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प्रिया रमानी की जीत महिलाओं की जीत है, शोषण-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ सच्चाई की जीत है!

अदालत ने अपने फ़ैसले में साफ़ तौर पर कहा कि सामाजिक प्रतिष्ठा वाला व्यक्ति भी यौन शोषण कर सकता है। अदालत के मुताबिक, “किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा की सुरक्षा किसी के सम्मान की क़ीमत पर नहीं की जा सकती है।”
priya ramani
Image Courtesy: Social Media

दिल्ली की एक अदालत ने आज यानी बुधवार, 17 फरवरी को पूर्व केंद्रीय मंत्री एम.जे. अकबर के महिला पत्रकार प्रिया रमानी के ख़िलाफ़ आपराधिक मानहानि के मामले में फ़ैसला सुनाते हुए प्रिया रमानी को बरी कर दिया।

अदालत ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए कई महत्वपूर्ण बातें कहीं, जो निश्चित तौर महिलाओं के आत्मसम्मान और यौन शोषण की गंभीरता को समझने के लिए जरूरी हैं। साथ ही अदालत का ये फ़ैसला इस मायने में भी अहम है कि किसी भी ऊंचे पद पर आसीन व्यक्ति अपनी शक्ति या संसाधनों का इस्तेमाल कर किसी महिला के सम्मान को ठेस पहुंचाने का कतई अधिकार नहीं रखता।

अदालत ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा कि सामाजिक प्रतिष्ठा वाला व्यक्ति भी यौन शोषण कर सकता है। अदालत के मुताबिक, “किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा की सुरक्षा किसी के सम्मान की क़ीमत पर नहीं की जा सकती है।”

जज रविंद्र कुमार पांडे ने कहा कि समाज को समझना ही होगा कि यौन शोषण और उत्पीड़न का पीड़ित पर क्या असर होता है। फैसले के दौरान कोर्ट ने कहा कि इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि यौन शोषण अक्सर बंद दरवाज़ों के पीछे ही होता है। कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया कि यौन शोषण की शिकायतें करने के लिए मैकेनिज़्म की कमी है। शोषण की शिकार अधिकतर महिलाएं कलंक लगने और चरित्रहनन के डर से अक्सर आवाज़ भी नहीं उठा पाती हैं।

अदालत ने अपने फ़ैसले में ये भी कहा है कि यौन शोषण आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को ख़त्म कर देता है। इसलिए महिलाओं के पास दशकों बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है। हालांकि अदालत ने प्रभावित पक्षों से कहा है कि इस मामले में अपील दायर की जा सकती है।

आपको बता दें कि 10 फ़रवरी को दोनों पक्षों की जिरह सुनने के बाद कोर्ट ने फ़ैसला 17 फ़रवरी तक के लिए स्थगित कर दिया था। जिसके बाद आज एडिशनल चीफ़ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार पांडे ने दोनों पक्षों की मौजूदगी में एक ओपन कोर्ट में यह फ़ैसला सुनाया है।

महिलाओं की जीतखुलकर बोलने का मिलेगा हौसला

कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद पत्रकारों से बात करते हुए प्रिया रमानी ने कहा, “मैं बहुत अच्छा महसूस कर रही हूं, मेरे सच को क़ानून की अदालत ने स्वीकार किया है। ये वास्तव में बड़ी बात है। मेरी जीत से महिलाओं को खुलकर बोलने का हौसला मिलेगा और ताक़तवर लोग पीड़िताओं को अदालत में घसीटने से पहले दो बार सोचेंगे।”

कोर्ट के इस फैसले को महिला अधिकार समूह महिलाओँ के जीत के तौर पर देख रहे हैं। महिलाओँ के लिए आवाज़ उठाने वाले मीटू इंडिया ने ट्वीट कर कहा कि हमने ये लड़ाई जीत ली है। अभी कहने के लिए शब्द नहीं हैं। बस आंख में आंसू हैं, रोंगटे खड़े हो रहे हैं। सभी के साथ एकजुटता। हम प्रिया रमानी के हिम्मत के आभारी हैं।

ये फ़ैसला महिलाओं को सशक्त करता है!

