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कोरोना संकट: दिल्ली सरकार का एंबुलेंस सेवा के साथ खिलवाड़, डीटीसी ड्राइवर चला रहे है एंबुलेंस

CATS कंट्रोल रूम को शिफ्ट न करके और सार्वजनिक परिवहन के ड्राइवरों को एंबुलेंस में कर्मचारियों की कमी को पूरा करने के लिए स्थानांतरित करके दिल्ली सरकार एंबुलेंस कर्मचारियों और उनकी सेवाओं का लाभ उठाने वालों दोनों के जीवन को ख़तरे में डाल रही है।
CATS
CATS एंबुलेंस कर्मचारी पीपीई किट पहने हुए। फोटो साभार:आउटलुक

दिल्ली में मरीजों को लकेर चलने वाली एंबुलेंस सेवा खुद ही बीमार हैं। उसका कंट्रोल रूम खुद कोरोना हॉटस्पॉट बना हुआ हैं। न्यूज़क्लिक द्वारा प्राप्त किये गए दस्तवेजों के मुताबिक चाहे वो कोरोना हॉटस्पॉट हो या एंबुलेंस का संचालन दोनों में ही सरकार अपने द्वारा निर्धारित मानको का ही पालन नहीं कर रही है।
 
इसका परिणाम यह हुआ कि इसका सीधा असर वहां काम करने वाले सैकड़ो कर्मचारी पर हुआ ,बड़ी संख्या में कर्मचारी कोरोना वायरस के संपर्क में आए हैं। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के लापरवाही का ख़ामियाजा सिर्फ कर्मचारियों को नहीं उठाना पड़ा, बल्कि इस लापरवाही ने दिल्ली के उन हज़ारो लोगो के जान के साथ भी खिलवाड़ है, जो इस सेवा का प्रयोग करते हैं।

10 मई को, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी प्रेस वार्ता में, राज्य में चलने वाली एंबुलेंस की कमी को ध्यान में रखते हुए और लोगों को समय पर एंबुलेंस मिले, इसके लिए निजी अस्पतालों की एंबुलेंस को सरकार के बेड़े में शामिल किया।

न्यूज़क्लिक द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेज़, राजधानी में इस ढहती आपातकालीन चिकित्सा सेवा के लिए जिम्मेदार, पर्दे के पीछे की कहानी का खुलासा करते हैं। दस्तावेज़ बताते हैं कि क्यों आज दिल्ली महामारी को नियंत्रित करने के लिए एंबुलेंस सेवा संघर्ष कर रही है। यह समस्या कोई एक दिन में नहीं बल्कि वर्षों में खड़ी हुई है। इसकी शुरुआत 2016 में ही हो गई थी, जब एंबुलेंस के संचालन को आउटसोर्स करने के फैसला किया गया था।
 
8 मई, 2020 को इस बात की जानकारी दी गई कि एंबुलेंस सेवा के कंट्रोल रूम के 46 कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव आये हैं। ये सभी कर्मचारी 24*7 निशुल्क एंबुलेंस सेवा के कॉल सेंटर में कार्यरत थे। हालांकि एक हिंदी अख़बार के मुताबिक यह आकड़ा अब 52 पहुँच गया है। जबकि अभी कई कर्मचारियों की जाँच रिपोर्ट अभी नहीं आई हैं। 

बताया जा रहा हैं कि जो कॉल सेवाओं को संभालते हैं, सहायक एंबुलेंस अधिकारियों के बीच संक्रमण का पहला मामला 15 दिन पहले ही आ गया था। लेकिन इसके बाद भी लक्ष्मी नगर में दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय की चौथी मंजिल पर स्थित कंट्रोल रूम में नियमित रूप से  काम जारी रहा। जबकि नियम कहता है कि जब कोरोना का मामला आया तो इसे कम से कम दो दिनों के लिए सील कर दिया जाना चाहिए था।
   
कंट्रोल रूम में ही एंबुलेंस कर्मचारी अपने लिए पीपीई किट रखने और लेने आते थे। कर्मचारियों ने पहले आरोप लगाया था कि एंबुलेंस के कर्मचारी वाटर कूलर और शौचालय का इस्तेमाल करते थे, संभवतः कंट्रोल रूम में संक्रमण का यही स्रोत बना।

