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बाल व बंधुआ श्रमिकों के पुनर्वास पर अदालत ने केंद्र, आप सरकार को जारी किया नोटिस

अधिवक्ता निमिषा मेनन, कृति अवस्थी और शिवांगी यादव के जरिये दायर याचिका में दावा किया गया कि बच्चे को एक प्रतिष्ठान में काम की पेशकश की गई जहां दो महीनों तक नियोक्ता उसके साथ अमानवीय व्यवहार करता रहा और न्यूनतम मजदूरी तक नहीं देने के बावजूद उससे 14 घंटों तक काम कराया जाता था।
delhi high court

नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी से मुक्त कराए गए कुछ बाल एवं बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिये तत्काल वित्तीय सहायतों से जुड़ी एक जनहित याचिका पर केंद्र और आप सरकार से जवाब मांगा है।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने मुक्त कराए गए एक बच्चे के पिता की याचिका पर केंद्रीय श्रम मंत्रालय और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर मामले को आठ फरवरी को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया है।

याचिकाकर्ता मोहम्मद कादिर अंसारी ने बाल एवं बंधुआ मजदूरी के 88 पीड़ितों के लिये राहत की मांग की है। इन पीड़ितों में अंसारी का खुद का बच्चा भी शामिल है जो 12 साल की उम्र में काम की तलाश में बिहार से दिल्ली आया था।

अधिवक्ता निमिषा मेनन, कृति अवस्थी और शिवांगी यादव के जरिये दायर याचिका में दावा किया गया कि बच्चे को एक प्रतिष्ठान में काम की पेशकश की गई जहां दो महीनों तक नियोक्ता उसके साथ अमानवीय व्यवहार करता रहा और न्यूनतम मजदूरी तक नहीं देने के बावजूद उससे 14 घंटों तक काम कराया जाता था।

अंसारी की तरफ से अधिवक्ता जतिन खुराना भी पेश हुए। उन्होंने आरोप लगाया कि बच्चे और उसके जैसे अन्य पीड़ितों को अधिकारी केंद्रीय सेक्टर योजना 2016 के तहत अनुमन्य “पुनर्वास संबंधी वित्तीय सहायता” उपलब्ध कराने में नाकाम रहे।

दिल्ली सरकार की तरफ से अतिरिक्त स्थायी अधिवक्ता हेतु अरोड़ा सेठी ने नोटिस प्राप्त किया।

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