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बंगाल में भी कोरोना विस्फोट, क्या चुनाव आयोग लेगा ज़िम्मेदारी?

कोलकाता हाईकोर्ट ने राज्य के हालात पर चिंता और नाराज़गी जताते हुए कहा कि बहुत हो चुकी चुनावी रैलियां, अब बस करिए और जनता को सोचने दीजिए कि किसे वोट देना है।
बंगाल में भी कोरोना विस्फोट, क्या चुनाव आयोग लेगा ज़िम्मेदारी?
Image courtesy : Scroll

पश्चिम बंगाल में जारी विधानसभा चुनाव के बीच कोरोना संक्रमण के हालात कितने भयावह शक्ल ले चुके हैं, इसे कोलकाता हाईकोर्ट की बेहद तल्ख टिप्पणियों से समझा जा सकता है। कोलकाता हाईकोर्ट ने राज्य के हालात पर चिंता और नाराजगी जताते हुए कहा कि बहुत हो चुकी चुनावी रैलियां, अब बस करिए और जनता को सोचने दीजिए कि किसे वोट देना है। हाईकोर्ट ने सख्त लफ्जों में चुनाव आयोग की कार्यशैली पर टिप्पणी कर हुए कहा कि वह अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा रहा है, सिर्फ कोविड प्रोटोकॉल संबंधी सर्कुलर जारी कर आयोग अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। हाईकोर्ट की यह टिप्पणियां साफ इशारा करती है कि बंगाल में कोरोना विस्फोट के लिए चुनाव आयोग का नाकारापन जिम्मेदार है।

दरअसल समूचे पश्चिम बंगाल में कोरोना का संक्रमण बुरी तरह फैल चुका है। चूंकि राज्य का समूचा प्रशासन इस समय चुनाव आयोग के अधीन काम कर रहा है, लिहाजा आरोप है कि संक्रमण और मौतों के सही आंकड़े सामने नहीं आने दिए जा रहे हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस समय सूबे के जो भी हालात बने हैं और आगे जो भी बनेंगे उसके लिए सिर्फ और सिर्फ चुनाव आयोग ही जिम्मेदार माना जाएगा। सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि उससे सटे बिहार और झारखंड में भी हालात बेहद भयावह है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के लिए भीड़ इन दोनों राज्यों से भी जुटाई जा रही है। इन तीनों ही राज्यों की सही तस्वीर अभी मीडिया भी पेश नहीं कर रहा है, क्योंकि उसका पूरा ध्यान उन 'हत्यारी’ चुनावी रैलियों और रोड शो का सीधा प्रसारण करने में लगा है, जिनका आयोजन 'ऐतिहासिक बेशर्मी’ के साथ किया जा रहा है।

पश्चिम बंगाल में जैसे-जैसे मतदान खत्म होने की ओर बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे कोरोना से संक्रमितों की संख्या भी तेजी से बढती जा रही है। राज्य में चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले रोजाना मिलने वाले संक्रमितों की संख्या तीन सौ के करीब आ गई थी और ऐसा लग रहा था कि यह प्रदेश कोरोना से मुक्त होने की ओर बढ़ रहा है। हालांकि यह हैरान करने वाली बात थी कि बंगाल जैसी बड़ी आबादी वाले राज्य में, जहां स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बेहद दयनीय है, वहां कोरोना खत्म हो रहा था। लेकिन हकीकत यही थी कि वहां कोरोना का संक्रमण बहुत हद तक नियंत्रण में था।

यही स्थिति तमिलनाडु, केरल और असम में भी थी। फिलहाल असम में तो स्थिति फिर भी काबू में है मगर बाकी राज्यों में हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। जिन राज्यों में चुनाव खत्म हो गए हैं और पश्चिम बंगाल में, जहां चुनाव अभी भी जारी है, वहां कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में 500 से लेकर 1200 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। चुनाव से पहले तमिलनाडु में जहां 500-600 मामले रोजाना आ रहे थे, वहां अब रोजाना 8000 से ज्यादा मरीज मिल रहे हैं। केरल में संक्रमण के मामले 2000 से नीचे आ गए थे लेकिन अब वहां संक्रमितों की संख्या 10000 हजार से ऊपर पहुंच गई है।

यही स्थिति पश्चिम बंगाल में है, जहां अब हर दिन 7000 के करीब नए मामले सामने आ रहे हैं। यह आंकडा वहां के प्रशासन द्वारा दी जा रही जानकारी के मुताबिक है, जबकि वास्तविक स्थिति इससे कहीं ज्यादा भयावह बताई जा रही है। चुनाव वाले राज्यों, खासकर पश्चिम बंगाल में कोरोना संक्रमण के जो भी हालात बने हैं, उसके लिए स्पष्ट तौर पर चुनाव आयोग जिम्मेदार है। अगर तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में एक दिन ही दिन में सभी सीटों के लिए मतदान हो सकता है तो पश्चिम बंगाल में आठ और असम में तीन चरणों में मतदान कराने का कोई औचित्य ही नहीं था। लेकिन उसने जिन राज्यों में भाजपा मुकाबले में नहीं थी, वहां तो एक ही दिन में मतदान करा दिया और पश्चिम बंगाल और असम में जहां भाजपा मुकाबले थी, वहां उसके शीर्ष नेतृत्व की सुविधा के मुताबिक क्रमश: आठ और तीन चरणों में मतदान कराने का कार्यक्रम बनाया। बंगाल में इतने लंबे चुनाव कार्यक्रम ने कोरोना संक्रमण को बढ़ाने का काम किया है।

