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दिल्ली हिंसा: "मेरे बच्चे मुझसे पूछते हैं कि हम घर वापस कब जा सकते हैं"

शिव विहार के दंगा प्रभावित लोगों ने न्यूज़क्लिक के साथ बातचीत में कहा कि हिंसा के दौरान या उसके बाद कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी उनके पास नहीं आए हैं।
Delhi violence

उत्तर-पूर्व दिल्ली का इलाक़ा है शिव विहार। मुस्तफाबाद विधानसभा के इस इलाके में हिंसा में सबसे अधिक नुकसान हुआ है। बड़े पैमाने पर यहां मकान जला दिए गए और दुकानें लूट ली गईं। यहां से बड़ी संख्या में लोग अपनी जान बचाने के लिए भागे और आसपास किसी सुरक्षित इलाकों में शरण ली।

हिंसा कितनी भयावह थी इसके निशान इस पूरे इलाक़े में दाखिल होते ही दिख रहे थे, सड़कों पर पड़ी राख, उनसे काली हुई सड़क,टूटे स्कूल, जली किताबें,सड़कों पर अजीब सी शांति यह सब चीख चीख कर बता रहे थे कि यहां किस तरह की हिंसा हुई जिसके निशान मौजूद हैं।

हम यहीं उत्तर पूर्व दिल्ली के मुस्तफ़ाबाद विधानसभा की भूलभुलैया वाली गालियों से होते हुए इंदिरा विहार के चमन पार्क क्षेत्र की एक संकरी गली में,पहुंचे जहां तीन मंजिला इमारत के एक पार्किंग में कपड़े का टाल लगा था, जो लोगों ने दान किए थे। शुक्रवार को, हर उम्र की महिलाएं और बच्चे इन कपड़ों के ढेरो में से अपने ज़रूरत के कपड़ों को ढूंढते देखा जा सकते थे, इसी तरह पुरुषों के लिए हर साइज के पैंट को एक गेट पर लटका दिया गया था।

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62 वर्षीय खातून ने कहा “उस रात हमारे पास जो कपड़े पहने थे, उसके अलावा हम अपने साथ एक भी सामान नहीं ला सके। मेरे पास आज शुक्रवार के नमाज़ के लिए पहनने के लिए खुद के कपड़े भी नहीं हैं, “यह सब बोलते हुए बार बार उनका गाला रुंध रहा था। उन्होंने कहा "बड़ी मुश्किल से हम अपनी और अपने बच्चों की जान बचाकर भागे।"

खातून उन सैकड़ों मुसलमानों में से एक हैं जिन्हें इस हफ्ते दिल्ली के उत्तर पूर्व जिले में हुए दंगे के दौरान शिव विहार में अपने घरों से भागने के लिए मजबूर किया गया था। उनमें से कई ने अब पड़ोसी मुस्लिम बहुल चमन पार्क क्षेत्र में शरण ली है, जहां उनके रहने और खाने की व्यवस्था सरकार द्वारा नहीं बल्कि स्थानीय लोगों द्वारा की गई है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को कहा कि सरकार ने नौ आश्रय स्थापित किए हैं और मुआवजे के रूप में कैश भी दे रही है।

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दंगा प्रभावित लोगों ने न्यूज़क्लिक के साथ बातचीत में कहा कि हिंसा के दौरान या उसके बाद कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी उनके पास नहीं पहुंचा हैं। हमें इन लोगों में से कई लोग ऐसे मिले जो इस बात से नाराज़ थे कि कोई भी नेता उनकी मदद को नहीं आया।

ऐसे ही एक व्यक्ति थे जिन्होंने दावा किया की वो आम आदमी पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे के नेता है। वो शिव विहार से जानबचाकर भागे है,उन्होंने बताया जब दंगे हो रहे थे तो उन्होंने अपने स्थानीय विधायक हाजी यूनस को फोन किया और मदद करने की गुहार लगाई लेकिन उन्होंने ने भी ऐसा कुछ नहीं किया। इन सभी लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया।

