का हो, फालसे का हो या फिर अमरूद, आंवला, बेल और कटहल का। हमारे बगीचों में पेड़ों पर आम, अमरूद और कटहल जैसे ही लटकते हैं तो नेता-परेता हमारे बगीचे की ओर दौड़ने लगते हैं। अफ़सोस इस बात का है कि बाग-बगीचों के अलावा हमारे बारे में दूसरा कोई ख़्याल नेताओं और अफसरों के दिमाग़ में आता ही नहीं है।"

शानदार बागबानी का नमूना चिरईगांव का यह बगीचा 

चिरईगांव के 71 वर्षीय बागबान बचाऊ लाल की दिनचर्या दूसरी है। इनके पास छह बीघे का बगीचा है, जिसमें वो अपनी पत्नी के साथ सुबह से शाम तक लगे रहते हैं, लेकिन मायूसी है कि इनका पीछा ही नहीं छोड़ रही। वह कहते हैं, "कई सालों से अखबारों में पढ़ रहा हूं कि किसानों-बागबानों की आमदनी दोगुनी होने वाली है, लेकिन वो कब होगी, इसका हमें सालों से इंतजार है? हम बागबानों  की ज़िंदगी में जैसे अमरूद और आम की मिठास का तमगा सा लग गया है। सभी को लगता है कि चिरईगांव के बागबान अच्छा खाते और पीते हैं। फिर उनके बारे में बात क्यों करना? विधानसभा के चुनाव में भी हम जैसे बागबानों  की न कोई चर्चा है, न हमारी आदमनी ही कोई मुद्दा है?"

चिरईगांव के प्रगतिशील बागवान बचाऊ लाल 

ऐसा गांव कोई नहीं 

चिरईगांव में घंटों गुजारने के बाद हमें इस बात का अहसास हुआ कि बनारस के इस चर्चित गांव में नेताओं का जमघट तभी लगता है जब फालसा और आम-अमरूद का सीजन आता है अथवा चुनाव का। चिरईगांव के बागबान आज भी सालों पुरानी आदतों को नहीं भूले। इस गांव में तमाम ऐसे लोग हैं जो सरकार का मुंह नहीं देखते। रोजाना तड़के झाड़ू लेकर गलियों और सड़कों पर उतर जाते हैं। सुबह होने से पहले समूचा गांव चमकने लगता हैं। शाम के समय चिरईगांव चौराहे पर स्थित चाय-पान की दुकानों पर बड़े-बूढ़ों का झुंड जहां-तहां दिखने लगता है। ऐसे ही एक झुंड के पास बैठने पर पता चला कि इन लोगों के हाथ से सजाए-सवारे बगीचों का आम और अमरूद मुलायम सिंह यादव, राजनाथ सिंह से लेकर सोनिया गांधी के निवास 10 जनपथ तक जाता है।

चिरईगांव सिर्फ यूपी ही नहीं, भारत का ऐसा आदर्श गांव है जो साल 1928 से लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। साल 1936 में भारत के वाइसराय लार्ड लिनलिथगो इस गांव में आए थे और यहां बागबानों  से मिलकर खासे प्रभावित हुए थे। चिरईगांव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि समूचे गांव में फलों के बाग सुंदर ढंग से लगाए गए हैं। इस गांव में चहुओर हरियाली देखते बनती है। चिरईगांव में लंगड़ा आम, बनारसी नीबू, बनारसी अमरूद,  बनारसी सीताफल,  बनारसी करौदा, फालसा, गुलाब, पपीता, केला, कटहल, आंवला, बेल, शरीफा, करौदा, कागजी बेल के अलावा अनन्नास तक का उत्पादन होता था। चिरईगांव में बेर, शहतूत, इमली, आमरा, जामुन, नाशपाती, तिपारी, खिरनी, अनार, अंजीर, लीची, सपोटा, ग्रेप फ्रूट, महुआ, मीठा नीबू, कदंब, बड़हर और अंगूर उगाया जाता है। इस गांव में 95 फीसदी लोग मौर्य-कुशवाहा जाति के हैं जो फल-बागवानी और सब्जियों की खेती में निपुण माने जाते हैं। 

