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दिल्ली: मोदी सरकार की मज़दूर व जन-विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय कन्वेंशन, आंदोलन तेज़ करने का आह्वान

इस कन्वेंशन में भविष्य में अपने साझा आंदोलन को और तेज़ करने का आह्वान किया गया। संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों ने इस कन्वेंशन में भाग लिया।
National convention of workers

सेंट्रल ट्रेड यूनियनों, स्वतंत्र फ़ेडरेशनों एवं कर्मचारी संगठनों ने आज यानी 30 जनवरी को राजधानी दिल्ली में संयुक्त रुप से एक कन्वेंशन किया। ये कन्वेंशन कांस्टीट्यूशन क्लब एनेक्सी, नई दिल्ली में हुआ । इसमें उन्होंने भविष्य में अपने साझा आंदोलन को और तेज करने का आह्वान किया। संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों ने इस कन्वेंशन में भाग लिया। साथ ही औद्योगिक मज़दूर, घरेलू कामगार महिलाएं और विश्विद्यालय के छात्र, शिक्षक, कर्मचारी अपनी मांगों के साथ इस कन्वेंशन से जुड़े। यहां सबसे बड़ी बात थी की श्रमिक अपने संघर्षों के साथ ही एकजुट और साझा संघर्ष पर जोर दिया।

कन्वेंशन में 10 सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने भाग लिया, जिनमें इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक), ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), हिंद मजदूर सभा (एचएमएस), सेंटर ऑफ इंडिया ट्रेड यूनियंस (सीटू), ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआईयूटीयूसी), ट्रेड यूनियन को-ऑर्डिनेशन सेंटर (टीयूसीसी), सेल्फ-एंप्यॉलयड वीमेंस एसोसिएशंस (सेवा), ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (एआईसीसीटीयू), लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (एलपीएफ) और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (यूटीयूसी) शामिल हैं।

इसके अलावा मिड-डे-मिल वर्कर फेडरेशन, निर्माण मजदूरों की फेडरेशन, अस्पतालों से जुड़ी यूनियनों के साथ बड़ी संख्या में स्वतंत्र फेडरेशन ने भाग लिया।

बता दें कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ को छोड़कर अन्य केंद्रीय श्रमिक संगठनों की इस कन्वेंशन में भागीदारी रही।

कन्वेंशन की शुरुआत महात्मा गांधी के शहादत को याद करते हुए किया गया। साथ ही दो मिनट का मौन रख कर गांधी को श्रद्धांजलि दी गई। एटक की महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि हमने सोच समझकर 30 जनवरी को चुना है क्योंकि आज गांधी के सपनों के भारत पर हमला है। एक तरफ़ देश के संसाधन को निजी हाथों में दिया जा रहा है जो हमारे देश की संप्रुभता खतरे में डाल जा रहा है । गांधी का पहला संघर्ष ही देश की संप्रभुता के लिए था और देश के संसाधनों पर आम जन का हक हो इसके लिए उन्होंने दांडी मार्च किया था। इसका साफ संदेश था कि हिंदुस्तान के संसाधनों पर हिंदुस्तान का हक होगा।

दूसरी तरफ़ देश को आज एकबार फिर सांप्रदायिक आधार पर बांटा जा रहा है। जिसके खिलाफ लड़ते हुए गांधी शहीद हुए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गांधी के समाधि पर जाने की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा इनकी (बीजेपी) बेशर्मी देखिए ये गांधी के पास भी जाएंगे और इनके हत्यारे नाथू राम को महिमामंडित करेंगे। लेकिन हम देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को बचाएंगे।

कौर ने अपने भाषण में आगे कहा आज बहुत मुश्किल हालत है। देश का मजदूर कर्मचारी परेशान है। मजदूरों के सबसे बड़े हथियार हड़ताल के अधिकार पर हमला हो रहा है। दूसरी ओर किसानों की ज़मीन छीनी जा रही है। इसके साथ ही आदिवासी अधिकारों पर हमला हो रहा है। मेहनतकश अवाम ने इन्हीं तीनों हमलों के खिलाफ लड़कर आज़ादी ली थी। लेकिन ये मोदी सरकार जिसे मई में 9 साल होने जा रहा है वह हमसे छीनने में लगी है। हमने अंग्रेजों से लड़कर अपना अधिकार लिया है।