न्यूजक्लिक से बात करते हुए चमन पार्क के स्थानीय रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) के सदस्य अफजल प्रधान ने कहा कि हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार उनकी मदद कर रहा है। उन्होंने बताया कि “रविवार रात को हिंसक झड़प शुरू होने के बाद से हमने अपनी कॉलोनी के प्रवेश / निकास द्वार बंद कर रखे थे और रखवाली कर रहे थे। लेकिन मंगलवार को, जब हमें पता चला कि ये परिवार शिव विहार से अपनी जान बचाकर भागे है तो उनके लिए हमने अपने गेट खोले और उन्हें अंदर आने दिया। हमने अपनी कॉलोनी में कई स्थानों पर उनके लिए रहने की व्यवस्था की है। उनके लिए हम लोग संसाधन एकत्रित ताकि उन्हें भोजन मिल सके।

शुक्रवार की सुबह, इलाके के आसपास की सड़कों पर शुक्रवार की नमाज़ के लिए लोगों की आवाजाही को देखा जा रहा था।

इस सप्ताह की शुरुआत में शिव विहार में व्याप्त भय के माहौल के बारे में बात करते हुए, शबनम ने न्यूज़क्लिक को बताया , “वे (दंगाई) रॉड और लाठी और अन्य हथियार लेकर आए थे। वे 'जय श्री राम' चिल्लाते रहे और दूसरों से भी उस नारे को लगाने के लिए कह रहे थे। हम उन्हें मुस्लिमों के घरों में घुसते और मस्जिद को जलाते हुए देख रहे थे। उन्होंने कई घरों को लूट लिया; यहां तक कि हमारे सभी कीमती सामान लेने के लिए ताले भी तोड़ दिए। कोई भी हमारे बचाव में नहीं आया; हमारे पड़ोसी भी नहीं। उन्होंने उस बेकरी को भी जला दिया जहां मेरे पति काम करते थे।”

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अपने पति की ओर इशारा करते हुए शबनम ने कहा, “जब से हम निकले हैं, वह हर समय रो रहे है। मेरे बच्चे मुझसे पूछते रहते हैं कि हम घर वापस कब जा सकते हैं। मैं उन्हें क्या बताऊं? मैं इस सब से कैसे निपटूं?”

58 वर्षीय पीडि़ता ज़रीना रोते हुए अपनी बकरियों के बारे में कहती हैं कि उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए उसे वहीं छोड़ना पड़ा। “हमने छत पर तीन बकरियों को बांध दिया था; हमें उन्हें वहीं छोड़ना पड़ा। मुझे नहीं पता कि उनके साथ क्या हुआ। मुझे डर है कि उन्होंने उन्हें भी जला दिया होगा।”

मोहम्मद मुकीम, जो शिव विहार के रहने वाले हैं, ने कहा कि 'जय श्री राम' कहने से इनकार करने पर दंगाइयों ने मुस्लिमों को "गोधरा कांड" की धमकी दी थी। “हमने प्रशासन से कई लोगों से मदद मांगी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। यहां तक कि विधायक ने हमें आश्वासन दिया कि वह उच्च अधिकारियों से बात कर रहे हैं और हमें अपने घरों के अंदर रहने और शांति बनाए रखने के लिए कहा है। लेकिन अब तक, उसने हमारे ठिकाने के बारे में भी पूछताछ नहीं की है। हालांकि, मुकीम ने कहा कि कुछ स्थानीय लोग जो गैर मुस्लिम थे उन्होंने उन्हें और उनके परिवार को सुरक्षित रूप से निकलने में मदद की थी।

29 वर्षीय अली नकवी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि कैसे एक स्थानीय हिंदू परिवार ने उसे घर में सुरक्षित रहने में मदद की। यहां तक कि कई अन्य लोग मंगलवार रात को ही चमन पार्क तक पहुंचने के लिए अपने घरों से बाहर निकल गए थे,लेकिन अली ने शुक्रवार सुबह ही अपना घर छोड़ था और चमन पार्क पहुंचे थे।

अली ने कहा “अपने मकान मालिक को धन्यवाद दिया और कहा कि वो वह ग्राउंड फ्लोर पर रहते है और मैं ऊपरी मंजिल पर किराएदार था। उन्होंने बाहर से हमारे घर पर ताला लगा दिया और लोगों से कहा कि मैंने घर खाली कर दिया है और दूसरों लोगों के साथ इस इलाके को छोड़ दिया है। मैं चार दिन तक ऐसे ही उस कमरे में बंद रहा। यह मुश्किल था, लेकिन उनकी मदद से मैं और मेरे परिवार बच गए।”

