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दिल्ली के नतीजे तय करेंगे भविष्य की राजनीति

अगर केजरीवाल इस बार भी चुनाव जीत गए तो आम आदमी पार्टी में उनको चुनौती देने वाला कोई नेतृत्व अब बचा नहीं है। इसके बाद वह पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी के बरअक्स एक विकल्प के तौर पर बहुत तेजी से उभरेंगे।  
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भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अब अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। चुनाव प्रचार के शुरू होने के बाद भारतीय जनता पार्टी बहुत कमजोर पड़ती नजर आ रही थी। अब भाजपा ने ढुलमुल मतदाताओं को सांप्रदायिक,जातीय और काफी हद तक क्षेत्रीय ध्रुवीकरण के माध्यम से अपने पाले में खींचने में कुछ सफलता हासिल कर ली है। इसके बावजूद उसकी जीत की संभावनाएं कमजोर हैं। इसके लिए भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वांचल यानी उत्तर प्रदेश और बिहार के भोजपुरी भाषी लोगों पर डोरे डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

जिस तरह से दिल्ली के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पूरे देश के अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को मैदान में उतारा है, वह अभूतपूर्व है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बंगाल और उड़ीसा के कार्यकर्ताओं का हुजूम दिल्ली चुनाव में उतारा जा चुका है। भारतीय जनता पार्टी ने पिछले एक हफ्ते से जिस तरह से लोगों के दरवाजे-दरवाजे जाकर चुनावी प्रचार अभियान को धार दी है, उससे कहीं न कहीं नतीजों पर जरूर कुछ असर पड़ेगा।

पिछले 50 दिनों से शाहीन बाग में जिस तरह से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) के विरोध में धरना चल रहा है, वह भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बहुत बड़ा मौका बनकर सामने आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शाहीन बाग धरने को एक सुनियोजित प्रयोग बताया है। इससे साफ है कि भारतीय जनता पार्टी अपने  विकास के मूल आधार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को छोड़ने वाली नहीं है। भारतीय जनता पार्टी के मंत्री और सांसद जिस तरह से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण फैलाने वाले बयान दे रहे हैं, उससे साफ है कि भारतीय जनता पार्टी ने अब अपने असली रंग में चुनाव प्रचार करना शुरू कर दिया है।

आम आदमी पार्टी की छवि भी अब पहले जैसी नहीं रही है। जिस भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए आम आदमी पार्टी सत्ता में आई थी, उस पर अब दाग लग चुका है। आम आदमी पार्टी तो अब कुछ चुनावी तिकड़मों में भाजपा से भी आगे निकलती नजर आ रही है। कई विधानसभा क्षेत्रों में तो संसाधन संपन्न भाजपा को भी आप के उम्मीदवारों के खर्च की बराबरी करने में पसीने छूट रहे हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस तरह से दिल्ली में रैलियों को संबोधित कर रहे हैं और बिहारी अस्मिता को हवा दे रहे हैं, वह लोगों के लिए आसानी से समझ में नहीं आने वाला है। नीतीश कुमार ने केजरीवाल के ऊपर सीधे हमला बोलते हुए कहा है कि वह बिहार के लोगों का अपमान करते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने चिर-परिचित अंदाज में प्रचार अभियान में लगे हुए हैं। इस चुनाव के बीच ही मुलायम सिंह यादव ने भाजपा के तारीफ की है। उससे साफ है कि भाजपा के लोग किस तरह से अपने लिए वोट का इंतजाम करने में जुटे हैं।

भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार यह दांव चला है कि पूर्वांचल का भी कोई व्यक्ति दिल्ली में मुख्यमंत्री हो सकता है। दिल्ली में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के मन में इस संभावना से ही कितना ज्यादा बदलाव हो सकता है, इसे कोई जमीनी आदमी आसानी से महसूस करता है। कहने को तो शीला दीक्षित भी उत्तर प्रदेश की थीं, लेकिन वे जिस संभ्रांत तबके से आती थीं उसके लिए जमीनी पहचान का कोई विशेष महत्व नहीं था।
 
मनोज तिवारी के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने एक बड़ा दांव खेला है। इस फैक्टर की काट आम आदमी पार्टी के पास नहीं है। आम आदमी पार्टी में केजरीवाल के अलावा मुख्यमंत्री के लिए किसी और व्यक्ति का नाम सोचा भी नहीं जा सकता है। अगर किसी भी तरह से भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में पूर्वांचल के मतदाताओं को अपने पक्ष में मोड़ने में सफलता हासिल कर ली तो आम आदमी पार्टी का खेल खराब भी हो सकता है।
 
