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दावा बनाम हक़ीक़त: किन्हें हुआ 'PM उज्जवला योजना' से लाभ?

नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) के 76वें चरण के आंकड़े प्रधानमंत्री उज्जवला योजना में लाभार्थियों के सरकारी दावे से विरोधाभासी तस्वीर पेश करते हैं।
PM उज्जवला योजना' से लाभ

प्रधानमंत्री उज्जवला योजना मोदी सरकार की एक मुख्य झंडाबरदार योजना थी। एक मई, 2016 को लॉन्च की गई PMUY के ज़रिए 2018 तक करीब 4.5 करोड़ गरीब परिवारों को गैस कनेक्शन दिए गए। माना जाता है कि 2019 के चुनाव में इस योजना ने एनडीए को काफ़ी फायदा पहुंचाया।

लेकिन नेशनल सैंपल सर्वे (NSS) के 76वें चरण के आंकड़े कुछ अलग ही कहानी बयां करते हैं। ये ज़रूरतमंदों तक योजना की पहुंच के सरकारी दावों को झूठा साबित करते हैं। एनएसओ ने PMUY पर दो तरह के आंकड़े दिए हैं।

पहला, राष्ट्रीय स्तर का यह सर्वे बताता है कि 11.4 फ़ीसदी परिवारों को ही PMUY के साथ-साथ दूसरी योजनाओं के तहत एलपीजी कनेक्शन पर सब्सिडी मिली है। इनमें से ज़्यादातर (10 फ़ीसदी) PMUY के तहत दिए गए थे।

अगर कोई 2016 से 2018 के बीच के एलपीजी कनेक्शन पर सब्सिडी पाने वाले परिवारों की संख्या देखे, तो यह आंकड़ा करीब 3.17 करोड़ (जनसांख्यिकीय आंकड़ों के मुताबिक़) पहुंचता है। लेकिन पेट्रोलियम और प्राकृतिक मंत्रालय के आंकड़े इससे उलटी तस्वीर पेश करते हैं। इनके मुताबिक़, 2016 से 2018 के बीच सब्सिडी वाले 5.2 करोड़ कनेक्शन बांटे गए, इनमें से 4.48 करोड़ कनेक्शन PMUY के तहत दिए गए।  

साफ है कि 2016 से 2018 के बीच सब्सिडी युक्त कनेक्शन की संख्या में दो करोड़ का अंतर है, जिन्हें गिना नहीं गया। इससे PMUY के क्रियान्वयन में बड़ी खामियां उजागर होती हैं।

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एनएसएस सर्वे में एक तरह के और अहम आंकड़े बताए गए हैं। इनके मुताबिक़ भारत में 61.4 फ़ीसदी परिवार ही खाना बनाने के लिए LPG का इस्तेमाल करते हैं (तालिका 2)। ग्रामीण इलाकों में आधे से कम(48.2 फ़ीसदी) परिवार ही प्राथमिक तौर पर एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं। यह आंकड़े सरकारी दावों से काफी कम हैं।

पेट्रोलियम मंत्रालय की 'पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल' तीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (IOCL,BPCL और HPCL) द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर एलपीजी मार्केटिंग के ऊपर नियमित आंकड़े जारी करता है। एक जुलाई, 2018 को जारी किए गए इसके आंकड़ों के मुताबिक़, 84.3 फ़ीसदी परिवार इन्ही तीनों कंपनियों द्वारा दिए गए कनेक्शन का इस्तेमाल करते हैं।
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यह ध्यान देने वाली बात है कि मंत्रालय और सर्वे के आंकडों में अंतर है। क्योंकि एनएसएस सर्वे सभी एलपीजी उपभोक्ताओं को गिनता है। इनमें न केवल अधिकृत उपभोक्ता होते हैं, बल्कि ब्लैक मार्केट या निजी तौर पर गैस भरवाने वालों को भी गिना जाता है। इस किस्म के गैस सिलेंडर को शहरी गरीब, खासकर प्रवासी मज़दूर बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि उन्हें अस्थायी पते पर गैस कनेक्शन नहीं मिल पाता है।