प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा.मंसाराम मौर्य की एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक, "साल 1962 में चिरईगांव में 709 एकड़ में बाग थे। शहरीकरण के चलते इनका रकबा घटकर आधे से भी कम रह गया है। चिरईगांव के लोग अपने बागों को बेचकर खाली हो जाते हैं तो बाकी समय में शुरु कर देते हैं बनारसी साड़ियों की बुनाई। वही बनारसी साड़ियां देश-विदेश में विख्यात हैं। चिरईगांव में फलों बिक्री खटिक जाति के लोग करते रहे हैं, जो गांव के एक किनारे बसे हुए हैं। जब बागों में फल लग जाते हैं तो वो एक सीजन के लिए बगीचे खरीद लेते हैं। ये आज भी फलों को टोकरी में भरकर देश के प्रमुख शहरों में भेजते और बेचते हैं।"

चिरईगांव में अचार-मुरब्बा के आउटलेट पर पपीता वैज्ञानिक डा.मंसाराम मौर्य

आप जब चिरईगांव जाएंगे तो बागों की श्रृंखला देख मुग्ध हो जाएंगे। मनोहारी बाग-बगीचे नेताओं को भले ही न सुहाते हों, लेकिन फलों से लगदक बगीचे और फूलों से लदे खेत चिरईगांव की सुंदरता में चार-चांद लगाते हैं। एक जमाने में जगन्नाथ कुशवाहा, अदित्य नारायण, देवराज मौर्य, सुवच्चन और विश्वनाथ प्रसाद मौर्य की बागवानी के बड़े-बड़े लोग कायल थे। देश भर के नेता इनके बगीचे को देखने और फल खाने आते थे। पहले बनारस के मंदिरों के लिए गुलाब और गेंदे के फूल इसी गांव से भेजे जाते थे। साल 1960 में दिल्ली में विश्व कृषि प्रदर्शनी आयोजित की गई तो चिरईगांव के बागबानों का बनारसी आम, बनारसी आंवला,बनारसी अमरूद, बनारसी नीबू और कागजी बेल, बनारसी कटहल को पहला स्थान मिला था। इस गांव के गुलाब के फूल, गार्डेन मटर, बैगन, आलू, पपीता ने भी इस विश्व प्रसिद्ध प्रदर्शनी में अपना जलवा बिखेरा था।

मोदीराज में अनाथ हो गए बागवान 

बनारस का चिरईगांव कोई मामूली गांव नहीं है। इसी गांव की माटी से पूर्वांचल के कद्दावर नेता उदयनाथ सिंह तीन बार विधायक चुने गए और मंत्री भी बने तो आनंदरत्न मौर्य तीन बार सांसद। हम आनंदरत्न के पुत्र कुंदन मौर्य से मिले तो उन्होंने चिरईगांव के साथ ही बनारस की ‘हाट’ सीट शिवपुर का चुनावी नक्शा खींचा दिया और कहा, ''इस सीट पर पहले मौर्य-कुशवाहा समुदाय के लोग चुनाव जीता करते थे। सियासी दलों की अनदेखी के चलते हमारी बिरादरी के लोग अनाथ हो गए। करीब दस हजार की आबादी वाले चिरईगांव में करीब 4200 मतदाता हैं और हर कोई उदास मन से मतदान करता है। यहां किसी एक दल का वर्चस्व नहीं है। सपा, बसपा, भाजपा के अलावा जन अधिकार पार्टी भी वोट हासिल करती है। शिवपुर विधानसभा की बात करें तो यादव, राजभर और मुस्लिम समुदाय के लोग लामबंद हैं और सपा-सुभासपा गठबंधन के साथ खूंटे की तरह बंधे हैं। पिछली मर्तबा मौर्य-कुशवाहा और ब्राह्मणों ने भाजपा को झूमकर वोट दिया था। तब की बात और थी और इस बार यह तबका डबल इंजन की सरकार से नाराज है। कोई वादाखिलाफी से तो कोई उपेक्षा से।''

