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लॉकडाउन संकट : मज़दूरों के हक़ में 10 अप्रैल को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक उपवास

एक ओर देश में लॉकडाउन को आगे बढ़ाने की चर्चा हो रही है, लेकिन दूसरी ओर करोड़ों मज़दूर अपने जीवन के संघर्ष से जूझ रहे हैं। इन मज़दूरों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए देश के कई राजनेताओं एवं जनसंगठनों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 10 अप्रैल को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक उपवास रखने का आह्वान किया है।
KaronaKuch

कोरोना संक्रमण के सामुदायिक फैलाव को रोकने के लिए अचानक घोषित लॉकडाउन के बाद मज़दूर वर्ग अपने जीवन संघर्ष से जूझ रहा है। करोड़ों मज़दूरों के पास एक दिन के लिए भी खाने का राशन नहीं है। असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के रोजगार खत्म हो गए हैं। लाखों मज़दूर रोजी-रोटी छिन जाने के बाद पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े। इसे आजाद भारत के सबसे बड़े पलायन के रूप में देखा जा रहा है। रास्ते में ही अब तक सौ से ज्यादा मज़दूर दम तोड़ चुके हैं। वे मंजिल तक भी नहीं पहुंच पाए हैं और यहां-वहां फंसे मज़दूर अपना सबकुछ खोकर अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं।

ऐसे कठिन समय में मज़दूरों को संबल देने के लिए उनके प्रति एकजुटता दिखाने के लिए ‘‘करो_ना_कुछ’’ #KaronaKuch अभियान के तहत देश के कई सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने 10 अप्रैल को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक उपवास रखने का आह्वान किया है। यह उपवास अपने-अपने घरों में रहकर ही किया जाना है। बुजुर्ग, डायबिटिज या अन्य गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्ति उपवास रखने के बजाय इस अवधि में मौन रख सकते हैं। सभी ने ‘‘करो ना कुछ’’ अभियान में शामिल होने और इस संदेश को देश के कोने-कोने में पहुंचाने की अपील की है।

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किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सुनीलम् ने बताया, ‘‘हम सब लॉकडाउन के चलते अपने घरों मे हैं। लेकिन इस लॉकडाउन का सबसे मारक असर बेघर लोगों पर पड़ा है, जो भीख मांग कर जीवन जीने को मजबूर थे, जो निःराश्रित है। इसके साथ ही इसका असर उन प्रवासी मज़दूरों, दिहाड़ी मज़दूरों ,ठेका मज़दूरों, निर्माण मज़दूरों, दैनिक मज़दूरों पर सर्वाधिक पड़ा है, जिनका रोजगार का जरिया खत्म हो गया है।’’

डॉ. सुनीलम् कहना है, ‘‘गांव मे रोजगार न होने के चलते गांव के छोटे किसान, खेतिहर मज़दूर और गरीब शहरों में जाकर रोजगार कर रहे थे। अचानक लॉकडाउन कर दिए जाने के चलते लाखों मज़दूर पैदल ही गांव की ओर लौट आए और हज़ारों रास्ते में फंस गए हैं। लॉकडाउन के चलते उनके पास आय का कुछ साधन नहीं है। सरकार ने राशन देने और बैंकों में सहायता राशि डालने की घोषणा की है, लेकिन जिन लोगों के कार्ड नहीं बने हैं या कार्ड शहरों के बने हैं, उन्हें राशन भी नही मिल पा रहा है।

राशन लेने जाने, बैंक में जाने पर पुलिस की पिटाई की तमाम घटनाएं सामने आ रही हैं। कुल मिलाकर 43 करोड़ गरीबों व असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों का सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार कागजों तक सीमित रह गया है। इसलिए यह जरूरी है कि उनके प्रति अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए जन संगठनों के साथी और देश की आम जनता कुछ करें, ताकि वे अकेला महसूस न कर सकें। इसलिए ‘‘करो ना कुछ’’ अभियान के तहत 10 अप्रैल को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक उपवास रखने का आह्वान किया गया है। ऐसे साथी, जो डाइबिटिज या अन्य बीमारी से पीड़ित हैं, वे मौन रखकर एकजुटता जाहिर करने के इस अभियान में शामिल हो सकते हैं।’’

