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सारनाथ के धमेक स्तूप की पूजा-प्रार्थना रोके जाने से पुरातत्व विभाग और बौद्ध धर्मावलंबियों में बढ़ा विवाद

"अधीक्षण पुरातत्वविद अबिनाश मोहंती ने धमेक स्तूप की पूजा-ध्यान को धंधा बना लिया है। सख़्ती सिर्फ़ उन लोगों के साथ की जाती है जो सुविधा शुल्क नहीं देते। इनके दुर्व्यवहार से तंग आकर ताइवान, चीन, जापान, कोरिया के लोगों ने सारनाथ आना लगभग बंद कर दिया है।"
Buddhism

वाराणसी के सारनाथ में पुरातत्व खंडहर परिसर स्थित धमेख स्तूप की पूजा-प्रार्थना रोके जाने से पुरातत्व विभाग और बौद्ध धर्मावलंबियों में तनातनी बढ़ गई है। भारत में सारनाथ, बोध गया, लुंबिनी और कुशीनगर बौद्ध अनुयायियों की आस्था के बड़ा केंद्र हैं। पुरातत्व विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद अबिनाश मोहंती का दावा है कि जब से पुरातत्व खंडहर परिसर को संरक्षित किया जा रहा है तब से वहां कभी पूजा नहीं हुई। बौद्ध धर्म के लोग नई परिपाटी शुरू करना चाहते हैं। दूसरी तरफ बौद्ध अनुयायियों का कहना है धमेक स्तूप के निर्माण के समय महाराजा सम्राट अशोक ने उसमें भगवान बुद्ध की पवित्र अस्थियां रखवाई थी। तभी से वहां बौद्ध धर्मावलंबी पूजा-ध्यान करते आ रहे हैं। अपनी बातों को तस्दीक करने के लिए वो सालों पुरानी तमाम तस्वीरें और वीडियो दिखाते हैं जिसमें दुनिया भर के बौद्ध अनुयायी विधिवत फूल-माला, धूपबत्ती-अगरबत्ती के साथ स्तूप के सामने शीश नवाते नजर आते हैं। सारनाथ के खंडहर परिसर में जब से धमेख स्तूप के पास पूजा-ध्यान करने से रोका जा रहा है तब से तनातनी बढ़ती जा रही है।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित सारनाथ में बौध धर्म की आस्था का केंद्र धमेक स्तूप बनारस के उन 18 संरक्षित स्थलों में शामिल है, जिनकी देखरेख का जिम्मा पुरातत्व विभाग के पास है। सारनाथ में विवाद तब खड़ा हुआ जब 23 मार्च 2022 को धमेख स्तूप की पूजा करने जा रहे धम्म लर्निंग सेंटर के संस्थापक अध्यक्ष भिक्षु चंदिमा को सुरक्षा गार्डों ने रोक दिया। विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया कि कि बौद्ध भिक्षु और उपासक वहीं धरने पर बैठ गए। बौद्ध भिक्षुओं का आरोप था कि सुरक्षा गार्डों ने उनके साथ धक्का-मुक्की की। भिक्षु चंदिमा कहते हैं, "हैदराबाद की महाउपासिका माता भारती बाई कांबले की पुण्यतिथि पर तैलचित्र के साथ धमेख स्तूप पर हम पूजा और ध्यान करना चाहते थे। परिसर में प्रवेश के लिए हम सभी ने पुरातत्व विभाग से टिकट खरीद रखा था। धमेख स्तूप की ओर जाते समय सुरक्षाकर्मियों ने हमारे साथ बौद्ध भिक्षुओं व उपासकों को न सिर्फ रोका, बल्कि बदसलूकी भी की। लाचारी में हमें धरना देना पड़ा।"