चिरईगांव के पूर्व सांसद आनंद रत्न मौर्य के पुत्र कुंदन मौर्य

कुंदन कहते हैं, ''भाजपा प्रत्याशी अनिल राजभर को "एरोगेंसी" ही ले डूबेगी। चिरईगांव के आसपास चार किलोमीटर के दायरे में कोई ऐसी सड़क नहीं है जो बदहाली की कहानी न कहती हो। सूबे में कबीना मंत्री होते हुए भी राजभर ने पांच सालों में एक भी सड़क का कायाकल्प नहीं किया। अफसोस इस बात का भी है कि डबल इंजन की सरकार विश्वनाथ कॉरिडोर को चुनावी मुद्दा बनाती है। मोदी अपने मेगा इवेंट से देश भर को रिझाते भी हैं, लेकिन वह दुनिया के चर्चित पर्यटक स्थल सारनाथ की बात ही नहीं करते। सत्ता में जो लोग आते हैं, उन्हें यह बताने में शर्म आती है कि दुनिया भर से हर साल जो 25 लाख विदेशी पर्यटक डॉलर लेकर आते हैं वो कॉरिडोर देखने नहीं, सारनाथ में भगवान बुद्ध की तपास्थली पर मत्था टेकने आते हैं।" 

कुंदन यहीं नहीं रुकते। अपने रंज का इजहार करते हुए वह कहते हैं, "किसी सियासी दल ने चिरईगांव और उससे सटे सारनाथ इलाके के लिए कुछ भी नहीं किया। बनारस में डॉलर बरसाने वाले जापान और कोरिया आदि देशों के वही लोग होते हैं जिन्हें भगवान बुद्ध में अगाध श्रद्धा होती है। डबल इंजन की सरकार को बुद्ध को भले ही नहीं सुहाते, लेकिन चिरईगांव के बागबानों की आस्था उन्हीं में है। यह कितनी शर्म की बात है कि अपने देश के नेता विदेशों में जाते हैं तो उन्हें बुद्ध याद आते हैं, उनकी बात भी करते हैं। लेकिन जब वो अपने देश लौटते हैं तो बुद्ध को बिसरा देते हैं। चिरईगांव से सटा ये जो सारनाथ है वो पूर्वांचल के लाखों बाग़बानों के लिए मक्का-मदीना से कम नहीं है। यहां धरती में एक इंच भी खोदेंगे तो बुद्ध को पाएंगे और ज्ञान का अहसास होगा। बुद्ध की धरती को चिरस्थायी बनाने के लिए सबके सहयोग से चिरईगांव के चौराहे पर 20 फीट ऊंची बुद्ध की प्रतिमा लगाने की योजना है।''  

