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कोरोना वायरस और भारत की तैयारी 

ग्लोबल हैल्थ सिक्योरिटी इंडेक्स 2019 के अनुसार गंभीर संक्रामक रोगों और महामारी से लड़ने की क्षमता के पैमाने पर भारत विश्व में 57वें नम्बर पर आता है।
कोरोना वायरस
Image courtesy: The Weather Channel

'शुक्र है कि कोरोना वायरस का संक्रमण चीन में शुरू हुआ, भारत जैसे किसी देश में नहीं। भारत की व्यवस्था इतनी लचर है कि कोरोना से प्रभावी तरीके से निपट ही नहीं सकती थी। चीन ने जिस प्रकार चौतरफा मुस्तैदी से वायरस पर नियंत्रण पाया है वह भारत में संभव ही नहीं था। इस मायने में चाइना मॉडल की तारीफ़ की जानी चाहिए। मेरे विचार से ब्राज़ील भी इसमें सक्षम है।’

कुछ दिनों पहले प्रख्यात अर्थशास्त्री जिम ओ'नील Jim O'neil ने भारत के स्वास्थ्य-सेवा तंत्र और व्यवस्था पर कटाक्ष करते हुए यह टिप्पणी की। गौरतलब है कि जिम ओ’नील ही वह पहले अर्थशास्त्री हैं जिन्होंने 2001 में चीन, भारत, रूस और ब्राजील को विश्व की नई उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओ के रूप में पहचानकर ‘ब्रिक’ BRIC (Brazil, Russia, India, China), यह संक्षिप्त नाम इज़ाद किया था।

महामारी से लड़ने की अक्षमता के मद्देनज़र किसी देश की स्वास्थ्य-सेवा व्यवस्था पर यह कटाक्ष तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब कोरोना वायरस की महामारी पर चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्र के नाम सम्बोधन में देश के प्रधानमन्त्री संक्रमण को व्यापक रूप से फैलने से रोकने के लिए सरकार की तरफ से किए जा रहे एहतियाती उपायों और स्वास्थ्य सेवाओं की चुस्ती-दुरुस्ती के लिए किए जा रहे प्रयासों की घोषणा करने के बजाय एक दिन का ‘जनता कर्फ्यू’ और ‘थाली बजाने’ के शिगूफ़े छोड़ रहे हों।

राष्ट्र के नाम सम्बोधन का लब्बेलुबाब यह निकला कि देश के प्रधानमंत्री यह तो मानते हैं कि महामारी का खतरा आगे–आगे बढ़ने वाला है मगर उससे बचाव के लिए उपायों की जिम्मेदारी जनता के जिम्मे छोड़कर अपना पल्ला झाड लिया। महामारी की वजह से होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई का कोई रोड मैप उनके पास नहीं था ताकि कम से कम देश की गरीब जनता को रोटी के लिए मोहताज़ न होना पड़े।

भारत के लिए इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है कि आज भारत की व्यवस्था को ब्राजील के मुकाबले में भी अक्षम माना जा रहा है जबकि हम दावा विश्वगुरु होने का करते हैं । 

यद्यपि इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि कोरोना वायरस के हमले, फैलाव और तीव्रता को चीन ने शुरुआत में दुनिया से छिपाए रक्खा और इस वायरस को सबसे पहले पहचानने वाले चीनी डॉक्टर की मौत होने तक दुनिया इस जानलेवा वायरस की तीव्रता से लगभग बेखबर ही रही। मगर चीन ने जिस मुस्तैदी के साथ संक्रमण पर नियंत्रण पाने में सफलता प्राप्त की उसकी विश्व समुदाय ने प्रशंसा की है।

वुहान प्रांत में, जहां पिछले साल 31 दिसम्बर को कोरोना वायरस के संक्रमण की पहली बार पहचान हुई थी, मात्र एक हफ्ते के भीतर 1000 बिस्तरों का अस्पताल बनाकर तैयार कर दिया जिससे चीन सरकार की कार्यकुशलता का डंका दुनिया भर में बज गया। स्टेडियमों और सार्वजनिक इमारतों को क्रिटिकल केयर यूनिटों में तब्दील कर दिया गया। वुहान में, जो चीन कार उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है, सरकार ने तत्परता दिखाते हुए सख्ती से एक प्रकार की ‘तालाबंदी‘ लागू कर दी। इन पंक्तियों को लिखे जाने तक चीन ने 23 मार्च को देश को ‘कोरोना–मुक्त’ घोषित करने का निश्चय किया है।   