वह आगे कहती हैं, देश का मेहनतकश परेशान है। सरकारी आंकड़ों की ही माने तो देश में कुल आत्महत्या करने वालों में 25 फीसदी दिहाड़ी मजदूर है। इस सरकार ने दिहाड़ी मजदूरों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया है। कौर ने आगे कहा अगला एक साल संघर्षों का साल होगा।

इंटक के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अशोक सिंह ने इस कन्वेंशन को ऐतिहासिक बताया और कहा कि ये एक ऐतिहासिक दिन भी है। वो आगे कहते हैं आज का शासक संविधान के अनुसार नहीं है बल्कि उसके खिलाफ नीति बना रहा है। आज इस कन्वेंशन में देश के सभी कोनों से लोग शामिल हुए हैं। अब मेहनतकश-विरोधी इस सरकार से ये सीधा लड़ाई है और हम सब एक साथ मिलकर लड़ेंगे क्योंकि ये हमें खत्म करने आए है। लेकिन देश के 80 करोड़ मेहनतकश आबादी को खत्म करना इतना आसान नहीं है। हमें अंग्रेज नहीं खत्म कर पाए तो ये क्या कर पाएंगे।

सिंह ने देश भर के कर्मचारियों की सबसे बडी एक मांग पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा उठाया और कहा कि ये सरकार कहती है कि पुरानी पेंशन अर्थव्यवस्था के लिए ज़हर है लेकिन हम कहते हैं कि नई पेंशन स्कीम कर्मचारीयों के लिए कैंसर है। हम इससे लड़ेंगे और जीतेंगे।

एचएमएस के महासचिव हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा देश की सरकार अवाम को नुकसान पहुंचाएगी तो हम चुप नहीं रहेंगे। हमारे पूर्वज अंग्रेजों की जेल में रहे थे और हम मोदी की जेल देखेंगे।

उन्होंने भी देश में मेहनतकश की चिंताजनक स्थिति को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला और कहा हमें मिलकर इस जन-विरोधी सरकार से लड़ना होगा।

सीटू के महासचिव तपन सेन ने कहा हमें शासक नहीं हमें नीति बदलना है। देशभर में मजदूर लगातार संघर्ष कर रहे हैं। इस क्नवेंशन के बाद हम अपने संदेश को घर घर ले जाना है।

साथ ही उन्होंने सरकार द्वारा अमृत काल के अभियान पर कटाक्ष करते हुए कहा ये अमृत काल नहीं बल्कि विनाशकाल चल रहा है जिसमें हमने आज तक जो भी बनाया या हासिल किया सबका विनाश किया जा रहा है।

तपन सेन ने कहा आज हमारी एकता ही हमारा हथियार है। उसी के दम पर जो कुछ बचा है वो हमारे साझा संघर्ष के कारण ही बचा है वरना देश की पूंजीपति सरकारें तो 1990 के बाद से देश की सारी संपदा निजी हाथों में देने के लिए तैयार बैठी है।

आगे उन्होंने कहा आज ये मोदी सरकार राष्ट्रीय मौद्रीकरण का पाइप लाइन के नाम पर राष्ट्रीय संपत्ति को बेच रहे ही है। दूसरी तरफ लेबर कोड के जरिए हमें गुलाम बनाया जा रहा है।

सेन ने आगे कहा पिछले सालों में किसान मजदूरों की एकता बढ़ी है। आज देश का किसान मजदुर आंदोलन के साथ कदमताल कर रहा है। हम अगर एक हो जाएं तो दुनिया बदलने की ताक़त रखते हैं तो ये सत्ता की क्या बिसात है।

इस कन्वेंशन में स्वतंत्र फेडरेशन और कर्मचारी यूनियन भी अपनी मांगों के लेकर शामिल हुईं।

देशभर में स्कीम वर्कर काफ़ी समय से आंदोलनरत हैं। स्कीम वर्कर में आंगनबाड़ी, मिड-डे-मिल कर्मी, आशा कर्मी शामिल हैं। जो आज देशभर में प्राथमिक शिक्षा से स्वास्थ्य व्यवस्था संभाले हुए है।