चिरईगांव के अचार-मुरब्बा पर उपेक्षा की मार 

चिरईगांव में पिछले साल के मुकाबले इस साल आम की फसल ज्यादा अच्छी नहीं है। फिर भी कुछ पेड़ों पर जो बेर लगे हैं, उससे बागबान बड़ी उम्मीद लगाए बैठे हैं। पिछले दो सालों से कोरोना की वजह से जो हालात बने हैं उससे लोग डर भी रहे हैं। पता नहीं बाजार तक आम पहुंच पाएंगे अथवा यहीं सड़ जाएंगे। संजीवन मौर्य कहते हैं, ''चिरईगांव में बागबान इस बात से परेशान हैं कि आने वाले आम के सीजन में उनके कारोबार का क्‍या होगा? चिरईगांव प्रखंड का फलपट्टी क्षेत्र फलों के राजा बनारसी लगड़ा आम के प्रसिद्ध है। प्योर बनारसी लंगड़ा आम का उत्पादन सिर्फ बनारस में ही होता है। एक जून से 20 जुलाई तक आम का सीजन चलेगा, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से इस बार हालात वैसे ही हैं, जैसे दो सीजन पहले तक थे। कुछ भी तय नहीं लग रहा। अगर कोरोना की कोई और लहर आ गई तो आम बागों से मंडियों तक पहुंच पाएगा, इस बात की गारंटी नहीं है। ऐसे हाल में किसानों और आम के व्‍यापारियों को औने-पौने दाम पर अपनी फसल बेचनी होगी। इन हालातों को देखते हुए सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए ताकि आम बिक पाएं। सरकार जिस तरह गन्‍ने और गेहूं का मूल्‍य तय करती है, उसी तरह आम-अमरूद का भी दाम तय होना चाहिए। कोरोना के संकटकाल में यह जरूरी कदम होगा।"

चिरईगांव के लघु उद्यमी संजीवन मौर्य

चिरईगांव के तमाम घरों में अचार, चटनी, मुरब्बा, चेरी, फलों की कैंडी बनाने का धंधा होता है, जहां बड़ी संख्या में श्रमिकों को रोजगार मिला हुआ है। चिरईगांव का अचार पेटेंट कराने वाले 82 वर्षीय अजय कुमार मौर्य ने 66 साल पहले अचार-मुरब्बे की पूर्वांचल की पहली फैक्ट्री खड़ी की थी। वह कहते हैं, ''हमसे लाल मिर्च और आम का अचार की सप्लाई लेकर नीलांस कंपनी ने अपना धंधा खड़ा किया। खुद की फैक्ट्री लगा ली तो चिरईगांव के कारोबारियों को भूल गए। बनारस के लोगों को शायद यह भी पता नहीं होगा कि जिस गुलकंद और चेरी से बनारसी पान लजीज बनता है, उसे बनाने की कला हमारे पुरखों ने ही विकसित की थी। तमाम फलों से अचार-मुरब्बा, जूस-कैंड तो सभी बनाते हैं, हमने परवल से अचार और कैंडी बनाना शुरू कर दिया है। यह खोज हमारी है और हो सकता है कि कुछ दिनों के बाद हमारे हुनर को कोई बड़ी कंपनी अपने नाम से पेटेंट करा ले।''  

चिरईगांव की एक फैक्ट्री में मुरब्बे की पैकिंग करते श्रमिक

भाजपा के प्रचार-पाखंड का विरोध

चिरईगांव में सिर्फ सियासी दलों के नेताओं की गाड़ियां ही नहीं, वो किसान नेता भी दौड़ रहे हैं जिन्हें डबल इंजन की सरकार से नाराजगी है। खासतौर पर वो किसान जिसे मोदी सरकार ने एक साल से ज्यादा समय तक आंदोलन करने पर विवश किया। समाजवादी जन परिषद के अफलातून और चौधरी राजेंद्र सिंह बीएचयू के छात्र-छात्राओं को साथ लेकर गांव-गांव घूम रहे हैं और डबल इंजन की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए पर्चे भी बांट रहे हैं। इनका एक जत्था हमें चिरईगांव की गलियों में मोदी-योगी के खिलाफ नारेबाजी करते दिखा। किसान नेता चौधरी राजेंद्र सिंह ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, ''देश और संविधान को बचाने के लिए संप्रदायवादी और देश तोड़ने वाली भाजपा को उखाड़ फेंकना जरूरी है। ये जो डबल इंजन की सरकार थी, वो पांच साल तक अपने झूठे प्रचार-पाखंड से जनता को लड़ाती रही।''  