बंगाल में हालात की गंभीरता को महसूस करते हुए वामपंथी दलों ने तो अपनी चुनावी रैलियां बहुत पहले ही रद्द करने का ऐलान कर मतदाताओं से घर-घर जाकर संपर्क करना शुरू कर दिया था। सत्तारूढ तृणमूल कांग्रेस भी ऐसा ही कर रही है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी राज्य में कोरोना संक्रमण के बेकाबू होते हालात के मद्देनजर अपनी सभी प्रस्तावित रैलियां रद्द करने का ऐलान कर दिया है।

तीनों प्रमुख दलों की ओर से चुनावी रैलियां रद्द करने के ऐलान के बाद उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा की ओर से भी ऐसी ही पहल होगी। लेकिन हुआ इस उम्मीद के ठीक उलटा। उसकी ओर से अधिकृत तौर पर अपनी प्रस्तावित रैलियां रद्द करने का कोई ऐलान नहीं हुआ। इसके विपरीत उसने दूसरे दलों के रैलियां रद्द करने के फैसले की खिल्ली उडाई। ऐसा करने वाले उसके कोई दूसरे या तीसरे दर्जे के नेता नहीं बल्कि केंद्रीय मंत्री हैं। अहंकारी तेवर के साथ अक्सर झूठ बोलने और विपक्षी नेताओं को लेकर बदजुबानी करने के लिए मशहूर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि राहुल के रैली रद्द करने का मतलब है कि उनको अपनी हार का अंदाजा हो गया है। ऐसे ही बयान कुछ अन्य केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा नेताओं के आए हैं। कोई भी सभ्य और संवेदनशील व्यक्ति इस तरह के बयानों को जायज नहीं ठहरा सकता। कोरोना के बढते संक्रमण के मद्देनजर रैलियां रद्द करने को चुनावी हार-जीत की संभावना से जोड़ना संवेदनहीनता की पराकाष्ठा तो है ही, साथ ही मूर्खतापूर्ण भी है, क्योंकि राहुल गांधी या उनकी पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल वामपंथी दलों की ओर से यह दावा कभी नहीं किया गया कि वे बंगाल जीतने के लिए लड़ रहे हैं। सब जानते हैं कि बंगाल में सत्ता का दावा तो तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ही कर रहे हैं।

कुल मिलाकर भाजपा नेताओं के बयानों से जाहिर है कि पश्चिम बंगाल में बढ़ रहा कोरोना का संक्रमण उनकी चिंता के दायरे से बाहर है। उनका एकमात्र लक्ष्य किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना और सत्ता हासिल करना है। यानी बंगाल में मतदान के बाकी बचे चरणों के लिए लिए भी उनकी चुनावी रैलियां और रोड शो जारी रहेंगे।

हालांकि अभी ख़बर आई है कि प्रधानमंत्री ने बंगाल में आगे होने वाली अपनी रैलियां फिलहाल रद्द कर दी हैं। इसे दिल्ली से लेकर कोलकाता हाईकोर्ट की फटकार का ही असर कहा जा सकता है। वरना अभी तक नरेंद्र मोदी तो अपनी रैलियों में आई हुई और लाई गई भीड़ को देखकर ही गदगद थे। हर कीमत पर बंगाल जीतने के लिए संकल्पित गृह मंत्री अमित शाह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी से पहले ही पल्ला झाड चुके हैं। उन्होंने साफ कह दिया है कि राज्य में चुनाव कैसे कराना है और कितने चरणों में कराना है, यह देखना चुनाव आयोग का काम है, जिसमें केंद्र सरकार कोई दखल नहीं देगी। अपनी पार्टी की चुनावी रैलियों के बारे में भी उन्होंने बेहद ढिठाई से कहा कि रैलियां करना हमारा संवैधानिक अधिकार है।

अब जब दो मई को विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बंगाल में तबाही की जो जमीनी हकीकत सामने आना शुरू होगी, वह बेहद डरावनी हो सकती है और उसके लिए 'स्वतंत्र और निष्पक्ष’ कहे जाने वाला चुनाव आयोग ही जिम्मेदार कहा जाएगा जो अब केंद्र सरकार के 'चुनाव मंत्रालय’ में तब्दील हो चुका है और जिसके कर्ताधर्ता सरकार के अर्दली की तरह बर्ताव कर रहे हैं। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सूबे में कोरोना संक्रमण की भयावहता को महसूस करते हुए चुनाव आयोग से अपील की थी कि बचे हुए चार चरणों का मतदान एक साथ करा लिया जाए, लेकिन चुनाव आयोग ने उनकी यह अपील ठुकरा दी थी।

अब यह खबर भी आ रही है कि चुनाव आयोग आखिरी के दो चरणों का मतदान एक साथ कराने पर विचार कर रहा है। जाहिर है कि चुनाव आयोग को भी हालात की गंभीरता का थोडा बहुत अहसास हुआ है और वह खुद को गंभीर दिखाने के दिखाने के लिए आखिरी के दो चरणों का मतदान एक साथ कराने का नाटक रचने की भूमिका तैयार कर रहा है। अगर आखिरी दो चरणों का मतदान एक साथ करा भी लिया तो स्थिति में कोई फर्क नहीं आने वाला है, क्योंकि जितना बिगाड़ होना था वह तो हो ही चुका है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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