सुरक्षाकर्मियों और बौद्ध अनुयायियों के बीच विवाद बढ़ने पर सारनाथ के थाना प्रभारी अर्जुन सिंह मौके पर पहुंचे और यह कहकर उनपर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि उनके पास धरना देने के लिए कोई अनुमति नहीं है। ऐसा करने पर पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेजेगी। पुलिस के समझाने के बाद उस दिन बौद्ध भिक्षुओं ने धरना समाप्त कर दिया, लेकिन जाते-जाते यह भी कह गए कि अगर उन्हें दोबारा रोका गया तो बड़ा आंदोलन करेंगे। जिस समय बौद्ध धर्मावलंबियों का धरना चल रहा था उसी बीच अधीक्षण पुरातत्वविद अबिनाश मोहंती एक आदेश लेकर पहुंचे और दावा किया कि धमेक स्तूप पर किसी को पूजा-ध्यान करने की अनुमति नहीं है। पूजा और ध्यान के लिए नई दिल्ली स्थित डीजी आफिस से अनुमति लेनी होगी। इसके लिए भी 15 दिन पहले अर्जी देनी होगी। मोहंती का कहना था, "पूजा-ध्यान के चलते स्तूप के आसपास गंदगी होती है। अगरबत्ती और मोमबत्ती जलाए जाने से स्तूप का क्षरण हो रहा है। बौद्ध धर्मावलंबी आडियो यंत्र बजाते हैं तो खंडर परिसर में ध्वनि प्रदूषण होता है।"

धरना दे रहे भिक्षु चंदिमा का कहना था कि था कि सारनाथ खंडहर परिसर और धमेक स्तूप को हम आस्था का केंद्र बनाना चाहते हैं और पुरातत्व विभाग के अफसर इसे पिकनिक स्पाट और मौजमस्ती का केंद्र बनाने पर उतारू हैं। सारनाथ में सम्राट अशोक के समय से धमेक स्तूप की पूजा हो रही है। दुनिया का कोई भी शासक सारनाथ आता है तो यहां शीश जरूर नवाता है। गूगल पर हजारों चित्र मौजूद हैं जो प्रमाणित करते हैं कि धमेक स्तूप पर पूजा-वंदना कोई नई बात नहीं। स्तूप के पास ध्यान और पूजा की परंपरा सदियों पुरानी है। पुरातत्व विभाग खंडहर परिसर में लाइट एंड साउंड प्रोग्राम करा सकता है और बौद्ध अनुयायियों के छोटे से आडियो संयंत्र से इन्हें दिक्कत है। धमेक स्तूप के पास पूजा के लिए अगरबत्ती और मोमबत्ती के लिए पहले से ही स्टैंड बना हुआ है। भारतीय परंपरा में बिना पानी, दीपक और फूल के कोई पूजा नहीं होती। हम महंगा टिकट लेकर अंदर जाते हैं तो व्यवस्था देखना पुरातत्व विभाग का काम है। जिस स्थान से हमारी अगाध श्रद्धा है वहां हम गंदगी क्यों करेंगे?  पुरातत्व विभाग वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि सिर्फ दुखी और अशांत लोग ही पूजा स्थलों पर जाते हैं, चाहे वो स्थल चाहे जिस धर्म व संप्रदाय के हों। हमें जब कभी पूजा और ध्यान से रोका जाएगा, धमेक स्तूप पर बौद्ध धर्मावलंबियों का जुटान जरूर होगा। बौद्ध धर्म के लोग शांति और अहिंसा में विश्वास रखते हैं, लेकिन जोर-जबर्दस्ती कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।"

बढ़ रही तकरार

पुरातत्व विभाग और बौद्ध अनुयायियों के बीच तनातनी का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बीते 03 अप्रैल 2022 को अचानक हजारों बौद्ध अनुयायियों का हुजूम सारनाथ पहुंचा और विधिवत टिकट लेकर खंडहर परिसर में प्रवेश कर गया। दरअसल, इस जुटाने चलते बौद्ध धर्मावलंबियों ने यह बड़ा संकेत देने की कोशिश की थी कि मामूली नोटिस पर भी हजारों लोग सारनाथ पहुंच सकते हैं। दूसरी मर्तबा धमेक स्तूप के पास जुटे हजारों बौद्ध अनुयायियों ने करीब ढाई घंटे तक पूजा-प्रार्थना की और पुरातत्व विभाग की मनमानी का प्रतिवाद किया। बौद्ध धर्मावलंबियों को संबोधित करते हुए धम्म शिक्षण संस्थान के संस्थापक भंते चंदिमा  ने कहा, "सम्राट अशोक द्वारा निर्मित स्तूप पवित्र धर्म स्थल है और इसे आस्था का केंद्र ही बने रहने दिया जाए। पुरातत्व विभाग अनुमित दे अथवा न दे, बौद्ध अनुयायी पहले की तरह पूजा करते रहेंगे।" इस मौके पर नागपुर के भंते विनय राखित, ज्ञान रक्षित, भिक्षु धम्म शील, हैदराबाद की उपासिका इंदू, संदीप कांबले, वर्षा कांबले, अरविंद मौर्या आदि ने पूजा पर पाबंदी को आस्था पर कुठाराघात बताया। साथ ही यह भी कहा, "सारनाथ स्थित धमेक स्तूप की पूजा सदि यों से हो रही है और वो इस परंपरा को नहीं टूटने देंगे। पुरातत्व विभाग के अफसर अबिनाश मोहंती आरएसएस के इशारे पर झूठी कहानियां गढ़ रहे हैं और बौद्ध अनुयायियों के साथ जोर-जबर की कार्रवाई करने का प्रयास कर रहे हैं।"