स्कीम वर्कर आंदोलन के सक्रिय नेता और मिड-डे-मिल वर्कर फेडरेशन के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष जय भगवान भी इस कन्वेंशन में अपने सहयोगियों के साथ शामिल हुए थे। उन्होंने कहा देशभर की स्कीम वर्कर भी मजदूरों के साझा आंदोलन का हिस्सा है। देशभर में स्कीम वर्कर के नाम पर करोड़ों महिलाओं की श्रम की लूट चल रही है।

जय भगवान ने दावा किया कि देशभर में एक करोड़ स्कीम वर्कर हैं। जिनसे ये सरकार काम तो लेती है लेकिन इन्हें श्रमिक या कर्मचारी मानने को तैयार नहीं है। जबकि ये कई बार 12 घंटे तक काम करती है। आज भी हम न्यूनतम वेतन की मांग कर रहे है जोकि 45 वें श्रम सम्मेलन में आम सहमति से पास हुआ था लेकिन ये सरकार उसे भी मानने को तैयार नहीं है।

आगे वे कहते हैं कि हम स्कीम वर्कर के लिए कर्मचारी का दर्जा मांग रहे हैं जोकि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा की आशा वर्कर ग्रैच्युटी की अधिकारी हैं। जिसका ये मतलब है कि वो उन्हें कर्मचारी का दर्जा दे रहा है लेकिन ये सरकार मानने को तैयार नहीं है।

इन स्कीम वर्कर की पहुंच घर घर में है और ये सरकार भी समझती है। इसलिए सरकार ने पिछले आम चुनावों से पहले 2018 में इनके मानदेय में बढ़ोतरी की घोषणा की थी।

भवन निर्माण मजदूर यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखबीर सिंह भी इस कन्वेंशन का हिस्सा थे। उन्होंने बताया सिर्फ़ उनकी यूनियन में 12 लाख निर्माण मजदूर जुड़े हैं। वो आज घोषित हुए साझा आंदोलन के लिए तैयार है क्योंकि सबसे अधिक अगर किसी को सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत है तो वो निर्माण मजदूर हैं। जिसपर ये सरकार लगातार हमले कर रही है।

सुखबीर ने कई राज्यों में श्रम कल्याण बोर्ड में ऑनलाइन व्यवस्था पर भी नाराजगी जताई और कहा कि ये निर्माण मजदूरों से उनके लाभ को दूर करने का एक बहाना बन गया है।

इसी तरह इस कन्वेंशन में उत्तराखंड के सितारगंज से जायडस वैलानेस कंपनी के भी मजदूर यूनियन के लोग शामिल हुए। जो 230 दिनों से कथित गैर कानूनी तालाबंदी के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।

जायडस वैलानेस एम्प्लाई यूनियन के संगठन मंत्री पूरन ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि सरकार पूंजीपति को छूट दे रही है कि वो सरकारी छूट का इस्तेमाल कर ले और मुनाफा कमा कर फैक्ट्री बंद करके भाग जाए।

आपको बता दें जब उत्तराखंड बना था तब शासन ने पूंजीपतियों को विशेष छूट दी थी। जिसमें उन्हें सस्ते दामों पर जमीन और टैक्स माफी आदि शामिल थी। लेकिन अब जब इसकी समय सीमा समाप्त हो रही है तब ये फैक्ट्री बंद कर मालिक राज्य से बाहर आ रहे है।

ये सिर्फ़ एक जायडस का मामला नहीं है बल्कि इस तरह के कई मामले उत्तराखंड के औद्योगिक क्षेत्र में हो रहे हैं।

यूनियन के कोषाध्यक्ष दीपक ने कहा कि हम 230 दिनों से लड़ रहे हैं। लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। सरकार मालिकों का साथ दे रही है। जबकि नैनीताल हाई कोर्ट ने भी हमारे पक्ष में फैसला दिया और तालाबंदी को अवैध कहा है फिर भी शासन इसे लागू नहीं करवा रहा है।