चीन के भयावह परिदृश्य से आतंकित विश्व में जब इस जानलेवा वायरस पर नियंत्रण पाने के लिए निवारक एवं नियंत्रक उपाय और शोध प्रारम्भ हो चुके थे तब भारत सरकार विदेशी राजकीय अतिथियों के स्वागत में ढोल–नगाड़े बजाने में व्यस्त थी। हद तो तब हो गई जब भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने कोरोना संक्रमण से बचने के लिए होम्योपैथिक और यूनानी दवाओं के नाम के साथ–साथ कुछ देसी नुस्खों की सूची भी जारी कर दी जिनकी प्रभावोत्पादकता का कई वैज्ञानिक आधार है ही नहीं।

वुहान से लौटे केरल के एक छात्र में कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए। उसके बाद राज्य में एक के बाद एक ‘आयातित’ कोरोना संक्रमण के मामलों की तादाद में इजाफा होने लगा। तब भी केंद्र सरकार की तंद्रा नहीं टूटी। अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर किसी प्रकार की कोई स्वास्थ्य जांच शुरू नहीं की गई। केरल अकेला ही इस जानलेवा संक्रमण से जूझता रहा। भारत सरकार के इस लापरवाह और सुस्त रवैये के पीछे कोई राजनीतिक कारण थे या महामारी से लड़ने के लिए तैयारी का अभाव, यह सरकार ही बेहतर जानती होगी।

जिम ओ’ नील के इस कथन के पीछे जो कारण रहे हैं यदि उनका सिलसिलेवार विश्लेषण किया जाए तो जिस सच्चाई की तरफ से हम आंखें मूंदे बैठे हैं, वही हमें आइना दिखाने लगेगी। देश में स्वास्थ्य-सेवाओं का मौजूदा तंत्र एक निराशाजनक तस्वीर पेश करता है। सवाल उठता है कि स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से निपटने के हमारे देश की स्वास्थ्य सुविधाएं सक्षम क्यों नहीं हैं? स्वास्थ्य को लेकर सरकारों में इच्छाशक्ति का अभाव क्यों है?

स्वास्थ्य-सेवा विशेषज्ञों का मानना है भारत का मौजूदा स्वास्थ्य-तंत्र कोरोना जैसी विश्वव्यापी महामारी के हमले को झेल पाने में असमर्थ है। लचर स्वास्थ्य सेवाएं, शहरों में घनी आबादी, भीषण वायु प्रदूषण, जागरूकता की भारी कमी और गंदगी से बजबजाते सड़कें और गलियाँ, ये सब मिलकर किसी भी महामारी के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं।

भारत सरकार ने कुल जीडीपी का मात्र 1.3% स्वास्थ्य सेवाओं के पर खर्चने का प्रावधान बजट में किया है, जो सवा अरब की आबादी वाले देश के लिए ऊँट के मुंह में जीरे के सामान है। यह पढ़कर आप चौंक जाएंगे कि ग्लोबल हैल्थ सिक्योरिटी इंडेक्स 2019 के अनुसार गंभीर संक्रामक रोगों और महामारी से लड़ने की क्षमता के पैमाने पर भारत विश्व में 57वें नम्बर पर आता है। नेशनल हैल्थ प्रोफाइल 2019 के अनुसार भारत में केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों द्वारा संचालित तकरीबन 26000 सरकारी अस्पताल हैं।

सरकारी अस्पतालों में पंजीकृत नर्सों और दाइयों की संख्या लगभग 20.5 लाख और मरीजों के लिए बिस्तरों की संख्या 7.13 लाख के करीब है। अब यदि देश की 1.25 अरब की आबादी को सरकारी अस्पतालों की कुल संख्या से भाग दिया जाए तो प्रत्येक एक लाख की आबादी पर मात्र दो अस्पताल मौजूद हैं। प्रति 610 व्यक्तियों पर मात्र एक नर्स उपलब्ध है। प्रति 10,000 लोगों के लिए मुश्किल से 6 बिस्तर उपलब्ध हैं।