धम्म शिक्षण संस्थान के संस्थापक भंते चंदिमा जिन्हें सबसे पहले पूजा करने से रोका गया

प्रतिबंध का आदेश है : मोहंती

बनारस परिक्षेत्र के सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद अब्दुल आरिफ से इस बाबत ‘न्यूजक्लिक’ ने बातचीत की। आरिफ ने कहा, "भिक्षु चंदिमा ने बौद्ध अनुयायियों को उकसाया, जिसके चलते हजारों लोगों का हुजूम टिकट लेकर खंडहर परिसर में घुस गया। शुरू में हमें लगा कि कुछ ही लोग आएंगे, लेकिन तीन अप्रैल 2022 को अपराह्न तीन बजे तक दस-पंद्रह बसें और सैकड़ों छोटी गाड़ियों से हजारों बौद्ध धर्मावलंबी पहुंच गए। कुछ लोगों के पास फूल-माला और आसान भी था। हम प्रतिरोध करते तो शायद विवाद जरूर बढ़ जाता। पुरातत्व विभाग के पास उनके महकमे का एक आदेश है जिसमें पुरातात्विक स्थलों पर पूजा-अर्चना प्रतिबंधित की गई है।" हालांकि आदेश पुराना है और उसी को आधार बनाकर अधीक्षण पुरातत्वविद अबिनाश मोहंती ने अब पाबंदी लगानी शुरू कर दी है, जिसके चलते विवाद गहराता जा रहा है।

इसी आदेश के जरिये पुरातत्व विभाग के अफसर कर रहे रोकटोक

पूजा की परंपरा सदियों पुरानी

भिक्षु चंदिमा पुरातत्व विभाग के अफसरों के उन आरोपों को को निराधार और मनगढ़ंत बताते हैं कि उनके उकसाने पर धमेक स्तूप पर हजारों लोगों का हुजूम जुटा। ‘न्यूजक्लिक’ ने भिक्षु चंदिमा से बात की तो उन्होंने विस्तार से अपना पक्ष रखा और स्तूप पर सालों से हो रही पूजा-ध्यान के बाबत अनेक साक्ष्य पेश किए। चंदिमा कहते हैं, "अगर उकसाई गई भीड़ सारनाथ आती तो उपद्रव करती। भीड़ श्रद्धा के साथ आई थी। सभी के पास टिकट था। पूजा-ध्यान करने के बाद लोग शांति से चले गए। पुरातत्व विभाग के कुछ अफसर बौद्ध धर्म के खिलाफ साजिश में लगे हैं। वो हमारे धर्म का प्रचार-प्रसार और प्रार्थना-पूजा रोकना चाहते हैं। सारनाथ आने वाले कुछ लोग लालची अफसरों को डालरों की बख्शीश दे जाते हैं। सुविधा शुल्क देने वालों को धमेक स्तूप के पास सब कुछ करने दिया जाता है। उनकी दरी, फूल-माला, अगरबत्ती सब कुछ अंदर चली जाती है। जब कोई स्थानीय व्यक्ति पूजा करने जाता है तो उसे रोका जाता है और बदसलूकी की जाती है। अधीक्षण पुरातत्वविद अबिनाश मोहंती ने धमेक स्तूप की पूजा-ध्यान को धंधा बना लिया है। सख्ती सिर्फ उन लोगों के साथ की जाती है जो सुविधा शुल्क नहीं देते। इनके दुर्व्यवहार से तंग आकर ताइवान, चीन, जापान, कोरिया के लोगों ने सारनाथ आना लगभग बंद कर दिया है। सिर्फ थाईलैंड, बर्मा और श्रीलंका के बौद्ध अनुआयी आ रहे हैं। पुरातत्व विभाग के अफसर को शायद यह नहीं मालूम कि बौद्ध काल में पहाड़, जंगल और नदियां पूजी जाती थीं। बाद में महाराजा कनिष्क के शासनकाल में मूर्तियों की पूजा शुरू हुई और वह परंपरा आज तक चली आ रही है।" इस संबंध में अधीक्षण पुरातत्वविद से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने अपना पक्ष रखने से साफ-साफ मना कर दिया।  

