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कोरोना वायरस: दिहाड़ी मजदूरों के सामने संकट कितना बड़ा है?

लॉकडाउन का सबसे बुरा असर प्रवासी खासकर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है। अभी इनकी मदद के लिए कई हाथ सामने आए हैं लेकिन क्या इससे इनकी समस्याओं का हल मिल पाएगा?
कोरोना वायरस
Image courtesy: Social Media

लॉकडाउन का सबसे बुरा असर प्रवासी खासकर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है। इनका रोजगार छिन गया और ये अपने-अपने घर लौटने को विवश हैं। सार्वजनिक परिवहन पर पाबंदी के कारण इन्हें पैदल ही घर जाना पड़ रहा है। अगर हम उत्तर भारत की बात करें तो ये मजदूर दिल्ली-एनसीआर से बिहार, राजस्थान, यूपी, हरियाणा तक की यात्रा पैदल करने को मजबूर हैं। वहीं, महाराष्ट्र के शहरों मुंबई, पुणे तो गुजरात के बड़े शहरों सूरत, अहमदाबाद लगभग पूरे देश से इस तरह प्रवासी मजदूरों के पैदल सफर की कहानियां सामने आ रही हैं।  

हालांकि ऐसे में कुछ सुकून देने वाली खबरें भी सामने आई हैं। मुंबई में लॉकडाउन से प्रभावित गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों की मदद के लिए फिल्म उद्योग सामने आया है। दिहाड़ी मजदूरों के सामने खाने पीने की दिक्कतों को देखते हुए 'आई स्टैंड विथ डेली वेजेस ऑर्नर्स' अभियान की शुरुआत की गई है। इसके तहत दिहाड़ी पर काम करने वाले करीब 10 लाख मजदूरों के पूरे परिवार को 10 दिनों के राशन देने की बात कही गई है। इस अभियान को कार्तिक आर्यन, राजकुमार राव, रोहित शेट्टी, राजकुमार हिरानी, एकता कपूर जैसी फिल्मी हस्तियों का सर्मथन मिला है।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को इन मजदूरों के लिए विशेष व्यवस्था करने की बात कही। उन्होंने पुलिस को इनके खाने-पीने और सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा। उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से भी गुरुग्राम और फरीदाबाद से आ रहे मजदूरों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाने का आग्रह किया है।

इसी तरह गौतम बुद्ध नगर प्रशासन नोएडा में फंसे 600 से ज्यादा लोगों को उनके घर छोड़ने की व्यवस्था कर रहा है। प्रशासन से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि सरकार शुक्रवार को 600 से ज्यादा लोगों को उनके घर भेजने के लिए ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था कर रही है।

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उत्तराखंड पुलिस ने भी ट्वीट किया है कि उनके जवान मजदूरों और बेसहारा लोगों को भोजन मुहैया करा रहे हैं। कई जगहों से ऐसी खबर भी आई है कि इन मजदूरों को पीटने वाले या फिर परेशान करने वाले पुलिस कर्मियों पर निलंबन की कार्रवाई भी हुई है।

इसके अलावा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी अपने पैकेज में मजदूरों को लिए थोड़ी राहत की घोषणा की है। मनरेगा के तहत मजदूरी 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये कर दी गई है। इससे नियमित काम पाने वाले मजदूर को सालाना दो हजार रुपये का फायदा होगा।

हालांकि ये सब बहुत फौरी राहत के रूप में सामने आ रहे हैं। असल में दिहाड़ी मजदूरों पर आया संकट इससे भी बड़ा है।

कोरोना वायरस से उपजा संकट निश्चित रूप से बहुत बड़ा है। इसके कारण लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। कोरोना वायरस का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्या असर हुआ इसकी पूरी तस्वीर आने वाले समय में ही स्पष्ट हो सकेगी। लेकिन जो एक बात तय है कि इससे सबसे ज्यादा संकट में दिहाड़ी मजदूर आएंगे।

ऐसे में भारत में सबसे ज्यादा खतरा स्वरोजगार, ठेके पर काम करने वाले लोगों और दिहाड़ी मजदूरों को है। भारत में अगर नौकरियों पर संकट मंडराता है तो सबसे ज्यादा असर रेस्टोरेंट, रियल स्टेट, विमानन, सिनेमा एवं मनोरंजन, पर्यटन, ड्राइविंग आदि पर पड़ना लाजिमी है।

एक अनुमान के मुताबिक देश में कार्यरत 41 लाख अस्थायी कर्मचारियों पर अगली दो तिमाही सबसे ज्यादा भारी पड़ने वाली है। एसोचैम और ग्लोबल हंट इंडिया का मानना है कि कोरोना का सबसे अधिक नकारात्मक असर सर्विस सेक्टर और खास तौर पर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ रहा है। अगर हालात जल्दी नहीं सुधरे तो संगठित क्षेत्र की हायरिंग में भी 15 से 20 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।

ऐसे में हमें इस संकट से बचने के लिए श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने, अर्थव्यवस्था को मदद, रोजगार एवं आमदनी बनाए रखने में सहायता (यानी कम अवधि का काम, वैतनिक अवकाश, अन्य सब्सिडी) के लिए फौरन बड़े पैमाने पर मिले-जुले उपाय करने होंगे।

साथ ही छोटे एवं मझोले उद्योगों के लिए वित्तीय और कर राहत जैसी सुविधाएं मुहैया करानी होगी। इसकी तस्दीक अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट भी करती है। उसने एक अध्ययन में कहा है कि वैश्विक स्तर पर गर एक समन्वित नीति बनती है तो नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। हालांकि इन उपायों को निपटने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है। देखना है कि देश की सरकारें इसे कैसे लागू करती हैं। 

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