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चमन पार्क के हिंदू परिवारों में भी एकजुटता और एकता को दर्शाती हुई एक कहानी थी । एक आशा कार्यकर्ता तारादेवी जो एक कॉलोनी में केवल तीन हिंदू परिवारों में से एक है, तारादेवी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उसने सांप्रदायिकता भड़कने के दौरान "कभी भी डर नहीं महसूस किया"। "हमारे" मुस्लिम भाई हमारे साथ यहां रहे हैं। उन्होंने हमें यह भी बताया कि हमें जो भी चाहिए, वे हमारे लिए व्यवस्था कर सकते हैं। तीनों परिवार यहां बिल्कुल सुरक्षित हैं।

इन परिवारों के घरों के पास एक हिंदू मंदिर भी बना हुआ है। प्रधान ने कहा, “यह एक बहुत ही नाजुक स्थिति थी। यहां तक कि अगर कोई बाहरी व्यक्ति इसके साथ बर्बरता करता और मुस्लिम समुदाय पर भारी पड़ जाते तो इससे हमारे रिश्तों में खटास आ जाते । इसलिए, हम मंदिर के बाहर पहरा दे रहे थे, यह सुनिश्चित करते हुए कि कोई भी इसे या यहां के हिंदू परिवारों के घरों को नहीं छू सके।

जबकि इन अस्थायी आवासों में रहने वाले लोग स्थानीय लोगों की मदद के लिए आभारी हैं, उनमें से अधिकांश इस बारे में स्पष्ट नहीं है कि आगे कहां जायेंगे और क्या करेंगे।

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खातून ने पूछा“ हमारा घर जलकर राख हो गया है। हम राख में कैसे लौट सकते हैं? हमारे पास जो कुछ भी था वह सब छीन लिया गया है। मैंने अपने बच्चों की शादी के लिए कुछ पैसे बचाए थे; कुछ आभूषण एकत्र किए थे। अब हमारे पास कुछ नहीं बचा है। क्या सरकार हमारे जीवन को बेहतर बनने में हमारी मदद करेगी? हमें यहां के लोगों पर कब तक भरोसा करना चाहिए? ”।

आम आदमी पार्टी सरकार ने अपनी फरिश्ते दिली के योजना के तहत दंगा प्रभावित लोगों के लिए मुआवजे के लिए पैकेज की घोषणा की है। नुकसान हुए घरों के लिए 5 लाख रुपये (किरायेदार के लिए 1 लाख रुपये और घर के मालिक के लिए 4 लाख रुपये) के मुआवजे की घोषणा की गई है। आधे नुकसान हुए घरों के लिए, मुआवजा 2.5 लाख रुपये (किरायेदार के लिए 50,000 रुपये और मालिक के लिए 2 लाख रुपये) है। बिना लाइसेंस वाली उद्दोग इकाइयों के लिए, अधिकतम 5 लाख रुपये का मुआवजा घोषित किया गया है।

लेकिन शायद ही इस राशि से इन दंगो में हुए नुकसान की भरपाई हो सके ,खसतौर पर दोनों समुदाय में पैदा हुए अविश्वास को खत्म कर पान इतना आसान नहीं होगा।

इस पूरे तौर पर बर्बाद हुए बस्ती में कई ऐसे सबूत मिले जो बताते है की कैसे इन दंगो से पहले लोग एक साथ भाईचारे के साथ रहते थे ,जिसे इसने बर्बाद किया। शिव विहार में एक बेकरी थी जो रियाजुद्दीन की थी ,इसी के ऊपर शायद उनका माकन भी था। इस दंगे में बेकरी सहित पूरे घर को तबाह कर दिया गया। लेकिन इस बर्बादी में बेकरी में एक शादी का कार्ड था जो की शौराज सिंह की लड़की का था ,जिनकी शादी 1 फरवरी को होनी है। लेकिन इस दंगे ने यह पक्का किया की रियाजुद्दीन शौराज के घर की शादी में न जा सके क्योंकि इस हिंसा के बाद वो अपना घर छोड़कर जा चुके है।