''इस सरकार ने संविधान विरोधियों और राष्ट्रद्रोहियों को न सिर्फ संरक्षण और प्रोत्साहन दिया, बल्कि देश की संवैधानिक संस्था-चुनाव आयोग, ईडी, आयकर, सीबीआई, पुलिस, सेना और अदालतों का भी दुरुपयोग किया। पेगासस से गैर-कानूनी तरीके से जासूसी कराई और देश के संसाधनों व सार्वजनिक उपक्रम-रेल, स्टेशन, हवाई अड्डा, बंदरगाह, फोन, बीमा, बैंक, प्रतिरक्षा-सामग्री निर्माण कंपनियों को कारपोरेट घरानों के हवाले कर दिया।'' 

चिरईगांव में भाजपा सरकार के खिलाफ मतदान के लिए पर्चा बांटते किसान नेता

चौधरी कहते हैं, ''डबल इंजन की सरकार में याराना कंपनियों की संपदा बेहिसाब बढ़ाई गई और किसानों-बागबानों  का अनाज बांटकर देश की 80 करोड़ जनता को भिखमंगा बना दिया गया। भुखमरी, महंगाई, बेरोजगारी से किसानों, बुनकरों, मजदूरों, कारीगरों और आदिवासियों का बुरा हाल है। कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए भाजपा सरकार ने कोरोना के संकट काल में धोखे से कई ऐसे कानून बना डाले जिससे शिक्षा, और स्वास्थ्य पर कुलीन वर्ग का आधिपत्य हो गया। यूपी में जनद्रोही सरकार के दिन लौट रहे हैं और आने वाले दिनों में दिल्ली से भी मोदी सरकार के पांव उखड़ जाएंगे।''    

नौकरशाही ने छीन ली चिरईगांव की पहचान

उत्तर प्रदेश के बनारस में चिरईगांव के बागबानों का जो रंज पांच दशक पहले था, वही आज भी है। सिर्फ चुनाव के समय ही इनका हाल-चाल लेने नेता आते हैं या फिर आम-अमरूद से लकदक बगीचों में फल खाने। आमदनी दोगुना करने का सवाल उठता है तो भाजपा नेताओं और उनके नुमाइंदों की सांसें उखड़ने लगती हैं। स्थानीय पत्रकार आशु मौर्य कहते हैं, ''गर्मी के सीजन में बनारस की सरकार तो तभी जागती है जब हमारे खेतों में फालसे की तोड़ाई शुरू होती है। क्या अफसर-क्या नेता, समूचे बनारस के लोग चिरईगांव में मंडराने लगते हैं।'' 

''किसी को आम की पेटी चाहिए तो किसी को फालसे और अमरूद की। आफसरों और नेताओं का खेल देखिए। विधानसभा की जो सीट पहले चिरईगांव के नाम से जानी जाती थी और अब उसे नया नाम दे दिया गया है शिवपुर। हमारी शान और पहचान ही मिटा दी गई। बाहरी लोग यहां आकर इस गांव की परंपरा को, भाईचारे को ठोकर मारने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि यहां भाईचारे की गांठ कितनी मजबूत है जिसे तोड़ पाना किसी के बूते की बात नहीं।''  

आशु कहते हैं, ''विधानसभा चुनाव में ग़ौर करने वाली बात यही रह सकती है कि बनारस की शिवपुर विधानसभा सीट आख़िर किसकी झोली में जाएगी?  योगी सरकार में काबीना मंत्री रहे अनिल राजभर का मुकाबला इस बार सूबे के कद्दावर नेता ओमप्रकाश राजभर के पुत्र अरविंद राजभर से हो रहा है। बसपा के रवि मौर्य ने चुनावी मैदान में उतरकर लड़ाई को तिकोना बना दिया है। अभी तो फलपट्टी क्षेत्र के बागबानों और किसानों के मुंह बंद हैं। इस बार किसकी होगी जय और किसकी होगी पराजय? इसका फ़ैसला सात मार्च को चिरईगांव के बागबानों के सामने ही होगा।

(लेखक विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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