सरकारी अस्पतालों में जरूरी दवाओं और चिकित्सकों की भारी कमी है। इसी कारण सेवारत डॉक्टरों और नर्सों पर काम का भारी दबाव रहता है। चिकित्सा जांच के लिए आवश्यक उपकरण  या तो उपलब्ध ही नहीं है और यदि उपलब्ध भी हैं तो तकनीकी खराबी के कारण बेकार पड़े रहते हैं। सरकारी अस्पतालों में चारों तरफ फैली गन्दगी व अन्य चिकित्सकीय कचरा कोरोना जैसे अनेकों जानलेवा वायरसों को खुला आमंत्रण देते प्रतीत होते हैं।

सरकारी अस्पतालों एवं स्वास्थ्य सेवाओं में आमजन का विश्वास शून्य के बराबर है। ग्रामीण इलाकों में तो स्वास्थ्य सेवाएं अस्तित्व में हैं ही नहीं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्दों में हमेशा ताला लगा रहता है। ऐसे में यदि सुदूर गाँवों में कोरोना का संक्रमण पहुंच जाए तो चिकित्सा व निगरानी के अभाव में होने वाली मौतों का आंकड़ा कहाँ तक पहुंच सकता है इसकी कल्पना से ही सिहरन होती है। प्राइवेट अस्पताल,जहाँ चिकित्सकों की कमी नहीं है, आधुनिकतम चिकित्सा उपकरण उपलब्ध हैं और स्वच्छता के उच्चतम मानदंडों का पालन किया जाता है, वे अपनी आसमान छूती महँगी चिकित्सा सुविधाओं के कारण इस देश की अधिसंख्य गरीब निम्नवर्गीय आबादी की पहुँच से बाहर हैं।

महंगे एलोपैथिक इलाज के बरक्स होम्योपैथिक दवाएं सस्ती होने की वजह से बहुतायत में भारतीय इस चिकित्सा पद्धति पर भरोसा करते है जिसका कोरोना के इलाज में प्रभावी होने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इन्हीं बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की रोशनी में जिम ओ’नील की टिप्पणी भारत सरकार के लिए एक स्पीड ब्रेकर की तरह आई है।

संक्रामक महामारी की रोकथाम के लिए जांच और निगरानी सबसे पहला और कारगर कदम होता है। आबादी के आपस में नज़दीकी सम्पर्क पर प्रतिबन्ध लगाना आवश्यक होता है जो मौजूदा अक्षम व्यवस्था के तहत असम्भव है। आबादी इतनी अधिक है कि सार्वजनकि परिवहन के साधनों में लोग भेड़–बकरियों की तरह ठुंसे रहते हैं। 35 यात्रियों की क्षमता वाली एक बस में सौ लोग यात्रा करने के लिए मजबूर हैं। ऐसे में  संक्रमण से बचने के लिए आबादी के मध्य अलगाव isolation नामुमकिन सा लगता है।  

चीन और इटली की तरह देश की पूरी आबादी को संक्रमित होने से बचाने के लिए वहां जिस प्रकार लॉक डाउन कर दिया गया वह भारत में संभव हो पाएगा इसमें संदेह है। 2011 की राष्ट्रीय जनगणना के मुताबिक़ हर छठा शहरी भारतीय फुटपाथों और झुग्गी झोपड़ियों में रहता है।

जाहिर है कि महामारी के व्यापक रूप से फ़ैलने पर समाज का यही गरीब तबका सर्वाधिक प्रभावित होगा। गौरतलब है कोरोना वायरस मनुष्य के श्वसन तंत्र को मारक रूप से प्रभावित करता है जिसके नतीजे में मौतें हो रही हैं। भयंकर वायु प्रदूषण से जूझ रहे भारत के लगभग सभी बड़े शहरों पर कोरोना वायरस के हमले का खतरा मंडरा रहा है क्योंकि प्रदूषित कमजोर हालत में पहुंच चुका है उसमें इस वायरस के संक्रमण का खतरा गाँवों के मुकाबले ज्यादा है।

विदेशों से आने वाले लोगों का वीसा रद्द करना, हवाई अड्डों पर थर्मल स्क्रीनिंग तभी प्रभावी हो सकेगा जब संक्रमित मरीजों के इलाज व निगरानी के लिए मौजूदा तंत्र मजबूत और प्रभावी हो। खेदजनक है कि प्रधानमन्त्री के सम्बोधन में रोकथाम व निगरानी को लेकर किसी प्रकार के सरकारी प्रयासों का कोई ज़िक्र ही नहीं था। 