प्रशासन द्वारा इमारत को सील नहीं करने के फैसले की CATS अधिकारियों को भारी कीमत चुकानी पड़ी, जिसके परिणामस्वरूप उनके परिवार के सदस्यों की जान भी ख़तरे में पड़ गई। चूँकि, वायरस के प्रकोप के मद्देनजर एंबुलेंस सेवा की मांग को लेकर चौबीसों घंटे कॉल आते रहे, इसलिए काम बंद करने का विकल्प प्रशासन के पास नहीं था।

यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि दिल्ली सरकार द्वारा 'बैकअप कंट्रोल रूम' स्थापित नहीं किया गया था, जो 2015 से ही प्रस्तावित है। जनवरी 2015 में CATS द्वारा जारी निविदा दस्तावेज (कॉन्ट्रेक्ट पेपर) के अनुसार , "CATS एंबुलेंस सेवा और नियंत्रण कक्ष के संचालन और रखरखाव के लिए बोली लगाने वालों को आमंत्रित किया था। उनसे ऑपरेशन के संचालन के लिए एक प्रस्तावित आधुनिक नियंत्रण कक्ष की स्थापना करने की बात कही गई थी, जिसके बाद CATS तत्कालीन नियंत्रण कक्ष एक बैकअप के रूप में काम करेगा।"

बेला रोड, दिल्ली में विजय घाट के पास, जहाँ CATS मुख्यालय स्थित है। दस्तावेज में कहा गया था कि  "आधुनिक कंट्रोल रूम तकनीक के माध्यम से वास्तविक समय डेटा रिकवरी के साथ मुख्य नियंत्रण कक्ष के रूप में कार्य करेगा और इसकी विफलता के समय में, बेला रोड पर मौजूदा कंट्रोल रूम 4 सीटों के साथ" बैकअप कंट्रोल रूम "के रूप में कार्य करेगा।"  

सितंबर 2017 में CATS के खातों की एक ऑडिट रिपोर्ट है, जिसे न्यूज़क्लिक द्वारा प्राप्त किया गया। यह पता चला कि बैकअप कंट्रोल रूम की स्थापना कभी नहीं की गई थी, हालांकि 2016 में एंबुलेंस सेवाओं के संचालन को आधुनिक नियंत्रण कक्ष बेला रोड से हटाकर वर्तमान स्थान पर लक्ष्मी नगर में CATS कंट्रोलरूम के रूप में स्थापति कर दिया गया था।

दिल्ली के महालेखाकार कार्यालय द्वारा तैयार ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया" इस ऑडिट  के दौरान हमने पाया कि बैकअप कंट्रोल रूम नहीं बना है, अभी तक CATS के पास जरूरी सिविल मरम्मत काम और बिजली के मरम्मत का काम करने के दौरन भी काम करने के लिए बैकअप रूम नहीं है।"

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ऑडिट रिपोर्ट की कॉपी जो बताती है कि बैकअप नियंत्रण कक्ष की स्थापना नहीं की गई है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि CATS की ओर से 33.63 लाख रुपये, बैकअप कंट्रोल रूम के लिए एक निजी एजेंसी को व्यर्थ ही दिए गए।  

CATS के पूर्व कर्मचारियों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि बैकअप नियंत्रण कक्ष अभी भी सेटअप नहीं किया गया है, यही वजह है कि पॉजिटिव मामलों के बाद भी, लक्ष्मी नगर स्थित कंट्रोल रूम में संचालन जारी रहा।

पूर्व कर्मचारी ने कहा “ कर्मचारी कोरोना से संक्रमित हो गए हैं। इसके बावजूद, इसे [कंट्रोल रूम] सील नहीं किया गया है क्योंकि अगर यह होता, तो बैकअप कंट्रोल रूम घोटाला उजागर हो जाता। यदि बैकअप स्थापित किया गया होता, तो कर्मचारियों को अपना जीवन जोखिम में नहीं डालना पड़ता।” अभी भी, लक्ष्मी नगर भवन से परिचालन को स्थानांतरित नहीं किया गया है, जहां दो शिफ्टों में कम से कम 39 सहायक एंबुलेंस अधिकारी काम कर रहे हैं।

प्रशासनिक अधिकारी, CATS के कार्यालय में भी उनका पक्ष जाने के लिए संपर्क किया गया। इस वर्ष फरवरी में सेवानिवृत्त हुए पूर्व प्रशासनिक अधिकारी (ऑपरेशन) लक्ष्मण सिंह राणा से भी संपर्क किया गया। उन्होंने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

