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मैनपावर की कमी से बेहाल बिहार में एक महीने और तीन महीने के लिए बहाल हो रहे डॉक्टर

पहले से ही मैनपावर के गंभीर संकट को झेल रहे बिहार की सरकार को डॉक्टरों और नर्सों की स्थायी नियुक्ति के बारे में सोचना चाहिए। इस तरह की ठेके वाली नीति से राज्य का कोई भला नहीं होने वाला।
मैनपावर की कमी से बेहाल बिहार में एक महीने और तीन महीने के लिए बहाल हो रहे डॉक्टर

पिछले डेढ़ साल से दुनिया भर को तबाह कर रही कोरोना आपदा से मुकाबले के लिए बिहार सरकार ने एक महीने और तीन महीने के लिए डॉक्टर-नर्स बहाल करने की घोषणा की है। जबकि राज्य में पहले से ही स्वास्थ्य कर्मियों के आधे से अधिक पद खाली हैं। पटना हाईकोर्ट ने खुद इस मसले पर टिप्पणी की थी। राज्य सरकार ने भी जल्द से जल्द खाली पड़े पदों को भरने की बात कही थी। सोशल मीडिया पर बिहार के स्वास्थ्य विभाग के इस फैसले की सख्त आलोचना हो रही है। लोग कह रहे हैं कि पहले से ही मैनपावर के गंभीर संकट को झेल रहे बिहार की सरकार को डॉक्टरों और नर्सों की स्थायी नियुक्ति के बारे में सोचना चाहिए। इस तरह की ठेके वाली नीति से राज्य का कोई भला नहीं होने वाला।

दरअसल इस संबंध में गुरुवार, 6 मई को बिहार में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने घोषणा की कि राज्य में तीन महीने के लिए अस्थायी तौर पर डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की बहाली होगी। 

मंत्री महोदय ने इस घोषणा को ट्वीट भी किया। इतना ही नहीं पूर्णिया जिले के सिविल सर्जन कार्यालय ने तो सिर्फ एक महीने के लिए 13 डॉक्टरों और 3 पारा मेडिकल स्टाफ की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी कर दिया। इन घोषणाओं और विज्ञापनों से यह स्पष्ट है कि बिहार सरकार स्वास्थ्य विभाग में खाली पड़े पदों के लिए स्थायी नियुक्ति के बारे में गंभीर नहीं है। वह बस तात्कालिक आपदा के लिए पदों को भरने की प्रक्रिया को अंजाम दे रही है।

28 अप्रैल, 2021 को पटना हाईकोर्ट को जानकारी देते हुए बिहार सरकार ने बताया था कि राज्य में सरकारी अस्पतालों के कुल 91921 स्वीकृत पदों में से 46256 पद खाली पड़े हैं। इनमें से 4149 विशेषज्ञ चिकित्सकों के और 3206 सामान्य चिकित्सकों के पद हैं। राज्य में चिकित्सकों के कुल 11645 पद स्वीकृत हैं, इनमें से 7355 पद खाली हैं। यानी लगभग तीन चौथाई। राज्य के अस्पतालों में मैनपावर का यह संकट लंबे समय से है। 2019 में चमकी बुखार के प्रकोप के वक्त भी बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि राज्य में डॉक्टरों के आधे और नर्सों के तीन चौथाई पद खाली हैं। पिछले साल मई महीने में ही राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने पटना हाईकोर्ट को बताया था कि राज्य में डॉक्टरों के 8768 पद खाली हैं।

इन आंकड़ों से जाहिर है कि लंबे समय से राज्य के अस्पतालों में मैनपावर की घोर कमी है। और सरकार इन कमी को पूरा करने में बहुत गंभीर नहीं है। पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त भी खाली पड़े सरकारी नौकरी के पदों को भरने का वादा सभी दलों ने किया था, मगर सरकार बनने के लगभग छह माह बाद भी ये पद खाली हैं।

आज 10 मई से राज्य में डॉक्टरों की अस्थायी भर्ती के लिए वाक इन इंटरव्यू की प्रक्रिया सभी जिले के अस्पतालों में शुरू हुई है। मगर डॉक्टरों में इस भर्ती को लेकर बहुत उत्साह नहीं है। क्योंकि ये भर्तियां कहीं तीन महीने तो कहीं एक महीने के लिए हो रही है। पिछले दिनों 4 मई को भागलपुर में रेलवे की तरफ से ऐसे ही एक वाक इन इंटरव्यू का आयोजन किया गया था, जिसमें भाग लेने के लिए कोई डॉक्टर नहीं पहुंचा।

इन मसले पर बात करते हुए मुजफ्फरपुर के जाने माने चिकित्सक निशिंद्र किंजल्क कहते हैं कि राज्य में चिकित्सकों के साथ सरकार का जो व्यवहार है, उस लिहाज से कोई क्यों इंटरव्यू देने जायेगा। वे कहते हैं कि राज्य में अब तक कोरोना से 48 चिकित्सकों की मृत्यु हो गयी है। यह सूची आईएमए ने जारी की है। मगर सरकार उनकी सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं है। ठेके पर बहाल डॉक्टरों को नियमित वेतन नहीं मिल रहा। यहां तो स्थिति ऐसी है कि कई डॉक्टर बहुत गंभीरता से अपना पेशा छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं।

अगर सरकार नियमित और स्थायी नियुक्ति नहीं करती। डॉक्टरों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम नहीं करती, तो शायद ही कोई डॉक्टर इस वाक इन इंटरव्यू में भाग लेने के लिए पहुंचे।  

(पुष्यमित्र पटना स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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