इस कंपनी में 1200 मजदूर काम कर रहे थे। सभी अब बेरोजगार हैं। सभी के सामने दो जून की रोटी का सवाल खड़ा हो गया है।

बीते दिनों दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल से 50 से अधिक ठेका कर्मचारी को बिना किसी नोटिस के निकाल दिया गया था। तब से वो लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।

आरएमएल के कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष अशोक सिंह ने कहा 16 क्लर्क 43 नर्स को 15 दिसंबर को हटा दिया गया। जबकि हम कोई ठेकेदार नहीं बल्कि हम सीधे अस्पताल के अधीन काम कर रहे थे। सरकार ने हमें निकालकर किसी अन्य की भर्ती भी नहीं की है जिससे अस्पताल अव्यवस्था में है लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

सिंह ने कहा आज हम इस कन्वेंशन में आए क्योंकि हमारे कुछ मुद्दे एक जैसे है इसलिए हम एक साथ हैं। और हम एक साथ मिलकर लड़ेंगे तो हम इस तानाशाह सरकार को ज़रूर हरा देंगे।

इसी तरह आरएमएल में 14 साल से नर्स का काम कर रही नियो (Nio) को भी हटा दिया गया है। आज वो बाकी अन्य कर्मचारी की तरह दर-दर की ठोकरें खा रही है क्योंकि उनके पास कोई काम नहीं है।

इसी तरह भाखरा नांगल डैम के कर्मचारी भी बड़ी संख्या में कन्वेंशन का हिस्सा थे। ऐसा ही समूह जिसमें यूनियन के कोषाध्यक्ष लखीमचंद, उपाध्यक्ष दीपक गहलोत और सबूआ खान थे। लखीमचन्द ने कहा हम एक जुट लडाई लड़ने के लिए एकत्र हुए हैं। पूरे देश में हमारी 26 यूनिट है। आज हमारे यहां 9500कर्मचारी है जिनमें से 2500ठेका पर काम कर रहे हैं। हम और हमारी यूनियन इनके पक्के होने की लडाई लड़ रहे हैं। जबकि हमारे यहां 3000 से अधिक पद खाली है उसे भी भरने की मांग कर रहे है क्योंकि उनका काम भी प्रबंधन हमसे ही लेता है।

इसके साथ ही इन कर्मचारियों ने कैशलेस मेडिकल और पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा भी उठाया।

दिल्ली सहित देश में महिला कामगारों के बीच काम करने वाली ट्रेड यूनियन सेवा के भी कार्यकर्ता इस कन्वेंशन का हिस्सा थे। एक अन्य कार्यकर्ता उषा ने कहा कि हम महिलाओं के बीच काम करते हैं। हम महिलाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा की मांग करते हैं क्योंकि आज देशभर में घरेलू कामगार महिलाओं को न न्यूनतम वेतन मिलता है और न ही कोई सामाजिक सुरक्षा मिलती है। जबकि नियमानुसार उन्हें भी महीने में चार छुट्टी मिलनी चाहिए। इसी तरह हम रेहड़ी पटरी लगानी वाली महिलाओं के बीच भी काम करते हैं। सरकार को चाहिए कि घेरलू महिला कामगारों के लिए भी कल्याण बोर्ड का गठन करना चाहिए जिससे उनकी सामाजिक सुरक्षा हो सके।

सरकार की मज़दूर-विरोधी, जन-विरोधी, देश-विरोधी नीतियों के खिलाफ़ अपने संघर्ष के अगले चरण के लिए देशभर के मजदूरों ने आंदोलन की कार्रवाई का एलान किया। इस दौरान उन्होंने कहा, 2023 के मार्च-मई महीने के बीच राज्य स्तरीय कन्वेंशन कर मजदूरों को लांबबंद किया जाएगा। जून से राज्य स्तरीय जत्थे/बाइक रैली/साइकल रैली/पद यात्रा निकाली जाएगी। 9 अगस्त को यानी अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन के दिन सभी राजधानियों में एक/कई दिनों के मज़दूर महापड़ाव लगाए जायेंगे। संघर्ष के अगले चरण से पहले विभिन्न सेक्टरों ने तीखे आंदोलन और हड़ताल का भी एलान किया। 

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