सार्वजनिक परिवहन कर्मचारियों को एंबुलेंस संचालन में लगाया जा रहा है

दिल्ली सरकार कंट्रोल रूम के लिए एक बैकअप रूम स्थापित करने में अपनी स्वयं की कमियों को छिपाने के प्रयास में हैं। दूसरी ओर, पहले से ही बहुत खराब स्थति में काम कर रहीं एंबुलेंस सेवा का कर्मचारियों की भारी कमी ने इसकी पोल खोल दी है। लेकिन आज इस सेवा की सबसे अधिक जरूरत है तब यह खुद बीमार अवस्था में हैं।  

GVK-EMRI जो निजी कंपनी थी, जिसने 2019 में CATS एंबुलेंस सेवा के संचालन और रखरखाव का कॉन्ट्रेक्ट हासिल किया था। अप्रैल 2020 के पहले सप्ताह से ही इसके बड़ी संख्या में कर्मचारी, ड्राइवरों और पैरामेडिक्स काम पर नहीं आ रहे है। इसका मतलब यह हुआ जब से कोरोना वायरस ने रफ़्तार पकड़ी तब से एंबुलेंस सेवा कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है।

GVK-EMRI के दिल्ली के परियोजना प्रबंधक प्रमोद भट्ट ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि "हमारे 350 कर्मचारी डॉक्टर की सलाह पर होम क्वारंटाइन में है। जबकि 200-150 कर्मचारी काम पे नहीं आ पा रहे हैं क्योंकि वो दूसरे राज्यों में फंसे हुए हैं।"  

इसकी पुष्टि करते हुए, CATS कर्मचारी संघ के उपाध्यक्ष जसवंत लाकड़ा ने जो कहा वो कंपनी के बातों के विपरीत है। उनका कहना था कि कर्मचारियों ने एंबुलेंस में सुरक्षा उपकरणों की कमी के कारण काम करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा “ये (कर्मचारी) फ्रंट लाइन योद्धा है, जो वायरस से संक्रमित रोगियों को लाने और ले जाने का काम करते हैं। कॉन्ट्रेक्ट के अनुसार, उन्हें पीपीई प्रदान करने की जिम्मेदारी जीवीके ईएमआरआई पर थी, जो ऐसा करने में विफल रही, जिसके परिणामस्वरूप कर्मचारियों में संक्रमण का डर है।”

कर्मचारियों की कमी को पूरा करने के लिए, 4 मई को, दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) द्वारा जारी एक आदेश में, डीटीसी बस चालकों में से 350 को CATS में स्थानांतरित कर दिया गया। जसवंत ने बतया, "उन्हें एंबुलेंस को चलाने और काम करने के लिए उन कर्मचारियों के स्थान पर लाया गया है, जो काम पर नहीं आ रहे है।" इसकी पुष्टि भट्ट ने भी की।  

भट्ट ने कहा कि “हाल के महीनों में उत्तर प्रदेश और केरल सहित राज्यों से अतिरिक्त एंबुलेंस लाई गई हैं, इसी वजह से अतिरिक्त कर्मचारियों की आवश्यकता है। हालांकि 2019 के संविदा दस्तवेज़ के अनुसार, मैनपॉवर का प्रबंधन करना भी बोली लगाने वाली कंपनी की ज़िम्मेदारी है। परन्तु दिलचस्प बात यह है कि 2019 में CATS कंट्रोल रूम के संचालन को आउटसोर्स नहीं किया गया था।

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डीटीसी द्वारा 4 मई को जारी आदेश की प्रति, जिसमे सार्वजनिक परिवहन चालकों को CATS में स्थानांतरित किया गया है।

सार्वजनिक परिवहन ड्राइवरों को स्थानांतरित करने के उद्देश्य केवल यही है कि किसी भी हाल में एंबुलेंस सेवा को चालू रखा जाए। डीटीसी ड्राइवर चिकित्सकीय रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं कि एंबुलेंस में कर्मचारियों की जगह पर काम कर सकें। इसके कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं लेकिन जब हम आज इस दशक की सबसे बड़ी हेल्थ इमरजेंसी को झेल रहे हैं, तो इस समय भी शायद दिल्ली सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है।