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शिव विहार में इस हिंसक माहौल में रह रहे है हिन्दू परिवार में से कुछ ने न्यूज़क्लिक से बात किया और अपने डर के बारे में बताया जो गली नंबर 10 में अपने घर के बहार बैठे थे। उन्होंने इस दंगे के बाद ही अपने घर के बाहर जय श्री राम के पोस्टर चिपकाया था। उन्होंने कहा अभी माहौल काफ़ी शांत है, पर थोड़ा बहुत डर तो लगता ही है। भय तो हो रही है । जब इस पोस्टर के चिपकाने के पीछे के कारण के बारे में पूछा तो महिला ने स्वीकार किया कि मुझे लूटेरों से डर लगता है। वे ऐसे घरों को लूट रहे हैं जिनमें ऐसे पोस्टर नहीं हैं।”

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उसने जो कहा है- वह यह है कि दंगाइयों ने शिव विहार में हिंदुओं के घरों को बख्श दिया है। इस क्षेत्र में आसानी से देखा जा सकता था की कैसे पहचान कर हमले किये गए हैं। मनीष नाम वाली एक दुकान को देखा जा सकता है जो पूरी तरह सुरक्षित है जबकि उसके बगल में एक घर पूरी तरह से जला हुआ था। जिसके गेट पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ था।

इस इलाके का एक बड़ा तबका-जो हरे झंडे और चमक-दमक के साथ सजाया गया था, वह अब पूरी तरह से खाली है। गलियों के इस हिस्से में बेकरी उत्पादों, दवाओं, कंप्यूटरों के टूटे हुए हिस्सों और बर्बाद दुकानों से अन्य मशीनों से भरे हुए देखा जा सकता हैं। रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) के जवान अब इन खाली गलियों में घूमते हुए दिख रहे थे।

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गली नंबर 14 [जहां हिंदू परिवार रहते हैं] के निवासी अरविंद प्रसाद, जो पहाड़गंज में एक फैक्ट्री चलाते हैं, उन्होंने कहा “इन वर्षों में यहां सब कुछ सामान्य रहा है। लेकिन हाल ही में, नागरिकता संशोधन अधिनियम के बाद, ये लोग [मुस्लिम] बहुत आक्रामक हो गए थे। उन्होंने नारेबाजी की और खूब शोर मचाया। ऐसा लगता था की यह जगह पाकिस्तान बन गया था।” यह पूछे जाने पर कि क्या दोनों समुदायों के सदस्यों द्वारा सुलह के कोई प्रयास किए गए हैं तो प्रसाद ने कहा कि नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ है।

शिव विहार की इस हिंसा में मुस्लिम पक्ष के घर और दुकान तो जले ही थे लेकिन हिन्दू लोगों के भी कुछ दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया।

एक अन्य निवासी संजय की दुकान भी इस हिंसा की भेंट चढ़ गई थी। उन्होंने स्थानीय लोगों के हंगामे के लिए नेताओं को दोषी ठहराया। पेशे से एक दर्जी ने कहा: “मैं यहां 20 साल से रह रहा हूं और हिंदू और मुसलमानों के लिए कपड़े सिल रहा हूं। हमारे पास पहले कभी कोई मुद्दा नहीं था। लोगों को उकसाने और भड़काने वाले इन नेताओं ने बाद में उन्हें खुद से नफरत करने के लिए छोड़ दिया। यह हमारे बच्चे हैं जो मर रहे हैं। यदि शाह का एक बेटा [एक प्रभावशाली राजनेता] मर जाता तो वे इस स्थिति को जल्द ही नियंत्रित कर लेते।”

उन्होंने सवाल किया “आप क्या चाहते हैं? हर 10-20 साल में एक दंगा? ”

इस क्षेत्र में सभी लोग चाहे वो हिन्दू या मुस्लिम सभी ने एक बात बताई की जब इस पूरे क्षेत्र में हिंसा का तांडव जारी था तो पुलिस मूक दर्शक बनी रही। उसने इस हिंसा को रोकने की कोशिश नहीं की अगर ऐसा किया गया होता तो शायद मंजर इतना भयावह नहीं होता।

(सभी तस्वीरें: प्रणिता कुलकर्णी, इनपुट: सोनाली, प्रणिता कुलकर्णी और सुरंग्या )

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