रोक-टोक के पीछे आरएसएस

सम्राट अशोक बौद्ध महासंघ के संस्थापक चित्रप्रभा त्रिसरण कहते हैं, "सारनाथ को छोड़कर दुनिया में जितने भी धर्म स्थल हैं, वहां किसी को प्रार्थना-पूजा करने से नहीं रोका जाता है। अपने धार्मिक स्थलों पर मुस्लिम नमाज अदा कर सकते हैं, तो हिन्दू, ईसाई और सिख भी अपने पूजा स्थलों पर शीश नवा सकते हैं। सिर्फ बौद्ध धर्म के लोगों पर धमेक स्तूप पर पूजा-ध्यान करने से क्यों रोका जा रहा है? आखिर यह पाबंदी किसके इशारे पर और क्यों लगाई जा रही है? बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म की छोटी शाखा नहीं है। इस धर्म के अनुयायी दुनिया के 18 देशों में हैं और उनकी आबादी हिन्दुओं से कई गुनी ज्यादा है। तभी तो बौद्ध धर्म को अपने साथ मिलने के लिए आरएसएस ने भगवान बुद्ध को पहले विष्णु का अवतार बनाया और कामयाबी नहीं मिली तो सम्राट अशोक के खिलाफ प्रोपगंडा और बितंडा खड़ा करना शुरू कर दिया। पुरातत्व विभाग के अफसरों को शायद यह नहीं पता है कि सम्राट अशोक ने भगावन बुद्ध की अस्थियों को स्तूप में रखकर धमेक का निर्माण कराया था। बौद्ध धर्म के लोग ऐसे पवित्र स्थान की पूजा नहीं करेंगे तो कहां जाएंगे और क्या करेंगे?  सारनाथ खंडहर परिसर आस्था का केंद्र है, मौजमस्ती और मनोरंजन का नहीं। पुरातत्व विभाग के अफसर खंडहर में रोमांस करने वालों को जुटाना चाहते हैं, ताकि उनकी कमाई में इजाफा हो। पवित्र चौखंडी स्तूप पर ऐसे तमाम जोड़ों को देखा जा सकता है जो वहां शीश नवाने नहीं, कुछ और करने आते हैं। पुरातत्व विभाग के लोग प्रेमी जोड़ों को देखते हैं और आंखें फेर लेते हैं। हमारी डिमांड है कि धमेक स्तूप की पूजा के लिए बौद्ध भिक्षुओं से टिकट न लिया जाए और बौद्ध पर्वों पर परिसर में उपासक और उपासिकाओं को निःशुल्क प्रवेश दिया जाए। अगर पूजा-ध्यान की अनुमति नहीं दी गई तो सारनाथ से बड़ा आंदोलन शुरू होगा, जिसकी धमक दुनिया भर में जाएगी।"

बौद्ध धर्म में अगाध श्रद्धा रखने वाले पत्रकार पवन मौर्य सारनाथ स्थित खंडहर परिसर में धमेक स्तूप पर पूजा-ध्यान से रोके जाने को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की साजिश करार देते हैं। वह कहते हैं, "आरएसएस के लोग नहीं चाहते कि बौद्ध धर्म का विस्तार हो। संघ परिवार ने जब से सम्राट अशोक महान को भारतीय इतिहास का खलनायक और बौद्ध मतावलंबियों को राष्ट्रद्रोही घोषित करना शुरू किया है, तभी से सारनाथ में विवाद शुरू हुआ है। आरएसएस के राजस्थान वनवासी कल्याण परिषद के मुखपत्र “बप्पा रावल’ में छह साल पहले सम्राट अशोक की महानता पर सवालिया निशान खड़ा करते हुए बौद्ध मतावलंबियों को देशद्रोही और भारत को महान से पतित बनाने वाला बताया गया था।"