महिलावादी संगठन ऐपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने इस संबंध में एक ट्वीट कर कहा, “प्रिया रमानी ज़िंदाबाद। आपका शोषण करने वाले एमजे अकबर ने आप पर मुकदमा ठोका लेकिन आप बरी हो गईं। ये फ़ैसला महिलाओं को सशक्त करता है। ये कहा है कि हमें समझना चाहिए कि कई बार पीड़ित मानसिक तनाव की वजह से सालों तक चुप रहती हैं। उसे अपने यौन शोषण के बारे में आवाज़ उठाने के लिए दंडित नहीं किया जा सकता।”

इस मामले पर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने भी ट्वीट किया, “प्रिया रमानी आखिरकार एमजे अकबर मामले में बरी हो गई हैं। यौन उत्पीड़न के बाद प्रिया रमानी को अदालती प्रक्रिया में उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। अकबर को इसके लिए हर्जाना चुकाना चाहिए।”

प्रियातुमने हम सबकी लड़ाई लड़ी है!

वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त ने भी फ़ैसला सुनाए जाने के बाद ट्वीट किया, “हां, प्रिया रमानी हां, अकबर का मानहानि का मुक़दमा रद्द हो गया। इससे महिलाओं को ख़ामोशी तोड़कर आवाज़ उठाने के लिए और हिम्मत मिली है। आज मैं अदालत में थी और इसे लेकर ख़ुश भी हूं।”

पत्रकार नीलांजना रॉय ने ट्वीट कर कहा कि प्रिया रमानी इस मुकदमे के सामने साफ़ दिल और अदालत में विश्वास के साथ खड़ी रहीं। उन्होंने एक अच्छी लड़ाई लड़ी। तो पत्रकार राना अय्यूब ने लिखा कि प्रिया, तुमने हम सबकी लड़ाई लड़ी है।

एक और ट्वीट में नीलांजना ने कहा, “बैकी जॉन के लिए भी सम्मान। वो एक हीरोइन हैं जिनकी हमें ज़रूरत है और जिन्हें हम प्यार करते हैं। ये रमानी की जीत का जश्न मनाने का समय है। साथ ही ये भी सुनिश्चित करने का समय है कि महिलाएं और दूसरी पीड़िताएं बिना डर के अपने अनुभव साझा करें। उन्हें आपराधिक मानहानि का डर ना हो।”

लेखिका नताशा ने प्रिया रमानी की अदालत में मुस्कुराते हुए तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा, “पितृसत्तात्मका तो तोड़ते हुए ऐसा ही लगता है।”

image by Nathasha

क्या था पूरा मामला?

वरिष्ठ पत्रकार प्रिया रमानी ने मीटू अभियान के दौरान तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर पर यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाया था। प्रिया रमानी ने दावा किया था कि एमजे एकबर ने मुंबई के ओबराय होटल में दिसंबर 1993 में नौकरी के लिए साक्षात्कार के दौरान उनका यौन शोषण किया था।

साल 2018 में जब भारत में मीटू अभियान ने ज़ोर पकड़ा तो, प्रिया ने वोग इंडिया पत्रिका के लिए 'टू द हार्वी वाइन्सटीन ऑफ़ द वर्ल्ड' नाम से लिखे अपने लेख को री-ट्वीट करते हुए ऑफ़िस में हुए उत्पीड़न के पहले अनुभव को साझा किया था।

प्रिया ने अपने 2017 में लिखे लेख में बताया था कि “वे तब 23 साल की थीं, जब 43 साल के एक संपादक ने उन्हें नौकरी के इंटरव्यू के लिए साउथ मुंबई के एक पॉश होटल में बुलाया था। जब उन्होंने होटल पहुंचकर संपादक को फोन किया, तब उन्होंने रमानी को अपने कमरे में आने को कहा।”

प्रिया ने लिखा था कि यह इंटरव्यू कम और डेट ज्यादा था। इस दौरान संपादक ने उन्हें ड्रिंक ऑफर किया, पुराने हिंदी फिल्मी गाने गाकर सुनाए। बेड पर बैठे संपादक ने उन्हें अपने पास आकर बैठने को कहा, जिसके लिए उन्होंने मना कर दिया।

image Credit- social media

20 महिला पत्रकारों ने अकबर पर लगाए थे यौन उत्पीड़न के आरोप

प्रिया इंडिया टुडे, द इंडियन एक्सप्रेस और द मिंट का हिस्सा रह चुकी हैं। प्रिया एमजे अकबर पर ऐसा आरोप लगाने वाली पहली महिला थीं। हालांकि प्रिया के यह पोस्ट करने के कुछ घंटों के अंदर ही कई और महिलाओं ने उनकी बात से हामी भरते हुए अकबर पर उनके साथ अनुचित व्यवहार करने के आरोप लगाए। प्रिया के बाद #MeToo अभियान के तहत ही 20 महिला पत्रकारों ने अकबर पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।

