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दिल्ली गुड़ मंडी मामले में प्रदर्शन: "मुझे न्याय चाहिए, इससे ज़्यादा और कुछ नहीं!"

"मरने वाली लड़की ने मौत से दो घंटे पहले परिवार को फोन किया और कहा कि वह सुरक्षित महसूस नहीं कर रही है। अगर पुलिस को भरोसा है कि कोई घटना नहीं हुई थी, तो वह मामला दर्ज कर जाँच करें और क्लोज़र रिपोर्ट दर्ज करें। इतनी बेपरवही और लापरवाही क्यों है?"
दिल्ली गुड़ मंडी मामले में प्रदर्शन

दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस से सटे इलाके गुड़ मंडी की दलित किशोरी बालिका के साथ कथित बलात्कार और हत्या मामले में करवाई न करने पर छात्रों और स्थानीय लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है। इन लोगों ने इस मसले को लेकर सोमवार, 26 अक्टूबर को एकबार फिर प्रदर्शन किया।  

प्रदर्शन का आयोजन कमेटी फॉर गुड़ मंडी विक्टिम यानी गुंड़ मंडी पीड़ित के न्याय लिए बनी समिति के बैनर तले डीसीपी कार्यलय पर किया गया। इस समिति में छात्र संगठन एसएफ़आई, केवाईएस, डीएसयू सहित कई छात्र महिला और सामाजिक संगठन शामिल हैं। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस द्वारा दोषियों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए पीड़िता के न्याय के लिए आवाज़ बुलंद करने वाले छात्रों के खिलाफ बर्बरता किए जाने का भी मुद्दा उठाया।

इससे पहले, 16 अक्टूबर को एक विरोध प्रदर्शन में, एसीपी अजय कुमार और एसएचओ द्वारा मॉडल टाउन पुलिस स्टेशन में छात्रों और पत्रकारों के साथ, न्याय की मांग को लेकर प्रदर्शन करने वाले पीड़ित के रिश्तेदारों को भी हिरासत में लिया गया था। आरोप है कि इस दौरान उनके साथ मारपीट भी की गई थी।दिल्ली पुलिस ने बलात्कार और हत्या के परिवार के दावे के बावजूद इसे 'आत्महत्या' कहकर मामले को टाल दिया है। इससे गुस्साएं परिजन लगातर विरोध कर रहे हैं।

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पीड़िता उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के एक दलित परिवार से है। उनका परिवार दिल्ली में रहकर किसी तरह लोगों की घर में साफ-सफाई करके अपना गुजर बसर करता था। परिवार अपनी बेटी की मौत को लेकर गंभीर आरोप लगाता रहा है। उन्होंने साफ़तौर पर उनकी बच्ची के साथ रेप करके जान से मारने का आरोप लगाया है। हालाँकि, दिल्ली पुलिस ने इतने गंभीर आरोपों के बाद भी अभी तक इस मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं की है जबकि घटना को घटे लगभग एक महीना बीत गया है।

सोमवार को, जबकि डीसीपी ड्यूटी पर मौजूद नहीं थे, इसलिए अशोक विहार के एसीपी ने प्रदर्शनकारियों के प्रतिनिधिमंडल के साथ बात की। प्रतिनिधिमंडल ने गुड़ मंडी पीड़ित मामले में मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया गया है कि 7 दिनों के भीतर मामले में उचित जांच की जाएगी और दोषी पाए जाने पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली पुलिस से साफतौर पर कहा कि अगर मांग को पूरा नहीं किया गया तो उनका प्रदर्शन और तेज़ होगा। कमेटी फॉर गुड़ मंडी विक्टिम ने कहा जब तक पीड़िता और उसके परिवार को न्याय नहीं मिलेगा तब तक आंदोलन जारी रहेगा।  

प्रदर्शन में शामिल एसएफआई दिल्ली के अध्यक्ष सुमित कटारिया ने न्यूज़क्लिक से कहा कि,  “दिल्ली पुलिस की यह बात समझ से परे है कि वो इस मामले में प्राथमिकी क्यों दर्ज नहीं कर रही है? ,जबकि इसके लिए पर्याप्त प्रावधान और सबूत हैं। जिस क्षेत्र में यह कथित बलात्कार और हत्या हुई, वह दिल्ली विश्वविद्यालय के बहुत करीब है और यह थाना उन हजारों छात्राओं को होस्ट करता है जो अपने परिवारों से दूर और अकेले रहती हैं। इस तरह यौन दुराचार की सूचना पर पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई नहीं किया जाना बहुत ही खतरनाक और भयावह है। यह सब और कही नहीं बल्कि राजधानी में हो रहा है वो भी डीयू जैसे कैंपस के पास। अगर राजधानी में पुलिस का रवैया ऐसा ही रहता है तो यह हज़ारों छात्राओं को कैसे सुरक्षित रखेगा? यह एक गंभीर सवाल है इसका जबाब पुलिस को देना होगा।”

 पुलिस की कार्रवाई पर टिप्पणी करते हुए,  वकील आशुतोष कुमार मिश्रा, जो इस मामले में परिवार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया : “इस देश में, कोई भी एफआईआर दर्ज करा सकता है। 22 दिनों के दुराचार के बाद भी मामला दर्ज किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने  2013 में ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में फैसला सुनाया  कि भले ही यौन दुराचार का आरोप है और यह एक संज्ञेय अपराध है, पुलिस को भारतीय दंड संहिता की धारा 173 के तहत मामला दर्ज करना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा, "मामले में मरने वाली लड़की ने मौत से दो घंटे पहले परिवार को फोन किया और कहा कि वह सुरक्षित महसूस नहीं कर रही है। अगर पुलिस को भरोसा है कि कोई घटना नहीं हुई थी, तो वह मामला दर्ज करने जाँच करें और क्लोज़र रिपोर्ट दर्ज करें। इतनी बेपरवही और लापरवाही क्यों है?"

मिश्रा ने बताया कि "जब मैं पुलिसकर्मियों से मिलने गया था तब परिवार को महामारी अधिनियम के तहत गिरफ्तार  किया गया था, इसपर जब मैंने सवाल किया तो पुलिस ने  कहा कि परिवार ने फूलों के गमला तोड़ दिया था। इस परिवार ने अपनी बेटी खो दी और इन लोगों को फूलों के गमलों की चिंता है!"

इस बीच, पीड़िता की मौसी, जो अपनों के खोने का दुःख सह रही हैं, उन्होंने केवल कुछ शब्द ही कहे , "मुझे न्याय चाहिए, इससे ज़्यादा और कुछ नहीं!"

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