देश में केरल एकमात्र ऐसा राज्य है जहां चीन की तरह सख्त प्रोटोकोल के साथ स्वास्थ्य विभाग से लेकर जमीनी स्तर पर प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं तक एक कमांड चेन तुरंत स्थापित कर दी गई। राज्य सरकार ने हाई अलर्ट जारी कर दिया। पुलिस ने सख्त निर्देश दिए कि कोरोना प्रभावित देशों से लौटने वाले सभी व्यक्ति स्वास्थ्य विभाग को सूचित करें अन्यथा कठोर कानूनी कार्यवाही की जाएगी। सभी शिक्षा संस्थानों, सिनेमाघरों को 31मार्च तक बंद कर दिया गया। सभी सरकारी व गैर सरकारी सार्वजनिक कार्यक्रम रद्द कर दिए गए।

धार्मिक आयोजनों को रद्द करने की सलाह दी गई। यहाँ तक कि जेलों में भी संभावित संक्रमित कैदियों के लिए अलगाव (isolation) वार्ड बना दिए। सभी संक्रमित व्यक्तियों को कड़ी निगरानी में स्वस्थ लोगों से अलग-थलग रखने की पुख्ता व्यवस्था की गई। संक्रमित व्यक्ति और उसके परिजनों को सीधे और टेली काउंसलिंग के माध्यम से मनोवैज्ञानिक सलाह के दी जा रही है ताकि उनका मनोबल बना रहे। अंतत: संक्रमण के नियंत्रण में आशातीत सफलता भी पाई।

सबसे महत्वपूर्ण बात केरल सरकार ने महामारी के आर्थिक दुष्प्रभावों का असर कम करने के लिए 20,000 करोड़ के पैकेज की घोषणा की है। 1320 करोड़ रुपये का प्रावधान उन परिवारों को 2 माह तक 1000 रुपये की मासिक सहायता राशि प्रदान करने के लिए किया गया जो कल्याणकारी पेंशन योजना के तहत नहीं आते। 2000 करोड़ के ब्याजमुक्त क़र्ज़ का वितरण, 2000 करोड़ रोज़गार गारंटी योजना हेतु, 500 करोड़ स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आबंटित किए हैं।

जरूरतमंद लोगों को अनाज मुहैया करने के लिए 100 करोड़ के अनाज का मुफ्त वितरण के अतिरिक्त अन्य कई प्रकार के करों में छूट दी गई है ताकि महामारी से त्रस्त जनता के ऊपर किसी प्रकार का कोई अतिरिक्त आर्थिक बोझ न पड़े। ज्ञात हो कि केरल वही राज्य है जिसने 2018 में भी अकेले अपने दम पर जानलेवा निपाह वायरस को परास्त करने में सफलता पाई थी। बेहतर होगा कि केंद्र सरकार इस आपदा से निपटने के लिए केरल सरकार से परामर्श कर ज़रूरी और एहतियाती कदम तुरंत उठाए।

'नमस्ते' या ‘नक़ाब’ की परंपरा पर इठलाने की जरूरत नहीं है। नित्य प्रति सामूहिक धार्मिक आयोजनों, भंडारों, वृहत्त वैवाहिक आयोजनों वाले इस देश में मात्र नमस्ते या नक़ाब के माध्यम से कोरोना से बचा नहीं जा सकता।

जहाँ दुनियाभर में आक्रामक उपायों के ज़रिए इस वायरस पर नियंत्रण पाने की कोशिशें हो रही हैं वहां भारत में एक धर्मगुरु कोरोना के इलाज के लिए गौमूत्र और गोबर के सेवन के लिए पार्टी आयोजित कर रहे हैं, एक मौलवी झाड–फूंक के ज़रिए कोरोना का इलाज़ मात्र दस रुपये में करने का दावा कर रहे हैं। हिंदुस्तान की कुछ जाहिल महिलाएं धर्मस्थलों में बैठकर कोरोना को भगाने के गीत गा रही हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ योग को और असम राज्य की एक विधायक गौमूत्र को कोरोना के इलाज की औषधि घोषित कर चुके हैं।
यदि अर्थशास्त्री जिम ओ’नील ‘चिकित्सा की इन भारतीय पद्धतियों’ से वाकिफ़ होते स्वास्थ्य तंत्र की आलोचना करने के बजाए अपना सिर धुन रहे होते।

 
(मीनू जैन, ‘Dignity Dialogue’ की पूर्व संपादक हैं। विचार निजी हैं।)

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