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लालू यादव और भाजपा के दोहरे मापदंड

लगभग हर विपक्षी पार्टी का कहना है कि बीजेपी उन्हें प्रताड़ित करने के लिए जांच एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है।
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फ़ोटो साभार: PTI

मेघालय में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री कोनराड के॰ संगमा को "सबसे भ्रष्ट" मुख्यमंत्री बताया था और उन पर मनी-लॉन्ड्रिंग के आरोप लगाए थे। लेकिन संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी ने 57 में से 26 सीटों पर चुनाव जीता और सरकार बनाई। जब कि भारतीय जनता पार्टी ने 60 सीटों में से दो सीटों पर ही जीत हासिल की, लेकिन परिणाम आने के बाद उसने संगमा सरकार को समर्थन देकर एक उन्मादपूर्ण यू-टर्न लिया। यही नहीं, बल्कि मोदी और शाह 7 मार्च को शिलांग गए और संगमा के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए- उसी दिन केंद्रीय जांच ब्यूरो के अधिकारियों ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से उनकी बेटी मीसा भारती के घर पर पूछताछ की। जाहिर है अब संगमा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर चर्चा नहीं होगी, जांच तो भूल ही जाइए।

पूरे विपक्ष ने जब हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट पर संयुक्त संसदीय समिति के माध्यम से जांच की मांग की तो प्रधानमंत्री ने अपने जवाब में अडानी का उल्लेख तक नहीं किया, जबकि रिपोर्ट में दावा किया है कि इसने समूह के "गबन" को उजागर किया है, जिससे दुनिया भर में गफलत पैदा हो गई थी। इस मुद्दे पर संसद को बार-बार ठप करने के बावजूद, सत्ता पक्ष टस से मस नहीं हुआ। यहां तक कि इंस्पेक्टर स्तर के किसी अधिकारी तक ने अडानी से पूछताछ नहीं की। इस बीच, मीडिया हाउस अल-जज़ीरा ने खुलासा किया है कि कैसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए अडानी समूह को कोयला ब्लॉक का आवंटन किया गया था।

संगमा और अडानी उन अनगिनत राजनेताओं और व्यापारियों के भ्रष्टाचार का मामूली हिस्सा  हैं, जो सत्ताधारी बीजेपी की "गुड बुक्स" में होने के कारण दंड-मुक्ति का आनंद ले रहे हैं। यह एक खुला रहस्य है कि सीबीआई, या प्रवर्तन निदेशालय और आयकर अधिकारियों की दबिश/तपिश का सामना करने वाले कई शीर्ष नेताओं को भाजपा में शामिल होने के बाद अचानक आज़ादी मिल गई। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री, नारायण राणे, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और तृणमूल कांग्रेस के पूर्व नेता सुवेन्दु अधिकारी और मुकुल रॉय उन लोगों में जाने जाते हैं, कि जब तक वे भाजपा में शामिल नहीं हो गए तब केंद्रीय जांच एजेंसियां ने उन पर दबिश बनाकर रखी। 

दूसरी ओर, लालू प्रसाद यादव हैं- जो शायद भाजपा के सबसे मजबूत और जुझारू विरोधी हैं- जिन्हे पिछले साल मार्च में तथाकथित चारा घोटाला मामलों में जेल की जमानती अवधि पूरी करने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया था। उन्होंने सिंगापुर में गुर्दा प्रत्यारोपण (उनकी बेटी रोहिणी आचार्य द्वारा दान) करवाया है और 11 फरवरी को नई दिल्ली लौटे थे। डॉक्टरों ने उन्हें संक्रमण के डर से भीड़ में न जाने की सलाह दी है। लेकिन सीबीआई की बारह सदस्यीय टीम ने उनसे चार घंटे तक पूछताछ की, जिसे उन्होंने "नौकरी के लिए जमीन" घोटाले का नाम दिया है। 

मुकदमों की प्रकृति:

2017 में सीबीआई ने लालू, उनके परिवार के सदस्यों और अन्य के खिलाफ दो मामले दर्ज किए थे। उस समय, उनकी पार्टी राजद महागठबंधन या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल-यूनाइटेड और कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल था। गठबंधन ने 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त दी थी और बिहार में सत्ता में आया था। इन  मुक़दमें के आरोप उस वक़्त के हैं जब लालू यादव केंद्रीय रेल मंत्री थे (2004-09)। इन आरोपों में जो शामिल हैं: वह नंबर 1- लालू ने रेलवे में ग्रुप डी की नौकरी देने के बदले जमीन ली, और 2- रेलवे ने निर्धारित प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए रांची (झारखंड) और भुवनेश्वर (ओडिशा) में आईआरसीटीसी के दो होटल निजी संचालकों को बेच दिए।

दरअसल, लालू के रेल मंत्री के कार्यकाल के दौरान उनके विरोधियों से सीबीआई को इन मामलों की शिकायतें मिली थीं। सीबीआई ने पहली बार 2008 में इसकी जांच की और यह कहते हुए इसे बंद कर दिया था कि "कोई सबूत नहीं है"। दोबारा, जब ममता बनर्जी रेल मंत्री बनीं, तो सीबीआई ने इन आरोपों की जांच की लेकिन 2011 में "कोई सबूत नहीं" मिलने के बाद मामले को फिर से बंद कर दिया गया। अब दो बार मामले बंद कर चुकी सीबीआई ने 2017 में उन्हें दोबारा कैसे खोल दिया?