सारनाथ में पुरातत्व विभाग के खिलाफ उठे विरोध के स्वर

पवन कहते हैं, "आरएसएस के सांस्कृति प्रकोष्ठ से जुड़े दया प्रकाश सिन्हा ने अभी हाल में सम्राट अशोक के खिलाफ एक विवादित इंटरव्यू देकर बड़ा बितंडा खड़ा किया था। हमें लगता है कि पुरातत्व विभाग के अफसर आरएसएस के दबाव में हैं। संघ के इशारे पर वो बौद्ध धर्मावलंबियों के साथ जोर-जबर्दस्ती करना चाहते हैं। शायद वो भूल गए हैं कि सारनाथ और उसके आसपास 20 किमी के दायरे में बौद्ध धर्मावलंबियों का खासी आबादी है। अगर वो विरोध पर उतर जाएंगे तो किसी को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बीते दिनों की तरह हजारों लोग मौके पर स्वतः जुट जाएंगे। अच्छी बात यह है कि बौद्ध धर्म के लोग मानवतावादी हैं और हिंसा में भरोसा रखते हैं। पुरातत्व विभाग के अफसर अपनी मनमानी बंद करें और बौद्ध अनुयायियों के सब्र का इम्तिहान न लें। कितनी अजीब बात है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार अशोक रथ निकालकर अशोक की जयंती मनाने की तैयारियों में जुटे हैं और यूपी में भाजपा सरकार आखें तरेर रही है। धमेक स्तूप 84 हजार स्तूपों में से एक है। इस विवाद पर भारतीय संस्कृति मंत्रालय को हस्तक्षेप करना चाहिए। बेहतर होगा कि पुरातत्व विभाग हजारों साल की परंपरा को रोकने की कोशिश कतई न करे।"

धर्म चक्र अशोक विहार के प्रबंधक संजय कुमार कहते हैं, "पूर्वांचल में मौर्य, पटेल और दलित समुदाय के लोगों की बौद्ध धर्म में अटूट श्रद्धा है। अगर बौद्ध अनुयायियों के साथ दुर्व्यवहार और बदसलूकी की गई तो बहुत बुरा असर पड़ेगा। दुनिया भर में अब तक जितने भी इतिहासकार हुए हैं, सभी ने सम्राट अशोक को धर्मराज कहकर संबोधित किया है। ऐतिहासिक खंडहर परिसर और धमेक स्तूप बौद्ध आस्था का बड़ा केंद्र है, लेकिन पुरातत्व विभाग के अफसर इसे सैलानियों का गढ़ और पर्यटन केंद्र बनाने पर तुले हैं। पूजापाठ पर रोक-टोक होगी तो विरोध होगा ही। सारनाथ में धमेक स्तूप और चौखंडी स्तूप बौद्ध अनुयायियों का पवित्र पूजा स्थल है। इसे सैलानियों के मनोरंजन का केंद्र अथवा प्रेमी-प्रेमिकाओं का आश्रय स्थल बनाया जाना उचित नहीं है।"

शांति चाहिए तो सारनाथ में मिलेगी

वाराणसी से करीब 13 किमी की दूर सारनाथ देश के प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। वाराणसी के आस-पास घूमने वाली जगहों में यह एक बेहद खास स्थान है। काशी के घाटों और गलियों में घूमने के बाद आप इस जगह आकर एकांत में शांति का अनुभव कर सकते हैं। बौद्ध ग्रंथों के मुताबिक बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने बाद भगवान बुद्ध अपने पूर्व साथियों की तलाश में सारनाथ आए थे और उन्होंने यहां अपना पहला उपदेश दिया था। बौद्ध धर्म में मान्यता है कि आर्य अष्टांग मार्ग पर चलकर व्यक्ति मोक्ष पद को प्राप्त कर लेता है।

सारनाथ कई बौद्ध स्तूपों, संग्रहालयों, प्राचीन स्थलों और सुंदर मंदिरों के साथ ऐतिहासिक चमत्कार का एक शहर है। धमेख स्तूप, चौखंडी स्तूप, अशोक स्तंभ, पुरातत्व संग्रहालय, मूलगंध कुटी विहार, चीनी, थाई मंदिर बौद्ध धर्मावलंबियों की आस्था के बड़े केंद्र हैं। जिस धमेक स्तूप पर पूजा को लेकर विवाद शुरू हुआ है उसका निर्माण सम्राट अशोक ने 500 ईसवी में कराया था। सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में कई स्तूप बनवाए थे और इन स्तूपों में बुद्ध से जुड़ी कई निशानियां भी रखी गई थीं।

(विजय विनीत स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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