बड़ा सवाल यह है की क्या यह सरकार इस सेवा के लिए खुद के ही निर्धारित मानकों के साथ धोखा नहीं कर रही है?  2019 के कॉन्ट्रेक्ट दस्तावेज के अनुसार , "एंबुलेंस मैनपॉवर के लिए योग्यता और प्रशिक्षण" के तहत, एक एंबुलेंस पैरामेडिक को संबंधित राज्य परिषद से पंजीकृत प्री-हॉस्पिटल ट्रॉमा तकनीशियन (पीटीटी) में सर्टिफिकेट कोर्स का धारक होना या नर्सिंग या फार्मेसी में डिप्लोमा धारक होना आवश्यक है। इसके साथ ही ड्राइवर को भी वैध ड्राइविंग लाइसेंस के साथ प्राथमिक चिकित्सा में प्रशिक्षित होना आवश्यक है।

लाकड़ा ने कहा, "डीटीसी ड्राइवरों में से कोई भी एंबुलेंस चलाने के लिए योग्य नहीं हैं लेकिन अब इन्हें दिल्ली में एंबुलेंस चलाने के लिए स्थानांतरित कर दिया गया है। एंबुलेंस सार्वजनिक परिवहन नहीं हैं। स्वास्थ्य के बारे में सोचें कि यह श्रमिकों और रोगियों दोनों के लिए खतरा है।"

हालांकि, संभावित जोखिमों के बारे में पूछे जाने पर, प्रमोद भट्ट ने सवाल को "समझा", लेकिन टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया “यह सरकार का निर्णय है, हमारा नहीं। उनसे पूछें, केवल वे [दिल्ली सरकार] ही जवाब दे सकते हैं।
 
जन स्वास्थ्य अभियान, एक राष्ट्रीय मंच जो देश भर में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में काम करता है, इसकी दिल्ली इकाई की सदस्य ऋचा चिंतन इस कदम को "विचित्र" मानती हैं। उनके अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में "एंबुलेंस सेवा की भयानक कमी है" और ऐसे "एडहॉक" उपाय केवल कोरोना के समय में इलाज को बदतर बना देंगे।

उन्होंने कहा एंबुलेंस स्टाफ को "[चिकित्सा] प्रोटोकॉल को जानने की ज़रूरत है। इस माहमारी के दौर में एंबुलेंस को नए सिरे से तैयार किया जाना चाहिए। क्योंकि लॉकडाउन के कारण निजी वाहनों पर प्रतिबंध लाग हुआ है।"

दिल्ली सरकार की चिकित्सा संबंधी शिथिलता पर गहरी चिंता जताते हुए इस फैसले ने CATS कर्मचारियों की यूनियन से भी किनारा कर लिया है, जिनमें से कई लोग 2019 के पहले ही श्रमिक अशांति के कारण घर बैठे रहने को मजबूर हैं।

2019 में, जब जीवीके ईएमआरआई को अनुबंध दिया गया था, तो कैट्स के तहत सभी नौकरियों को इस निजी कंपनी को आउटसोर्स किया गया था। अनुबंध के कर्मचारी, जिनके नियोक्ता दिल्ली सरकार थे, ने फैसले के खिलाफ विरोध किया और हड़ताल की, जो 76 दिनों तक चली।

इसे पहली बार अप्रैल 2016 में BVG-UKSAS EMS प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक निजी कंपनी को आउटसोर्स किया गया था। CATS कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष नरेंद्र लाकड़ा ने उसका जिक्र करते हुए न्यूज़क्लिक को बताया,  “ एक निजी कंपनी हमेशा धोखा देती है। कर्मचारियों के अधिकारों और वेतन के साथ भी धोखा देती है। जब आउटसोर्स नहीं किया गया तो दिल्ली की एंबुलेंस सेवाएं बेहतर थीं। अब, न तो जनता खुश है और न ही कर्मचारी।”

नरेंद्र और जसवंत उन श्रमिकों के एक समूह में शामिल हैं, जिन्हें दिल्ली सरकार द्वारा एक महामारी का सामना करने के बावजूद वर्षों के अनुभव के बावजूद एंबुलेंस चलाने के लिए काम पर नहीं बुलाया है। नरेंद्र ने कहा,“पिछले साल जून से लगभग 400 एंबुलेंस कर्मचारी घर पर बैठे हैं। दिल्ली सरकार के आश्वासन के बावजूद, हमें काम पर वापस नहीं बुलाया गया।”

एक डिटेल प्रश्नावली CATS परियोजना निदेशक, दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के सचिव को ईमेल के माध्यम से भेजी गई है। यदि उनका कोई जवाब प्राप्त होता है तो स्टोरी अपडेट कर दी  जाएगी ।  

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