लालू और उनकी पार्टी का आरोप है कि सीबीआई ने महागठबंधन को तोड़ने के मकसद से बीजेपी के इशारे पर काम किया। सीबीआई और आयकर अधिकारियों ने पटना में लालू के घर और इन दो मामलों को लेकर कई प्रतिष्ठानों पर छापा मारा और उनके, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बेटे और वर्तमान उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, बेटी मीसा भारती और अन्य के खिलाफ आरोप पत्र दायर किए। उसके बाद, 2017 में, नीतीश कुमार ने राजद के साथ महागठबंधन छोड़ दिया और भाजपा के पाले में लौट आए।

समय बीतता गया। दिन महीने और महीने साल बन गए। सीबीआई ने इन मामलों को तब तक तक आगे नहीं बढ़ाया जब तक नीतीश कुमार बीजेपी के साथ रहे। हालाँकि, जैसे ही उन्होंने भाजपा का दामन छोड़ा और महागठबंधन में लौटे, सीबीआई सक्रिय हो गई। अगस्त 2022 में ही, एजेंसी ने कथित तौर पर लालू और उनके करीबी लोगों से जुड़े 17 से अधिक प्रतिष्ठानों पर तब छापे मारे, जब नीतीश के नेतृत्व वाला महागठबंधन बिहार विधानसभा में विश्वास मत हासिल कर रहा था।

उसके बाद सीबीआई ने आईआरसीटीसी मामले में तेजस्वी यादव की जमानत रद्द करने के लिए अदालत में याचिका दायर की, जिसे उसने खारिज कर दिया। इसने लालू को जेल भेजने के लिए चारा मामलों में सजा की अवधि बढ़ाने के लिए भी याचिका दायर की। 15 मार्च को, एक अन्य याचिका के बाद, दिल्ली में राउज़ एवेन्यू कोर्ट ने लालू, राबड़ी, मीसा और अन्य को तलब किया। लेकिन इससे पहले 6 मार्च को सीबीआई ने राबड़ी से पटना में छह घंटे और लालू से 7 मार्च को नई दिल्ली में पूछताछ की थी। 

लालू पर दबिश देने की वजहें:

लालू शायद एकमात्र इतने बड़े क्षेत्रीय नेता हैं जिन्होंने भाजपा के साथ कभी समझौता नहीं किया और उन अल्पसंख्यकों के पीछे चट्टान की तरह खड़े रहे, जिनके खिलाफ संघ-परिवार घृणा भरे अभियान चलाता रहा है। इसके अलावा, वस्तुतः हर विपक्षी दल- कांग्रेस, वामपंथी दल, दक्षिण में क्षेत्रीय दल और आम आदमी पार्टी, जिनके पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में हैं- ने आरोप लगाया है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल उनके खिलाफ किया जा रहा है ताकि उनके नेता भाजपा में शामिल होने पर मजबूर हो जाएं।

भाजपा को इस 'योजना' में, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर राज्यों, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और गोवा में कई नेताओं के मामले में कुछ सफलता मिली है, जो विभिन्न कथित "घोटालों" में शामिल थे और जांच एजेंसियां उनका पीछा कर रही थी। ज़ाहिर है बीजेपी के पाले में आने के बाद ही उन्हें राहत मिली। जैसा कि तेजस्वी यादव ने ट्विटर पर कहा है- “अगर लालू जी बीजेपी से हाथ मिला लेते, तो वो आज हिंदुस्तान के राजा हरेशचंद्र होते। बंधुआ घोटाला दो मिनट में बंधुआ घोटाला हो जाता यदि अगर लालू जी का डीएनए बदल जाता है।” यानी, अगर लालू ने बीजेपी से हाथ मिला लिया होता, तो चारा घोटाले की जगह मेल मिलाप हो जाता- लेकिन यह संभव नहीं है, क्योंकि लालू के डीएनए को बदला नहीं जा सकता है। 

भाजपा ने 2017 में लालू के घर पर सीबीआई और आई-टी के छापे के बाद महागठबंधन को तोड़ दिया था, जिससे नीतीश ने यू-टर्न लिया था। लेकिन अब, बिहार के मुख्यमंत्री की पार्टी ने कहा है कि वह भाजपा के "खेल" को समझ गई है। नीतीश ने बार-बार कहा है कि भाजपा  महागठबंधन को तोड़ने के लिए छापेमारी का सहारा ले रही है लेकिन वे ऐसा हरगिज़ नहीं होने देंगे। 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार, मीडिया शिक्षक और सामाजिक मानव विज्ञान में स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Lalu Yadav and BJP’s Blatant Double Standards

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