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कोयला नीलामी: सभी 42 कंपनियां की तरफ़ से मानदंडों का उल्लंघन, उचित परीक्षण की ज़रूरत

एनवायरोनिक्स ट्रस्ट और मिनरल इनहेरिटर्स राइट्स एसोसिएशन की तरफ़ से किये गये एक आकलन से पता चलता है कि एक भी कंपनी प्राकृतिक संसाधनों की बोली प्रक्रिया में अक्सर अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की तरफ़ से एक मानदंड के तौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले फ़िट एंड प्रोपर पर्सन परीक्षण पर खरा नहीं उतरती है।
कोयला नीलामी

पांच दशकों में पहली बार भारत के कोयला भंडार को निजी क्षेत्र के बोली लगाने वालों के लिए खोल दिया गया है। फ़िलहाल 38 कोयला ब्लॉकों की नीलामी चल रही है। चूंकि बड़े-बड़े कॉरपोरेट्स अपनी संपत्ति की सूची में कोयला भंडार को भी जोड़ने को लेकर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, ऐसे में बहुत से कार्यकर्ता और पर्यावरण विशेषज्ञ भारत के प्रमुख प्राकृतिक संसाधन के इस क़ीमती हिस्से को हासिल करने वालों की ज़रूरी पात्रता की तरफ़ ऊंगली उठाते हुए चेता रहे हैं।

एनजीओ, एनवायरोनिक्स ट्रस्ट और मिनरल इनहेरिटर्स राइट्स एसोसिएशन (MIRA)की तरफ़ से किये गये एक आकलन से पता चलता है कि एक भी कंपनी प्राकृतिक संसाधनों की बोली प्रक्रिया में अक्सर अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की तरफ़ से एक मानदंड के तौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले फ़िट एंड प्रोपर पर्सन परीक्षण पर खरा नहीं उतरती है।  

कोयला ब्लॉकों की बोली प्रक्रिया और उसके बाद के आवंटन को लेकर बरते जाने वाली ईमानदारी सुनिश्चित करने के लिए शोधकर्ताओं ने नियामक निकायों, विश्वसनीय इंटरनेट स्रोतों, क़ानूनी निष्कर्षों और समाचार स्रोतों से हासिल रिपोर्ट के आधार पर सुबूत इकट्ठे किये हैं। इस अध्ययन का दावा है कि इसका मक़सद विभिन्न कोणों से कंपनियों की साख का मूल्यांकन करना है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि राष्ट्रीय संपत्ति कहीं उस इकाई को तो नहीं सौंपी गयी है, जिसका रिकॉर्ड ख़राब हो।

इस बारे में कई सिविल सोसाइटी संगठनों के एक संगठन, MIRA के समन्वयक, सस्वती स्वेतलाना ने न्यूज़क्लिक से बताया, “पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए फ़िट पर्सन टेस्ट अहम है। इन कंपनियों की जवाबदेही वहन करने की क्षमता का आकलन करने और यह देखने के लिए कि क्या वे हमारे संसाधनों का इतना बड़ा हिस्सा सौंपे जाने के लायक हैं भी या नहीं, हमने अपने विश्लेषण में कई चीज़ों को शामिल करते हुए उनका वर्गीकरण किया है। इनमें उनका वित्तीय रिकॉर्ड, पर्यावरण के उल्लंघन पर उनका रुख़ और दूसरों के बीच प्रभावित समुदायों को लेकर ज़िम्मेदारी शामिल थी।”

हालांकि,उनका कहना है कि एक भी कंपनी इन मानकों पर खरा नहीं उतरी,अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा,“इस साल छह कंपनियों को शामिल किया गया था, जिनमें से पांच ने बोली लगाने की तारीख़ से तीन महीने से भी कम समय पहले ही अपना पंजीकरण करवाया था। (नीचे दी गयी तालिका देखें)। इसके अलावा, बोली लगाने वाली कुछ कंपनियों को अपने खनन के अनुभव को लेकर तक़रीबन कोई जानकारी नहीं है, जिससे ख़ास तौर पर संवेदनशील क्षेत्रों में उनकी पात्रता पर सवाल उठता है। आख़िर इन कंपनियों को किस आधार पर अनुमति दी जा सकती है ?”

