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दिल्ली चुनाव: मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरस रहे उत्तरी-पूर्वी दिल्ली के मतदाता

उत्तर पूर्वी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली के करावल नगर, सीमापुरी, नंदनगरी, सीलमपुर, बाबरपुर जैसे इलाकों में रहने वाले लाखों मतदाता अब भी बेहतर सीवर और सड़क सुविधा की आस लगाए हुए हैं।
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'हमारा हर चुनाव कभी नाली और सड़क से ऊपर नहीं उठ पाया है। हर साल वही मुद्दा बनकर रह जाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य और सामजिक सुरक्षा जैसे मुद्दों की बात करना तो बेमानी है। विडंबना यह है कि हम राष्ट्रीय राजधानी में कई दशकों से रहते हैं लेकिन आज भी पीने के पानी और सीवर के लिए संघर्ष कर रहे हैं।' ये बात हमें उत्तर पूर्वी दिल्ली के मुस्तफाबाद के रहने वाले सलमान ने बताई।

ये परेशानी सिर्फ सलमान या मुस्तफाबाद की ही नहीं है। उत्तर पूर्वी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली के करावल नगर, सीमापुरी, नंदनगरी, सीलमपुर, बाबरपुर जैसे इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों का है। इस पूरे क्षेत्र में अधिकतर मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग और मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं। यहां रहने वाले ज्यादातर लोगों का कहना है कि उन्हें लगता ही नहीं है कि वो देश की राजधानी का हिस्सा हैं।

गौरतलब है कि दिल्ली में फिर चुनावी माहौल हैं। विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप), विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस समेत दर्जन भर से ज्यादा सियासी दल मैदान में कूद पड़े हैं और जोर-शोर से चुनाव प्रचार किया जा रहा है।

हालांकि पांच साल पहले आम आदमी पार्टी इन इलाकों में विकास के नाम पर सत्ता में आई थी लेकिन उसका कार्यकाल बीत जाने के बाद भी इन इलाकों के हालात में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। आप के बड़े बड़े विकास के दावों के विपरीत इन इलाकों में रहने वाले लोग आज भी अपने सम्मान से जीने के अधिकार को ढूंढ रहे हैं।

न्यूज़क्लिक की चुनावी टीम ने ऐसे ही कुछ इलाकों का दौरा किया और वहां के जमीनी हकीकत की पड़ताल करने की कोशिश की। यह पूरा क्षेत्र आपकी देश की राजधानी दिल्ली को लेकर कई धारणाओं को तोड़ता है। आम तौर पर दिल्ली सुनते ही हमारे मन में बड़ी बड़ी बिल्डिंग और शॉपिंग माल आते हैं। इसके विपरीत एक दिल्ली ऐसी भी है जहां आज भी लोग अपने मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।  

इस पूरे क्षेत्र में नौजवान मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है। यहां दिल्ली के बाहर से आये लोगों की संख्या में भी काफी अधिक है। यहां पूर्वांचल के वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। टिकट बंटवारें में तीनों मुख्य पार्टियों ने इस बार अपने उम्मीदवार को चुनने मे इस बात का खास ध्यान रखा है।

क्या हैं चुनावी मुद्दे?

इस इलाके में इस बार भी जातीय समीकरण के साथ-साथ प्रवासी आबादी और अनाधिकृत कॉलोनियां लोगों के प्रमुख मुद्दे हैं। लोगों के लिए जमीन का मालिकाना हक मिलना सबसे बड़ा मसला है। केंद्र की बीजेपी सरकार ने इन कालोनियों को नियमित करने का दावा किया है और सभी अनधिकृत कॉलोनियों के निवासियों को मालिकाना हक देने की बात कही है लेकिन इसे लेकर भी लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं।

करावल नगर के रहने वाले फूलकांत मिश्रा कहते हैं, 'सरकार ने इन कॉलोनियों को अधिकृत करने का ऐलान तो कर दिया लेकिन लैंड यूज़ को चेंच किया नहीं हैं। ऐसे में रजिस्ट्री कैसे होगी और उसका क्या महत्व होगा? उदाहरण के लिए करावल नगर विधानसभा में बहुत बड़ा हिस्सा जो है वो एग्रीकल्चर लैंड है उसे रेजिडेंशियल किये बिना कैसे अधिकृत किया जा सकता है। इसी तरह कई जगह DDA लैंड हैं उसका भी यूज़ बदला नहीं गया है।'

हालांकि केंद्र के इस फैसले से जहां कुछ लोग खुश हैं वहीं ज्यादातर इसे बस चुनावी स्टंट कह रहे हैं।

इसके साथ ही पिछले समय में जिस तरह से पूरी दिल्ली में सीलिंग हुई इसका असर भी  यहां पर देखने को मिल रहा है। इस इलाके में बड़े औद्योगिक क्षेत्र तो नहीं है लेकिन कई लघु उद्योग हैं। ख़ासतौर पर सीमापुरी, घोंडा, सीलमपुर, बुराड़ी, मुस्तफ़ाबाद में यह बहुत ही गंभीर समस्या है।