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नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर ने बताया, ‘‘इस अभियान की पहल ग्राम सेवा संघ कर्नाटक की ओर से किया गया। हाथ से काम करने वाले लोगों के लिए सेवा संघ काम करता है, जिसमें खेतीहर मज़दूर, बुनकर एवं अन्य कारीगर शामिल हैं। उनके काम को देश में पहले से ही पर्याप्त सम्मान नहीं मिल रहा है और इस लॉकडाउन में करोड़ों लोगों पर प्रभाव पड़ा है।

मज़दूरों के दुख के समय में सामूहिकता प्रदर्शित करने के लिए इस अभियान के तहत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी सहित देश के वरिष्ठ सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने उपवास के लिए सहमति दी है।’’

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इस अभियान से जुड़ने के लिए बेंगलुरु के 102 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दुराई स्वामी, युसुफ मेहर अली सेंटर से जुड़े मुंबई के 97 वर्षीय प्रख्यात समाजवादी डॉ. जी.जी. पारिख, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी, प्रख्यात लेखक रामचन्द्र गुहा, कर्नाटक विधान परिषद के पूर्व उप सभापति बी.आर. पाटिल, युसूफ मेहर अली सेंटर की महामंत्री विजया चौहान, कर्नाटक के प्रसिद्ध गांधीवादी प्रसन्ना, राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष गणेश देवी, जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर, कृषि विशेषज्ञ वंदना शिवा, जल पुरुष राजेन्द्र सिंह, हिम्मत सेठ, किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सुनीलम् सहित कई जनांदोलकारियों ने आह्वान किया है और वे भी मज़दूरों के प्रति एकजुटता दिखाने के इस अभियान में उपवास रख रहे हैं। एनएपीएम की कई राज्यों की इकाइयों ने भी उपवास रखने के लिए सहमति जताई है।

उल्लेखनीय है कि 10 अप्रैल 1917 को राजकुमार शुक्ल के साथ महात्मा गांधी चंपारण के संघर्ष की शुरुआत करने बांकीपुर, पटना पहुंचे थे। चंपारण के संघर्ष ने ही सत्याग्रह को आज़ादी के आंदोलन को प्रमुख बना दिया था। इसलिए यह ‘‘करो ना कुछ’’ अभियान न केवल आम लोगों के लिए है, बल्कि सरकारों के लिए भी है कि वे इन करोड़ों मज़दूरों के लिए कुछ करें। लॉकडाउन के इस समय में मज़दूर अपने को अकेला पा रहे हैं। उन लोगों तक सरकार की ओर से विशेष राहत भी नहीं पहुंच रहा है।

डॉ. सुनीलम् ने बताया कि लॉकडाउन के समय हम यह विचार करें कि सरकारों की किन नीतियों के चलते आज न्यू इंडिया की यह शक्ल दिखलाई पड़ रही है। इस स्थिति को बदलने के लिए हमें विकास की वर्तमान अवधारणा को बदलने का सुनियोजित संगठित प्रयास करना होगा। वैकल्पिक विकास की नीति, आर्थिक नीतियों, स्वावलंबी गांव एवं पर्यावरण सम्मत नीतियों को लागू करने के  संघर्ष करना होगा। यह हमारा लॉकडाउन खुलने के बाद का लक्ष्य है, लेकिन तत्काल यह जरूरी है कि हम प्रवासी मज़दूरों सहित 43 करोड़ मज़दूरों की व्यथा को सरकार के समक्ष रखने और इन मज़दूरों के साथ एकजुटता जाहिर करने का काम किया जाए। 

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