कनेक्शन पर आधारित आंकड़े परिवारों की असली कवरेज से ज़्यादा भी हो सकते हैं। क्योंकि कई परिवारों में एक से ज़्यादा गैस कनेक्शन होते हैं। इस तरह की कई खामियां PMUY द्वारा दिए गए गैस कनेक्शनों के आंकड़ों में हो सकती हैं।

इससे ज्यादा अहम यह है कि एलपीजी कनेक्शन लेने वालों और एलपीजी कनेक्शन के वास्तविक इस्तेमाल करने वालों की संख्या में भी भारी अंतर है। क्योंकि बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनके पास एलपीजी कनेक्शन है, पर एलपीजी सिलेंडर की भारी कीमत के चलते वे इसका इस्तेमाल नहीं करते। उन्हें जलाऊ लकड़ियां, फसलों के बचे हुए अवशेष और कंडे सस्ते पड़ते हैं।

2018 में, सर्वे ने बताया कि जलाऊ लकड़ी, फसल अवशेष और कंडे ग्रामीण भारत के आधे और देश के कुल लोगों के 35 फ़ीसदी हिस्से के लिए ईंधन का प्राथमिक स्त्रोत हैं।(तालिका 2)

राज्य स्तर पर एलपीजी कनेक्शन लेने वालों और उनका इस्तेमाल करने वालों के आंकड़ों में कई जगह भारी अंतर दिखाई पड़ता है। यह हिमाचल प्रदेश, पंजाब, गोवा, हरियाणा और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों में 40 फ़ीसदी तक पहुंच जाता है।

एनएसओ सर्वे से पता चलता है कि राज्यों में भी एलपीजी के इस्तेमाल में भारी अंतर है (तालिका 1)। ओडिशा (33 फ़ीसदी), झारखंड (33फ़ीसदी) और मेघालय (35 फ़ीसदी) इसमें सबसे नीचे हैं। वहीं पुडुचेरी (97 फ़ीसदी), सिक्किम (96 फ़ीसदी), गोवा और दिल्ली (94 फ़ीसदी) एलपीजी इस्तेमाल करने वाले परिवारों के मामले में शीर्ष पर हैं। बड़े राज्यों में तेलंगाना (90.7 फ़ीसदी), तमिलनाडु (87 फ़ीसदी), कर्नाटक और आंध्रप्रदेश (81 फ़ीसदी) के साथ आगे हैं।  
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ध्यान देने वाली बात है कि PMUY के प्रशासनिक आंकड़ों में भी एलपीजी कनेक्शन लेने वालों और कनेक्शन को इस्तेमाल करने वालों की बड़ी संख्या में अंतर दिख जाता है। आंकड़ों के मुताबिक़, PMUY के तहत दिए गए कनेक्शनों में, 2018 में औसत तौर पर प्रति कनेक्शन पर 1.6 सिलेंडर सालााना भरे गए। 2016 से 2018 के बीच यही दर बनी रही।

कुल मिलाकर, एनएसएस आंकड़ों और एलपीजी के सरकारी आंकड़ों की तुलना से पता चलता है कि PMUY के तहत दिए गए कनेक्शन, बड़ी संख्या में ज़रूरतमंदों तक पहुंचने में नाकामयाब रहे। सरकारी आंकड़ों से यह भी दिखता है कि PMUY के तहत मिले कनेक्शन का संबंधित लोग कम ही इस्तेमाल करते हैं।

उनके द्वारा रिफिल करवाए गए सिलेंडर की मात्रा बेहद कम है। सर्वे से यह भी पता चलता है कि ग्रामीण इलाकों में एलपीजी को कम स्तर पर घरेलू ईंधन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आधे से ज़्यादा ग्रामीण परिवार आज भी जलाऊ लकड़ी, कंडे और फसल अवशेषों को मुख्य ईंधन के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं।

PMUY को 2019 में बीजेपी की जीत में बड़ा कारक माना गया था। यह सही हो सकता है, लेकिन योजना से जरूरतमंदों को फायदों के दावों और इसकी असली पहुंच में भारी अंतर है।

देशेन डोलमा Society for Social and Economic Research, नई दिल्ली में रिसर्च फैलो हैं। आप उनसे dechen@sser।in पर संपर्क कर सकते हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Claims Vs Reality: Who Benefited from PM Ujjwala Yojana?

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