भारतीय जनता पार्टी ने गली-गली में लोगों की क्षेत्रीय और जातीय पहचान को इस बार खंगाला है। उनको भावनात्मक रूप से अपने पक्ष में मोड़ने के लिए जिस तरह से पूरे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान से स्थानीय नेताओं को जिलेवार ढंग से डोर टू डोर कैंपेन के लिए हिदायतें और सुविधाएं दी गईं हैं, वह अपने आप में अभूतपूर्व है। पूरे भारतीय जनता पार्टी का संगठन इस समय दिल्ली में ही केंद्रित है।

अपने नेताओं की प्रतिष्ठा को बहाल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता इस समय रात-दिन एक कर चुके हैं। वह समर्पण इस बार आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं में नहीं दिखाई दे रहा है। आम आदमी पार्टी ने जिन 15 विधायकों के टिकट काटे हैं, उनमें से कई तो खुले खुले तौर बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी में टिकट वितरण के बाद जो असंतोष फैला था, उसे काफी हद तक खत्म किया जा चुका है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ क्षेत्रीय और जातीय ध्रुवीकरण ने मिलकर अगर अपना रंग दिखाया नतीजे चौंकाने वाले भी हो सकते हैं।

आखिरकार एक ऐसे राज्य के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी साख को दांव पर लगाने का फैसला क्यों किया है, जो पूर्ण राज्य भी नहीं है? ठीक इसी तरह ये बात भी भाजपा आज तक नहीं समझ पायी है कि जब नगर निगम और लोकसभा के चुनाव में वह आम आदमी पार्टी को पीछे छोड़ सकती है तो ऐसा क्या कारण है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी उसके सामने इतनी भारी चुनौती पेश कर रही है?

चुनावी हार भाजपा के लिए कोई नई बात नहीं है। एक क्रम से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब की हार के बावजूद भाजपा केंद्र में वापसी करने में सफल रही है। भाजपा को अब तक जिन राज्यों में चुनावी हार मिली है उन सभी राज्यों के मुख्यमंत्री या तो कांग्रेसी राजघराने की कठपुतलियों की हैसियत के हैं या फिर वे भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा नेतृत्व के सामने कोई चुनौती पेश करने की क्षमता नहीं रखते हैं। जबकि केजरीवाल एक ऐसे मुख्यमंत्री है जिसमें संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं। केजरीवाल की सबसे बड़ी खूबी एक समर्थ व्यक्ति होना है। इसीलिए भाजपा केजरीवाल को भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती समझ रही है। वह चाहती है कि इस चुनौती को दिल्ली में ही खत्म कर दिया जाए।

भारतीय जनता पार्टी यह भी परखना चाहती है कि दिल्ली जैसे सजग और जागरूक मतदाताओं के बीच पिछले 6 महीने के ताबड़तोड़ राष्ट्रवादी कानूनों को लागू करने से क्या असर पड़ा है? क्या जनता धारा 370, राममंदिर और सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर वोट देगी या अपनी रोजी-रोटी और जीवन की जरूरी सुविधाओं को उपलब्ध कराने वाली राजनीति को पसंद करेगी? इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी विजयी हुई तो फिर उसे पूरे देश में इसी ढर्रे पर चुनाव प्रचार का एक फॉर्मूला मिल जाएगा। अगर दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की विजय हुई तो इससे विपक्ष के मंसूबे काफी हद तक कमजोर हो जाएंगे।

भारतीय जनता पार्टी अपनी पूरी ताकत झोंकने के बाद भी दिल्ली में सफल नहीं हुई तो फिर उसे अपनी रणनीति में कुछ बदलाव अवश्य करने होंगे। भारतीय जनता पार्टी अपने इस इरादे में विफल हो गई तो फिर केजरीवाल को रोकने के लिए आगे भाजपा को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। गृह मंत्री अमित शाह को भी लगता है कि केजरीवाल को यदि नहीं हराया गया तो भविष्य में वे उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं।
 
भारतीय जनता पार्टी अगर अपने मंसूबे में सफल होती है तो केजरीवाल फिर से पूरे देश में घूमने और धरना-प्रदर्शन करने के लिए स्वतंत्र हो जाएंगे। लेकिन उनकी साख को धक्का लगेगा और उनकी विपक्ष के विकल्प के तौर पर उभरने की संभावना खत्म हो जाएगी। अगर केजरीवाल इस बार भी चुनाव जीत गए तो आम आदमी पार्टी में उनको चुनौती देने वाला कोई नेतृत्व अब बचा नहीं है। इसके बाद वह पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी के बरअक्स एक विकल्प के तौर पर बहुत तेजी से उभरेंगे।  

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