दिल्ली चुनाव : भाजपा का आख़िरी पासा
दिल्ली में 8 फरवरी को मतदान होना है। 6 फरवरी की शाम को चुनाव प्रचार थम चुका है। चुनाव थमने के पहले के दो दिनों में बीजेपी और कांग्रेस के बड़े नेताओं ने रैलियां की हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद दो रैलियां कीं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रैलियां कीं और गृहमंत्री अमित शाह ने घर-घर जाकर अपना कैंपेन जारी रखा। यह घोषणा की गई है कि बीजेपी के 240 सांसद दिल्ली की निम्न मध्यवर्ग या गरीब कॉलोनियों में रात गुजारेंगे, ताकि यहां के बाशिंदों को आम आदमी पार्टी से दूर खींचा जा सके।
कांग्रेस पार्टी का इन चुनावों में कैंपेन न करना साफ नज़र आ रहा है, चार फरवरी को पहली बार प्रियंका गांधी और राहुल गांधी नज़र आए, इसलिए अब मुख्य मुकाबला बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच है। इससे बीजेपी और ज्यादा सकते में है, क्योंकि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के वोट खींच सकती थी, जिससे बीजेपी को मदद मिलती। अब पार्टी के लिए केजरीवाल से सीधी लड़ाई और मुश्किल हो गई है। इसलिए बीजेपी इतनी ताकत आजमा रही है। इनका खेल समझने से पहले हमें देखना होगा कि दोनों पार्टियां किन चीजों को साथ लेकर चल रही हैं।
जैसा न्यूज़क्लिक ने पहले बताया था, बीजेपी ने अल्पसंख्यक मुस्लिमों के खिलाफ एक बेहद घिनौना कैंपेन छेड़ रखा है। इस कैंपेन ने दिल्ली और बाहर के लोगों को हतप्रभ कर दिया है। इन संदेशों को बीजेपी रोज आम लोगों के बीच पहुंचा रही है। संदेश को पहुंचाने वालों में गृहमंत्री अमित शाह से लेकर दूसरे प्रचारक, पार्टी के सांसद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता शामिल हैं, जो आजकल जरूरत से ज्यादा काम कर रहे हैं। इस पूरे चुनावी कार्यक्रम के लिए बड़े पैमाने पर पैसे की जरूरत पड़ती है, क्योंकि पूरे दिल्ली में होर्डिंग लगवाने होते हैं, टीवी और इंटरनेट पर लगातार विज्ञापन भी चलवाने पड़ते हैं। लेकिन फिर यह भी याद रखना होगा कि चंदे और इलेक्टोरल बांड्स का सबसे बड़ा हिस्सा बीजेपी को मिला था।
दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी सिर्फ अपने काम की बात कर रही है। उनका ध्यान इस हद तक केंद्रित है कि उन्होंने शाहीन बाग पर भी तटस्थ स्थिति बना रखी है। आम आदमी पार्टी के साफ-स्वच्छ कैंपेन और बीजेपी के घिनौने स्तर के प्रोपगेंडा में इससे ज्यादा विरोधाभास नहीं हो सकता था।
बीजेपी के जहर का असर
लाख टके का सवाल यह है कि क्या बीजेपी के ज़हरीले कैंपेन ने असर किया है? इसका जवाब आसान नहीं है। लेकिन इन चुनावों को कवर करने वाले न्यूज़क्लिक के रिपोर्टर्स से और दूसरे स्रोतो से मिली जानकारी के मुताबिक इस ज़हर ने पानी को गंदा तो जरूर किया है। कैंपेन ने किसी तरह दिल्ली में बीजेपी के फिसलते मुख्य आधार को थामा है। बीजेपी का यह आधार मध्यमवर्गीय लोगों, व्यापारियों, छोटे और मध्यम उद्योगों के मालिकों, ग्रामीण इलाकों के अमीर लोगों और नौकरशाहों से बनता है। मोदी सरकार की कई नीतियों से इन वर्गों के मतदाताओं पर बहुत बुरा असर पड़ा है।
इन नीतियों में जीएसटी, आर्थिक मंदी से निपटने के कदम, बेरोजगारी, कर और भ्रष्टाचार निवारण के अधूरे वायदे और दूसरे मुद्दे शामिल हैं। दिल्ली सरकार के मुफ्त बिजली-पानी जैसे कामों के चलते इन वर्गों के लोग खुशी-खुशी आम आदमी पार्टी को वोट देने के लिए तैयार हैं, भले ही वो केंद्र में बीजेपी का समर्थन करें।