उन कंपनियों की सूची जो खनन अनुभव के बारे में जानकारी प्रदान नहीं करती हैं:

पहले जब इन फ़र्मों की पात्रता के बारे में सवाल उठाये गये थे, तो उस समय केंद्र सरकार ने दावा किया था कि वह पूल के दायरे को व्यापक करने के लिहाज़ से कई तरह की कंपनियों को इसलिए शामिल कर रही है, ताकि कई लोगों को मौक़े दिये जा सके।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “आवंटन को लेकर हुए भारी घोटाले के बाद देश में नीलामी व्यवस्था लायी गयी थी। अदालत को लगा था कि नीलामी ज़्यादा से ज़्यादा क़ीमत पाने की सबसे अच्छी प्रक्रिया है। हालांकि, नीलामी की 10 किश्तें और प्रस्तावों को लेकर निरंतर चलते खींचतान और प्रतिभागियों,ख़ासकर जिनके पास खराब ट्रैक रिकॉर्ड है,उनकी सीमित संख्या सही मायने में किसी भी संस्था को नीलामी में भाग लेने की अनुमति देने से पहले एक विस्तृत फ़िट एंड प्रोपर पर्सन परीक्षण करने की ज़रूरत को दिखाती है।”

इतना ही नहीं,इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है, “इसके अलावा, वे नीलामियां,जिनकी इस क्षेत्र के समुदायों के साथ सहमति नहीं बन पायी है, वे प्रशासनिक तीन-पांच के ज़रिये तीसरे पक्ष की ज़मीन में निहित स्वार्थ पैदा करते हुए संविधान के साथ समझौता कर रहे हैं। यह शुरुआती मूल्यांकन साफ़ तौर पर इस बात की ओर इशारा करता है कि सरकार की तरफ़ से अगर कोई गंभीर विश्लेषण किया जाये,तो बोली लगाने वाले सही अर्थों में पात्रता की कसौटी पर खरे नहीं उतर पायेंगे,और सरकार नागरिकों की इस संपत्ति के संरक्षक के रूप में ऐसा करने के लिए अपने कर्तव्यों से बंधी हुई भी है।”

शोधकर्ताओं ने इस बात की मांग की है कि खनन गतिविधि के लिए कंपनियों की क्षमता का आकलन करने की विधि में फ़िट एंड प्रोपर पर्सन परीक्षण को शामिल होना चाहिए, या फिर केंद्र या राज्य सरकार इसे सुनिश्चित करने के लिए इस प्रक्रिया को सतत विकास ढांचे (Sustainable Development Framework) के भीतर अंजाम दे सकती है, भले ही इसकी अपनी परिकल्पना की कुछ सीमायें ही क्यों न हों।

केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट सतत विकास ढांचा आठ प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है। इन सिद्धांतों में शामिल हैं-पट्टों पर किये जाने वाले फ़ैसलों में पर्यावरण और सामाजिक संवेदनशीलता को शामिल करना, प्रमुख खनन क्षेत्रों में आकलन और मज़बूत प्रबंधन प्रणालियों के ज़रिये खदान स्तर पर प्रबंधन प्रभावों का आकलन।। इसके अलावा, नैतिक कार्य-पद्धति और ज़िम्मेदाराना कामकाज, क्योंकि बोली लगाने वाली ज़्यादतर कंपनियों को इन मानदंडों का उल्लंघन करते पाया गया था।

इससे पहले भारत ने 2015 में कोयला खदानों के लिए प्रतिस्पर्धी नीलामी शुरू की थी। सरकार ने इस साल इन प्रतिबंधों को हटाने और वाणिज्यिक कोयला खनन की अनुमति देने के लिए इस क़ानून में संशोधन कर दिया,यानी कि नीलामी हासिल करने वाले फ़र्म अब घरेलू और वैश्विक स्तर पर कोयले का खनन बिना किसी प्रतिबंध के कर सकेंगे और बेच सकेंगे।

शुरुआत में केंद्र ने इस विषय पर चर्चा करने के लिए 80 कोयला ब्लॉकों की सूची के साथ एक दस्तावेज़ जारी किया था और संभावित बोली लगाने वालों से सुझाव मांगे थे कि किस ब्लॉक को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। अंततः, बोली 41 ब्लॉकों से शुरू हुई, लेकिन राज्य सरकारों के विरोध और हस्तक्षेप के चलते कुछ ब्लॉकों को हटा दिया गया और कुछ नये ब्लॉक को शामिल कर लिया गया, इसके बाद नीलामी के लिए कुल 38 ब्लॉक रह गये हैं। अबतक जो नीलामी प्रक्रिया चली है, उसमें सिर्फ़ 21 ब्लॉक के लिए एक से ज़्यादा बोली लगायी जा सकी है। इन कंपनियों में से एक तो अपर्याप्त तकनीकी पात्रता की वजह से बाहर हो गयी है।

इस आलेख में जिस रिपोर्ट की चर्चा की गयी है,उसे यहां पढ़ा जा सकता है

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Coal Auction: Independent Analysis Reveals All 42 Companies Violate Norms, Suggests Proper Test

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