इन महिलाओं का आरोप था कि द एशियन एज और अन्य अख़बारों के संपादक रहते हुए अकबर ने उनका यौन उत्पीड़न किया था। अकबर ने न्यूज़रूम के अंदर और बाहर उनके साथ अश्लील हरकतें की थीं। चारों ओर से घिरे एमजे अकबर को इन आरोपों के बाद 17 अक्तूबर 2018 को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। एमजे अकबर का कहना था कि उन्होंने होटल में प्रिया रमानी से कोई मुलाक़ात नहीं की थी।

भारी दबाव के चलते दिया इस्तीफ़ा

लेकिन एमजे अकबर ने इस्तीफ़े से पहले जिस तरह ना-नुकुर और अकड़ दिखाई थी उससे ये तो ज़ाहिर था कि उन्होंने अपनी मर्ज़ी से इस्तीफ़ा नहीं दिया। निश्चित रूप से उन पर दबाव बनाया गया था। फिर चाहे वो दबाव आगामी चुनावों को देखते हुए बनाया गया हो या पार्टी की छवि बचाने के लिए। इस्तीफ़े की वजह जो भी रही हो, प्रिया रमानी सहित अन्य आरोप लगाने वाली महिलाओँ ने इस पर खुशी ज़ाहिर की थी।

अपने इस्तीफ़े के बाद जारी बयान में अकबर ने कहा था कि वो निजी तौर पर आरोपों के ख़िलाफ़ लड़ेंगे। इसके साथ ही अकबर ने रमानी के ख़िलाफ़ मानहानि का मामला दायर किया था। इस मामले में एक प्रिया रमानी के खिलाफ एमजे अकबर की तरफ से 97 वकील मुकर्रर किए गए थे। जिसकी सोशल मीडिया पर खुब आलोचना भी हुई थी।

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न्यूज़-18 नेटवर्क की ख़बर के अनुसार एमजे अकबर के लिए केस लड़ने जा रही लॉ फ़र्म 'करंजावाला एंड कंपनी' ने वकालतनामे पर ज़रूर ये दावा किया था कि 97 वकील एमजे अकबर का केस लड़ेंगे, लेकिन सुनवाई के दौरान सिर्फ़ छह वकील ही कोर्ट रूम में मौजूद रहेंगे।

नेशनल हेराल्ड की एक ख़बर  में दावा किया गया था कि जो लॉ फ़र्म एमजे अकबर का केस लड़ने वाली है उस पर भी यौन उत्पीड़न के आरोप लग चुके हैं।

प्रिया रमानी का जवाबसच और सिर्फ़ सच ही मेरा बचाव है!

एमजे अकबर की कार्रवाई के कुछ घंटे बाद ही प्रिया रमानी ने भी एक बयान जारी किया था। इस बयान में उन्होंने कहा था, ''मैं अपने ख़िलाफ़ मानहानि के आरोपों पर लड़ने के लिए तैयार हूँ। सच और सिर्फ़ सच ही मेरा बचाव है।''

बयान में प्रिया रमानी ने ये भी कहा था, ''मुझे इस बात से बड़ी निराशा हुई है कि केंद्रीय मंत्री ने कई महिलाओं के आरोपों को राजनीतिक साज़िश बताकर ख़ारिज कर दिया है।”

image Credit- Nilanjana roy

प्रिया रमानी की लड़ाई का हासिल, शोषण के खिलाफ महिलाएं होंगी सशक्त!

गौरतलब है कि न जाने कितनी औरतें अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न की कहानियां अपने दिल में ही लिए सालों साल जीती हैं और शायद उस दर्द को अपने अंदर ही समेटे दुनिया छोड़ जाती हैं लेकिन मीटू अभियान और प्रीया रमानी केस का यही हासिल है कि अब भविष्य में शायद औरतें दिल में यौन उत्पीड़न का दर्द लिए नहीं मरेंगी, एक नई उम्मीद से अपनी आवाज़ बुलंद करेंगी फिर चाहें सामने कोई भी क्यों न हो, शोषण करने वाला कितना भी बड़ा व्यक्ति या ताकतवर क्यों न हो, उन्हें एक नया हौसला मिलेगा।

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