बीजेपी के जहरीले कैंपेन से आबादी का एक हिस्सा प्रभावित हुआ है। इस जहरीले कैंपेन में यहां तक कहा गया कि ''केजरीवाल देशद्रोहियों के साथ है''। लेकिन यहां एक बात पर गौर करना जरूरी है। जिन लोगों को यह जहरीला कैंपेन प्रभावित कर रहा है, उन्होंने पिछले चुनावों में वैसे ही बीजेपी को वोट दिया होगा। हाल के सालों में दिल्ली के मतदाताओं में बीजेपी का 33 फ़ीसदी कोर वोट शेयर रहा है। इसलिए इन प्रभावित लोगों के दोबारा बीजेपी को वोट करने से भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। जबकि पूरा जहरीला कैंपेन इन्ही लोगों को साथ लाने के लिए हो रहा है।
क्या बीजेपी ने नए लोगों को अपने कैंपेन के ज़रिए जो़ड़ा नहीं होगा? हो सकता है कि जोड़ा हो। लेकिन फिर कुछ लोगों को उन्होंने खोया भी होगा। यह सोचना गलत होगा कि हर कोई सांप्रदायिक प्रोपगेंडा से प्रभावित होता है और अपने आप आरएसएस की विचारधारा की ओर खिंच जाता है।
दिल्ली में नागरकिता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ दिसंबर,2019 में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। इनमें खासतौर पर युवा, छात्र और युवा पेशेवर शामिल थे। यह वो पीढ़ी है, जो हिंदू-मुस्लिम तनाव या ऐसे किसी दकियानूसी विचारों से ठीक महसूस नहीं करती। इनकी संस्कृति सेकुलर है, यह वैश्विक भी हो सकती है। इन चुनावों में एक अंदाजे के मुताबिक करीब बीस लाख लोग पहली बार वोट करने जा रहे हैं। यह मानना मुश्किल है इन लोगों का कोई हिस्सा हाल के मुद्दों पर बीजेपी के साथ है। इसलिए यह बीजेपी के मध्यमवर्गीय समाज पर आधारित वोट बैंक का क्षरण है।
साथ में ऐसे कई लोग हैं जिनकी बीजेपी के कैंपेन से पटरी बैठती है, पर वे खुलेतौर पर मानते हैं कि दिल्ली में केजरीवाल ने अच्छा काम किया है। उनकी उहापोह विधानसभा में आम आदमी पार्टी और लोकसभा में बीजेपी के लिए वोट करने के ईर्द-गिर्द है।
आप का गढ़
फिर इसके बाद आम आदमी पार्टी का कोर वोटबैंक भी है। यह ज्यादातर कामगार वर्ग है, जो ऑफिस कर्मचारियों, फैक्ट्री मजदूरों, छोटे दुकानदारों, घरेलू काम करने वालों (घरेलू नौकर, खाना बनाने वाले, सिक्योरिटी गार्ड आदि), जनसुविधा प्रदान करने वालों (जैसे ऑटोवाले) और रिक्शा चलाने वाले, बोझा उठाने वाले दैनिक वेतनभोगियों से बना है।
दिल्ली में हजारों पेशे हैं, लेकिन इनमें काम करने वाले लोगों के बीच एक धागा है, जो इन्हें एक माला में पिरोता है। इनके रहने की स्थितियां खराब हैं, इनके इलाकों में जनसुविधाएं खराब हैं, इनकी आय कम है और इनके पास मौके भी कम हैं। भले ही यह लोग संघर्ष कर रहे हों, लेकिन वे महत्वकांक्षी हैं। उनके बच्चे पढ़े लिखे और जानकारी से संपन्न हैं। इन्हें आम आदमी पार्टी की कल्याणकारी नीतियों से न केवल फायदा मिला है, बल्कि उन्हें लगता है कि बीजेपी और कांग्रेस से ज्यादा आम आदमी पार्टी उनके करीब है।
यह कभी कांग्रेस का आधार हुआ करता था। प्रायोगिक तौर पर 2015 और वास्तिविक तौर पर वर्तमान में यह ''आप'' के पाले में आ गया। इनकी संख्या का आंकड़ा कोई छोटा-मोटा नहीं है। आप जिस तरह के पैमाने चुन रहे हैं, यह आंकड़ा उनके हिसाब से बदलता है, लेकिन कम से कम 60 से 70 लाख लोग इस वर्ग में शामिल हैं। यह सब मतदाता हैं, आबादी नहीं। इनमें से बड़ी तादाद आम आदमी पार्टी के साथ है। यही वह आधार है, जहां से पार्टी शुरूआत करती है।
तो इस सबसे हमें क्या पता चलता है? ऐसा लगता है कि बीजेपी के जहरीले कैंपेन से, सबसे अच्छी स्थिति में 38-40 फ़ीसदी वोट शेयर उनकी तरफ खिंचने में सफल हो सकता है। पिछली बार कांग्रेस का वोट शेयर दस फ़ीसदी रहा था। इस बार उनका हिस्सा गिरकर 6-7 फ़ीसदी पर आ जाएगा। वहीं आम आदमी पार्टी आसानी से जीत दर्ज करेगी। अब बीच में कुछ बड़ा न हो जाए, तो यह बातें सही ही होंगी। बीजेपी के ज़हरीले तरीकों वाले विभाग को खुला छोड़ दिया गया है। वो अपनी पूरी कोशिश करेंगे।
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
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