सीमापुरी इलाके के रहने वाले कारोबारी जहीर कहते हैं, 'भाजपा इस समस्या के लिए दिल्ली सरकार को जिम्मेदार बता रही है। जबकि आम आदमी पार्टी का कहना है कि यह सब भाजपा शासित निगम द्वारा कराया जा रहा हैं। लेकिन इस समस्या के हल पर कोई बात नहीं कर रहा है।'

इसी तरह इन इलाकों में सार्वजनिक यातायात की हालत बहुत बुरी है। मुस्तफबाद के  लोगों का कहना है कि यहां कभी-कभी कोई सरकारी बस देखने को मिलती है। यातायात के नाम पर केवल शेयरिंग ऑटो मिलता है, जिसमें हमेशा ही जान का ख़तरा बना रहता है। क्योंकि तीन सीट वाले ऑटो में 6 लोगों को ले कर जाया जाता है। इसके चलते समय-समय पर हादसे होते रहते हैं। कई लोगो की मौत भी हो चुकी है।

इसी तरह का हाल करावल नगर, सीमापुरी, नंदनगरी के ज्यादातर इलाकों का भी हैं। इन सभी इलाकों में मुख्य सड़क तक तो बस आती है लेकिन उसके बाद अंदर जाने के लिए लोगों को इस तरह के शेयरिंग ऑटो का ही सहारा रहता है।

खजूरी में हमारी मुलाकात शिखा से होती हैं। वो बताती है, 'सार्वजनिक यातायात की कमी के चलते हर दिन घर से निकलना मुश्किल होता है। बसों की कमी के चलते सिर्फ छोटी दूरी ही नहीं लंबे रास्तों के लिए भी शेयरिंग वैन आदि मिलते हैं। जैसेकि सोनिया विहार से कश्मीरी गेट के लिए, खजुरी से आनंद विहार, खजुरी से बुराड़ी बाईपास के लिए शेयरिंग वैन मिलते है। इसमें 7 लोगों की जगह होती है लेकिन 10 लोगों को ठूसकर ले जाया जाता हैं। यह सब स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से होता है। हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। हमें इसी से सफर करना पड़ता है।'

इसके अलावा करावल नगर, मुस्तफ़ाबाद, सीमापुरी और नंदनगरी के कई क्षेत्रो में आपको सीवर बहते हुए दिख जायेंगे। करावल नगर के तो कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां सीवर नहीं है। छोटी नालियां है। तो कोई बड़ा नाला नहीं है। इस कारण इन नालियों का पानी  इन्हीं क्षेत्रों में घूमता रहता है। कई जगह तो सड़क और नाली में फर्क करना बहुत मुश्किल है। चुनाव से कुछ समय पहले केजरीवाल ने इस पूरे क्षेत्र में सीवर लाइन का काम शुरू करने का वाद किया था और उसका उद्घाटन भी किया है। हालांकि अभी तक काम शुरू नहीं हुआ है।  

इस पूरे इलाके में पीने की पानी की समस्या लंबे समय से रही है। हालांकि पिछले कुछ सालों में यह बेहतर हुआ है। पहले इस पूरे क्षेत्र में टैंकर राज होता था लेकिन अभी कई जगह पानी पाइप लाइन से पहुंच रहा है। लेकिन अभी भी कुछ इलाके ऐसे है जहां लोगों के घरों में पानी का कनेक्शन नहीं पहुंचा है।  

इन सब सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि करावल नगर विधानसभा क्षेत्र के एक इलाके सोनिया विहार में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट है। यहां से दिल्ली के बड़े हिस्से को पानी की सप्लाई होती हैं लेकिन इस क्षेत्र में किसी भी घर में पानी का कनेक्शन नहीं है। यहां लोग पानी के लिए बोरबेल के सहारे हैं। बोरबेल कराने के लिए पुलिस को हजारों रुपये की घूस देनी पड़ती है।

ये सभी समस्याएं इस पूरे इलाके में रहने वाले लाखों की आबादी को प्रभावित करते हैं। लेकिन अभी तक के चुनाव प्रचार को देखें तो कोई भी दल इन पर बात नहीं कर रहा है। सत्ताधारी आप पार्टी जहां केजरीवाल के चेहरे पर तो बीजेपी CAA के ख़िलाफ़ हो रहे प्रोटेस्ट और कांग्रेस पिछली शीला दीक्षित सरकार के काम पर वोट मांग रही है।

इस इलाके के सामाजिक कार्यकर्ता संदीप कुमार कहते हैं, 'इस पूरे इलाके में ज्यादातर समय पार्षद और विधायक बीजेपी के ही चुने जाते रहे हैं। अब भी नगर निगम पर बीजेपी का कब्जा है। सड़क, सफाई और सीवर का बड़ा काम कराने की जिम्मेदारी उनकी है लेकिन उन्होंने इसे ठीक ढंग से निभाया नहीं। अब भी बीजेपी उम्मीदवार जनता से जुड़े मुद्दे पर वोट मांगने के बजाय ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं। इसके बरक्स आप के नेता केजरीवाल के काम को लेकर वोट मांग रहे हैं।'

आपको बता दें कि दिल्ली में आठ फरवरी को सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान किया जाएगा। चुनाव परिणाम 11 फरवरी को आएगा।  

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